Hindi Hindustani
hindu festival

shraddh -vidhi vidhan aur mahatva

September 21, 2016
Spread the love

shraddh -vidhi vidhan aur mahatva

Hindi Hindustani

shraddh -vidhi vidhan aur mahatva

हिन्दू संस्कृति में श्राद्ध की महत्ता -shraddh -vidhi vidhan aur mahatva

हिन्दू संस्कृति में श्राद्ध की महत्ता 

Hindi Hindustani

श्राद्ध  अर्थात श्रद्धा ……अपने पूर्वजों के प्रति  ,जिनके कारण हम अस्तित्व में आये ,उस अनुग्रह  … उस अनुकम्पा के प्रति श्रद्धा व्यक्त करना ही   श्राद्ध है। यह एक माध्यम है अपने पूर्वजों के प्रति भावना प्रकट करने  का  ….. कृतज्ञता अर्पित करने का।

हिन्दू धर्म और संस्कृति में श्राद्ध की अत्यन्त महिमा बतलाई गयी है ,धर्म -ग्रंथों में विस्तार से वर्णन किया गया है किन्तु तथाकथित बुद्धिवादी इसे व्यर्थ का आडम्बर मानते हुए तर्क देते है कि  पितरों को तृप्त करने के लिए अर्पित किया जानेवाला भोज और जलाञ्जलि पितरों तक कैसे पहुँच सकते है ?ब्राह्मण और कौओं के माध्यम से पितर  कैसे तृप्त हो सकते है ?
दुनिया में कुछ बातें वैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है तो कुछ बातें आस्था और विश्वास पर आधारित है। आज भी कई बातें ऐसी है जिसका उत्तर विज्ञानं के पास भी नहीं है। जहाँ विज्ञानं निरुत्तर होता है वही से उस परम पिता परमेश्वर की सत्ता प्रारम्भ होती है। आज भी कई बातें विश्वास पर टिकी  है और विश्वास पर ही चल रही है। उन बातों पर विश्वास किये बिना एक कदम भी आगे नहीं बढ़ा  जा सकता। विश्वास बहुत बड़ी चीज है ,बहुत बड़ी ताक़त है।
क्या हम अपनी माँ ,बहिन अथवा पत्नी के बनाये हुए खाने को खाने से पहले किसी कुत्ते या बिल्ली को खिलाकर  यह जाँचते है कि  कही खाने में जहर तो नहीं है ?करते है ऐसा ?नहीं ना। जब कोई किसी से किसी के पिता का नाम पूछता है तो क्या जो नाम बताया गया क्या डी.एन.ए  टेस्ट कराने  के बाद बताया  गया ?नहीं ना। यह विश्वास ही तो है।
 इसी भांति श्राद भी आस्था और विश्वास का  ही प्रश्न  है। श्राद्ध के सम्बन्ध में जो धार्मिक  मान्यताएँ  प्रचलित है ,उन पर भी विश्वास कर युगों से चली आ रही परंपरा का निर्वाह किया जाना चाहिए।

Hindi Hindustani


धार्मिक मान्यता में विश्वास नहीं करते , ना सही ,किन्तु नैतिकता के आधार पर तो विश्वास किया ही जा सकता है। श्राद्ध के बहाने ही सही ,कुछ तो अच्छा कर रहे हम  … इसी बहाने से हमें अपने पूर्वजों के  प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का अवसर मिल जाता है। इसी बहाने से कुछ दान -पुण्य  कर्म हो जाता है। जिन पूर्वजों के हम पर अनेकानेक  उपकार है ,ऋण है उनका हम पर  … ऋणी है हम उनके  … श्राद्ध उस ऋण से मुक्त होने का एक उपाय है  .उन उपकारों के प्रतिफल में श्राद्ध के  बहाने पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करना क्या अंध-विश्वास है ?ढकोसला है ? रूढ़िवादिता है ?
श्राद्ध क्या है ? श्राद्ध पितरों की आत्म शांति के लिए जो श्रद्धा पूर्वक भोजन ,दान -दक्षिणा अर्पित किये जाने का जो विधान है ,वही श्राद्ध है अतार्थ  श्रद्धा ही श्राद्ध है। भाद्र पद पूर्णिमा से आश्विन कृष्ण पक्ष अमावस्या के इन सोलह दिनों को पितृ पक्ष कहते है। इन सोलह दिनों में पितरों को जलांजलि दी जाती है तथा मृत्यु तिथि को पार्वण श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध पक्ष में पूर्वजों का स्मरण कर हम उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है।श्राद्ध के माध्यम से हम अपने पूर्वजों के प्रति  प्रेम और आदर प्रकट करते है और प्रार्थना करते है कि उनके  अशरीर रूप में भी  हम पर वैसी ही अनुकंपा बनी  रहे ,जैसी जैसी शरीर रूप में प्राप्त थी   ।  मान्यता के अनुसार पितृ पक्ष में तर्पण अथवा श्राद्ध करने से हमारे पूर्वज प्रसन्न होकर हमें आशीर्वाद प्रदान करते है और पूर्वजों के आशीर्वाद से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पितृ -पक्ष में क्या करें  और क्या ना करें ?

