यदापि पोष मातरं पुत्र प्रभदितो ध्यान इतदगे अनृणो भवाम्यहतौ पितरौ ममो अतार्थ- माता-पिता ने मुझे पोषित किया है। अब मैं बड़ा हो गया हूँ और वे अशक्त। वे किसी भाँति पीड़ित ना हो इस हेतु उन माता-पिता की सेवा कर मैं अपने ही ऋण से मुक्त हो रहा हूँ।
अपने वृद्ध -बुजुर्ग के प्रति सेवा और सम्मान से हमें आशीर्वाद प्राप्त होता है। वृद्ध -बुजुर्ग का आशीर्वाद वो वरदान है ,
जो किसी भी व्यक्ति को बड़ी मुद्दत से मिलता है।
आशीर्वाद बड़े बुजुर्गों से मिलने वाला एक कवच है , जोहमारी रक्षा के लिए होता है। इस आशीर्वाद मे कई दुआएँ शामिल होती है, जो हर वक़्त कही न कही अपना असर दिखती है।
जिसका कोई मोल नहीं ये तो अनमोल है।
आशीर्वाद कोई धन या वस्तु नहीं है , जो किसी से अर्जित या छीनी जाए , ये तो वरदान है.
इस आशीर्वाद का सम्मान क्योंकि यह आपका सौभाग्य है
समय परिवर्तनशील है, समय गतिशील है, समय के साथ रहन -सहन , खान -पान यहाँ तक की विचारो
मे भी परिवर्तन आता है। समय के साथ साथ बच्चे युवा हो
जाते है, युवा प्रौढ़ और प्रौढ़ वृद्ध हो जाते है। उम्र के अंतर
के साथ साथ विचारो का अंतर भी बढ़ जाता है , जो बाते
युवाओ को पसंद होती है , वृद्ध उसके विरोधी होते है और जो बाते
बुजर्गो को पसंद होती है , युवा उसके विरोधी होते है ,
विचारो का ये अंतर पारिवारिक कलह का कारण बन जाता है .
परिवार का मुखिया होने के कारण बुजुर्ग अपने बच्चो से
सम्मान की अपेक्षा रखते ही है , साथ मैं पारिवारिक
गतिविधियों मे अपनी सलाह देना अपना दायित्व मानते है।
युवा पीढ़ी इसे अनावश्यक हस्तक्षेप समझती है। यही से वैचारिक टकराव की शुरुआत होती है। कई बार स्तिथियाँ ऐसी बन जाती है कि ये निर्णय करना कठिन हो जाता है कौन गलत और कौन सही है ?देखा जाये तो दोनों ही अपनी -अपनी जगह सही होते है सिर्फ दृष्टिकोण का अंतर होता है। निश्चित तौर पर पूरी तरह युवा पीढ़ी को गलत नहीं कहा जा सकता और पूरी तरह वृद्ध भी गलत नहीं होते। थोड़ी-थोड़ी गलती दोनों ओर से होती है किन्तु दोनों ही स्वयं को सही मानकर उस स्तिथि को स्वीकार करने के लिए दबाव डालते है जिसके लिए दोनों ही मानसिक रूप से तैयार नहीं होते और न सहमत हो पाते है। दोनों ही अपनी गलत बात को ही सही साबित करने में जुट जाते है., कोई भी अपने आप को गलत मानने के लिए तैयार नहीं होता। यही कारण है कि इस वैचारिक मत-भेद के कारण युवा दम्पति अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ रखना नहीं चाहते या फिर उनसे अलग रहना चाहते है।
क्या युवा दम्पति का ये निर्णय उचित कहा जायेगा ? याद करो ,बचपन में हम ऐसी ना मालूम कितनी भूलें करते थे।
तो क्या हमारे माता-पिता हमें अनाथ-आश्रम छोड़ आये थे ?
