panch tantra ki kahaniyon ka saar tatva
पंचतंत्र की कहानियों का सार तत्त्व
panch tantra ki kahaniyon ka saar tatva -3
अकस्मात् हाथ आये हुए धन को अविश्वासवश छोड़ना मूर्खता है। उसे छोड़नेवाले मूर्खमंडल का कोई उपाय नहीं।
आनेवाले संकट का आभास होता देखकर अपना भावी कार्यक्रम निश्चित कर लेनेवाला सुखी रहता है।
जो कार्य शीघ्रता से कर लेनेवाला हो ,उसमे विलम्ब करना अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा है।
बुद्धिमानी इसी में है कि आवश्यकता पड़ने स्वार्थ सिद्धि के लिए थोड़ी देर के लिए मान -अपमान की चिंता छोड़ देनी चाहिए।
श्रेष्ठ है वे लोग जो आरम्भ किये गए कार्य को बाधाएं आने पर भी तब तक संघर्ष करते है जब तक लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाये।
पुरुषार्थ बहुत बड़ी शक्ति है। पुरुषार्थ से असाध्य लगाने वाला कार्य भी साध्य हो जाता है,सच है किन्तु पूर्ण सत्य नहीं. क्योकि कभी -कभी दैव अर्थात भाग्य अनुकूल न हो तो पुरुषार्थ भी फलित नहीं होता।
औछे तथा स्वार्थ साधक लोग आवश्यकता पड़ने पर विश्वासघात करने में तनिक भी संकोच नहीं करते।
बधिक आग और घास में मैत्री कैसे हो सकती है?भोजन-भोज्य में प्रेम कैसे हो सकता है ? वधिक और वध्य में स्वप्न में भी मित्रता संभव नहीं हो सकती।
सर्वनाश की स्थिति में जो कुछ बच सकता है जो बचा लेने में ही समझदारी है।
वह मूर्ख ही होगा जो परिणाम जानते हुए भी बुरे कार्यों में प्रवृत हो जाये।
गीदड़ का बच्चा शेरनी का दूध पीकर भी गीदड़ ही रहेगा ,शेर नहीं बन सकता।
वाणी पर नियंत्रण न होने पर चिंगारी सी बात प्रचंड अग्नि का रूप धारण कर लेती है। वाचाल होने की अपेक्षा मौन रहना कहीं श्रयेस्कर है।
नीति कहती है कि शत्रु शक्तिशाली हो तो भेद नीति से ,नीच हो तो क्षमा दान से और समशक्ति हो तो अपने पराक्रम से उस पर विजय पाए।
बिना सोच -विचार किये अति उत्साह में किये गए कार्य का परिणाम बुरा ही होता है।
व्यावहारिक जीवन में बुद्धि का स्थान विद्या से भी ज्यादा महत्वपूर्ण है।
मनुष्य को चाहिए कि सदैव प्रश्नशील और जिज्ञासु रहने को अपनी आदत बना ले। आने वाली परेशानी या मुसीबत के प्रति सावधान होने का संकेत और उपाय मिलता रहेगा।
निरन्तर चिंता में डूबे रहने वाला चिंतित मनुष्य चाहे जितना प्रतिभाशाली क्यों न हो ,चिंता उसकी प्रतिभा को भी नष्ट कर देती है।
जगत के समस्त प्रलोभनो का त्याग करने के पश्चात् भी तृष्णा पूरी तरह नष्ट नहीं होती। देह के अंग शिथिल हो जाते है ,बाल रूखे हो जाते है ,दांत टूटकर गिर जाते है,आँख से दिखना कम हो जाता है ,कानों में बहरापन आ जाता है किन्तु मन की तृष्णा आखरी साँस तक जवान रहती है।
कुछ काम अकेले नहीं किये जाने चाहिए ,सामर्थ्यवान की सहायता ले लेनी चाहिए ,इसी में बुद्धिमानी है।
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