mahatma buddh
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May 15, 2022
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Hindi Hindustani

mahatma buddh

“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”

“परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्। ,धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।”

अर्थात  भगवद्गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है – “जब-जब इस पृथ्वी पर धर्म की हानि होती है, और अधर्म बढ़ने लगता  है, तब-तब मैं पृथ्वी पर अवतार लेता हूँ।

सज्जनों और साधुओं की रक्षा करने लिए और पृथ्वी पर से पाप और पापियों का  विनाश करने के लिए और धर्म की स्थापना के लिए मैं हर युग में अवतार लेता हूँ और लोक का  कल्याण करता हूँ।”

भगवान बुद्ध का इस पृथ्वी पर  अवतरण होना भगवान श्री कृष्ण की वाणी की प्रमाणिकता का साक्ष्य है .

महात्मा बुद्ध  को विष्णु के दस अवतारों में से एक अवतार के रूप माना गया  हैं।

महात्मा बुद्ध का उल्लेख सभी प्रमुख पुराणों तथा हिन्दू ग्रंथों ,यथा – हरिवंश पर्व ,विष्णु पुराण ,भागवत पुराण ,गरुड़ पुराण ,अग्निपुराण ,नारदीय पुराण,लिंगपुराण ,पद्म पुराण में हुआ है .

महात्मा बुद्ध का अवतरण युगीय धर्म की स्थापना तथा  अवैदिक मत के बढ़ते  प्रभाव  के निस्तारण के  उद्देश्य से हुआ  बताया गया है .

महात्मा बुद्ध के अवतरण से पूर्व आत्मीयता ,वेदांत का आत्मज्ञान और अद्वैत,दर्शन की अन्वेषण वृति ,रामायण की नीति मर्यादा  और महाभारत काल की दर्शन समन्वयता समाज शास्त्र आदि गुण भारतीय संस्कृति में समन्वित हो गए थे ,इसमे कोई प्रतिवाद नहीं किन्तु इस सत्य को भी स्वीकारना होगा कि महात्मा बुद्ध के अवतरण से पूर्व भारत  वर्ष कर्म कांड ,अनुभव रहित वेदान्तिक तर्क ,दर्शन पांडित्य ,सर्वत्र संघर्ष का असमन्वयकारी वातावरण इतना बढ़ गया था कि कर्मकांड ,व्यर्थ वेदांत दर्शन ,व्यर्थ पांडित्य ,संघर्ष हिंसा से मुक्त समाज की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी थी .भगवान राम और श्री कृष्ण की तरह एक ऐसे अवतार की प्रतीक्षा की जा रही थी जो समाज में आयी विषमता और विकृत सामाजिक ढांचे को परिष्कृत  कर सके क्योकि ज्ञान ,गुण ,अर्थ ,सब तरह की विषमताओं से प्रजा जर्जर हो रही थी .माना  जाता है कि इस निमित्त अवतार धारण करने के लिए देवताओं ने बोधिसत्व की प्रार्थना की गयी होगी .

शाक्य गणराज्य की तत्कालीन राजधानी थी कपिलवस्तु औरवहां  इक्ष्वाकु वंशीय क्षत्रिय शुद्धोदन का राज्य हुआ करता था .

45 वर्ष की आयु तक कपिल वस्तु के राजा शुद्धोदन को संतान सुख की प्राप्ति नहीं हुई थी .

महामाया और  प्रजापति गौतम  दोनों  कोलीय वंशीय सगी बहिनें थी ,दोनों का विवाह राजा शुद्धोदन के साथ हुआ था .

कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को स्वप्न में महामाया ने सूंड में श्वेत कमल लिए हाथी को देखा ,हाथी ने तीन बार महामाया की प्रदक्षिणा की और  महामाया की कुक्षी में प्रविष्ट हो गया .इस प्रकार भगवान बुद्ध के भूलोक आगमन का संकेत मिला .

