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September 14, 2023
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श्रवणकुमार खण्डकाव्य की कथावस्तु कथा का सार

श्रवणकुमार (डॉ० शिवबालक शुक्ल)

श्रवणकुमार खण्डकाव्य की कथावस्तु कथा का सार

वाल्मीकि रामायण के अयोध्याकाण्ड में राजा दशरथ के बाण से मातृ-पितृ-भक्त   श्रवणकुमार की मृत्यु की अंतर्कथा  का वर्णन हुआ है , डॉ० शिवबालक शुक्ल ने इसी अंतर्कथा को आधार बनाकर श्रवणकुमार  खण्डकाव्य की रचना की है ।

प्रथम सर्ग –

प्रथम सर्ग में सर्वप्रथम कवि ने अयोध्या नगरी का वर्णन किया गया है ।अयोध्या में नैतिकता और सदाचार , उचित मूल्य पर वस्तुओं का क्रय-विक्रय , नर-नारी परस्पर यथोचित सम्मान , जीवन सहज और आनन्द , अयोध्या की रम्य-प्रकृति आदि का  चित्रण किया है।ऐसी अयोध्या नगरी के शब्द-बेध में निपुण राजकुमार दशरथ एक दिन शिकार करने के लिए जाते है

द्वितीय सर्ग –

सरयू नदी के वन-प्रान्तर के रमणीक आश्रम में श्रवणकुमार अपने नेत्रहीन माता-पिता के साथ रह रहे हैं। यहाँ के वातावरण में  सर्वत्र सुख शान्ति है ,वातावरण में  सदैव शरद् एवं वसन्त का वैभव व्याप्त रहता है। तालाबों में कमल खिले हुए हैं। यहाँ मनुष्य ही नहीं अपितु पशु-पक्षी, कीट-पतंग भी  प्रेम-भाव से रहते हैं।कहीं कोई  द्वेष और कटुता नहीं है। ऐसे सुरम्य रमणीक वातावरण में श्रवण कुमार अपने माता-पिता की सेवा में लगा रहता है-

तृतीय सर्ग

तृतीय सर्ग में  दशरथ मृग-शावक के वध का स्वप्न देखते है । स्वप्न दृश्य  से दशरथ आशंकित हो जाते हैं।  ब्रह्म-मुहूर्त में शिकार के लिए  निकल जाते है ।

दूसरी ओर श्रवणकुमार माता-पिता के लिए जल लेने निकलता है ,तत्क्षण ही   उसकी बायीं आँख फड़कने लगती है,जो अनिष्ट का संकेत  देता है ।

जिस स्थान पर श्रवण कुमार जल लेने जाता है ,उसी स्थान के समीप दशरथ शिकार खोज रहे होते है । नदी तट के समीप पहुंचकर श्रवण कुमार जैसे ही जल भरने के लिए पात्र नदी में डुबोता है ,पात्र से ध्वनि उत्पन्न होती है , दशरथ इस ध्वनि को सुनकर आस-पास किसी पशु की उपस्थिति का अनुमान लगाकर  ध्वनि की दिशा में  शब्दभेदी बाण चला देते हैं , जो श्रवणकुमार के हृदय में जाकर लगता है। बाण लगाने की पीड़ा से श्रवणकुमार के मुख से चीत्कार निकल जाती है  ,मानव चीत्कार सुनकर दशरथ चिंतित हो  जाते हैं। दशरथ की हतप्रभ एवं किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति देखकर उनका सारथी उन्हें सान्त्वना का प्रयास करता  है।

चतुर्थ सर्ग –

इस सर्ग में श्रवण कुमार के  मार्मिक विलाप और अपराध बोध से ग्रस्त दशरथ की मनस्थिति का चित्रण हुआ है । आकस्मिक रूप से बाण लगने पर श्रवण कुमार सोचने लगता है कि  उसका कोई शत्रु नहीं  फिर भी उस पर किसने बाण छोड़ दिया ? श्रवण कुमार को जीतनी चिंता बाण लगने की नहीं होती ,उससे ज्यादा चिंता अपने वृद्ध प्यासे माता-पिता की होती  है।