श्राद्ध कर्म एवं भोजन इत्यादि में गाय के दूध और गाय के दूध से बने दही -घी का प्रयोग किया जाना चाहिए।श्राद्ध कर्म में शुद्धता और पवित्रता  का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए। निमन्त्रित  ब्राह्मण , और स्वयं श्राद्ध कर्ता की देह व मन , पवित्र होने चाहिए। 

श्राद्ध स्थल पवित्र हो  

श्राद्ध कर्म में चाँदी ,काँसे और ताँबे के बर्तनों का उपयोग उत्तम माना गया है तथा पुष्पों में सफ़ेद सुगन्धित फूल ,जैसे कमल ,जूही ,चंपा को उत्तम माना गया है। लाल व  काले रंग वाले फूल त्याज्य माने गए है। पुष्प न अत्यधिक सुगन्धित हो और न बिलकुल गंध हीन 

श्राद्ध में ब्राह्मण भोज आवश्यक माना  गया है-निमंत्रित ब्राह्मण  संख्या में विषम हो ,यथा -एक ,तीन ,पॉँचश्राद्ध कर्म के लिए उत्तम गुण वाले एवं वेदों के ज्ञाता ब्राह्मण को प्राथमिकता दे तो उत्तम रहेगा

 निमन्त्रित ब्राह्मणों के गृह आगमन पर पद प्रक्षालन कर स्वागत किया जाना चाहिए  निमंत्रित ब्राह्मण को भोजन मूक किन्तु प्रसन्न भाव से कराया जाना चाहिए

श्राद्ध कर्ता  को क्रोध रहित रहना चाहिए। श्राद्ध कर्म में हड़बड़ाहट व जल्दीबाज़ी ना करें ।

मन शांत  व  प्रसन्न रहना चाहिए। श्राद्ध कर्म स्थल पर पांच पत्तलों अथवा  पत्तों  पर (केले के पत्ते ना  ले ) पितरों के लिए बनाये गए भोज्य पदार्थों में से थोड़ा थोड़ा भोज्य पदार्थ पांचों  पत्तलों अथवा  पत्तों  पर रख दे।

यह पांच  भाग क्रमशः अग्नि ,गाय ,कौए ,कुत्ते और पिपीलिका के निमित्त होते है अग्नि में निम्नलिखित  तीन आहुतियां  उच्चारण के साथ दे -प्रथम -अग्नये काव्यवाहनाय स्वाहा द्वितीय -सोमाय पितृमते स्वाहा तृतीय -वैवस्वताय स्वाहा  श्राद्ध कर्म पूर्ण होने पर  गाय ,कुत्ते ,कौए ,को खिला दे।

पिपीलिका का भाग किसी अन्य को खिला सकते है भोजन के पश्चात् ब्राह्मण के माथे पर तिलक लगाकर वस्त्र  व   दान -दक्षिणा अवश्य दे  हाथ में काले तिल ,जौ और कुश के साथ जल लेकर ब्राह्मण को दान दिया जाना चाहिए दान व  भोजन पितृ गणों  के नाम व् गोत्र का उच्चारण करते हुए करना चाहिए

ब्राह्मणों के साथ -साथ निकटतम रक्त-सम्बन्धियों को भी निमन्त्रित किया जाना चाहिए  किन्तु भोजन ब्राह्मण भोज के पश्चात् ही कराया जाना चाहिए

श्राद्ध कर्म में तिल , कुश, गंगा जल ,तुलसी ,शहद,दोहित्र  का प्रयोग अनिवार्य माना गया  है

