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September 18, 2023
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पवन दूतिका  – अधोध्य सिंह हरिऔध उपाध्याय

प्रसंग –प्रस्तुत काव्यांश में कवि अधोध्य सिंह हरिऔध उपाध्यायजी ने राधा की मनो व्यथा का चित्रण किया है ।भगवान श्री कृष्ण ब्रज छोड़कर मथुरा चले गए है ,जाते समय श्री कृष्ण ने शीघ्र ही लौट आने का आश्वाशन दिया था किन्तु श्री कृष्ण ब्रज  छोड़कर जाने के पश्चात् फिर  नहीं लौटे  और न तो उन्होंने कोई सन्देश  भेजा। विरह पीड़ा से  मेरी दशा दयनीय हो गई है। राधा पवन को  दूतिका बनाकर उसे श्री कृष्ण के पास भेजकर अपना सन्देश पहुँचाना चाहती है ।

1

बैठी खिन्ना यक दिवस वे गेह में थीं अकेली।

आके आँसू दृग-युगल में थे धरा को भिगोते।।

आई धीरे इस सदन में पुष्प-सद्गन्ध को ले।

प्रात वाली सुपवन इसी काल वातयनों से।।

भावार्थ – एक दिन  जब राधा व्याकुल  मन से  अपने कक्ष  में अकेली बैठी हुई थी , उसकी दोनों आँखों से आँसू बहकर ज़मीन पर गिर रहे थे, तभी प्रातःकालीन सुगन्धित पवन वतायानों से  होकर कक्ष में  प्रवेश करती है,

2

सन्तापों को विपुल बढ़ता देख के दुःखिता हो।

धीरे बोली स-दुख उससे श्रीमती राधिका यो।।

प्यारी प्रात पवन इतना क्यों मुझे है सताती।

क्या तू भी है कलुषित हुई काल की क्रूरता से।।

भावार्थ – शीतल सुगन्धित वायु का स्पर्श  पाकर व्यथित  राधा का दुख और अधिक बढ़ गया । व्यथित  राधा दुःखी होकर पवन से कहती है कि हे पवन! तू मुझेऔर क्यों सता रही है? क्या तू भी समय की क्रूरता के समान क्रूर  हो गई है ?

3

 मेरे प्यारे नव जलद से कंज से नेत्रवाले ।

जाके आए न मधुबन से औ न भेजा सँदेसा।।

मैं रो रो के प्रिय-विरह से बावली हो रही हूँ।

जा के मेरी सब दु:ख कथा श्याम को तू सुना दे।

भावार्थ- राधा पवन के समक्ष  अपनी विरह-व्यथा व्यक्त करते हुए  कहती हैं कि नव बादल के समान सुशोभित  एवं कमल समान सुन्दर नेत्रों वाले मेरे श्री कृष्ण ब्रज को छोड़कर जाने के पश्चात् फिर यहाँ नहीं लौटे  और न तो उन्होंने कोई सन्देश  भेजा। विरह पीड़ा से  मेरी दशा दयनीय हो गई है। मैं रो-रोकर पागल हो रही हूँ  । तू दूतिका बनकर उनके पास जा और  उन्हें मेरे  दुःख से अवगत करा।

4

ज्यों ही मेरा भवन तज तू अल्प आगे बढ़ेगी।

शोभावाली सुखद कितनी मंजु कँजें मिलेंगी।

प्यारी छाया मृदुल स्वर से मोह लेंगी तुझे वे।

तो भी मेरा दुःख लख वहाँ जा न विश्राम लेना।।

भावार्थ-   राधा पवन से मार्ग  में बाधा उत्पन्न करनेवाली स्थिति से अवगत करते हुए   कहती हैं कि मेरे घर से कुछ ही दूर जाने के बाद तुम्हें मनोहारी बाग़ –बगीचें  मिलेंगे । वहाँ की शीतल छाया एवं पक्षियों का मधुर  कलरव तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगा , किन्तु तुम मेरे दुःख को ध्यान में रखकर  वहाँ विश्राम न करने लगना।

