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punjab kesari-lala lajpat ray

November 16, 2016
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लाला लाजपत राय के बलिदान दिवस पर विशेष 

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१७ नवम्बर 


लाला लाजपत राय के बलिदान दिवस पर विशेष 

देश सेवा से बढ़कर हमारा कोई धर्म नहीं 

हिन्दुतान के जातीय संघर्ष में ,मै  पहले हिन्दू रहूँगा और फिर हिंदुस्तानी लेकिन किसी गैर हिंदुस्तानी के सामने मै पहले हिंदुस्तानी और  फिर हिन्दू रहूँगा 

 

वह मनुष्य ,नर पशु है जिसमे जातीय गौरव और आत्म-सम्मान नहीं 

 

किसी भी तरह की गुलामी  उतनी खतरनाक नहीं जितनी मानसिक गुलामी ,मनुष्य जाति को हमेशा -हमेशा के लिए ज़ंजीरों में जकड देने से बड़ा और कोई पाप नहीं 

 

  • संसार में सबसे पवित्र और सबसे महान शक्ति है – मातृ-शक्ति। इसमें भी सबसे ज्यादा पूजनीय है – मातृ भूमि 

 

  •  

 

ये विचार है लगन ,पुरुषार्थ ,साहस और धैर्य के अप्रतिभ व्यक्तित्व के धनी पंजाब केसरी लाला लाजपत राय के ,जिनकी ओजस्वी वाणी लोगों के ह्रदय में देश प्रेम का जज्बा पैदा कर दिया करती थी।    

 

१७ नवम्बर ,भारतीय इतिहास के पन्ने की वह तारीख जो हम भारतियों को उस हुतात्मा की याद दिलाती है ,जिसने अपने खून की स्याही से अंग्रेजी सरकार के नेस्ताबूद होने की इबारत लिख दी थी। जिसकी चिता की अग्नि ने हर भारतीय के ह्रदय में स्वतन्त्रता  की ज्वाला भड़का दी थी। जिसकी शहादत ने सुसुप्त हृदयों में भी स्वतन्त्रता के लिए मर-मिटने का जोश भर दिया था ,जिसकी मौत  …. नहीं .. नहीं  मौत कहना गलत होगा ,जिसकी हत्या की खबर ने हर देश प्रेमी की नसों में उबाल ला दिया ,जिसे हर भारतीय शेर -ए -पंजाब … पंजाब केसरी …… बाल -पाल -लाल की त्रिमूर्ति में से एक लाला लाजपत राय के नाम से जानता  है। उसी हुतात्मा के बलिदान का दिन है १७ नवम्बर।
आज हमें स्वतंत्र भारत की जो ईमारत खड़ी दिखाई दे रही है। इस ईमारत में तीन तरह की ईंटें है। एक वे जो नींव में दब गई अर्थात जिनका इतिहास के पन्ने  में कहीं कोई नाम नहीं। जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति तो दी लेकिन उन्हें कोई जानता तक नहीं  ,दूसरी वे जो  दीवारें में काम आ गई और तीसरी वे जिन्हें कंगूरा बनाकर सबसे ऊपर लगा दिया गया अर्थात जिन्हें महिमा -मंडित कर स्वतंत्रता संग्राम का  नायक बना दिया  गया। वे ईंटें जो दीवारों में काम आई उन पर  नज़र कंगूरें पर से नज़र उतरने के बाद ही पड़ती है। भगत सिंह ,चंद्र शेखर आज़ाद ,राज गुरु ,सुखदेव, राम प्रसाद बिस्मिल ,खुदीराम बोस लाला लाजपत राय ऐसी ही ईंटें थी। जिनके बलिदान को यदा -कदा ही याद किया जाता है।

हर चीज के दो पहलू होते है। कोई एक पहलू को उचित बताता है ,तो कोई दूसरे पहलू को। गांधीजी औरउनके अनुयायी अहिंसा के सिद्धान्त  से स्वतन्त्रता पाना चाहते थे जबकि बाल पाल लाल का अहिंसा के सिद्धान्त पर विश्वास न था। लाला लाजपत रायकहते थे कि भिक्षावृति के आधार पर भारत की स्वाधीनता नहीं मिल सकती ,उसके लिए साहसपूर्वक अपने बल पर अपने ही पैरों पर खड़ा होना होगा और देश में परिवर्तनकारी क्रांति का जागरण करना होगा।  उनका मानना था कि स्वनत्रता  की देवी को रक्त चढ़ा कर ही प्रसन्न किया जा सकता है। चाहे वह रक्त अपना हो ,चाहे अंग्रेजों का। कांग्रेस के दो दुकड़े हो गए ,एक नरम दल जिसमे गांधीजी और उनके अनुयायी थे और दूसरा गरम दल- जिसमे लाला लाजपत राय ,बाल गंगाधर तिलक और विपिन चंद्र पाल प्रमुख थे ।

