motivation – panchtantra kahaniyon ka saar tatva
पंचतन्त्र कहानियों का सार तत्व –
दूसरे के कार्य में हस्तक्षेप करना मूर्ख क्योकि ऐसा करने से व्यक्तिगत हानि ही होती है शब्द मात्र से डरना उचित नहीं क्योकि ,संभावना ,कल्पना अथवा अनुमान सदैव वैसा नहीं होता है जैसा हम सोचते है
आंधी का झोका बड़े वृक्षों को गिरता है ,घास-पात को नहीं अर्थात गुणवान मनुष्य का गुण दूसरों के ईर्ष्या का कारण बनता है और ईर्ष्यालु ,गुणवान की निंदा करके उसे नीचा दिखने की कोशिश करते है।
उपाय से वह कार्य भी हो जाता है जो पराकर्म से भी नहीं होता अर्थात अक्ल बड़ी होती न कि भैस
बुद्धि का स्थान बल से बहुत ऊँचा होता है ,जिसके पास बुद्धि है वही बली है। बुद्धिहीन का बल भी व्यर्थ है।
अज्ञात या विरोधी प्रवृति के व्यक्ति को आश्रय नहीं देना चाहिए,निज हित के लिए वह हानि पहुँचा सकता है।
जिसका जो स्वाभाव होता है ,वह उपदेशों से नहीं छूटता। अग्नि अपनी जलन और पानी अपनी शीतलता के स्वाभाव को कहाँ छोड़ता है। वह कभी न कभी ,कहीं-न कहीं जाने-अनजाने में परेशानी का कारण बन सकता है।
अपने स्वाभाव के विरुद्ध आचरण करनेवाला ,आत्मीयों को छोड़कर परकीयों में रहनेवाला न घर का रह पाता हैऔर न घाट का।
सेवा धर्म की राह बडी कठिन होती है,किन्तु अंत सुखद होता है । हित चिंतक की बात सुने ,विचार करें और अमल करें।
जो किसी कारण वश क्रोध करे ,उसका क्रोध कारण को दूर होने पर दूर किया जा सकता है ,लेकिन जो अकारण ही कुपित हो ,उसका कोई उपाय नहीं। शत्रु यदि बलशाली हो तो क्रोध प्रकट नहीं करें बल्कि अवसर अथवा परिस्तिथि के अनुसार विवेक से काम लें।
हित चिंतक मित्रों की बात पर जो ध्यान नहीं देता ,वह मूर्ख नष्ट हो जाता है।
बुद्धिमानों में भी वही बुद्धिमान सफल होते है ,जो विपत्ति आने से पहले ही उपाय सोच लेते है और वे भी उसी प्रकार सफल होते है जिनकी बुद्धि तत्काल अपनी रक्षा का उपाय सोच लेती है। पर जो होगा ,देखा जायेगा कहनेवाले शीघ्र ही नष्ट हो जाते है
छोटे और निर्बल भी संख्या में बहुत होकर दुर्जेय हो जाते है। कभी -कभी स्वरः साधन करते हुए कपट से भी काम लेना पड़ता है
उपदेश से मूर्खों का क्रोध और भी भड़क उठता है ,शांत नहीं होता
हर किसी को उपदेश देना उचित नहीं
बुद्धिमान को दी गयी शिक्षा का फल मिलता है। मूर्ख को दी गई शिक्षा का फल कई बार उल्टा निकल आता है अर्थात अयोग्य को दिए गए ज्ञान का फल विपरीत हो जाता है
उपाय की चिंता के साथ तजन्य उपाय या दुष्परिणाम की भी चिंता कर लेनी चाहिए
हित चिंतक मूर्ख मित्र की अपेक्षा अहित चिंतक बैरी ज्यादा अच्छे होते है।
लोभ विवेक शक्ति को नष्ट कर देता है।
लोभ स्वाभाविक है किन्तु अतिशय लोभ मनुष्य का सर्वनाश कर देती है
परस्पर विरोधी स्वाभाव के लोगों में मैत्री हो ही नहीं सकती
No Comments