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subhash chandra bose in hindi

January 22, 2017
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subhash chandra bose in hindi

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subhash chandra bose

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23 जनवरी ,1897
नेताजी सुभाष चन्द्र  बोस के जन्म दिन पर विशेष 

शमा को जलाते  सभी ने देखा है 
मगर किसने देखा है 
शमा के बीच  धांगे का जिगर जलता  है 
 
 
 
यह बात बहुत कुछ देश के क्रांतिकारियों पर अक्षरशः चरितार्थ होती है।विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि  देश को आज़ादी काँग्रेसी नेताओं के संघर्ष ,त्याग और बलिदान से प्राप्त हुई थी। स्कूली विद्यार्थी भी यही  समझते है , जानते है। काँग्रेसी  नेताओं के जीवन पर आधारित लंबे- चौड़े पाठ पाठ्यक्रम में शामिल किये गए। उनके प्रयासों को महिमा मण्डित  करके प्रस्तुत किया गया। उन्हें स्वतन्त्रता  आंदोलन के नायक के रूप में स्थापित किया गया  किन्तु विद्यार्थियों को यह ना पढ़ाया गया और ना बताया गया कि  सच्चे क्रांतिकारी के लक्षण क्या होते है ,सच्चे क्रांतिकारी कैसे होते है ,,सच्चे क्रांतिकारी कौन थे ?
स्वतन्त्रता की जो ईमारत आज की पीढ़ी देख रही है ,उस पर लगे कंगूरे को श्रद्धा और सम्मान के साथ देख रही है किन्तु इस पीढ़ी को शायद यह मालूम नहीं इसकी नींव में जो ईंटें दबी हुई है ,जिस पर स्वतन्त्रता  की ईमारत खड़ी है ,वे ईंटें कौन थी ?
कंगूरों की जन्मतिथि -पुण्यतिथि कब आती है ,सबको पता  है ,जिसे पता नहीं ,उन्हें बता दिया जाता है किन्तु जो ईंटों की तरह दब गए ,वे  कब दुनिया में आये और  ,कब चले गए , पता नहीं चलता।
नामी नेताओं  को इतिहास के पन्नों में बड़े-बड़े बंगले दिए गए और गुमनाम को   झुग्गी -झोपड़ी में जगह दे दी गयी।  जिन पर कभी किसी पारखी की नज़र पड़ जाती है, तो वे लोग अनजान लोगों को बता देते है कि  भाई ,इसने भी स्वतन्त्रता  के हवन – कुंड में एक आहुति दी थी।
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि  हम बात कर रहे उन क्रांतिकारियों की जिन्होंने भीड़ में खड़े होकर भाषण नहीं बल्कि जैसा कहा वैसा कर दिखाया ।
सुभाष चंद्र बोस के इस कथन से उनकी राष्ट्र भक्ति का स्वर स्वत:उद्घोषित हो जाता है-
पराधीन जाति  का सब कुछ  व्यर्थ है .. उसकी शिक्षा व्यर्थ है  ….. उसका धर्म व्यर्थ है। यदि शिक्षा और धर्म का उपयोग स्वाधीनता प्राप्त करने में न किया जाये। 
आई. सी.एस.जैसी उच्च परीक्षा उत्तीर्ण कर सरकारी नौकरी त्याग कर अपने ही कथन को प्रमाणित भी किया।    

 २ अक्टूबर को गाँधीजी का जन्म हुआ था ,सबको याद है ,१४ नवम्बर को जवाहरलाल नेहरू का जन्म हुआ था ,सबको याद है , लेकिन अफसोस हममे से अधिकांश को यह पता नहीं केलेंडर के पन्ने में २३ जनवरी  क्यों महत्वपूर्ण है ?

