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June 27, 2016
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r-d-burman-musicians-ka-magician-जन्म-दिन पर विशेष 

जन्म-दिन पर विशेष 

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27 june इस दिन ने हिंदी सिनेमा को एक ऐसा musician    दिया ,जिसे musician नहीं बल्कि हिंदी  सिनेमा केmusic  काmegician कहा जाना चाहिए। music  काmegician जिसकी हम बात कर रहे ,उसे bollywood में पंचम दा…….. R.D burman ……. राहुल देव बर्मन  के नामों से जाना जाता है।
 २७ जून ,१९३९ को जन्मे इस म्यूजिक डायरेक्टर का आज ७२  वा जन्म दिन है। पंचम  दा की खास बात यह कि  वे अपने प्रसिद्ध संगीतकार पिता सचिन देव बर्मन की वजह से नहीं बल्कि खुद के R D BURMAN .होने से पहचाने जाते है। ऐसा इसलिए कि  पिता सचिन देव बर्मन जो भारतीय संगीत के समर्थक थे ,वे  अपने फिल्म संगीत में भारतीय  वाद्य यंत्रों का प्रयोग करते थे ,इसके बिलकुल विपरीत  R D BURMAN .ने भारतीय संगीत के   साथ -साथ western  instrumental का भी  सम्मिश्रण किया।पंकज दा ने western  instrumental के प्रयोग से कभी परहेज नहीं किया।
 भारतीय संगीत के   साथ -साथ western  instrumental का भी  सम्मिश्रण इस खूबी के साथ किया कि
भारतीय संगीत और भी समृद्ध बन गयाऔर परम्परा को तोड़ कर एक नई  परम्परा को जन्म दिया  । हालाँकि इस तरह का प्रयोग पूर्व में शंकर-जय किशन कर चुके  थे किन्तु सफलता और पहचान पंकज दा  ने ही दी    । आज जितने भी नए संगीतकार है ,वे सभीपंचम दा का ही अनुसरण कर रहे है।


भारतीय फिल्म संगीत को समर्द्ध बनाने में नौशाद ,शंकर-जय –किशन ,लक्ष्मीकांत –प्यारेलाल ,कल्यानजी-आनंन्दजी ,रोशन ,रवि ,ओ पी नय्यर .सलिल चौधरी मदन मोहन जैसे दिग्गज संगीतकारों के नाम गिनाये जाते है .,लेकिन इनके संगीत में रह गई थोड़ी सी कमी को पूरा किया अपने समय के युवा संगीतकार राहुल देव बर्मन ने .पाश्चात्य वाद्य यंत्रों का भारतीय वाद्य यंत्रों के साथ ऐसा सम्मिश्रण किया कि पूरब और पश्चिम का अंतर ही अनुभव नहीं होता .
 