भारत  में सुधार हेतु ब्रिटिश  हुक़ूमत  ने  १९२७   मे  साइमन  कमीशन  बनाया।  इस कमेटी   में  किसी  भी  भारतीय  को  शामिल  नही  किया  गया।  कमीशन  के  सभी  सदस्य  अंग्रेज  ही  थे।   इसका  पूरे देश में   विरोध  हुआ।  ३ ,फरवरी , १९२८  को  जब  साइमन  कमीशन  भारत  आया , इसके  विरोध  में   देश  में   जगह- जगह  उपद्रव  हुए।
३०,अक्टूम्बर , १९२८  का दिन  था। लाहौर  में लाला  लाजपतराय  के  नेतृत्व  में  साइमन  कमीशन  के  विरोध  में  जुलूस  निकाला  गया। लालजी के भाषण से जुलूस सभा में तब्दील हो गया ,लालजी जिस तरह से भाषण दे रहे थे ,उससे लग रहा था कि  लालजी के मुख से  शब्द नहीं आग की लपटे निकल रही थी ,लालजी का भाषण सुनकर जनता उत्तेजित हो रही थी। लालजी के भाषण का प्रभाव देखकर अंग्रेज़ अफसर सैंडर्स आशंकित हो उठा और उसने लाठी चार्ज का आदेश दे दिया। अंग्रेजी  पुलिस   ने  जूलूस  पर   निर्ममता  से  लाठीचार्ज  किया ।  लालाजी पर भी लाठियाँ बरसाई गई। जनता भड़क गई ,लालजी ने जनता को शांत करते हुए कहा-आप सब लोग शांतिपूर्वक मुझ पर अत्याचार  होते हुए देखे और विश्वास रखें कि  मुझ पर पड़नेवाली एक एक लाठी ब्रिटिश हुकूमत के ताबूत की एक-एक कील साबित होगी। लाठियां भी चलती रही और लालजी का भाषण भी। लालजी का भाषण रूका तब लाठियां रुकी।  लालाजी  को  इतनी  बेहरमी  से  पीटा  गया  कि वे  बुरी  तरह  जख्मी  हो  गए,लालजी को सांघातिक चोटें आई ।  इस  दिन  के बाद  से  ही  मौत का  एक- एक  कदम  लाल जी  की ओर   बढ़ रहा था  , उस घटना  के  ठीक  १७  दिन  बाद  अर्थात   १७ नवम्बर को  मौत  ने  पंजाब  के इस  जख्मी  शेर  को  हमेशा – हमेशा  के  लिए  अपने  अंक  में  सुला  दिया।

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उनकी  ओजस्वी  वाणी  में  शेर  की  सी  दहाड़  सुनाई  देती  थी।   उन्होंने मरने से पहले  कहा  था –  मेरे  शरीर  पर पड़ी  एक एक लाठी  ब्रिटिश  सरकार  के  ताबूत  मे  कील का  काम  करेगी। और ऐसा ही हुआ।
 लाला  लाजपतराय  की चिता   की  आग ने  न  मालूम कितने  भारतीयों  ह्रदयो  के भीतर  प्रतिशोध   की  चिंगारी   भड़का   दी।  लालाजी   की  मौत  से  सारा  देश  आक्रोशित   हो उठा।  भगत सिंह , राजगुरु  ,सुखदेव  और  चंद्रशेखर आज़ाद  ने  लाला  जी  की  मौत  का  बदला  लेने  की  सौंगंध  खाई।  लाला  जी की मौत  का बदला  लिया गया  १७ दिसंबर  ,१९२८  को अंग्रेज  अफसर   सांडर्स  की हत्या  कर। .

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जीवन -परिचय 

नाम -लाला लाजपत राय

उपनाम –  पंजाब  केसरी /शेर-ए -पंजाब

नाम –  लाला  लाजपतराय

पिता  का नाम –   लाला राधकृष्ण

माता  का  नाम –  गुलाब देवी

जन्म  स्थान – पंजाब के  फरीदकोट जिले के एक गाँव  में

शिक्षा –   कानून  की  उपाधि  (१८८६ )

प्रारंभिक  व्यवसाय  –  वकालत

पुस्तके –  भारत  का इंग्लैंड  पर  क़र्ज़
                भारत  के लिए  आत्म निर्णय
                NATIONAL EDUCATION
               
               UNHAPPY  INDIA
             
                THE STORY OF  MY DEPORDATION
             
समाचार  पत्र  – द  पंजाबी /  वंदे  मातरम्  (उर्दू )

मृत्यु –  १७ नवम्बर ,  १९२८
                                                                   
    

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