श्राद्ध दूसरे के स्वामित्व वाले स्थान पर नहीं किया जाना चाहिए 

श्राद्ध कर्म के लिए मध्याह्न का समय उपयुक्त माना गया है

श्राद्ध कर्म में प्रयुक्त आसान कुश अथवा ऊन का हो तो अति उत्तम

श्राद्ध कर्म में दूषित एवं बासी खाद्य पदार्थ के अतिरिक्त समुद्री नमक ,खीरा ,कचनार ,चना ,मसूर ,कला उडद ,कला नमक ,कला ज़ीरा ,राइ  व सरसो सम्मिलित ना करें

श्राद्ध कर्म करते समय मुख दक्षिण दिशा में हो ,इस बात का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिए 

मान्यता के अनुसार श्राद्ध पक्ष में कोई मांगलिक कार्य नहीं किये जाने चाहिए

 मान्यता के अनुसार पितर  कौओ के माध्यम से भोजन ग्रहण  करने आते है

।मान्यता है कि  विधि-विधान से श्राद्ध कर्म करने से पितरों के अतिरिक्त ब्रह्मा ,रूद्र ,अश्विनी कुमार , सूर्य ,अग्नि ,वायु ,विश्वदेव भी प्रसन्न होते है। 

मान्यता के अनुसार मृत्यु  तिथि पर ही श्राद्ध किया जाता है किन्तु मृत्यु तिथि ज्ञात ना होने पर अमावस्या को ही पुण्य तिथि मानकर श्राद्ध करने का विधान है।संकल्प अवश्य करें ,संकल्प के बिना विधान  अपूर्ण माना जाता है -हाथ में जल लेकर संकल्प इस प्रकार करें –

ॐ विष्णु विष्णु विष्णु .. ॐ परमात्तामने श्री पुराण पुरुषोत्तमस्य श्री विष्णोराज्ञया  प्रवर्तमानस्यादय श्री ब्राहमणों द्वितीय परार्धे श्री श्वेत वराह कल्पे वैवस्वत मन्वन्तरे  जम्बू द्वीपे भारत वर्षे भरत खंडे आर्यावत्तरै

क्षेत्रे  ………..( स्थान का नाम  ) विक्रमाब्दे ………संवत्सरे  ……..मासानाम मासोत्तमे ….  मासे ……. (महीने का नाम )…… पक्षे ……..(शुक्ल या कृष्ण पक्ष का नाम ) तिथौ  …….( तिथि )……  वासरे  …………… (दिन का नाम )नामाहं ……… (स्वयं का नाम एवं गौत्र )नामकमृतात्मन:प्रेतत्वनिवृत्ति द्वारा अक्षय्य लोकावाप्तये  स्वकत्त्वर्य पालन पूर्वकं पितृणाद आनृणयाथर सर्वेषां पितृणां शांति तुष्टि निम्मित श्राद्धकर्म च करिष्ये .

पितृ पक्ष में महालय अमावस्या प्रमुख होती है ,यह पितृ पक्ष का अंतिम दिन होता है ,इसे सर्व पितृ अमावस्या भी कहा जाता है  सर्व पितृ अमावस्या के दिन श्रीमद भगवद गीता का सातवाँ अध्याय का पाठ  किया जाना चाहिए .
यदि विधि विधान से पूजन करने में असुविधा अनुभव हो तो निम्नलिखित मन्त्र का १०८ बार जाप कर ले .
ॐ पितृ देवतायै नम:  
और सूर्य देव के समक्ष श्राद्ध कर्म में भूलवश रह गयी त्रुटि और पितरों की तृप्ति  व सद्गति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। श्राद्ध कर्ता  आर्थिक रूप से सक्षम न होने पर ब्राह्मण को दान -दक्षिणा न दे सकता हो अथवा श्राद्ध कर्म ब्राह्मण द्वारा सम्पन्न न करा सकता हो तो सूर्यदेव के समक्ष उन्मुख होकर प्रार्थना करे कि —
हे सूर्यदेव , (पितरों के नाम व  गोत्र का उच्चारण करते हुए ) को तृप्त करें ,इस निमित्त मैं  आपको जल- अन्न अर्पित करता हूँ। मैं श्रद्धापूर्वक अपने पितरों को प्रणाम करता हूँ ,वे मेरी श्रद्धा से तृप्त हो। 

You Might Also Like...

No Comments

    Leave a Reply

    error: Content is protected !!
    error: Alert: Content is protected !!