दशरथ श्रवण कुमार के समीप आते है।  समीप आकार दशरथ बाण से आहत श्रवणकुमार को देखकर तथा उसके मार्मिक क्रन्दन को सुनकर व्याकुल हो उठतेहैं।

सारथी बताता श्रवण कुमार को बतलाता है कि ये अजपुत्र दशरथ हैं और मृग के भ्रम में इनसे यह भूल हो गयी । श्रवणकुमार कहता है कि राजन्! मुझे मारकर आपने एक नहीं वरन् एक साथ तीन प्राणियों के प्राण लिये हैं। मेरे अन्धे माता-पिता आश्रम में प्यासे बैठे हुए मेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं। आप यह जल का पात्र लेकर वहाँ जाइए और उन्हें मेरे प्राण-त्याग की सूचना दे दीजिए। यह कहकर श्रवणकुमार प्राण त्याग देता है। दशरथ अपने को सारथी श्रवण कुमार के शव की देखभाल में छोड़कर आत्मग्लानि एवं शोकाकुलता भाव से जलपात्र लेकर आश्रम की ओर चल देते हैं।

पंचम सर्ग –

पंचम सर्ग में  दशरथ का आत्मग्लानि , अपराध-भाव दुख  एवं विषाद का अन्तर्द्वन्द्व व्यक्त हुआ  है। दशरथ जितने आत्मग्लानि और अपराध-भावना से घिरे हुए है  ,उतने ही भीतर से दुखी एवं चिन्तित है ,उनके भीतर अन्तर्द्वन्द्व चल रहा है ,  आत्मग्लानि और अपराध-भावना भाव से सिर झुकाए आश्रम की ओर जा रहे है  और सोच रहे है कि कि इस कारुणिक और दुखांत घटना का प्रायश्चित कैसे करेंगे ?इसी मानसिक उद्वेगों से दशरथ आश्रम पहुँचते जहाँ श्रवण कुमार के वृद्ध माता-पिता श्रवण कुमार के आने की प्रतीक्षा कर रहे है ।

षष्ठ सर्ग-

षष्ठ सर्ग में पुत्र-वियोग से व्यथित श्रवणकुमार के वृद्ध माता-पिता की असहाय स्थिति  तथा दशरथ के क्षोभ का वर्णन हुआ है। श्रवणकुमार के माता-पिता पुत्र के  आने की प्रतीक्षा में व्याकुल हैं।दशरथ उनके समीप जाते है श्रवणकुमार के माता-पिता दशरथ के समक्ष  पुत्र के  गुणों का बखान करते  हैं। तत्पश्चात् दशरथ उन्हें जल-ग्रहण करने के लिए कहते हैं ,तो श्रवणकुमार के माता-पिता शंकित होकर उनका परिचय पूछते हैं। दशरथ कठिनता से  श्रवणकुमार के माता-पिता को असह्य हृदय-विदारक दुर्घटना का समाचार सुना देते हैं , जिसे सुनते ही वे करुण विलाप कर उठते हैं और अपने मृतक पुत्र के समीप ले जाने का आग्रह करते है । दशरथ श्रवणकुमार के माता-पिता को अपने साथ लेकर चल देते हैं।

सप्तम सर्ग –

इस सर्ग में कवि ने श्रवणकुमार के वृद्ध माता-पिता का  करुण विलाप चित्रित हुआ है। अपने मृत पुत्र  की देह का स्पर्श कर श्रवणकुमार के वृद्ध माता-पिता आर्तनाद करते हुए मूर्छित  हो जाते हैं। कुछ क्षण पश्चात् चेतना लौटने पर पुन: विलाप कर उठते हैं ।

 पुत्र-वियोग से   व्यथित श्रवणकुमार के माता-पिता अपने पुत्र श्रवण कुमार के गुणों और सुकर्मों का स्मरण कर-कर हृदयविदारक विलाप करते हैं। श्रवणकुमार के पिता दशरथ से कहते हैं कि पाप तो पाप ही होता है, चाहे वह  पाप भ्रम वश ही क्यों न हुआ  हो ।

