maharana pratap -एक वीर शिरोमणि
वीर भूमि प्रसूता ..राजस्थान …..जिसकी एक पुत्री का नाम था मेवाड़ ……जिसकी कोख ने एक नहीं अनेक हुतात्माओं को जन्म दिया ….. जिनके त्याग और बलिदान से माँ ने आँखों से दुःख के आंसूं नहीं बल्कि सरस्वती बनकर उनके शौर्य का बखान किया …स्वयं को गौरान्वित अनुभव किया .
ऐसे शूर जिनकी तलवार की चमक के सामने प्रचंड सूर्य भी धूमिल सा जान पड़ता है .उन शूरवीरों में एक थे- महाराणा प्रताप .ऐसे सपूत को पाकर मेवाड़ भूमि ही नहीं समस्त भारत खंड का सिर गर्व से ऊँचा उठ जाता है .
वह जो एक सच्चे क्षत्रिय के गुणों से परिपूर्ण था –वह था maharana pratap
शूरों में भी जो वीर था – वह था maharana pratap
जिसके भाले की चमक से शत्रुओं को पसीना आ जाता था – वह था – maharana pratap
जिसने अपनी मातृभूमि के दामन को मलेच्छों को छूने नहीं दिया- वह था- maharana pratap
जिसने विधर्मी के सामने अपने धर्म को झुकने नहीं दिया ,वह था maharana pratap
मुग़ल के सम्राट कहलानेवाले अकबर से जो हारा नहीं – वह था maharana pratap
अकबर और उसके सेनापतियों को हर बार खाली हाथ लौटाया – वह था maharana pratap
प्रताप की विजय का साक्षी है -haldi ghati
akabar को एक नहीं तीन –तीन बार खाली हाथ लौटाया – वह था maharana pratap
शाहबाज खान को खाली हाथ लौटाया – वह था maharana pratap
अब्दुल रहीम खान-खाना को खाली हाथ लौटाया – वह था महाराणा प्रताप
नौ साल तक लड़ा अकबर मगर जिसे अकबर हरा न पाया – वह था maharana pratap
अकबर का ख्वाब , ख्वाब ही रहा ….हकीकत नहीं बनने दिया – वह था maharana pratap
खुद टूटा …बिखरा लेकिन अपनी स्वतंत्रता को …अपने धर्म को ..अपनी मातृभूमि को टूटने ..बिखरने नहीं दिया वह था
maharana pratap
पराधीन रहकर स्वर्ग का सुख पाने की अपेक्षा स्वतंत्र रहकर कष्टमय जीवन व्यतीत करना कहीं ज्यादा श्रेयष्कर है –इस कथन को महाराणा प्रताप ने अक्षरश चरितार्थ किया .यह वह समय था जब भारत के अधिकांश भाग पर मुग़लों का आधिपत्य था .जो राज्य स्वतंत्र थे ,उन्हें मुग़ल अपनी सैन्य शक्ति से आधीन करना चाहते थे ,ऐसे स्वतंत्र राज्यों के राजाओं ने आशंका और भय के कारण मान- सम्मान …. स्वाभिमान ….आत्मसम्मान जैसे भाव रखने वाले शब्दों को कब्र में गाढ दिया और मुग़लों से युद्ध किये बिना ही मुग़लों की आधीनता स्वीकार कर ली लेकिन उनमे एक ऐसा भी स्वाभिमानी राजा था जिसने अपनी स्वतंत्रता के लिए ….. अपनी मातृभूमि के लिए आजीवन एक विधर्मी की पराधीनता स्वीकार नहीं की …. राजसी सुख की अपेक्षा अभावों में जीना स्वीकार किया …..कष्ट सहते रहे ….संघर्ष करते रहे …लेकिन परतंत्रता स्वीकार नहीं की .
मातृभूमि ऐसा शूरपुत्र पाकर अपने को धन्य समझने लगी और कामना करने लगी- हर बार ….बार –बार ऐसे ही शूरपुत्र उसकी कोख से जन्म ले … जो प्रतीक हो वीरता का … मातृ भक्ति का …जो लोह पुरुष बनकर मातृभूमि की अखंडता को बनाये रख सकें
महाराणा प्रताप जो महलों को छोड़कर जंगल जंगल भटके …मखमली शैया का त्याग कर कठोर भूमि पर सोये ….राजसी भोज छोड़कर रूखा –सूखा खाकर दिन व्यतीत किये …. लेकिन एक विधर्मी का लुभावना अनुबंध स्वीकार नहीं किया …हल्दी घाटी का वह युद्ध जिसका वर्णन करने में कवियों की कलम थक गयी
महाराणाप्रताप की एक तलवार से शत्रु की पूरी सेना कांप जाया कराती थी ….राणा की हुंकार से शत्रु भ्रमित हो जाते थे कि यह शेर की दहाड़ है या बादलों की गर्जना …
प्रशंसा वह नहीं ,जो अपने मुँह से की जाए …..प्रशंसा वह भी नहीं जो अपने पक्ष के लोग करें …..प्रशंसा वह है जो दुश्मन करें .
अकबर के लिए महाराणा प्रताप उसके शत्रु थे …. किन्तु जब महाराणा प्रताप की मृत्यु का समाचार मिला तो कहा जाता है कि अकबर की आँखों से आंसू आ गए .अकबर के दरबारी दुरसाआढा ने अपने विवरण में इसका उल्लेख लिया है .
प्रताप तू वह है जिसकी मौत पर तेरा शत्रु भी रोया ,तूने अपने घोड़े पर मलेछ का कलंक न लगाने दिया .तूने अपनी पगड़ी को कभी झुकाने नहीं दिया .महल छोड़ जंगल में रहा लेकिन रजा बनाकर रहा .तूने न कभी मलेच्छों की चौखट पर पैर नहीं रखा और न किसी शाही झरोखे के नीचे खड़ा हुआ .तेरे रौब का खौफ दुनिया ने देखा .तू जीता नहीं तो हारा भी नहीं .अकबर के अरमानों को पूरा न होने देना ही तेरी जीत है .
अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना समग्र जीवन न्यौछावर करदेनेवाले ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप को उनकी जन्म तिथि पर कोटि –कोटि नमन
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