रानी महामाया की इच्छा थी कि संतान का जन्म पितृगृह देवदह में हो इस हेतु जब रानी को पितृगृह देवदह ले जा रहा था ,मार्ग में लुम्बिनी वन में भगवान बुद्ध का पुष्य नक्षण में 563 ईस्वी पूर्व वैशाख पूर्णिमा को जन्म हुआ .बुद्ध के जन्म के सम्बन्ध में ऐसा वर्णित हुआ कि जन्म के तुरंत  बाद शिशु रूप बुद्ध सात कदम चले थे .

राजा शुद्धोदन ने रानी को कपिलवस्तु बुला लिया .नगर में पुत्र जन्मोत्सव का आयोजन हुआ .असित ऋषि ने बालक बुद्ध के बारे में भविष्यवाणी की कि यह बालक विषयों से विरक्त हो ,राज्य का परित्याग कर तत्व को प्राप्त करेगा और संसार को ज्ञान के आलोक से आलोकित करेगा .इस भविष्यवाणी से राजा शुद्धोदन चिंतित हो उठे .अन्य भविष्यवेत्ताओं से परामर्श किया गया .उन्होंने भी  यही बतलाया कि यह बालक या तो चक्रवर्ती सम्राट बनेगा  या फिर महान बुद्ध .

पांचवें  दिन बालक का नामकरण किया गया .नाम रखा गया –सिद्धार्थ .

सिद्धार्थ के जन्म के सातवें दिन माता महामाया का देहावसान हो गया .महामाया की बहिन प्रजावती गौतम ने बालक  सिद्धार्थ का पालन किया . शायद इसी कारण महात्मा बुद्ध को गौतम बुद्ध भी कहा जाता है  

सिद्धार्थ का राज वैभव में संवर्धन हो रहा था .धर्म ग्रंथों के अतिरिक्त सिद्धार्थ को वे समस्त शिक्षाएं दी गयी जो प्राय:क्षत्रिय राजकुमारों को दी जाती है .सिद्धार्थ सामान्य बालकों से भिन्न स्वाभाव वाले थे.

सिद्धार्थ बाल्यकाल से से ही शांत ,गंभीर संयत और सहनशील  .

सभी जीवों के प्रति दया भाव .

घायल पक्षी को देखकर व्यथित होना .

हलकर्षण उत्सव के दौरान बैठे-बैठे ही सिद्धार्थ को  ध्यान समाधी लग जाना

सांसारिक दुखों से दूर रखने के उद्देश्य से तीन अलग -अलग ऐश्वर्यपूर्ण महलों में रहने के उपरांत भी भोग्वृति में लिप्त न होना .

16 वर्ष की आयु में विवाह होना  कितु 29 वर्ष की आयु पिता बनना .किन्तु  प्रव्रज्या का विचार अविचल बने रहना  

नगर भ्रमण करते हुए एक वृद्ध ,एक व्याधिग्रस्त व्यक्ति ,एक शव यात्रा और एक परित्यागी संन्यासी को देखकर सांसारिकता से मोह भंग होना

यह समस्त वर्णन सिद्धार्थ के  अविलक्षण होने का संकेत था .

और एक रात प्रव्रज्या का अविचल विचार महाभिनिष्क्रमण में परिणत हो गया .

उस  रात्रि पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोता छोड़कर सिद्धार्थ अपने विश्वासपात्र छंदक की सहायता से अपने प्रिय अश्व कन्थक पर बैठकर राज्य से निकल गए .अनोमा नदी के तटपर केश त्याग कर प्रवज्य हो गए .कहा जाता है कि स्वामी का साथ छूटने की आशंका से अश्व कन्थक ने प्राण त्याग दिए .सिद्धार्थ ने अपने विश्वासपात्र छंदक  को पहने हुए आभूषण उतार  कर दे दिए और पुन:कपिलवस्तु लौट जाने की आज्ञा दी .

एक सप्ताह अनुपिया प्रदेश में व्यतीत कर बिम्बिसारकी राजधानी राजगृह गए .

वहां एक गुफा में निवास किया .जब भिक्षाटन के लिए नगर में आये तो सिद्धार्थ का गाम्भीर्य , ओज और दीप्त रूप देखकर बिम्बिसार और अन्य लोगों को विस्मय हुआ .बोद्ध पुस्तकों में वर्णित है कि बिम्बिसार ने सिद्धार्थ के देदीप्यमान रूप को देखकर राजेश्वर प्रदान करने का प्रस्ताव  रखा .सिद्धार्थ ने बिम्बिसार को अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि और स्वयं के उद्देश्य के बारे में अवगत  कराया .सत्य जानकर बिम्बिसार ने ज्ञान प्राप्ति के बाद दर्शन देने का वचन लिया .

