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munshi prem chand- कलम का सिपाही

July 30, 2016
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munshi prem chand- कलम का सिपाही

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मुंशी प्रेम चंद के जन्म दिवस पर विशेष -३१  जुलाई 

जन्म -३१ जुलाई ,१८८०

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कलम का सिपाही

मुंशी प्रेम चंद   हिंदी साहित्य का वह नाम  जिसके नाम के बिना हिंदी ऐसी नारी के जैसी लगती है जिसके  माथे से बिंदी हटा दी गयी हो। जैसे बिंदी से नारी श्रगांरित होती है ,वैसे ही प्रेम चंद  के नाम से हिंदी श्रगांरित होती है। प्रेम चंद  आम आदमी के लेखक का नाम है ,जिसने समाज के दलित ,पीड़ित शोषित वर्ग के दर्द को शब्द बना कर मोटे -मोटे  गद्दे पर सोने वाले धन्ना सेठों तक पहुँचाया। प्रेम चंद  का कथा साहित्य बुद्धि-जीवी वर्ग की बुद्धि विलासता का माध्यम नहीं ,बल्कि बुद्धि-जीवी वर्ग की अंतरात्मा को कचोटने वाला साहित्य है।
मुंशी प्रेम चंद  का  हिंदी साहित्य में आगमन साहित्य को राजा -रानियों के किस्से ,रहस्य-रोमांस और तिस्लमी दुनिया से निकालकर यथार्थ की दुनिया में लेकर आया। प्रेम चंद  का कथा साहित्य उस समय की सामाजिक व्यवस्था के कर्ता  कारक जमीदार,साहूकार महाजनों और खुद को सभ्य,सुसंस्कृत समझने वाले उच्च वर्ग के कपडे उतारकर कपडे के नीचे छिपे हुए विकृत और लकवा ग्रस्त अंगो को दिखाता है ,जिसे अपने समय के सम्भ्रान्त कहलाने वाले वर्ग ने ढक  रखा था। प्रेम चंद  की कहानियां और उपन्यास उस काल खंड और जीवन के एलबम है ,जिसमे वे तस्वीरें है जो इस बात की गवाही देते है कि  गाँव का किसान और शहर का मज़दूर अंग्रेजो की गुलामी से ज्यादा पूजीपतियों  से त्रस्त था।
उनके सम्पूर्ण साहित्य काअध्ययन करनेवाले इस तथ्य से भली -भांति परिचित होंगे कि प्रेम चंद  समाजवादी विचारोंके प्रगतिशील लेखक थे। वे सौंदर्य के उपासक नहीं बल्कि यथार्थ के पक्षधर थे। उस समय की सामाजिक दशा को देखकर भी यदि कोई साहित्यकार नारी अंगों को छन्द -बद्ध कर रहा था तो वह साहित्यकार नहीं बल्कि नेत्रहीन ही कहलाने योग्य था।
प्रेम चंद  जी का मानना था कि  यह ठीक है कि  मानव दुर्बलताओं का पुतला है किन्तु उसमे सद वृतियों का भी अभाव नहीं। साहित्यकार को चाहिए कि  वे उन सद -वृतियों को   अपने साहित्य के माध्यम से अवगत कराये। मार्क्सवाद का प्रभाव भी प्रेमचंदजी के कथा साहित्य में देखा जा सकता है।
कुछ तथाकथित दुराग्रह या पूर्वाग्रह से ग्रसित  स्वनाम धन्य आधुनिक लेखक -समालोचक प्रेम चंद  और उनके साहित्य को समय और स्तिथियों से  काटकर देखते है तथा उनके साहित्य को दोयम दर्जे का प्रमाणित करने में अपने श्रम ,ऊर्जा और बुद्धि का अपव्यय करते हुए प्रेम चंद  और उनके साहित्य को अप्रसांगिक बतलाने का ढोल पीटने लगे है। जबकि एक सर्वे के अनुसार प्रेमचन्द  के गोदान उपन्यास को एक मत से सदी का सर्व-श्रेष्ठ उपन्यास चुनना प्रेमचन्द  के गोदान उपन्यास को कालजयी रचना के रूप में स्थापित करता है।