5

थोड़ा आगे सरस रव का धाम सत्पुष्पवाला।

अच्छे-अच्छे बहु द्रुम लतावान सौन्दर्यशाली।।

वृन्दाविपिन मन को मुग्धकारी मिलेगा।

आना जाना इस विपिन से मुह्यमाना न होना।।

भावार्थ- राधा पवन-दूतिका  से कहती हैं कि यहाँ से कुछ  आगे जाने पर तुम्हे  वृन्दावन मिलेगा, नाना प्रकार के  पुष्पों वाले उस धाम में पक्षियों का  मधुर कलरव , तरह-तरह के  वृक्ष , लताएँ तुम्हें अपनी ओर आकर्षित करेंगे, किन्तु तुम उन सब से  मोहित मत होना।

6

जाते जाते अगर पथ में क्लान्त कोई दिखावे।

तो जा के सन्निकट उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।

धीरे-धीरे परस करके गात उत्ताप खोना।

सद्गन्धों से श्रमित जन को हर्षितों सा बनाना।।

भावार्थ- राधा पवन दूतिका से परमार्थिक भावना  से कहती हैं कि मार्ग में तुम्हें कोई थका-हुआ  मिल जाए तो तुम उसके करीब जाकर उसकी  देह  का स्पर्श कर उसके दुःख-सन्ताप को मिटाना। अपनी सुगन्ध बिखेर कर उस थके व्यक्ति को प्रसन्न बनाना।

 7

 लज्जाशीला पथिक महिला जो कहीं दृष्टि आए।

होने देना विकृत-वसना तो न तू सुन्दरी को।।।

जो थोड़ी भी श्रमित वह हो, गोद ले श्रान्ति खोना।

होठों की औ कमल-मख की म्लानताएँ मिटाना।।

भावार्थ- राधा पवन दूतिका से कहती हैं कि , हे पवन! मार्ग में तुम्हें  यदि तुझे मार्ग में कोई लाजवन्ती स्त्री दिखाई। दे  जाए तो तू अपने तीव्र वेग से उसके वस्त्रों को मत उड़ाना और  यदि वह थकी हुई लगे तो उसे अपनी गोद में लेकर उसकी थकान मिटाना,  उसके होंठों और कमल सदृश मुख की मलिनता को हर लेना।

8

कोई क्लान्ता कृषक-ललना खेत में जो दिखावे।

धीरे-धीरे परस उसकी क्लान्तियों को मिटाना।।

जाता कोई जलद यदि हो व्योम में तो उसे ला।

छाया द्वारा सुखित करना तप्त भूतांगना को।।

भावार्थ- राधा पवन से  कहती हैं कि यदि तम्हें मार्ग में खेत में काम करती हुई कोई थकी हुई स्त्री दिखाई दे जाए  तो तुम उसके करीब जाकर  अपने स्पर्श से उसकी थकान मिटा देना और यदि  आकाश मेंकोई  बादल दिखाई दे जाए तो बादल की छाया से  उस थकी हुई स्त्री को शीतलता प्रदान करना।

9

 जाते-जाते पहुँच मथुरा-धाम में उत्सुका हो।

न्यारी शोभा वर नगर की देखना मुग्ध होना।

तू होवेगी चकित लख के मेरु से मन्दिरों को।

आभावाले कलश जिनके दूसरे अर्क से हैं।

भावार्थ- राधा पवन दूतिका को मथुरा के बारे बतलाती हुई  कहती हैं कि मथुरा नगरी की शोभा अद्भुत है। वहाँ की शोभा देखने के लिए तुम स्वयं  लालायित हो जाओगी, तब तुम अपनी उत्सुकता को बलपूर्वक रोकने का प्रयास  मत करना, बल्कि मथुरा  नगरी की शोभा  देखकर उस पर मुग्ध होना। तू वहां के सुमेरु पर्वत जैसे ऊँचे-ऊँचे भव्य मन्दिरों के शिखर पर  सूर्य के समान चमकते हुए कलशों को देख विस्मित रह जाएगी ।

10-

देखे पूजा समय मथुरा मन्दिरों मध्य जाना।।

नाना वाद्यों मधुर स्वर की मुग्धता को बढ़ाना।

किंवा लेके रुचिर तरु के शब्दकारी फलों को।

धीरे-धीरे मधुर रव से मुग्ध हो-हो बजाना।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि जब मथुरा के मन्दिरों में आरती पूजन हो  रहा  हो, उस समय तुम वहाँ बज रहे वाद्यों की मधुरता को और अधिक बढ़ाना  , या फिर अपनी रुचि  के अनुसार  किसी वृक्ष के शब्द रूपी फलों की ध्वनि सुनकर मुग्ध हो ,उस  ध्वनि में अपनी  ध्वनि मिश्रित कर देना।