आज देश मे लगभग ७- ८ करोड़ वरिष्ठ नागरिक है। इन करोडो मे कुछ हज़ार ही ऐसे वरिष्ठ नागरिक होंगे, जिन्हें अपने बेटो – बहुओ , पोता -पोतियो के साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हो रहा है अन्यथा अधिकांश वरिष्ठ नागरिक उपेक्षित एवम एकाकी जीवन जीने के लिए बाध्य है। इनमे से भी कुछ ऐसे वरिष्ठजन है (जिन्हें आर्थिक परेशानी तो नहीं है पर अपने बेटो- बहुओ की उपेक्षा से आहत है एवम एकाकी जीवन जी रहे है। ) इससे भी बदतर ज़िन्दगी उन बुजुर्गो की है जिन्हें बेटे- बहुओ ने अपने से अलग कर दिया है और वे आर्थिक रूप से भी परेशान चल रहे है और किसी गंभीर बीमारी से ग्रसित है। देखभाल के अभाव मे नारकीय जीवन जी रहे है। आकडो के अनुसार वृद्ध पुरुषो की अपेक्षा वृद्ध महिलाओ की संख्या अधिक है , जिनमे विधवा व परिव्यक्ता महिलाए शामिल है।
कई ऐसे असहाय अशक्त वृद्ध है जिनके पास आय का कोई विकल्प नहीं है। जितना कुछ वह अपने बुढ़ापे के लिए जोड़ सकते थे वह सब तो वे अपने बच्चो की शिक्षा , पालन – पोषण और नया घर खरीदने या बंनाने पर खर्च कर दिया। इनमे से कुछ तो ऐसे है जो धृष्टराष्ट्री पुत्र मोह के करण लाखो – करोडो की सम्पति के स्वामी होने बावजूद अभावों में और कष्टमय जीवन जी रहे है। ऐसे वृद्ध ना तो अपने अधिकारों के लिए कानूनी सहायता ले रहे है और ना अपनी संतानों के प्रति शिकायत करते है।
वरिष्ठ नागरिकों का जिनका ऋण है हम पर ,समाज पर ,देश पर … क्योकि जो वृद्ध है कल तक वे युवा थे ,जिन्होंने अपनी युवावस्था में अपने परिश्रम से देश ,समाज और परिवार के प्रति अपने दायित्व का निर्वाह कर सुनहले भविष्य की नींव रखी। आज हम जो भी है , अपने बुजुर्ग माता-पिता की बदौलत है।माता-पिता की अहमियत क्या है ये उन से पूछो जिनके माता-पिता नहीं थे। कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, उन्हें खुद को खड़ा करने में ,संभलने में। उनकी सेवा करना ,उनका सम्मान करना हमारा नैतिक कर्तव्य भी है और धर्म भी। देश और समाज का भी दायित्व है कि ऐसे पीड़ित बुजुर्गों को उनके हिस्से का अधिकार और सम्मान उन्हें दिलाये।
वर्तमान वरिष्ठ नागरिक जिस शारीरिक और मानसिक संताप को झेल रहे है ,उसे देखते हुए उनके प्रति चिंता और चिंतन करना प्रबुद्ध वर्ग का मानवीय कर्तव्य बन जाता है कि प्रबुद्ध वर्ग अपने प्रयासों से अशक्त -असहाय वृद्धजनों के प्रति सुसुप्त युवा दम्पतियों के ह्रदय में दायित्व -बोध जाग्रतं करें।
आधुनिक जीवन शैली और सामाजिक -पारिवारिक व्यवस्था में जो बदलाव आया है ,उसमे युवा दम्पति अपने वृद्ध माता-पिता को अपने साथ रखने में अपनी स्वच्छंदता ,उन्मुक्तता और स्वतन्त्रता में बाधा समझते है। कुछ युवा दम्पति लोक -लज्जा के भय से वृद्ध माता-पिता को अपने साथ तो रखे हुए है लेकिन उनके साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं होता। चहार -दीवारी के पीछे छुपी ये सच्चाई उस समय निकलकर आती है, जब
सुबहः की सैर पर अपनी उम्र के साथी के साथ अपने भीतर के दर्द को बाटता है और सिसकी और आंसू शब्द बनकर सब कुछ कह जाते है। साथी का कंधे पर रखा हाथ ,बंद होठ और खामोश आँखें कह देती है कि दोस्त तू अकेला नहीं है ,मैं भी तेरे साथ हूँ। युवा दम्पति को यह नहीं भूलना चाहिए कि उनके वृद्ध माता-पिता के पास अनुभव की जो पूँजी है उसका लाभ उठाकर वे कई सारी परेशानियों से बच सकते है। बुजुर्ग माता-पिता के साथ रहने पर उनके बच्चों को अच्छे संस्कार ,अच्छी आदतें ,और दुनियादारी की ढेर सारी बाते सीखने को मिलती है। विशेष रूप से काम-काज़ी महिलाओं के लिए तो और भी अच्छा होगा ,क्योकि उन्हें अपने बच्चों को किसी गैर की देख-रेख नहीं रखना पड़ेगा ,बच्चों को अकेला नहीं छोड़ना पड़ेगा। उनके बच्चे टीवी और इन्टरनेट के दुरुपयोग से बच जायेगे। अकेलेपन से उत्पन्न बुरे विचारों के प्रभाव से बच जायेगे। मृत्यु की भांति बुढ़ापा भी शाश्वत है। हमारे माता-पिता बूढ़े हुए, तो यह भी निश्चित है कि हम भी एक ना एक दिन बूढ़े होंगे ही और तब हमारी संताने हमारे साथ वैसा व्यवहार करे ,जैसे कुछ मति-भ्रम युवा दम्पति अपने बूढ़े माता-पिता के साथ कर रहे है ,तब हमें कैसा लगेगा ?जो बात हमें कल्पना में भी बुरी लग रही है ,यथार्थ में कितनी बुरी लगेगी, इस मर्म की सहज अनुभूति की जा सकती है। केवल सरकारी प्रयास और कानून बना देने से हम अपने दायित्व से मुक्त नहीं हो जायेगे सरकार और कानून तो अपना दायित्व निभा ही रहे है उससे ज्यादा हमें आत्म-बोध करने और कर्तव्य विमुख युवा दम्पतियों में आत्म-बोध कराने की है।
१ अक्टूबर को अंतर-राष्ट्रीय और २१ अगस्त को राष्ट्रीय स्तर पर वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाने की सार्थकता
तब ही होगी ,जब समाज का प्रबुद्ध और जागरूक वर्ग अशक्त -असहाय वृद्ध वर्ग को उनका खोया हुआ अधिकार और सम्मान उन्हें लौटा सके।
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