labour day,mazaboor nahi ,mazadoor hoon mai -hindi kavita
१ मई ,मज़दूर दिवस पर विशेष
हिंदी कविता –
मै मज़दूर हूँ
(सुरेश सुमन )
मज़दूर हूँ ,
लेकिन, नहीं मज़बूर हूँ मै
दुनिया में रहकर भी ,
तुम्हारी दुनिया से दूर हूँ मै
और ,न तुम अपनी मरजी से अमीर हो
मै तो बस ,अपना नसीब हूँ
हे अमीरों ,
तुम्हारी दौलत –शौहरत से
न मुझे कोई रश्क है
न मेरी आँखों में कोई अश्क है
मुझे तो इतना सा इंसाफ चाहिए
मेरे हिस्से की ज़मीन पर
तुमने जो ईमारत बनाई है
मुझे तुम्हारा अहसान नहीं
अपने हिस्से की छाया चाहिए
जो समझते है मुझे आँख का काँटा
लेकिन किसी के लिए मै
उसकी आँखों का नूर हूँ
हाथ मेरे सख्त
लेकिन दिल से नहीं मै क्रूर हूँ
यह मेरा नसीब है
उपरवाले ने नीचे की दुनिया को
खूबसूरत बनाने के काबिल समझा है मुझे
इसीलिए तुम्हारी तरह अमीर नहीं
मज़दूर बनाया है मुझे
आसमा में एक चाँद लगाया है
उपरवाले ने
चार चाँद लगाये है दुनिया में
इस नाचीज मज़दूर कहलानेवाले ने
मेरे हिस्से में धन नहीं
पुरुषार्थ आया है
इसीलिए मैंने माथे पे
मज़दूर का तमगा लगाया है
गरीब हूँ ,
लेकिन ईश्वर के करीब हूँ
अभावों में जीता हूँ
लेकिन विधाता से
गिला, शिकवा, शिकायत नहीं करता हूँ
प्रार्थना के लिए न सही
अपमान की पीड़ा से
हर रोज याद करता हूँ
सो रहे हो तुम जिस छत के नीचे
वह मैंने ही बनाई है
यह अलग बात है
तुमने घरों में
और मैंने आसमा के नीचे रात बिताई है
कह रहे हो तुम जिसे मेरा पसीना
जब तक भीतर था लाल था
बाहर आकर अपमान से हो गया पानी
और पी गया मेरी जवानी
लेखकों की कलम टूट जाएगी
कागज़ कम पड़ जायेगे
स्याही रीत जाएगी
पर मज़दूर की दास्ताँ न लिखी जाएगी
वैज्ञानिक आसमान के तारें गिन आएंगे
मान लेता हूँ
लेकिन मज़दूर का दर्द
गिनते-गिनते कंप्यूटर थक जायेगे
मेरी दुःख भरी कहानी पर
न कोई आँसू बहाए
न मलहम लगाये
ये ज़ख्म किसी और ने नहीं
उसने लगाये है
जिसने चाँद –सितारें बनाये है
मज़दूर होना मैं पाप नहीं समझूँगा
मज़दूर होने को अभिशाप नहीं कहूंगा
महलवालों ….. बस इतना सा उपकार कीजिये
मेरी मज़दूरी को बख्शीश न समझिये
इसमें थोड़ा सा-प्यार, थोड़ा सा सम्मान
मिलाकर दीजिये
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