11

 तू देखेगी जलद तन को जा वहीं तद्गता हो।

होंगे लोने नयन उनके ज्योति-उत्कीर्णकारी।

मुद्रा होगी वर वदन की मूर्ति-सी सौम्यता की।

सीधे-सीधे वचन उनके सिक्त होंगे सुधा से।।।

भावार्थ – राधा पवन से कहती हैं कि मथुरा जाने पर जब तुम श्री कृष्ण के कक्ष में प्रवेश करोगी तो तुम्हे घन के सामान श्याम वर्ण वाले कृष्ण को उन्हीं में तल्लीन होकर देखने लगोगी। उनने नेत्रों से प्रभा प्रस्फुटित हो रही होगी । उनका मुख किसी  सौम्य मूर्ति के समान प्रतीत होगा ,  उनके बोलेने पर उनके मुख से निकले शब्द  अमृत से सींचे हुए से  प्रतीत होंगे।

12

नीले फूले कमल दल-सी गात की श्यामता है।

पीला प्यारा वसन कटि में पैन्हते हैं फबीला।

छूटी काली अलक मुख की कान्ति को है बढ़ाती।

सदवस्त्रों में नवल तन की फटती-सी प्रभा है।

भावार्थ- राधा कहती है कि उनकी देह नील कमल के समूह के सदृश साँवली और मनोरम है। वे कमर पर पीताम्बर धारण करते है ,जो अत्यंत शोभायमान लगता है।  बालों की लट उनके मुख की शोभा और बढ़ा देती है। सुन्दर वस्त्र धारण किए हुए कृष्ण के सौम्य शरीर से प्रकाश की किरणें-निकलती सी जान पड़ती है ।

13

 साँचे ढाला सकल वपु है दिव्य सौन्दर्यशाली।

सत्पुष्पों-सी सुरभि उसकी प्राण-सम्पोषिका है।

दोनों कन्धे वृषभ-वर-से हैं बड़े ही सजीले।

लम्बी बाँहें कलभ-कर-सी शक्ति की पेटिका हैं।

भावार्थ- राधा पवन से कृष्ण की शोभा का वर्णन  करती हई कहती हैं कि उनकी देह  साँचे में ढली हुई  है, जिसे देखकर अलौकिक सौन्दर्य के दर्शन का आभास होने लगता  है। उनके देह  से प्रस्फुटित  सुगन्धित पुष्पों के सदृश गन्ध मन को आह्लादित कर देने वाली है। उनके कंधें उत्तम कोटि के साँड़ के कन्धे के समान प्रतीत होते है , कृष्ण की भुजाएँ हाथी की सूड के सदृश शक्तिशाली है।

14-

राजाओं-सा शिर पर लसा दिव्य आपीड़ होगा।।

शोभा होगी उभय श्रुति में स्वर्ण के कुण्डलों की।

नाना रत्नाकलित भुज में मंजु केयूर होंगे।

मोतीमाला लसित उनका कम्बु-सा कण्ठ होगा।

भावार्थ –राधा कहती है कि उनके मस्तक पर राजाओं के समान मुकुट विराजमान होगा। उनके दोनों कान मनोहर स्वर्ण-कुण्डलों से सुशोभित होंगे, वे अपनी दोनों भुजाओं में रत्न-जड़ित भुजबन्द धारण किए हुए होंगे। शंख जैसी सुन्दर और सुडौल दिखने वाली उनकी गर्दन में मोतियों की माला होगी। ।

15

 तेरे में है न यह गुण जो तू व्यथाएँ सुनाए।

व्यापारों को प्रखर मति औ युक्तियों से चलाना।

बैठे जो हों निज सदन में मेघ-सी कान्तिवाले।

तो चित्रों को इस भवन के ध्यान से देख जाना।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि यद्यपि तुम श्री कृष्ण के समक्ष  मेरे दुःख को वाणी से व्यक्त कर पाने में असमर्थ हो, अतएवं तुम्हे  मेरी मनोदशा का वर्णन अपनी बुद्धि और विवेक का प्रयोग करते हुए उचित क्रिया-व्यापारों के माध्यम से अपना कार्य पूर्ण करना। बादलों की कान्ति के सदृश श्रीकृष्ण अपने कक्ष में हो तो तुम भवन में प्रवेश करते समय भवन  के चित्रों को ध्यानपूर्वक देखते हुए जाना ।