आज़ादी से पूर्व हमारे देश के नेता अपनी  सभाओं में मंच से जनता को आश्वासन देते थे ,सपने  दिखाते थे कि  जैसे ही हमारा देश आज़ाद होगा हम गाँव गाँव  तक सड़कें पहुंचा देगें ,नहरें  पहुंचा देगें,कोई नंगा भूखा  नहीं रहेगा ,हरपेट में रोटी होगी ,हर तन पर कपड़ा होगा हर सर पर छत होगी ,हर हाथ के लिए काम होगा ,हर होठ पर मुस्कान होगी।
देश आज़ाद हो गया ,सालों बीत गए ,लेकिन क्या हुआ ?नेता  शहरों के विकास और तकनीकी क्षेत्र की उपलब्धियां गिनाते थकते नहीं है। लेकिन क्या किसान और मज़दूर की स्तिथि बदल पाए ,जिसका चित्रण प्रेम चंद  ने अपने कथा साहित्य में किया था।  किसान और मज़दूर आज भी उतना ही दलित ,पीड़ित ,शोषित है ,जितना प्रेम चंद  ने अपने कथा साहित्य में चित्रित किया था।
आज़ादी के बाद प्रेम चंद  के कथा पात्र घीसूऔर माधव की जातीय वर्ग की स्तिथि में भले ही परिवर्तन आ गया हो किन्तु गोदान का होरी का आज भी जीवित है। सत्ता-लोभी ,अवसरवादी नेताओं के जिस चरित्र को प्रेम चंदजी ने अपने उपन्यास काया -कल्प में उकेरा था ,वैसे ही नेता आज भी राजनितिक दलों में देखे जा सकते है। भ्रष्टाचार और रिश्वत के मामले में  सरकारी बाबू  और अधिकारी आज भी प्रेम चंदजी के उपन्यास गबन के पात्र राम नाथ के चरित्र को ही चरितार्थ करते हुए जान पड़ते है।

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उपन्यास सम्राट

बाह्य आवरण बदल गया है ,लेकिन भीतर की पीड़ा आज भी वही है ,समस्या वही है ,घावों से मवाद आज भी रिस रहा है।आंसू  और कराहने की आवाज़ में घुला दर्द भी वही है। सेवा-सदन की सुमन जैसी युवतियां आज भी रेड लाइट एरिया में पहुँच रही है।
गोदान के होरी के आलावा भी प्रेम चंद  का ही उर्दू उपन्यास असरारे मआबिद की कथा वस्तु की पड़ताल करके देख लीजिये ,जिसमे धर्म के ठेकेदारों की विलासता और उनके द्वारा नारी शोषण की समस्या को उठाया था।
आज आप फेसबुक ,व्हाट्सअप ,टीवी न्यूज़  चैनल ,वायरल हुए वीडियो इस बात की गवाही देने आ पहुंचते है कि  प्रेमचंद साहित्य का सच आज भी ज़िंदा है। स्वतंत्रता पूर्व प्रेम चंद  के उपन्यास रंग-भूमि में किसान की अपनी ही ज़मीन से बे-दखल होने के संघर्ष की कहानी है। आज उदारीकरण के बाद विदेशी मल्टीनेशन कम्पनियाँ भी तो वही सब कर रही है। मैंने ऊपर कहा था ना कि  सिर्फ बाहरी स्तिथियों में परिवर्तन हुआ है ,भीतर का सच आज भी वही है।
प्रेमचन्द  और प्रेम चंद साहित्य के विरोध में स्वर उठाने वालेआधुनिक लेखकों- समालोचकों को चाहिए कि  वे प्रेमचंद  को किसी वाद की परिधि में रखकर आकलन ना करें। जिस किसी वस्तु स्तिथि ने प्रेम चंद  के लेखक ह्रदय को झकझोरा उसी पर उन्होंने कलम चला दी। उन्होंने सदैव स्वयं को बुद्धि और आत्मा के मध्य रखा। वे केवल सर्वहारा और अकिंचन वर्ग के हिमायती थे ,यह ठीक है किन्तु तत्कालीन परतंत्रंता की पीड़ा भी उनकी कलम से चीत्कार करती हुई सुनाई दे सकती है। उनकी रचना सोजे-वतन गवाह बनकर आती है और कहती है कि  प्रेम चंद  महज मनोरंजन के लिए लिखी जाने वाली कहानियों के कथाकार ही नहीं बल्कि राष्ट्र-वादी लेखक भी थे।
नई पीढ़ी के युवा पाठक समझते होंगे कि  प्रेमचंद का साहित्य भी समय के साथ -साथ ब्लैक एन्ड व्हाइट फिल्मो की तरह ही हो गया होगा किन्तु मैं  पुरजोर शब्दों में कहूँगा कि  प्रेम चंद  का कथा साहित्य आज भी प्रासंगिक है ,समाज का सिर्फ बाह्य कलेवर बदला  है भीतर की स्तिथि आज भी यथावत है। आज की युवा पीढ़ी देश और समाज की जो ईमारत अपने सामने खड़ी  देख रही है ,उसे देखकर सोचती होगी कि  सब कुछ तो ठीक है किन्तु सच यह नहीं है जो दिख रहा है ,नींव कमजोर है ,दीवारें खोखली है -सिर्फ मरम्मत कर रंग-रोगन कर दिया गया है।
आप कह सकते है कि  पहले जैसे ज़मीदार ,साहूकार ,महाजन,दरोगा  अब कहाँ है जो प्रेम चंद  के साहित्य में वर्णित है ?ऐसा कहने वाले आज के गाँव  के सरपंच ,प्रधान ,तहसीलदार ,सरकारी अधिकारी और बाबूओ को क्या कहेगे ?इनकी सम्पति देख लीजिये और किसान की सम्पति देख लीजिये ,जवाब मिल जायेगा। क्या आज़ादी के बाद सरकार और सरकारी अधिकारी  गरीबों के हित -चिन्तक  बन गए है ?
जब तक देश और समाज में दलित का शोषण होता रहेगा, भूख ,गरीबी से किसान आत्म-हत्या करता रहेगा ,भूख और गरीबी से मज़दूर ईमान बेचता रहेगा ,गरीब किसान और मज़दूर की झोपड़ियों के सामने पंचायती राज के छुट -भइये नेताओं से लेकर दिल्ली की संसद में बैठे नेताओं  और भ्रष्ट  बाबूओ व्  अधिकारियों की ऊँची ऊँची इमारतें बनती रहेगी ,तब तक   प्रेम चंद  और उनके साहित्य को अप्रसांगिक बतलाने का ढोल पीटने वाले लेखको और समालोचको को अपनी कलम और मुँह  दोनों बंद रखने चाहिए।