Hindi Hindustani२३ जनवरी  को तुम मुझे खून दो ,मैं  तुम्हे आज़ादी दूँगा  का नारा बुलंद करने वाले और दिल्ली चलो का आह्वान कर क्रांति का शंख नाद  और जय हिन्द का उद्घोष करने वाले क्रन्तिकारी सुभाष चन्द्र  बोस का  जन्म दिन है।
इतिहास और केलेंडर के पन्नों में २३ जनवरी  इस लिए महत्त्व पूर्ण है, क्योकि आज के दिन ही भारत माता का वह सपूत जन्मा था, जिसने अपनी जवानी अपनी भारत माता को गुलामी की जंज़ीरों से मुक्त करने के लिए व्यतीत  कर दी ।सुभाष चन्द्र  बोस एक ऐसे व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी  जो आज  भी राष्ट्र भक्तों के ह्रदय में राष्ट्रप्रेम की जज्बा पैदा करता है।उनके ह्रदय में देश प्रेम की भावना कितनी प्रबल थी ,इस बात का अनुमान इस त्याग से लगाया जा सकता है कि  उन्होंने  उस आई सी एस के पद को भी ठुकरा दिया ,जो उनके पिता का स्वपन था। गुलामी के पैसों से बनी रोटी खाना उन्हें स्वीकार ना था।