16

जो चित्रों में विरह-विधुरा का मिले चित्र कोई।

तो जा जाके निकट उसको भाव से यों हिलाना।

प्यारे हो के चकित जिससे चित्र की ओर देखें।

आशा है यों सुरति उनको हो सकेगी हमारी।।

भावार्थ- राधा आगे कहती हैं कि यदि उन चित्रों में वियोग से व्यथित नायिका  का चित्र दिख जाए  तो तुम उसके निकट पहुँचकर  चित्र  को तनिक हिला देना ,ऐसा करने पर श्री  उस ओर देखेंगे , उस विरहिणी का चित्र देख उन्हें मेरा स्मरण हो आएगा , उन्हें ऐसा आभास होगा कि मैं भी चित्र में  विरह-अग्नि में जल रही नायिका की भांति जल रही  हूँ ।

17

 जो कोई भी इस सदन में चित्र उद्यान का हो।

औ हों प्राणी विपुल उसमें घूमते बावले से।

तो जाके सन्निकट उसके औ हिला के उसे भी।

देवात्मा को सुरति ब्रज के व्याकुलों की कराना।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि यदि तुम्हें श्री कृष्ण के कक्ष में ऐसा कोई ऐसा  चित्र दिखे, जिसमें  प्राणी बगीचे में पागलों की तरह घूम रहे हों तो उसके निकट जाकर तुम उसे भी हिला देना ताकि कृष्ण को उस चित्र को देखकर विरह में व्याकुल ब्रजवासियों स्मरण हो आए।

18

कोई प्यारा कुसुम कुम्हला गेह में जो पड़ा हो।

तो प्यारे के चरण पर ला डाल देना उसी को।

यों देना ऐ पवन बतला फूल-सी एक बाला।

म्लाना हो हो कमल-पग को चूमना चाहती है।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि यदि कृष्ण के घर में तुम्हें कोई मुरझाया हुआ फूल  दिखाई जाए तो उसे उड़ाकर श्री कृष्ण के चरणों पर डाल देना, ताकि उन्हें यह अनुभूति हो सके कि कुम्हलाए हुए फूल-सी कोई ऐसी भी जो  व्याकुल होकर उनके चरण चूमना चाहती है।

19

 जो प्यारे मंजु उपवन या वाटिका में खड़े हों।

छिद्रों में जा क्वणित करना वेण-सा कीचकों को।

यों होवेगी सुरति उनको सर्व गोपाँगना की।

जो हैं वंशी श्रवण-रुचि से दीर्घ उत्कण्ठ होती।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि यदि तुम्हें श्री  कृष्ण किसी बगीचे में खड़े नजर आ जाए तो तुम बाँसों के छिद्रों में प्रविष्ट होकर  बाँसुरी के सदृश बजा देना, ताकि उन्हें उनकी बाँसुरी सुनने के लिए व्याकुल होती हुई  गोपियों का स्मरण हो आए।

20

ला के फूले कमलदल को श्याम के सामने ही।

थोड़ा-थोड़ा विपुल जल में व्यग्र हो-हो डुबाना।

यों देना ऐ भगिनी जतला एक अम्भोजनेत्रा।

आँखों को ही विरह-विधुरा वारि में बोरती है।।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि यदि तुम्हे कोई कमल का फूल्दिखई दे जाए तो  उस कमल फूल को श्री कृष्ण  के समक्ष  जल में डुबोने का दृश्य उपस्थित करना , ताकि  दृश्य को  देखकरश्री कृष्ण को ऐसा आभास हो  कि कमल नेत्रों वाली राधा भी वियोग पीड़ा से  व्यथित होकर अपने नेत्रों को आँसुओं में डुबोए रखती है ।

21

 धीरे लाना वहन कर के नीप का पुष्प कोई।

औ प्यारे के चपल दृग के सामने डाल देना।

ऐसे देना प्रकट दिखला नित्य आशंकिता हो।

कैसी होती विरह वश मैं नित्य रोमांचिता हूँ।।

भावार्थ- राधा पवन दूती से कहती हैं ,हे पवन! श्री कृष्ण की चंचल आँखों के आगे धीरे से कदम्ब का फूल रख देना, जिससे यह प्रकट हो सके कि राधा भी इस  कदम्ब के  फूल समान ही उनके वियोग में प्रतिदिन किस प्रकार आशंकाओं से घिरी रहती हूँ और मिलन की आस में कदम्ब के फूल के समान रह-रहकर रोमांचित हो उठती है ।