अपने समकालीन श्रेष्ठ  संगीत निर्देशकों में गिने जानेवाले के उपरांत भी राहुल देव बर्मन सम्मान के अधिकारी होते हुए भी वह उस सम्मान से वंचित रहे जिसके वे अधिकारी थे .१९७१ से १९८६ तक हर साल फिल्म फेयर के लिए उनका नाम नोमिनेट हुआ ,लेकिन सम्मान मिला सिर्फ तीन बार .पहला १९८३ में फिल्म सनम तेरी कसम के लिए ,दूसरा १९८४ में मासूम के लिए और तीसरा (मृत्योपरांत )१९९५ में फिल्म १९४२ –ए लव स्टोरी  के लिए .कागज़ के पन्नों पर राहुल देव बर्मन को मिले तमगो की संख्या कम हो ,लेकिन अपने प्रशंसकों से खूब सम्मान मिला .
  स्वतंत्र संगीत निर्देशक के रूप में महमूद की छोटे नवाब से  प्रारम्भ हुआ संगीत का यह सफ़र  फिल्म १९४२ –ए लव स्टोरी पर आकर थमा .इस संगीत यात्रा के दौरान उन्होंने २९२ हिंदी फिल्मो के अतिरिक्त बंगाली ,तेलगू और तमिल फिल्मों को भी अपने सुरों से सजाया .
जैसे राज कपूर ,मुकेश ,शंकर-जय किशन और शैलेन्द्र की चौकड़ी मशहूर थी ,वैसे ही राहुल देव बर्मन ,किशोर कुमार और राजेश खन्ना की तिकड़ी भी बहुत मशहूर हुई .यदि इसमे मजरुह सुल्तानपुरी का नाम शामिल कर लिया जाये तो यह भी राज कपूर ,मुकेश ,शंकर-जय किशन और शैलेन्द्र की चौकड़ी की तरह दूसरी चौकड़ी बन जाती है .
24 साल पहले सा…. रे ग (ा ) म (ा ) अपने साथ लेकर चले गए लेकिन अपने संगीत प्रेमियों को दे गए ऐसे यादगार गीत जिसकी लोकप्रियता को क्रूर कहा जाने वाला काल भी नहीं मिटा पाया .
 अपने पिता सचिन देव बर्मन के साथ सहायक के रूप में अपने करियर की ,किन्तु अपने पिता  की पारंपरिक शैली को अपनाने के बजाय राहुल देव बर्मन ने स्वयं  की शैली विकसित की ,जो आगे चलकर उनकी निजी पहचान बन गई .भले ही उन्होंने पाश्चात्य वाद्य यंत्रो को अपनी संगीत में शामिल किया किन्तु भारतीय  वाद्य यंत्रों से कभी परहेज़ नहीं किया .उन्होंने उस्ताद अली अकबर खान से सरोद और समता प्रसाद से तबले की विधिवत शिक्षा ली .
जिसने राहुल देव बर्मन की संगीत रचना से निकले संगीत –पिया तू अब तो आजा …. या महबूबा ओ महबूबा  ..या . दम मारो दम  ….सुना हो वह यह कल्पना भी नहीं कर सकता कि ऐसा संगीत निर्देशक  घर आजा घिर आये बदरा (छोटे नवाब )रैना बीती जाये … (अमर प्रेम ),मेरे नैना सावन भादो जैसे शास्त्रीय संगीत की रचना भी कर सकता है .याद नहीं आता इतनी विविधता किसी अन्य संगीत कार में रही हो . राहुल देव बर्मन ही एक ऐसे संगीतकार थे जो अपने संगीत से पैरों में थिरकन भी पैदा कर सकते थे और कानों में मिश्री भी घोल सकते थे .याद कीजिये १९४२-ए लव स्टोरी का वह गीत –रिम-झिम …रिमझिम …रूमझूम रूमझूम ….भींगी भींगी रात में ..हम –तुम

 

राहुल देव बर्मन जहाँ एक ओर परम्परा को साथ लेकर चले वही दूसरी ओर प्रयोगधर्मी भी रहे .कप –प्लेट और बोतल की आवाज़ को भी यंत्र कि तरह इस्तमाल किया .फिल्म हम किसी से कम नहीं के गीत चुरा लिया है तुमने जो दिल को  ….में कप –प्लेट  और महबूबा ओ महबूबा में बोतल का प्रयोग इसका उदहारण कहा जा सकता है .     