सिद्धार्थ हिरण्यवती के तट पर आकर आलार आश्रम रुके ,उसके बाद रूद्रक  राम पुत्र  के आश्रम चले आये तत्पश्चात  बोध गया आ गए  ,यहाँ  पांच ब्राह्मण भिक्षुओं के साथ निराहार रहकर हठयोग  साधना करने लगे. निरंतर निराहार रहकर हठयोग करने से उनका शरीर कृशकाय हो गया .

एक रात्रि स्वप्न में उन्होंने वीणा वादन करने वाली दो बालिकाओं की वार्ता सुनी जिसमे एक बालिका दूसरी बालिका से कह रही थी कि वीणा के तारों को इतना भी न कसो कि टूट जाये और न इतना ढीला छोडो कि स्वर ही न निकले .स्वप्न में देखे दृश्य के पश्चात् सिद्धार्थ ने मध्यम मार्ग चुनने का निर्णय कर अन्नाहार करना प्रारंभ किया .

सिद्धार्थ को अन्न ग्रहण करता देखकर पाँचों ब्राह्मण भिक्षु यह सोचकर सिद्धार्थ का साथ छोड़कर चले गए कि सिद्धार्थ तपस्या से च्युत हो गए  है .

सिद्धार्थ हठयोग छोड़कर राजयोग करने लगे .सुजाता नाम की स्त्री से खीर ग्रहण करना इसी प्रसंग से जुड़ा है .

सिद्धार्थ बोधि वृक्ष के नीचे आसन लगाकर साधना में लींन हो गए और यहीं वैशाख पूर्णिमा को बुद्धतत्व की प्राप्ति हुई और सिद्धार्थ पूर्ण ज्ञान रूप,चैतन्य रूप और आनंद स्वरुप बुद्ध हो गए  .जिस दुःख का ,जिस नश्वरता का अंत करने के लिये गृह त्यागकर निकले वह साध्य पूर्णिमा को पूर्ण हो गया .

जिस पूर्णिमा को जन्म लिया उसी पूर्णिमा  को बुद्धतत्व की प्राप्ति इस बात का संकेत है कि इसी निमित्त  ही वें  धरती पर अवतरित हुए थे .

सिद्धार्थ ,सिद्धार्थ से ‘बुद्ध’ हो गए। जिस वृक्ष के नीचे सिद्धार्थ को बोध प्राप्त हुआ  वह वृक्ष बोधिवृक्ष कहलाया और “ गया “, बोधगया के नाम से जाना जाने लगा ।

तमस्सुक और मल्लिक नाम के दो वत्काल्धारी व्यापारी उनके प्रथम उपासक हुए तथा बोद्ध धर्म की शरणता ग्रहण की .

तत्पश्चात विचरण करते हुए बुद्ध को वही पांच भिक्षु पुन: मिल गए जो अन्न ग्रहण करने पर उनका साथ छोड़कर चले गए थे .बुद्ध ने इन्ही पांच भिक्षुओं को धर्मोपदेश दिया .यह बुद्ध का प्रथम उपदेश था .इसी प्रथमोपदेशको धर्मचक्र प्रवर्तन कहा जाता है .बुद्ध ने इन पांच भिक्षुओं को अष्टांक मार्ग -1-सम्यक दृष्टि ,2 –सम्यक संकल्प ,3—सम्यक वचन  4-सम्यक कर्म  5-सम्यक आजीविका 6-सम्यक व्यायाम 7—सम्यकस्मृति  8-सम्यक समाधि तथा चार आर्य सत्य 1-दुःख 2-दुखोत्पत्ति 3-दुःख निरोध मार्ग 4- दुखातिक्रम का उपदेश दिया .

