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swami vivekanand avataran divas -yuth day of nation

January 10, 2018
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swami vivekanand avataran divas –

yuth day of nation

Hindi Hindustani

स्वामी विवेकानंद १२ जनवरी ,१८६३

स्वामी विवेकानन्द अवतरण दिवस 

स्वामी विवेकानन्द अवतरण दिवस 
Hindi Hindustani

१२ जनवरी ,१८६३

१२ जनवरी , इसी दिन अवतरण  हुआ था तेजस्वी ओजस्वी ,वैचारिक क्रांति के अग्रदूत और राम कृष्ण परम हंस के उत्तराधिकारी राष्ट्रीय युवा संत स्वामी विवेकानन्द का ,जिनकी प्रखर वाणी ने १८९३ में शिकागो में आयोजित विश्व धर्म सम्मलेन में प्रबुद्ध श्रोताओं  को अपने उद्बोधन से अभिभूत कर विश्व समुदाय का ध्यान भारत की ओर  आकर्षित किया ।१२ जनवरी स्मरण कराता है ,उस युवा संन्यासी का जिसने प्रमाणित किया कि महत्वपूर्ण यह नहीं कि जीवन कितना लम्बा जिया गया ,महत्वपूर्ण यह है कि जीवन कितना सार्थक जिया गया। निरर्थक लम्बे जीवन से कहीं ज्यादा अच्छा है ,छोटा किन्तु सार्थक जीवन। 
पुण्य भूमि भारत की धरा पर अवतरित होकर ३९ वर्ष की अल्पायु में ही धर्म की  सटीक व्याख्या कर उन तथाकथित तार्किक प्रबुध्द वर्ग की बुद्धि मलिनता का प्रक्षालन कर सत्य का साक्षात्कार कराया।  उनका तेजोमय मुख मंडल आज भी देदीप्यमान नक्षत्र की भांति हृदयाकाश में प्रदीप्त है। दैहिक रूप से न सही ,उनकी अमर वाणी आज भी भारत के युवाओ का मार्ग प्रशस्त कर रही है

Hindi Hindustaniयदि आपकोअपने आप पर विश्वास नहीं ,तो आप ईश्वर पर भी विश्वास नहीं कर  सकते।
एक समय में एक काम करो ,और सब भूल जाओ ,उसी एक काम में अपनी आत्मा डाल दो।
आवश्यक नहीं कि  रिश्ते  संख्यां में ज्यादा हो। रिश्ते भले ही  कम हो , किन्तु उनमे जीवन हो।
नायक बनो और निर्भीक होकर कहो -मुझे कोई भय नहीं।

स्वामी विवेकानंद ,जिन्होंने भारत के गौरव को  भौगोलिक  सीमाओं  के पार  पहुँचाकर   आध्यात्मिक  श्रेष्ठता  के पद  पर  आसीन  करने  में  अहम भूमिका निभाई ,   स्वामी विवेकानंद ,जो निर्धन और दरिद्रों  के सेवा करने के लिए ही भारत की धरती पर अवतरित हुए थे ,जिन्होंने   मानव सेवा को ही परमात्मा  की सेवा माना और इसे ही अपने जीवन का ध्येय बनाया। जिसने इस अवधारणा को स्थापित  किया कि समस्त  प्राणी  परमात्व  का  ही अंश  है। जिसने सपनो  का  एक ऐसा  संसार बनाना चाहा  जिसमे  न धर्म  का भेद  हो , न जाति  का।

Hindi Hindustaniसब कुछ खो देने से ज्यादा बुरा है -उम्मीद को खो देना। उम्मीद के भरोसे हम खोये हुए को फिर से पा सकते है किन्तु उम्मीद ही खो दी तो फिर कुछ नहीं पाया जा सकता।

अपना जीवन एक लक्ष्य पर केंद्रित करो। अपने पूरे शरीर को उस लक्ष्य से भर लो और अन्य सभी विचारों को निकल कर फेंक दो। यही  सफलता का मन्त्र है।

मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए ,दुनिया परिहास करें या तिरस्कार ,परवाह मत करों।

स्वामीजी ने  आध्यात्म और भौतिकता  के मध्य समन्वयक  बनकर समता के सिद्धान्त का  प्रति  पादन किया ।इस  युवा  संत ने  हिन्दू  धर्म  को  विश्व को  सहिष्णुता  तथा  सार्वभौम  स्वीकृत  दोनों  की  शिक्षा  देने वाला प्रमाणित किया ।  इसी युवा राष्ट्र संत ने  हिन्दू धर्म को विदेशी धरती पर खड़े होकर स्वयं को भारत भूमि पर जन्म लेने को अपना सौभाग्य और गर्वित  होने का उद्घोष किया था। भारत की स्तुति में कहा था कि  भारत विश्व की वह थाती है जो विश्व को वह दे सकती है ,जिसकी विश्व को सबसे अधिक आवश्यकता है। पश्चिम के पास यदि भौतिकता है ,तो पूरब  के पास आध्यात्मिकता का अकूत भण्डार।

Hindi Hindustaniजिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो ,उसी समय उस काम में लग जाना चाहिए अन्यथा लोगों का विश्वास उठ जायेगा।

अपने स्वाभाव के प्रति ईमानदार होना ही सबसे बड़ा धर्म है।

असंभव से आगे निकल जाना ही  संभव को जानने का एक मात्र उपाय है।


दिन में  कम  से कम  एक बार अपने आप से स्ववार्ता  अवश्य करें अन्यथा आप दुनिया के एक श्रेष्ठ मनुष्य के साथ एक बैठक गवां देंगे।