स्वतंत्र रूप से music -director बनने से पहले पंचम  दा  अपने पिता सचिन देव बर्मन को assist  करते थे –चलती का नाम गाडी ,कागज के फूल ,तेरे घर के ,सामने ,बंदिनी ,गाइड ,तीन देवियां जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने पिता सचिन  बर्मन को अस्सिट किया  । १९६१ में बनी छोटे नवाब फिल्म में पंचम  दा ने स्वतंत्र रूप से संगीत दिया ,लेकिन सफलता और पहचान मिली
१९६६ में release हुई   फिल्म तीसरी मंज़िल  से. १९७० में रिलीज़ हुई   कटी  पतंग का संगीत बहुत लोकप्रिय हुआ।यही से   पंचम दा सफल संगीतकारों की सूची में शामिल हो गए।
पंचम दा  ने संगीत को न सिर्फ वाद्य यंत्रों से झंकृत किया बल्कि अपने स्वर से सवांरा। जब भी फिल्म शोले की बात चलेगी ,पंचम दा  का गाया गाना …. महबूबा ओ महबूबा भी याद किया जायेगा। पंचम दा का संगीत का यह सफर १९९४ तक जारी रहा।पंचम दा  के सुरों के तार १९९४ में बनी फिल्म -१९४२ :a love  story के संगीत के साथ थम गए।, पंचम दा ने अपने संगीत निर्देशन में अपने समय के चोटी  के गायक-गायिकाओं के सुरों को अपनी धुनों में पिरोया।पंचम दा ,गुलज़ार साहब के पसंदीदा संगीतकारों में से एक थे।
पंचम दा  के संगीत से सजी  कभी न भुलाये जाने वाले सदाबहार कर्णप्रिय गीत  

 
पड़ोसन,-कहना है ..कहना है
 
प्यार का मौसम -तुम बिन जाऊ कहाँ 
 
कटी पतंग –ये शाम मस्तानी
 
कारवाँ –पिया तू अब तो आजा
 
,हरे रमा हरे कृष्णा –दम मारो दम ,
 
 बुढ्डा मिल गया –रात कली एक ख्वाब में आई
 
 अमर प्रेम- रैना बीती जाये
,
मेरे जीवन साथी –ओ मेरे दिल के चैन
 
शोले –महबूबा  …महबूबा  
 
किसी से काम नहीं –,क्या हुआ तेरा वादा
 
खेल खेल में –सपना मेरा टूट गया
 
महबूबा –मेरे नैना सावन भादों
 
 किनारा –नाम गम जायेगा
 
शालीमार –,आइना वही रहता है
 
शान -यम्मा यम्मा
 
बेताब –जब हम जवां होंगे
 
सागर –सागर किनारे दिल ये पुकारे
 
रामपुर का लक्षमण –गम है किसी के प्यार में

बालिका वधू -बड़े अच्छे लगते है .ये धरती ये अम्बर 
 
अपना देश –दुनिया  में लोगो
 
यादों की बारात –चुरा लिया है तुमने जो दिल को
 
आँधी –तुम आ गए हो ,नूर आ गया है /तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा  
 
आपकी कसम- ज़िन्दगी के सफ़र में गुजर जाते है
 
कस्मे वादे –कसमे वादे  निभायेगे हम

नमक हराम -दिए जलाते है ,फूल खिलते है 

मंज़िल -रिमझिम गिरे सावन 
 
घर –तेरे बिना जिया जाये ना
 
गोलमाल –आनेवाला पाल जानेवाला है  
 
सत्ते  पे सत्ता  ,-प्यार हमें किस मोड़
 
रॉकी –क्या यही प्यार है
 
 लव स्टोरी – याद आ रही है
 
परिचय –मुसाफिर हूँ यारो
 
मुक्ति – सुहानी चाँदनी रातें

बहारों के सपने -आजा पिया तोहे प्यार दूँ 
 
ज़माने को दिखाना है –दिल लेना खेल है दिलदार का
 
इज्ज़त –कतरा –कतरा  मिलती है

जुर्माना -सावन के झूले पड़े 
 
द ट्रेन –किसलिए मैंने प्यार किया
 
ड ग्रेट गैम्बलर –दो लफ़्ज़ों की है ,दिल की कहानी
 
ज़हरीला इन्सान –ओ हंसनी कहाँ उड़ चली  ,मेरे अरमानों के
 
इज़ाज़त –मेरा कुछ सामान जो
 
लावा –कुछ लोग मुहब्बत करके हो जाते है
 
मासूम –तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी
 
अनामिका –मेरी भींगी भींगी पलकों /बाँहों में चले आओ
 
१९४२-लव स्टोरी –रिमझिम –रिमझिम  …रूमझूम रूमझूम /एक लड़की को देखा/कुछ न कहो   

 

 
 

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