अष्टम सर्ग –

इस सर्ग में पुत्र-वियोग से   व्यथित श्रवणकुमार के माता-पिता शाप से दशरथ आशंकित और चिंतित है । जिस आत्मवेदना  से दशरथ ने अपना प्रायश्चित प्रकट   किया ,उसे सुनकर श्रवणकुमार के पिता को यह आत्मबोध होता है कि मैंने भावाकुल  होकर व्यर्थ ही दशरथ को शाप दे दिया। मेरे पुत्र का मृत्यु  तो नियति के विधान के अनुसार दशरथ के हाथों ही होनी थी । फिर इसमें दशरथ का क्या दोष ?पुत्र-शोक में व्याकुल श्रवणकुमार के माता- पिता देह त्याग देते हैं । अंतिम संस्कार के लिए सारथी द्वारा तैयार की गयी चिता में श्रवणकुमार एवं उसके वृद्ध  पिता-माता के शव चिता मे जलकर भस्म हो जाते हैं।

नवम सर्ग –

दशरथ दुःखी हृदय से अयोध्या लौट आते हैं। लोक निंदा  के भय से दशरथ  वन में घटित दुखान्तिका को किसी के समक्ष प्रकट नही करते  किन्तु राम के वनप्रस्थान  के समय वे कौशल्या के समक्ष  यह वृत्तान्त प्रकट  हैं तथा पुत्र-वियोग में तड़पते हुएस्वयं भी  प्राण त्याग देते हैं।

श्रवणकुमार खण्डकाव्य के आधार पर  श्रवणकुमार का चरित्र-चित्रण

मातृ-पितृ भक्त – श्रवणकुमार का चरित्र अपने वृद्ध  माता-पिता की सेवा करनेवाले पुत्र के रूप में ही नहीं बल्कि  मानव समाज में एक आदर्श स्थापित करनेवाले नायक के रूप में प्रकट हुआ है । मातृ-पितृभक्ति  का प्रसंग  आते हु श्रवणकुमार का नाम मष्तिक पटल पर उभर आता है । अपने वृद्ध एवं नेत्रहीन माता-पिता की सेवा में लगा रहनेवाला श्रवण कुमार  दशरथ के बाण से बिद्ध होकर भी अपने अंतिम समय में भी  प्यासे माता-पिता की ही चिन्ता करता  है,यह सभी के लिए एक मातृ-पितृ भक्ति का उदहारण प्रस्तुत करता है ।

सत्यवादी– जब दशरथ अपने हाथों से  ब्रह्म-हत्या की सम्भावना व्यक्त करते हैं तो श्रवणकुमार उन्हें बताता है कि उसके पिता वैश्य वर्ण के और माता शूद्र वर्ण की है ।उसे  अपने कुल  गोत्र का परिचय देने में कहीं संकोच अथवा ग्लानि नहीं है ।

क्षमाशील एवं सरल स्वभाव – दशरथ के बाण से बिद्ध होने पर भी वह अपने समीप आये सन्तप्त दशरथ का सम्मान ही करता है। दशरथ से जिस प्रकार संवाद किया उससे स्पष्ट हो जाता है कि  श्रवणकुमार का स्वभाव सरल है, मन में किसी के प्रति ईर्ष्या , द्वेष , क्रोध एवं वैर नहीं है।

भारतीय संस्कृति का अनुपालक –  श्रवणकुमार को भारतीय संस्कृति का अनुपालक भी कहा जा सकता है । चार वेद और छह दर्शन जो भारतीय संस्कृति के आधार हैं। वेद के अनुसार माता  पिता  गुरु  अतिथि तथा पति के लिए पत्नी और पत्नी के लिए पति ये पाँच ‘देवता कहलाते हैं तथा ये ही पूजा के योग्य हैं। श्रवणकुमार भी माता  पिता  गुरु और अतिथि की देवतुल्य पूजा करता है।वेद  और धर्म शास्त्र में धर्म की जिन  दस लक्षणों का उल्लेख हुआ है ,श्रवण कुमार उन धर्म लक्षणों को  अपने जीवन में धारण किये है ।

