


आचरण/ ATTITUDE
attitude-Inspirational motivational quotes
in hindi

आचरण attitude जिसे सामान्य बोलचाल की भाषा में व्यवहार भी कहा जाता है। मनुष्य का व्यवहार मनुष्य की पहचान है। अच्छे -बुरे व्यवहार से मनुष्यअपने साथ अच्छा या बुरा विशेषण जोड़ लेता है।
प्रायः हम कहते और सुनते है कि अमुक आदमी अच्छा है ,अमुक बुरा है। आदमी न अच्छा होता ,न बुरा। आदमी सिर्फ आदमी होता है। उसके द्वारा किया गया कार्य ही आदमी को अच्छा या बुरा बनाता है।
राम और कृष्णा अपने आचरण attitude की पवित्रता से नर से नारायण बन गए और रावण तथा कंस अपने अपवित्र आचरण attitudeसे आसुर बन गए। उचित ही कहा गया है कि दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करे ,जैसा हम अपने लिए चाहते है।
कितना बुरा लगताहै जब कोई हमारे साथ अभद्र व्यवहार करता है ?वैसे ही हमारे द्वारा किया गया अभद्र व्यवहार दूसरों को पीड़ा पहुँचता है। अनुभूतियाँ सभी मनुष्यों में समान होती है.
अच्छे आचरणattitude से ही हमारे अंतरकरण की शुद्धि होती है। अंतरकरण की शुद्धि से ही हमारा कर्म ,हमारी दृष्टि ,हमारी वाणी,हमारे विचार शुद्ध होते है। जब कर्म,दृष्टि,वाणी,विचार शुद्ध होगे तो आचरण भी शुद्ध ही होगा ,जब आचरण attitudeशुद्ध होगा तो समाज से मान,सम्मान ,प्रतिष्ठा स्वतः प्राप्त होने लगते है।
मनुष्य की उन्नति और अवनति बहुत कुछ आचरणattitude पर निर्भर है. नारद पुराण में पवित्र आचरण से सुख, स्वर्ग और मोक्ष तक संभव बतलाया गया है. आचरणattitude ऐसा हो जो दूसरों के लिए हितकारी और स्वयं के लिए सुखकारी हो. सदाचरण से विनम्रता आती है और विनम्रता मनुष्य का आभूषण है।

कभी-कभी दुराचारी स्वभाव वाले लोग , मनुष्य की विनम्रता को कमजोरी या कायरता समझने लगते है। तब क्या प्रतिवाद या विरोध ना करे ?अन्याय ,जुल्म ,शोषण होता रहे ,तब भी क्या दुराचारी के साथ सदाचरण करे ?ऐसी स्थति के लिए विदुर निति में कहा गया है कि जो मनुष्य आपके साथ जैसा व्यवहार करता है ,उसके साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए।
महाभारत के उद्योग पर्व में कहा गया है कि जो मनुष्य आपके साथ जैसा व्यवहार करता है ,उसके साथ वैसा ही व्यवहार करने वाला ना तो अधर्म को प्राप्त होता है और ना अमंगल का भागी बनता है।
कविवर रवींद्र नाथ ठाकुरने तो दुराचरण करने वालों के लिए यह तक कह दिया कि मनुष्य जब पशुतुल्य आचरण करता है ,तो वह पशुओं से भी नीचे गिर जाता है।
याद रखे ,मान-सम्मान ,प्रतिष्ठा धन से नहीं खरीदी जा सकती। उसे सदाचरण से ही प्राप्त किया जा सकता है। सदाचार वह सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर ईश्वर तक भी पहुंचा जा सकता है।
साहित्य मूर्धन्य सरदार पूर्ण सिंह ने आचरणattitude के सन्दर्भ में बहुत ही सुंदर भाव अभिव्यक्ति करते हुए लिखा है –
आचरण की सभ्यता का देश ही निराला है। उसमे ना शारीरिक झगड़े है ,न मानसिक ,न आध्यात्मिक। न उसमे विद्रोह है ,न जंग का नामोनिशान है ,न वह कोई नीचा है और न ऊँचा ,न कोई धनी है और न निर्धन।वहाँ प्रकृति का कोई नाम नहीं ,वहाँ तो प्रेम और एकता का अखंड राज्य रहता है।
जिस समय आचरण attitudeकी सभ्यता संसार में आती है उस समय नीले आकाश से मनुष्य को वेद ध्वनि सुनाई देती है ,नर -नारी पुष्पवत खिल जाते है ,प्रभात हो जाता है ,प्रभात का गजर बज जाता है ,नारद की वीणा अलापने लगती है ध्रुव का शंख गूंज उठता है ,प्रह्लाद का नृत्य होने लगता है ,शिव का डमरू बजने लगता है ,कृष्ण की बाँसुरी की धुन प्रारम्भ हो जाती है जहाँ ऐसे शब्द होते है ,जहाँ ऐसे पुरुष रहते है वहाँ ऐसी ज्योति होती है ,वहीं आचरण की सभ्यता का सुनहरा देश है। वही देश मनुष्य का स्वदेश है।
आचरणattitude की सभ्यता को प्राप्त करके एक कंगाल भी राजाओं के दिलों पर अपना प्रभुत्व जमा सकता है। इस सभ्यता के दर्शन करके कला ,साहित्य ,और संगीत को अद्भुद सिद्धि प्राप्त होती है। विद्या ,कला ,कविता साहित्य ,धन ,और राजस्व से भी आचरण की सभ्यता अधिक ज्योतिष्मती है।
आचरण attitudeकी सभ्यता सदा मौन रहती है।
आचरण attitudeका विकास जीवन का परमोद्देश्य है







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