काशी का  एक युवक भोग विलास से विरक्त होकर घर छोड़कर ऋषिपत्तन आया और बुद्ध की शरण प्राप्त की .युवक के पिता भी  पुत्र की खोज करते हुए वहां पहुँच गए ,बुद्ध का उपदेश सुनकर युवक के पिता ने भी बुद्ध की शरण ले ली .तत्पश्चात युवक की माता और पत्नी  भी बुद्ध की उपासिका हो गयी  और प्रथम उपसिकाएँ कहलाई .

बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय का उद्देश्य लेकर बुद्ध धर्म का उपदेश करने निकल पड़े.देखते ही देखते बुद्ध के शिष्यों की संख्या 60 हज़ार के लगभग हो गयी .बुद्ध ने अपने सभी शिष्यों को सभी दिशायों में जाकर त्रिशरण की दीक्षा देने की आज्ञा दी क्योकि बुद्धतत्व का उद्देश्य ही बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय था .

उरुकेला के कश्यप बन्धु –उरुकेला कश्यप ,नदी कश्यप और गया कश्यप  ने भी अपने एक हज़ार शिष्यों के साथ बुद्ध की शरण स्वीकार कर ली .

बुद्ध वाचानुसार बिम्बिसार से मिलने त्रिकश्यप बन्धु और भिक्षुओं के साथ राजगृह पहुंचे ,बुद्ध के दिव्य दर्शन और उपदेशों से प्रभावित होकर बिम्बिसार और उनकी पत्नी क्षेमा ने भी बुद्ध की शरण स्वीकार कर ली .इसके पश्चात् बुद्ध वैशाली भी गए.

भगवान बुद्ध की कीर्ति कपिलवस्तु तक भी पहुँच गई.पिता शुद्धोदन ने अमात्य भेजकर भगवान बुद्ध को कपिलवस्तु आने का आमंत्रण दिया .अमात्य हजारों नागरिकों के साथ राजगृह गया ,जहाँ भगवान बुद्ध ठहरे हुए थे .भगवान बुद्ध का उपदेश सुनकर सभी प्रव्रजित हो गए .कोई भी लौटकर कपिलवस्तु नहीं गया .

शुद्धोदन ने बुद्ध के बाल सखा उदाई को भेजा .उदाई भी बुद्ध के  दिव्य दर्शन और उपदेशों से प्रभावित होकर प्रव्रजित हो गया .

बुद्ध के संपर्क में रहते हुए उदाई ने किसी तरह से बुद्ध को कपिलवस्तु जाने के लिए सहमत कर लिया .

बुद्ध 20 हज़ार शिष्यों के साथ कपिलवस्तु पहुंचे .

बुद्ध दो मास तक कपिलवस्तु में ही रहे .इन दो मासों में गौतमी पुत्र नन्द  ,बुद्ध के चाचाओं के चारों पुत्र , स्वयं बुद्ध पुत्र राहुल और अन्य हजारों लोग दीक्षा लेकर भिक्षु संघ में सम्मिलित हो गए .

महात्मा बुद्ध विचरण काल में जगह-जगह घूमकर उपदेश देने लगे .

बुद्ध की आयु 80 वर्ष की हो चुकी थी .अब वें व्याधि ग्रस्त रहने लगे थे .उन्होंने अपने शिष्य आनंद से कहा –आज से तीन माह बाद मेरा परिनिर्वाण होगा .

लौटते हुए पावा नगरी आये .यहाँ उन्होंने चुन्द के घर भोजन किया .भोजन के बाद व्याधि और बढ़ गई.बुद्ध ने आनंद से कुशी नगर चलने के कहा .

कुशीनगर में वैशाख पूर्णिमा को बुद्ध ने महापरिनिर्वाण किया .

पूर्णिमा को जन्म और पूर्णिमा को ही बुद्धत्व प्राप्त होना संयोग हो सकता है . पूर्णिमा को  बुद्धत्व और परिनिर्माण होना संयोग हो सकता है किन्तु पूर्णिमा को ही जन्म होना पूर्णिमा को ही बुद्धत्व प्राप्त होना, पूर्णिमा को ही परिनिर्माण  होना संयोग नहीं हो सकता .

बुद्धं शरणम गच्छामि  संघम शरणम गच्छामि   धर्मं शरणम गच्छामि 

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