साधु प्रवृति  –  श्रवणकुमार साधु प्रवृति  का है ,सांसारिक आकर्षण से विरक्त है ,भौतिक वस्तु के प्रति लोभ-मोह नहीं है। उसे भोग एवं ऐश्वर्य की तनिक भी चाह नहीं है। माता-पिता के सेवा करते हुए वल्कल वसन और अरण्य बसेरे में जीवन का सुख पा लेनेवाला युवक है  ।  

 कर्म और संस्कार का पक्षधर  – श्रवणकुमार कर्म  एवं संस्कारों को महत्त्व  देता  है। श्रेष्ठ कुल मे जन्म लेने से कोई सम्मान प्राप्त नहीं हो सकता,श्रेष्ठ कर्म  एवं संस्कारों से मानव सम्मान प्राप्त करता है , श्रवणकुमार इस उद्दाम प्रवृति का युवक है ।

आतिथ्य संस्कार गुण – अतिथि कोदेव माननाभारत की संस्कृति और  परम्परा रही है, श्रवणकुमार का चरित्र इसी गुण से युक्त है। वह दशरथ के बाण द्वारा घायल पड़ा है , जब दशरथ उसके समीप आते हैं, वह दशरथ को अपना अतिथि मानता है  क्योंकि दशरथ  उसके अरण्य बसेरे में आये हैं। वह आतिथ्य संस्कार परंपरा का निर्वाह करने के लिए दशरथ का स्वागत करना चाहता है, कुशल-मंगल पूछता है और अपने नेत्रों के जल से दशरथ के चरण धो लेना चाहता है।

श्रवणकुमार खण्डकाव्य के आधार पर दशरथ का चरित्र-चित्रण

आखेट में रुचि व  धनुर्विद्या में निपुण – राजा दशरथ राज कुल में उत्पन्न कुमार की भांति ही आखेट में रूचि रखते है , धनुर्विद्या में तो निपुण है ही ,साथ ही और शब्दभेदी बाण चलाने में भी पारंगत हैं ।

विनम्र एवं दयालु – यद्यपि दशरथ राजकुल में उत्पन्न राजकुमार है किन्तु राजवंशी होने का  तनिक भी अहंकार नहीं है। परदुःख देखकर स्वयं भी दुखी हो जाना उनके स्वाभाव की विशेषता है ।दशरथ अपने बाण से श्रवण कुमार के आहत होने से ही दुखी नहीं होते अपितु  स्वप्न में मृग-शावक के वध से ही वे दुखी हो उठते हैं ।

संवेदनशील – दशरथ संवेदनशील स्वाभाव वाले है , अपने अनुचित कार्य से दूसरों को पीड़ा पहुँचने पर  आत्मग्लानि से भर उठते हैं तथा उसका प्रायश्चित्त करते हैं।अपने बाण  से श्रवणकुमार की मृत्यु पर न केवल आत्मग्लानि से भार उठते है बल्कि प्रायश्चित्त भरे स्वर में धरती में समा जाने का  आर्तनाद भी करते है ।

अपराध-बोध से ग्रसित- श्रवणकुमार के पिता द्वारा शाप दिये जाने पर दशरथ भयाक्रांत हो  उठते हैं। लोकनिन्दा के भय से लौटकर यद्यपि किसी को भी इस घटना के बारे में  नहीं बताते  किन्तु अपने अपराध की वेदना उनके हृदय में शूल की तरह चुभती रहती है। प्राणियों को अपने कर्म का फल तो भोगना ही पड़ता है, इसलिए अपने अपराध को अक्षम्य मानते हुए चुपचाप-चुपचाप अपराध-बोध की पीड़ा सहते रहते है ।

प्रजा वत्सल शासक- राजा दशरथ प्रजावत्सल शासक हैं। राज्य में सभी बिना किसी भेदभाव के न्याय मिलता है, नगर में चोरी नहीं होती है , प्रजा सुखी व सन्तुष्ट है तथा विद्वज्जनों का यथोचित सत्कार होता है।

निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि दशरथ का चरित्र सद्गुणों  से परिपूर्ण है ,राजा होकर भी अपने अनुचित कृत्य को अनुचित स्वीकार करते है, आत्म-ग्लानि अनुभव करते है और   सत्जन की भांति  प्रायश्चित्त करते है ।

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