22

बैठ नीचे जिस विटप के श्याम होवें उसी का।

कोई पत्ता निकट उनके नेत्र के ले हिलाना।।

यों प्यारे को विदित करना चातुरी से दिखाना।

मेरे चिन्ता-विजित चित का क्लान्त हो काँप जाना।

भावार्थ- राधा पवन से कहती हैं कि हे पवन दूतिका! यदि श्री कृष्ण किसी पेड़ के नीचे बैठे हुए हो तो  तुम उसी पेड़ का  पत्ता उनकी आँख के समक्ष लाकर हिला देना और  चतुराई पूर्ण ढंग से   इस बात का आभास करा देना कि चिन्ता ने राधा के  हृदय पर आधिपत्य कर राधा को  थका दिया है।राधा  प्रिय वियोग की पीडा में डूबी रहकर प्रत्येक क्षण चिंता करती रहती है।

23

 सूखी जाती मलिन लतिका जो धरा में पड़ी हो।

तो पाँवों के निकट उसको श्याम के ला गिराना।

यों सीधे से प्रकट करना प्रीति से वंचिता हो।

मेरा होना अति मलिन औ सूखते नित्य जाना।

भावार्थ- राधा पवन से कहती है कि यदि भूमि पर तुम्हें कहीं मुरझाई हुई लता दिखाई दे जाए तो उस मुरझाई हुई लता को  कृष्ण के पैरों के समीप ले जाकर गिरा देना। उनके समक्ष स्पष्ट रूप से यह प्रकट कर देना कि प्रेम-विहीन होकर राधा  भी इस लतिका की तरह मुरझाकर  सूखती जा रही हैं।

24

कोई पत्ता नवल तरु का पीत जो हो रहा हो।

तो प्यारे के दुग युगल के सामने ला उसे ही।।

धीरे-धीरे सँभल रखना और उन्हें यों बताना।।

पीला होना प्रबल दुःख से प्रोषिता-सा हमारा।।

भावार्थ- राधा पवन से कहती है कि यदि तुम्हारी दृष्टि किसी नए पेड़ के पीले पड़ गए पत्ते पर पड़ जाए  तो तुम उसे श्री कृष्ण  की आँखों के आगे रख देना और उन्हें बताना कि पति से बिछड़ी हुई स्त्री के समान राधा  भी नित्य पीली पड़ती जा रही है ।

25

यों प्यारे को विदित करके सर्व मेरी व्यथाएँ।

धीरे-धीरे वहन कर के पाँव की धूलि लाना।

थोड़ी-सी भी चरण-रज जो ला न देगी हमें तू।

हा ! कैसे तो व्यथित चित को बोध में दे सकूँगी। भावार्थ-कृष्ण के वियोग में व्यथित राधा, पवन-दूतिका से कहती हैं कि मेरे द्वारा बताए गए उपायों को अपनाकर तुम कृष्ण के समक्ष मेरी सारी व्यथा प्रस्तुत करना  और लौटते  हुए उनके पैरों की धूल ले आना, क्योंकि श्री कृष्ण के स्पर्श से स्पर्शित धूल  को छूकर मै समझूँगी कि मैंने अपने प्रियतम  श्रीकृष्ण के चरणों का स्पर्श कर लिया ,इस प्रकार  मैं अपने दुःखी मन

26

पूरी होवें न यदि तुझसे अन्य बातें हमारी।

तो तू मेरी विनय इतनी मान ले औ चली जा।

छु के प्यारे कमल-पग को प्यार के साथ आ जा।

जी जाऊँगी हृदयतल में मैं तझी को लगाके।।

भावार्थ- राधा पवन से कहती है कि यदि तुम मेरे द्वारा समझाए गए उपायों को प्रस्तुत करने में  सक्षम न हो सको, तो मै तुमसे  एक विनती कराती हूँ कि  तुम श्रीकृष्ण के कमल रूपी चरणों का  स्पर्श करके चली आना। मैं तुम्हें ही अपने  हृदय से लगाकर जीती रहूंगी  ।

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