15 दिसम्बर ,
पुण्य -तिथि
१५ दिसम्बर भारतीय कलेंडर की वह तारीख जो बरबस ही उस महान राष्ट्र -भक्त का स्मरण करा देती है ,जिसे हर भारतवासी लौह पुरुष और IRON MAN OF INDIA के नाम से जनता है। आज उसी राष्ट्र -भक्त की पुण्य तिथि है ,आज ही के दिन यानि १५ दिसम्बर को उनकी पार्थिव देह पञ्च तत्वों में विलीन हुई थी ,जिसने स्वतन्त्रता के पश्चात् देश की ५६२ रियासतों का भारत में विलय किया था।
महापुरुषों की जन्म/पुण्य तिथियाँ हमें अतीत में ले जाती है और अतीत एल्बम की तरह उन यादों को दोहराने लगता है ,जो हमारे स्मृतिपटल पर धुंधली पड़ जाती है। आज १५ दिसम्बर की तारीख सरदार पटेल की यादों को फिर से हमारी स्मृति में ताज़ा कर रही है-जिसके इरादें फौलाद की तरह ही मज़बूत थे। सरदार पटेल को पहचान मिली -खेड़ा आंदोलन से,जब गुजरात का खेड़ा क्षेत्र भयंकर दुर्भिक्ष से जूझ रहा था ,वहा का किसान लगान देने की स्तिथि में नहीं था। वहा के किसानों ने अंग्रेजी सरकार से रियायत देने की गुहार लगाई लेकिन अंग्रेजी सरकार के कान पर जू तक न रेंगी ,तब सरदार पटेल के नेतृत्व में अंग्रेजी सरकार खिलाफ प्रदर्शन किया गया ,परिणाम स्वरुप अंग्रेजी सरकार को किसानों की मांग स्वीकार करने के लिए बाध्य होना पड़ा। इसके बाद हुए बारडोली के सत्याग्रह ने वल्लभ भाई को और कई ज्यादा लोकप्रिय बना दिया ,उन्हें सरदार कहा जाने लगा। इस तरह अब सरदार वल्लभ भाई पटेल के रूप में पहचाने जाने लगे।
सच्चा अहिंसक वही है जो तलवार चलना जानते हुए भी तलवार म्यान में रखता है –सरदार पटेल
सरदार पटेल ने अपनी राजनीति कुशलता से गांधीजी को प्रभावित अवश्य किया किन्तु गांधीजी का नेहरू प्रेम जग ज़ाहिर है। यहाँ गांधीजी धृष्टराष्ट्र मोह के कारण सरदार पटेल के साथ पक्ष पात कर गए। स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् प्रधान -मंत्री पद के लिए यदि कोई योग्य दावेदार था तो वे थे -सरदार पटेल। यदि किसी बुद्धिमान को एक श्रेष्ठ और दूसरा उससे ज्यादा श्रेष्ठ में से किसी एक को चुनना पड़े तो ,वह ज्यादा श्रेष्ठ को ही चुनेगा किन्तु गांधीजी ने व्यक्तिगत प्रेम के कारण ज्यादा श्रेष्ठ सरदार पटेल के स्थान पर श्रेष्ठ नेहरू को प्रधान मंत्री के रूप में चुना। गांधीजी नेहरूजी को प्रधान -मंत्री बनाना चाहते थे , कहना गलत न होगा कि यह फैसला योग्यता के आधार पर नहीं बल्कि व्यक्तिगत सम्बन्धों के आधार पर लिया गया था। यदि सरदार पटेल देश के पहले प्रधान -मंत्री बने होते तो पाकिस्तान ,चीन और कश्मीर का जो मुद्दा आज देश के लिए सिरदर्द बना हुआ है ,वह शायद इस स्तिथि में ना होता जिस स्तिथि में आज है, क्योकि इस तरह के मामलों में फैसले लेने की जो दक्षता सरदार पटेल में थी वह नेहरूजी में न थी। उदार होना अच्छा है किन्तु हर अच्छी बात ,हर जगह अच्छी नहीं होती ,विशेषरूप से राजनीति में। राजनीति में हर जगह उदारता का ढोल बजाना अकलमंदी नहीं कहा जा सकता ,कुछ फैसले सख्ती से लेने पड़ते है और सरदार पटेल इस तरह के फैसले में पटु थे।
कायर अतीत का रोना रहते है ,जबकि वीर अतीत से सबक लेकर मुकाबले की तैयारी करते है –सरदार पटेल
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् सरदार पटेल को उप प्रधान मंत्री और गृह मंत्री का दायित्व सौपा गया। स्वतन्त्रता पूर्व भारत छोटी -बड़ी रियासतों में विभाजित था। गृह मंत्री के रूप में सरदार पटेल के सामने चुनौती थी -५६२ रियासतों का एकीकरण करने की ,बहुत बड़ी चुनौती। सरदार पटेल ने इस चुनौती को स्वीकारा ही नहीं बल्कि
कुशलता पूर्वक यथार्थ रूप में तात्कालिक रियासतों का भारत में विलय कर दिखाया। वर्तमान में भारत जिस रूप में दिखाई दे रहा है वह सरदार पटेल के बुद्धि चातुर्य का ही प्रमाण है। हाँ, हैदराबाद , जूनागढ़ और कश्मीर के
मामलों में थोड़ी परेशानी ज़रूर आयी किन्तु बाद में हैदराबाद और जूनागढ़ का भी विलय कर लिया गया और यदि कश्मीर मामले नेहरूजी ने हस्तक्षेप ना किया होता तो शायद कश्मीर मुद्दा भी बहुत हद तक सुलझ चुका होता।
प्राण लेने का अधिकार तो ईश्वर का है सरकार की तोपे और बंदूकें हमारा कुछ नहीं बिगड़ सकती। हमारी निर्भयता ही हमारा कवच है -सरदार पटेल
सरदार पटेल ने इतनी बड़ी क्रांति को जिस दृढता से बिना रक्त की एक बूँद बहाये सम्पन्न कर दिखाया ,निस्संदेह यह महा पुरुष भारत का बिस्मार्क कहलाने का अधिकारी है और यदि उन्हें भारतीय राजनीति का चाणक्य भी कहा जाये तो अतिशयोक्ति ना होगी।
ऐसे कर्मयोगी को उनकी पुण्य -तिथि पर हम भारतीय कोटि -कोटि श्रद्धा सुमन अर्पित करते है।
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