 



 उन्होंने   भारत  भूमि को  विभिन्न  धर्म  विजातीय  शरणाथियों की  शरणागत स्थली  बतलाया।  धर्म  और दर्शन की पुण्य  भूमि  से उपमित   किया।  उन्होंने  भारत  को मानव  जीवन  के सर्वोच्च आदर्श  और  मुक्ति  का द्धार  बतलाया।  उन्होंने  पुरज़ोर  शब्दों  में  उद्घोष  किया था-  अध्यात्म  ज्ञान  और भारतीय  दर्शन  के अभाव   में  समस्त  विश्व  अनाथ  हो  जाएगा। भारत  के संदर्भ  में   उनका  यह कथन कि भारत  धरा पर  मानवता   का द्वारक  है,   अपनी जन्म भूमि के बारे उद्भासित विचार उन्हें राष्ट्र संत होने के पद पर आसीन करता है।

Hindi Hindustaniहज़ारों ठोकरे  लगने के बाद ही अच्छे चरित्र का निर्माण होता है।


किसी मक़सद के लिए खड़े हो तो एक  पेड़ की तरह ,गिरो तो एक बीज की तरह ,ताकि फिर से उसी मक़सद  के लिए उठ खड़े हो सको ।


जो अग्नि गर्मी दे सकती है ,वह जला  भी सकती है लेकिन इसके लिए  दोष अग्नि का नहीं दिया सकता ।


राष्ट्र को आवश्यकता है -फौलादीमांसपेशियों और व्रज के समान  स्नायुओ की  … जितना विलाप करना था ,कर लिया। 
अब विलाप करना  छोड़कर मनुष्य बनो। .आत्म -निर्भर मनुष्य 


स्वामीजी दुखों  का कारण  मानते  हैं -मनुष्य के भीतर के भय और उन कामनाओं को जो पूर्ण नहीं हो सकी। भय दुर्बलता का चिह्न है। भविष्य की आशंका और साहस की कमी से ही मनुष्य असफल होता है।  जीवन में सफल होने के लिए स्वामी जी कहते थे कि  जीवन का एक ही लक्ष्य बना लो ,उस लक्ष्य का पाना ही जीवन का उद्देश्य बन जाये ,अन्य सभी लक्ष्य को भूल जाओ। जन्म ,मृत्यु ,बुढ़ापा और रोग ये सब सार्वभौमिक सत्य है। इन सब से भयभीत नहीं होना चाहिए।  आत्मा के अतिरिक्त अन्य कोई गुरु नहीं। जितना मनुष्य की आत्मा मनुष्य को सीखा  सकती है ,उतना और कोई नहीं।

Hindi Hindustani ऐसा कभी मत सोचिये कि  आत्मा  के लिए कुछ भी असंभव है ,ऐसा सोचना भी पाप है।  अपने को  या किसी अन्य को  को निर्बल मनना ही सबसे बड़ा पाप है।
कंभी  किसी की निंदा ना करें। यदि आपके हाथ किसी की सहायता के बढ़  सकते है तो ज़रूर बढ़ाइये  और यदि नहीं तो ,अपने हाथ जोड़कर अपने भाइयों को उन्हें उनके मार्ग पर जाने का आशीर्वाद दीजिये।


शक्ति जीवन है ,निर्बलता मृत्यु है। जीवन विस्तार है और मृत्यु संकुचन है। प्रेम जीवन है और द्वेष मृत्यु।

 


 स्वस्थ विचारों से ही  स्वस्थ शरीर का निर्माण होता है।  अपने आप को शक्तिशाली और अपने आप को विश्वास दिलाओ कि  मुझे कोई भय नहीं। सही मायने में जीना उसी का सार्थक है जो दूसरों के लिए जीता  है। ,,अपने लिए जीना तो पशु प्रवृति है।
Hindi Hindustaniनिर्भय होना अस्तित्व का रहस्य है ,इस बात की आशंका ना रखों कि तुम जीवन में क्या बनोगे ,किसी पर निर्भर ना रहो जिस क्षण तुम सबकी सहायता अस्वीकार कर डोज ,उसी क्षण  तुम मुक्त हो जाओगे।

साहसी अकेला ही उस   महान  लक्ष्य को प्राप्त कर सकता जिसे बहुत सारे मिलकर भी प्राप्त नहीं कर सकते।
हम  वही है जो हमें हमारी सोच ने  बनाया है ,इसलिए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए कि  हम क्या सोचते है। शब्द गौण है ,विचार प्रमुख है।

 



जीवन का उद्देश्य बतलाते हुए स्वामीजी ने कहा था – खड़े हो जाओ ,शक्तिशाली बनो ,सारा उत्तरदायित्व अपने कंधे पर डाल लो  अपने भाग्य के निर्माता स्वयं को मानो। सफलता का आनंद उठाने के लिए कठिनाइयों का होना अनिवार्य है। जीवन की राह भाग्य प्रदत्त नहीं होती ,जीवन राह स्वयं बनानी पड़ती है। लोग क्या कहेगे इस बात की चिंता मत करो। बस ,अपने कर्तव्य पथ पर बढते  रहो। चाहे जो हो जाये अपनी मर्यादा का कभी उल्लघन मत करों। समुंद्र अपनी मर्यादा लाँघ  देता है ,लेकिन तुम मत लाँघना। ,समुंद्र  से भी ज्यादा विशाल बन जाओगे।

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