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संक्षिप्त जीवन परिचय 
मुंशी प्रेम चंद –
मूल नाम -धनपत राय श्री वास्तव
अन्य नाम -नवाब राय
लोक प्रचलित नाम -मुंशी प्रेमचंद
विशेषणीय नाम -उपन्यास सम्राट
                         कलम का सिपाही
                          कहानी के पितामाह
जन्म -३१ जुलाई ,१८८०
मृत्यु  -८ अक्टूबर ,१९३६
पिता का नाम -अजायब राय
माता का नाम -आनंदी देवी
प्रारंभिक शिक्षा -उर्दू /फारसी
व्यवसाय -(मेट्रिक के बाद) सरकारी अध्यापक
               (बी.ए  के बाद ) स्कूल इंस्पेक्टर
दाम्पत्य जीवन -पहला विवाह १५ वर्ष की आयु में /पहला विवाह असफल
                        दूसरा विवाह -बाल विधवा शिवरानी से
संतान – श्रीपत राय,अमृत राय (पुत्र ),कमला देवी (पुत्री )
प्रारंभिक लेखन -उर्दू में/ धनपत राय के नाम से
सोजे वतन प्रकाशन से उत्पन्न विवाद के बाद परिवर्तित नाम -प्रेमचंद
प्रेम चंद  नाम से लिखी पहली कहानी -बड़े घर की बेटी
अंतिम कहानी -कफ़न
अंतिम उपन्यास -मंगल -सूत्र (अधूरा )
मरणोपरांत कहानियों का संग्रह (मान सरोवर में )८ खण्डों में प्रकाशित
माधुरी हंस  जागरण मर्यादा  पत्रिकाओं का संपादन
लोकप्रिय उपन्यास -सेवा-सदन ,निर्मला  ,कर्म-भूमि रंगभूमि ,कायाकल्प ,प्रतिज्ञा प्रेमाश्रय ,गोदान
लोकप्रिय कहानियाँ  -पञ्च परमेश्वर ,गुल्ली-डंडा  ,दोबैलों की कथा ,ईदगाह ,बड़े भाई-साहब ,पूस की रात ,ठाकुर का कुआ ,साद गति ,बूढी काकी ,तावान ,विध्वंस ,दूध का दाम ,मन्त्र ,कफ़न
नाटक -संगाम ,कर्बला ,प्रेम की वेदी
चर्चित लेख -साहित्य का उद्देश्य ,पुराण ज़माना ,नया ज़माना ,स्वराज के फायदे ,कहानी कला ,कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार ,हिंदी -उर्दू की एकता ,महाजनी सभ्यता ,जीवन में साहित्य का स्थान
 अनुवाद -टालस्टाय की कहानियां ,गाल्सवर्दी के ३ नाटक ,उर्दू उपन्यास फसांना -ए -आज़ाद का हिंदी अनुवाद आज़ाद कथा
कथानकों पर फिल्मे -शतरंज के खिलाडी ,सद – गति ,गोदान ,गबन

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