12th UP today

mahadevi verma -geet-1 ka bhavarth 12-hindi,up board,गीत-1 महादेवी वर्मा

September 20, 2023
Spread the love

गीत-1 महादेवी वर्मा

गीत-1, जाग तुझको दूर जाना!

1

 चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!

जाग तुझको दूर जाना!

अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कम्प हो ले,

या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले; भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि  हे प्राण! निरंतर जागरूक रहने वाली आँखें आज नींद से भरी  क्यों हैं?  आज तुम्हारा वेश इतना अनियमित क्यों है? आज अलसाने के लिए समय नहीं है। आपको बहुत दूर जाना है, इसलिए आलस्य और प्रमाद को छोड़कर अब जाग जाओ। अभी तुझे  बहुत बड़ा साध्य  साधना है । चाहे आज विशाल हिमालय कम्पित हो जाए या फिर आकाश से प्रलयकाल की वर्षा होने लगे,तुझे साधना पथ पर आगे बढते रहना है

2

आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,

 या विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफान बोले!

पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!

जाग तुझको दूर जाना!

भावार्थ – महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में महादेवीजी  कहती है कि   यदि आज  सर्व  व्याप्त  प्रकाश भयानक अन्धकार में डूब जाएँ या चमकती हुई बिजली से तूफान बोलने लगे, तो भी तुझे अपने चिह्नों को छोड़ते हुए आगे बढ़ना होगा। तुझे  साधना-पथ से विचलित नहीं होना है । महादेवी जी कहती हैं कि  हे प्राण! तुझे साधना-पथ पर चलते हुए लक्ष्य प्राप्त करना है, कठिनाई भरे लम्बे  सफ़र पर तुम्हे  बहुत दूर  तक जाना है, इसलिए अब जाग जाओ।

3

 बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बन्धन सजीले?

पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले?३

विश्व का क्रन्दन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में महादेवीजी  प्रश्न  करते हुए कहती हैं कि हे प्राण! क्या सुंदर सांसारिक बंधन तुम्हें बाँधकर साधना मार्ग में बाधा उत्पन्न करेंगे, जो मोम की तरह जल्दी पिघल जाने वाले  है, क्या तितलियों के पंखों की तरह रंगीन दुनिया तुम्हारे सिद्धि के मार्ग कोअवरुद्ध कर देंगी ? क्या  साधना मार्ग पर चलते हुए सांसारिक क्रन्दन को सुनकर तुम्हारे आगे बढ़ते हुए कदम  रूक जायेंगे ?

4

क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?

तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!

जाग तुझको दूर जाना!

भावार्थ-  महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में महादेवीजी  कहती है कि   क्या फूलों की पंखुड़ियों पर पड़ी हुई ओस की बूदों की सुंदरता तुम्हे  साधना-पथ से विचलित कर देगी? तुम इन बातों से विमख करने के उद्देश्य से महादेवीजी  कहती है कि  यह सब व्यर्थ  हैं; तुम दृढ होकर आगे बढ़ो ,इनमें से कोई भी तुम्हारी साधना को बाधित नहीं कर सकता। तुमअपनी  प्रतिछाया को अपना  बंधन मत बनाओ, क्योंकि दुनिया के विभिन्न आकर्षण सिर्फ  तुम्हारी छाया हैं। तुम्हे उन आकर्षणों के जाल में फंसकर अपने मूल लक्ष्य को भूल नहीं जाना चाहिए।महादेवी जी ने अपने प्राणों को उद्बोधित करते हुए कहती  कि हे प्राण! आलस्य त्याग कर अब जाग जाओ, क्योंकि तुम्हें बहुत दूर जाना है और साधना मार्ग के कई चरणों को पार करके अपने लक्ष्य को पाना है।

5

 वज्र का उर एक छोटे अश्रुकण में धो गलाया,

दे किसे जीवन-सुधा दो घूट मदिरा माँग लाया?

सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में महादेवीजी  साधक मन को उद्बोधित करते हुए कहती हैं कि हे साधक, वज्र के समान कठोर और दृढ़-निश्चयी तेरा हृदय आज प्रियजनों के छोटी-छोटी आंसुओं की बूंदों से पिघल गया है। तू अपने साधना-मार्ग पर चलते हुए  भ्रमित हो गया है।तुम्हारे मन में बहुत सा साहस और शक्ति थी, लेकिन तूने उसको भावनाओं के उत्तेजना में उठे आँसुओं में गलाकर नष्ट कर दिया है।तूने अपनी अमृतशक्ति और साहस को त्यागकर साधनाहीन जीवन जीना कहाँ से सीख लिया है? तूने मदिरा पीने वाले व्यक्ति की तरह तुच्छ और आलसी जीवन जीना सीख लिया है? यह सब तुम्हारे योग्य नहीं थे, इसलिए ये सब व्यर्थ थे। क्यों तेरी उत्साह की आँधी, मलिन पर्वत से आने वाली हवा का तकिया लगाकर विश्राम करने लगी है ?

6

विश्व का अभिशाप

 क्या चिर नींद बनकर पास आया?

अमरता-सुत

चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?

जाग तुझको दूर जाना!

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में महादेवीजी  कहती है कि   सांसारिक आकर्षण में पड़कर तू अपनी साधना का उत्साह क्यों कम कर रहा है? क्या सांसारिकता के सभी आकर्षण तुम्हें आलसी बना रहे हैं? तुम्हारे साधना-जीवन को यह आलस्य नष्ट कर देगा। हे साधक! तुम अनन्त हो, परमात्मा का एक अंश हो, अमर पुत्र हो, फिर भी सांसारिकता के जीवन-मृत्यु के चक्र में अपने आप को क्यों लगाना चाहते हो?इसलिए साधना पथ पर चलते हुए अपने पतन के सभी घटकों को इस संसार से बाहर निकाल दें।अभी बहुत दूर जाना है, हे साधक! अपनी अज्ञानता की नींद से जाग। तुम्हे  बहुत लम्बा सफ़र तय करना  है ।

7

 कह न ठण्डी सॉस में अब भूल वह जलती कहानी.

आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;

हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,

भावार्थ- महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि जब मनुष्य अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होने  लगता है, तो आलस्य और अकर्मण्यता उसके शत्रु बन जाते हैं। दुःख और परिस्थितियों का भयानक आक्रमण स्वाभाविक रूप से जीवन में होते  हैं, यह सत्य है ,लेकिन मनुष्य को उन्हें भूलकर ऊँचे लक्ष्य को प्राप्त करने की साधना में लगातार लगे रहना चाहिए।  महादेवीजी  कहती हैं कि उन कष्टों को ठंडी साँस लेकर दोहराने से कोई फायदा नहीं होता। मनुष्य की आँखों से बहते आँसुओं का तब तक कोई मूल्य नहीं होता जब तक कि हृदय में आग नहीं होती। परमात्मा को पाने का साधन या माध्यम बनने के लिए मनुष्य के  हृदय की  आग और तड़प  ही उसे  प्रेरित करती है।महादेवीजी  कहती है  कि उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किए गए प्रयास में असफलता भी हाथ लगती है, तो भी वह किसी सफलता या विजय से कम नहीं है।

8

राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!

है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!

जाग तुझको दूर जाना!

भावार्थ – महादेवी वर्मा रचित गीत से उद्धृत इस काव्यांश में  महादेवीजी  कहती है कि पतंगा अपने उददेश्य के लिए दीपक की लौ में  जल कर राख  हो जाता है, उसकी राख दीपक की लौ से मिलकर अमर हो जाती है।साधक को भी याद रखना चाहिए  कि अपने उददेश्य की प्राप्ति के लिए मिट जाना पड़े, तो अपने को मिटा दें ,मिटाकर वह भी पतंगेकी तरह  अमर हो जाएगा। महादेवी जी कहती हैं कि तझे अपनी तपस्या से कष्टों से भरी  संसाररूपी इस अंगार-शय्या से भरे इस संसार में फूलों की कोमल कलियों जैसी आनन्दमय परिस्थितियों का निर्माण करना है। इसीलिए हे साधक! तू जाग, क्योंकि अभी तुझे बहुत दूर जाना है।

No Comments


    Warning: Undefined variable $consent in /home2/hindihindustani/public_html/wp-content/themes/hawthorn/comments.php on line 49

    Leave a Reply

    error: Content is protected !!
    error: Alert: Content is protected !!