कुछ जीव है, जिनसे सावधान रहने की ज़रूरत है ,वे है -धनवान ,कुत्ता, साँड और शराबी -सुभाषित बहादुरी जुबान से नहीं ,बलिदान से प्रमाणित होती है -प्रेमचंद कोई भी ऐसा मनुष्य साहसी नहीं हो सकता जो पीड़ा को जीवन की सबसे बड़ी बुराई समझता है -सिसरो अगला कदम आगे बढ़ाने से पहले सोच ले ,सही जगह पहुँच जाओगे -सुभाषित सज्जन से सज्जन मिले तो बातें होती है और गधे से गधा मिले तो लातें होती है -सुभाषित सहनशील होना अच्छी बात है किन्तु अन्याय का विरोध करना उससे भी अच्छी बात है -जय शंकर प्रसाद धर्म जो सहिष्णुता सिखाता है ,मनुष्य उसी धर्म के के लिए असहिष्णुता का व्यवहार करने लगता है -हरिऔध रोगी को देख आना औपचारिकता है और दवा लाकर देना सच्ची संवेदना है -प्रेमचंद इस दुनिया में किसी दुखी व्यक्ति की थोड़ी भी सहायता ढेरों उपदेशों से कहीं ज्यादा अच्छा है -बूल्वर
हज़ारों -लाखों तारें मिलकर भी अँधेरा दूर नहीं कर जितना अकेला चन्द्रमा ,वैसे ही बहुत सारे गुणहीन पुत्रों से एक गुणवान पुत्र कहीं ज्यादा अच्छा है-चाणक्य कोई किसी को नहीं सुधार सकता जब तक कि स्वयं सुधरने के लिए प्रत्यनशील न हो -सुभाषित
साधन तो निर्जीव होते है। योग्यता ही जीवन का लक्षण है। निर्जीव साधन योग्य मनुष्य के हाथ में सजीव हो उठते है। योग्यता आवशयक है ,साधन तो योग्य मनुष्य के चरणों में खुद ही आ गिरते है -गुरु दत्त सम्पूर्ण स्वर्गिक सुख आपके भीतर ही है। किन्तु अज्ञानी मनुष्य अन्यत्र सुख खोजता है ,ठीक वैसे ही जैसे कस्तूरी मृग जंगल -जंगल कस्तूरी खोजता फिरता है ,जबकि कस्तूरी उसकी नाभि में ही होती है। -स्वामी राम तीर्थ उद्देश्यहीन जीवन से मृत्यु कहीं ज्यादा अच्छी है -अत्रि मुनि शिक्षा और सत्संग से स्वाभाव में परिवर्तन लाया जा सकता है -प्रेम चंद दुनिया के सारे रिश्ते -नाते प्रेम से जुड़े है ,यदि प्रेम ही ना हो तो वह रसहीन गन्ने की तरह है -प्रेम चंद स्वार्थ हावी हो जाने पर ह्रदय की कोमलता वैसे ही सूख जाती है ,जैसे सूर्य की गर्मी से तालाब -जय शंकर प्रसाद स्वार्थ मनुष्य की जन्म -जात प्रवृति है किन्तु दया ,करुणा और उदारता की भावना विकसित होने पर परमार्थिक प्रवृति में परिवर्तित हो जाती है -सुभाषित ईश्वर के अतिरिक्त इस संसार में अन्य कोई स्तुत्य नहीं है -वेंकट स्वामी सुधार आंतरिक होना चाहिए ,बाह्य नहीं। जड़ों को पानी दो ,पत्ते स्वतः हरे हो जायेंगे -गिबन शारीरिक सुंदरता से कोई भी गुणवान नहीं हो सकता जब तक कि उसमे गुण न हो। मनुष्य का गुण ही उसकी सुंदरता है -तिरुवल्लुवर गुण मनुष्य का आभूषण है और सुंदरता के लिए गुणवान को आभूषण की आवश्यकता नहीं– प्रेमचंद ह्रदय की पवित्रता ही वास्तविक सौन्दर्य है -महात्मा गाँधी भंवरा तब तक गुन -गुन करता है ,जब तक वह कमल पर बैठकर रस पान नहीं करने लगता। इसी तरह मनुष्य भी तब तक तर्क- वितर्क ,वाद -विवाद करता है जब तक उसे ईश्वर का साक्षात्कार नहीं हो जाता -राम कृष्ण परम हंस सरस्वती से बढ़कर अन्य कोई वैद्य नहीं और उसकी साधना से बढ़कर कोई औषधि नहीं -सुभाषित एक बार इज्जत चली गई तो लाख प्रशंसा से भी वापस नहीं आएगी -रघुवीर शरण जिस सभ्यता के पीछे स्वार्थ छिपा हो ,वह सभ्यता नहीं बल्कि संसार के लिए अभिशाप और समाज के लिए विपत्ति है -प्रेमचंद जब तक हम दूसरों का क़र्ज़ नहीं चुका देते ,तब तक जन्नत के दरवाजे तुम्हारे लिए नहीं खुलेंगे -हज़रत मुहम्मद परिवर्तन की आवश्यक शर्त है -भावना ,ज्ञान और कर्म -महादेवी वर्मा
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