सुभाष चन्द्र  बोस ऐसे क्रांतिकारी जिन्होंने भारत की भूमि से दूर ब्रिटिश हुकूमत के विरूद्ध जंग करने के लिए जापान के साथ मिलकर आज़ाद हिन्द फ़ौज का संघटन किया और ब्रिटिश हुकूमत की नींद  हराम की।ब्रिटिश हुकूमत तो नेताजी से इतनी भयभीत थी कि ब्रिटिश हुकूमत ने नेताजी की हत्या तक के आदेश दे दिए थे।   सुभाष चन्द्र बोस ने ज़िन्दगी से नहीं , राष्ट्र से प्रेम किया ।वे मौत के ख़ौफ़ से भागे नहीं बल्कि मौत को चकमा देकर भागे और जब तक जिए ,वतन के लिए जिए।
सुभाष चन्द्र बोस  जानते थे कि  स्वतन्त्रता हमारा अधिकार है और अधिकार हाथ फैला कर नहीं मांगे जाते बल्कि लड़कर  छीने जाते है। माँगता  वह है जो कमजोर होता है।यद्यपि महात्मा गाँधी उनके राजनितिक आदर्श थे किन्तु स्वतन्त्रता  प्राप्ति के लिए दोनों के मार्ग भिन्न -भिन्न थे।  गांधीजी अहिंसा के समर्थक थे और नेताजी बलिदान के। गांधीजी के स्वतन्त्रता के उद्देश्य पूति  के लिए ही वे गाँधी जी के साथ जुड़े थे ,किन्तु भगत सिंह की फाँसी को लेकर गांधीजी ने अंग्रेजों के जिस समझौते को स्वीकार किया था ,उसे लेकर नेताजी और गांधीजी के बीच मतभेद उत्पन्न हो गए थे।गांधीजी के साथ उनके वैचारिक मतभेद अवश्य रहे किन्तु ह्रदय से सदैव सम्मान करते रहे। इसका प्रमाण है ,जब नेताजी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रंगून के रेडियो प्रसारण  युद्ध की घोषणा करते हुए गाँधीजी से  आशीर्वाद की कामना की थी।
सुभाष चन्द्र बोस जान लिया था कि  स्वतन्त्रता  की देवी सुंदर आदर्श और सिद्धान्तों के फूल चढ़ाने से प्रसन्न नहीं  होती ,रक्त के तरल द्रव चढ़ाने से प्रसन्न होती है।
सुभाष चन्द्र बोस ने प्रमाणित कर दिया कि  महत्वपूर्ण यह नहीं है कि  आपने कितनी लंबी ज़िन्दगी जी है ,महत्वपूर्ण यह है कि  ज़िंदगी कितनी सार्थक जी है।कितना जांबाज़ रहा होगा भारत माता का यह सपूत।
 स्वतन्त्रता की आग उनके सीने  में थी ,उतनी आग उनके विचारों में भी थीवे अन्याय को सहना और अन्याय के साथ समझौता करने को सबसे बड़ा अपराध समझते थे।अन्याय के साथ समझौता करने को वे अपवित्रता मानते थे। संघर्ष से ही आत्मविश्वास पैदा होता है। कष्ट सहने  का भी अपना एक नैतिक मूल्य होता है। सफलता भले ही संदिग्ध लगे किन्तु प्रयास निरंतर करते रहना चाहिए। संघर्षों और समाधानों के बीच  से गुजरते हुए आगे बढ़ाते रहना चाहिए,चाहे रास्ता कितना ही कटीला और पथरीला ही क्यों ना हो, सफलता चाहे देर से ही सही ,लेकिन मिलेगी ज़रूर  । विश्वास की कमी ही सारे कष्टों और दुखों का कारण  है। यदि जीवन में संघर्ष ना हो तो जीवन का आधा आनंद समाप्त हो जाता है।
 उन्होंने कहा था -मैं कष्टों से भयभीत नहीं होता। कष्टों के सामने आने पर भागूँगा भी नहीं ,बल्कि सामना करूँगा। सफलता का उद्गम असफलता से ही होता है। सुबह का सूरज देखने के लिए रात की कालिमा से लड़ना पड़ेगा। जीवन अनिश्चताओं से भरा हुआ है ,इससे घबराना नहीं चाहिए।   यद्यपि कर्म बंधन को तोडना कठिन होता है किन्तु कर्म ही मनुष्य का कर्तव्य है ,कर्म का फल हमारे नहीं ,परमात्मा के हाथों में है।
उनका मानना  था कि  स्वतन्त्रता  का मूल्य रक्त से ही चुकाया जा सकता है। वे कहते थे कि  बस एक ही इच्छा होनी चाहिए ,देश पर मर मिटने की। स्वतन्त्रता  का मार्ग हुतात्मा के रक्त से ही प्रशस्त होता है। वे कहते थे कि  राष्ट्रवाद सत्यम ,शिवम् और सुन्दरम  की भावना  से अभिप्रेरित है। इस राष्ट्रवाद ने मानव के अंतर की सुसुप्त सृजनात्मक शक्ति को जाग्रत किया है। एक सैनिक के लिए  निष्ठां ,कर्तव्य और बलिदान अनिवार्य शर्त है।एक  सैनिक को जीतनी सैन्य  प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है ,उतनी ही आध्यामिकता की आवश्यकता  होती है।
सुभाष बाबू स्वामी विवेकानदजी के विचारो से अत्यंत प्रभावित थे।ज़ब सुभाष बाबू १८साल के थे ,उन्होंने अपने पिता से कहा था-विवेकानंद का आदर्श ही मेरा आदर्श है।   स्वामी विवेकानदजी के कथन का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा था-यदि तुम्हारे पास लौह शिरायें है और तीष्ण बुद्धि है तो तुम सारी  दुनिया को अपने कदमों में झुका  सकते हो।

नेताजी की मौत कब कहाँ और कैसे हुई ,यह आज भी एक रहस्य बना हुआ है। सरकारी दस्तावेजों के अनुसार १८ अगस्त १९४५को विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो जाना बताया गया है। किन्तु ,यह भी कहा जाता है कि  जिस स्थान पर विमान दुर्घटना होना बताया गया ,उस स्थान पर कोई दुर्घटना हुई ही नहीं। यदि इस तथ्य को सत्य मान लिया जाये तो प्रश्न उठता है कि  आखिर नेताजी कहाँ चले गए ?कुछ लोगो द्वारा नेताजी को संन्यासी के वेश में देखे जाने का दावा किया गया ,लेकिन इस दावे में कितनी सच्चाई है ,इसका कोई प्रमाण नहीं है। नेताजी की मौत बिन सुलझी पहेली ही रही।

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