madan mohan malviya
जन्म तिथि पर विशेष
madan mohan malviya
२५ दिसम्बर
महामना पण्डित मदन मोहन मालवीय
के जन्म तिथि पर विशेष
जन्म – २५ दिसम्बर ,१८६१
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के संस्थापक और आदर्श युग पुरुष मानेजाने वाले तथा महामना की की उपाधि से अलंकृत पंडित मैदान मोहन मालवीय उन गण्य भारतीय राजनीतिज्ञ विभूतियों में से एक है ,जिनका भारत निर्माण में महती भूमिका रही। मदन मोहन मालवीय की पहचान वैसे तो काशी विश्व विद्यालय के संस्थापक के रूप में होती है ,किन्तु इसके अतिरिक्त भी वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
राजनीति के अतिरिक्त पत्रकारिता ,सामाजिक परिवर्तन ,न्यायनिक दक्षता ,भाषा और शिक्षा के उन्नयन में उनका अतुलनीय योगदान रहा । वे जीवन पर्यन्त कर्मयोगी बनकर जिए, इसलिए भारत के प्रथम राष्ट्रपति राधा कृष्णन जी ने उन्हें कर्मयोगी की संज्ञा से उपमित किया था।
भारतीय राजनीति की शख्सियतों में मदन मोहन मालवीय का व्यक्तित्व नदी की विरल धारा की तरह था ,जो शांत भाव से प्रवाहित होती रहती है। उनके व्यक्तित्व में बादलों की गर्जना नहीं अपितु सौम्य व शांत स्वाभाव का मूक आकर्षण था।गांधीजी ने उन्हें अपने बड़े भाई का दर्जा देते हुए भारत निर्माता से विभूषित किया था।
सुसंस्कृत पारिवारिक संस्कारों का प्रभाव उनके व्यक्तिव से स्पष्ट झलकता था। वे प्राचीन भारतीय सभ्यता और संस्कृति के प्रबल समर्थक थे। मालवीयजी का व्यक्तित्व आध्यात्मिक मूल्यों से अभिप्रेरित था। सत्य ,दया ,करुणा , न्याय ,देह ,मन ,वाणी ,संयम ,त्याग ,धैर्य जैसे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक गुणों से आतप्रोत होना इस सत्य के साक्षी बन जाते है कि मालवीय जी का व्यक्तित्व भारतीयता से अनुप्राणित था। श्रीमद भगवद गीता का स्वाध्याय और व्यायाम उनके जीवन के अंग थे। उनकी भाषण कला अद्भुत और मन्त्र मुग्ध कर देनेवाली थी। हिंदी ,संस्कृत और अंग्रेजी भाषा पर उनका समान अधिकार था।
वाणी की मधुरता उनके व्यक्तित्व का आभूषण था। यदि वे भाषण अथवा लेखन के माध्यम से कोई बात कहते या लिखते थे तो स्वयं उन बातों को अपने जीवन में अपनाते भी थे। उनकी कथनी और करनी में अंतर नहीं होता था। मदन मोहन मालवीयजी को कवि ह्रदय प्राप्त था। वे अपने विद्यार्थी जीवन में मकरंद और झक्कड़ सिंह उपनाम से काव्य रचनाये करते थे।
१८८६ में जब कलकत्ता में दादा भाई नॉरोजी की अध्यक्षता में दूसरा अधिवेशन हुआ था ,मालवीय जी भी इस अधिवेशन में सम्मिलित हुए थे ,यही से उनका राजनीतिक जुड़ाव हुआ था। इस अधिवेशन में मालवीयजी के भाषण ने सबको आकर्षित किया। १९०९ में भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। जब काशी में भारतीय कांग्रेस का २१ वा अधिवेशन हुआ था ,तब हिन्दू विश्व विद्यालय की स्थापना का विचार मालवीयजी ने ही रखा था ,जो १९१६ में स्थापित हुआ। काशी विश्व विद्यालय का विधेयक पास कराने का श्रेय मालवीयजी को ही जाता है। १९१९ से १९३८ तक वाईस चान्सलर का पद भर भी संभाला। अपने जीवनकाल में दो बार हिन्दू महासभा के अध्यक्ष बने।१९०९ ,१९१८ ,१९३० ,और १९३० वे चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। साइमन कमीशन का विरोध करनेवालों में मालवीयजी भी शामिल थे। १९३० में गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर धारा १४४ का उल्लघन के आरोप में उन्हें बंदी बनाकर जेल भेज दिया गया। भारतीय खरीदो -स्वदेसी खरीदो और सत्य की ही विजय होगी जैसे नारों को बुलंद किया।
मालवीयजी ने हिंदी भाषा के प्रसार-प्रचार में भी योगदान दिया। वे हिंदी को राष्ट्र भाषा के रूप में देखना चाहते थे उन्होंने पुरजोर शब्दों में कहा था कि देश का विकास देश की ही भाषा में हो सकता है।हिंदी को राष्ट्र भाषा होने की भविष्यवाणी करना उनके हिंदी प्रेम का ही परिचायक था।
मालवीयजी ने सुधि सम्पादक का दायित्व भी पूरी निष्ठां से निभाया। उन्होंने समय -समय पर हिंदुस्तान ,अभ्युदय ,लीडर और मर्यादा जैसे पत्रों का भी कुशलता से सम्पादन किया।
चौरी -चोरा कांड में जिन लोगों को दोषी मानकर फाँसी की सजा सुनाई गई थी ,उनमे से अधिकांश को मालवीयजी ने अपनी न्यायिक दक्षता से बचा लिया ,जो मालवीयजी के बौद्धिक तीक्ष्णता का प्रमाण था।
१२ नवम्बर ,१९४६ को८५ वर्ष की आयु में उन्होंने पार्थिव देह का त्याग कर दिया।
मालवीयजी की १५३ वी जन्म तिथि को भारत सरकार ने २४ दिसंबर ,२०१४ में देश के सर्वोच्च पुरस्कार भारत -रत्न से सम्मानित किया
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