inspiration-motivational thought
inspiration-motivational thought
inspiration-motivational thought-आज को जियो भरपूर
दौड़ …. दौड़ ….और सिर्फ दौड़……. होड़ …… होड़ ……. सिर्फ होड़…….दूसरों आगे निकल जाने की…….. ……..दूसरों से ज्यादा पाने की ……. ऊँचा और ऊँचा उठने की…….. अपने को दूसरों से ज्यादा श्रेष्ठ साबित करने की…….. जहाँ देखो ,जिधर देखो ,हर कोई इसी कोशिश में लगा है।
जिसके पास कुछ नहीं ,वह कुछ पाने की ,जिसके पास कुछ है ,वह उससे ज्यादा पाने की……. और जिसके पास पहले से ही ज्यादा ,वह जिसके पास ज्यादा है ,उससे भी ज्यादा पाने की होड़ में लगा है ….. दौड़ में लगा है। ……अपने से आगे वाले को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाने पर भी वह अपने को फिर दूसरे से पीछे ही पाता है……. .चाहे वह बिजनेसमैन हो, चाहे नेता हो ,चाहे अभिनेता हो, चाहे खिलाडी,चाहे विद्यार्थी हर कोई दौड़ में शामिल है।
मुक़ाबला हो अच्छा है ,आगे बढ़ाने की चाह हो, अच्छा है।
लेकिन ठहरे ,ठहर कर सोचे। …. ख़ास तौर से वें लोग जिन्हे भगवान ने पर्याप्त दिया है ,इतना पर्याप्त कि अपनी सभी ज़रूरतों को पूरा करने के बाद भी शेष रह जाता है। ऐसे लोगों को ज़रूर ऐसा सोचना चाहिए कि इस होंडा -होडी में शामिल होकर वे वह सब कुछ तो नहीं खो रहे ,जो उनके पास है।
जिसे पाने की कोशोशिश में हम दौड़ रहे है ,जब वह मिल नहीं पाती या मिलते -मिलते रह जाती है ,तब यह असफलता आदमी को हताशा निराशा के गहरे गड्डे में धकेल देती है ,इतने गहरे गड्डे में कि वह आदमी उसे पाने की कोशिश तो क्या ,उसकी कल्पना को भी बाहर निकल देता है. तब नकारात्मक सोच उस पर इतनी हावी हो जाती है कि वह आदमी अपने दूसरे रास्ते भी बंद कर लेता है। वह आदमी यह सोचकर कोशिश नहीं करता ,कि उसके भाग्य में इतना ही लिखा था ,इससे ज्यादा नहीं। ऐसे लोग अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर पाते। अपने आप से हार कर ऐसे लोगअपने भीतर के अहम् के कारण प्राप्त सुखों से भी वंचित हो जाते है।
कुछ लोग तर्क देंगे कि तो क्या हम जैसे है ,वैसे ही रह जाये ?फिर उन्नति कैसे होगी ?आगे कैसे बढ़ेंगे ?प्रतियोगिता का ज़माना है ,ऐसा नहीं करेंगे तो औरों से पीछे नहीं रह जाएंगे ?
तर्क देने वाले ऐसा क्यों नहीं सोचते कि इस होडा -होडी में हमारे पास जो कुछ है ,कहीं हम उससे भी वंचित न हो जाएंगे ?
सोचो ,क्या इस होड में शामिल होने के बाद पत्नी ,बच्चे और परिजनों के साथ समय गुज़रने का समय मिलेगा ?क्या अतिरिक्त की चाह पारिवारिक कलह या तनाव का कारण नहीं बनेगी ?जैसा सोचा है वैसा ना होने पर अवसाद रोग से ग्रसित नहीं हो जाएंगे ?
मुक़ाबला करे ,लेकिन किसी और से नहीं ,अपने आप से। जब आप अपने आप से हारेंगे तो आपको इतना दुःख नहीं होगा। अनन्त की दौड़ में शामिल नहीं हो। जो आज है उसका अधिकतम उपभोग करो ,जो नहीं है ,उसका शोक नहीं करे ,अन्यथा जो कुछ हाथ में है वह भी हाथ से निकल जायेगा।
दूसरों से अधिक मान -सम्मान ,प्रतिष्ठा ,धन -दौलत सुख नहीं ,केवल ईर्ष्या से उत्पन्न कामना है।
भविष्य में मिलाने वाला सुख केवल एक आशा है और आशा का पूर्ण होना ज़रूरी नहीं है … आज को जिए ,भरपूर जिए
जिसके पास कुछ नहीं ,वह कुछ पाने की ,जिसके पास कुछ है ,वह उससे ज्यादा पाने की……. और जिसके पास पहले से ही ज्यादा ,वह जिसके पास ज्यादा है ,उससे भी ज्यादा पाने की होड़ में लगा है ….. दौड़ में लगा है। ……अपने से आगे वाले को पीछे छोड़ कर आगे निकल जाने पर भी वह अपने को फिर दूसरे से पीछे ही पाता है……. .चाहे वह बिजनेसमैन हो, चाहे नेता हो ,चाहे अभिनेता हो, चाहे खिलाडी,चाहे विद्यार्थी हर कोई दौड़ में शामिल है।
मुक़ाबला हो अच्छा है ,आगे बढ़ाने की चाह हो, अच्छा है।
लेकिन ठहरे ,ठहर कर सोचे। …. ख़ास तौर से वें लोग जिन्हे भगवान ने पर्याप्त दिया है ,इतना पर्याप्त कि अपनी सभी ज़रूरतों को पूरा करने के बाद भी शेष रह जाता है। ऐसे लोगों को ज़रूर ऐसा सोचना चाहिए कि इस होंडा -होडी में शामिल होकर वे वह सब कुछ तो नहीं खो रहे ,जो उनके पास है।
जिसे पाने की कोशोशिश में हम दौड़ रहे है ,जब वह मिल नहीं पाती या मिलते -मिलते रह जाती है ,तब यह असफलता आदमी को हताशा निराशा के गहरे गड्डे में धकेल देती है ,इतने गहरे गड्डे में कि वह आदमी उसे पाने की कोशिश तो क्या ,उसकी कल्पना को भी बाहर निकल देता है. तब नकारात्मक सोच उस पर इतनी हावी हो जाती है कि वह आदमी अपने दूसरे रास्ते भी बंद कर लेता है। वह आदमी यह सोचकर कोशिश नहीं करता ,कि उसके भाग्य में इतना ही लिखा था ,इससे ज्यादा नहीं। ऐसे लोग अपनी हार बर्दाश्त नहीं कर पाते। अपने आप से हार कर ऐसे लोगअपने भीतर के अहम् के कारण प्राप्त सुखों से भी वंचित हो जाते है।
कुछ लोग तर्क देंगे कि तो क्या हम जैसे है ,वैसे ही रह जाये ?फिर उन्नति कैसे होगी ?आगे कैसे बढ़ेंगे ?प्रतियोगिता का ज़माना है ,ऐसा नहीं करेंगे तो औरों से पीछे नहीं रह जाएंगे ?
तर्क देने वाले ऐसा क्यों नहीं सोचते कि इस होडा -होडी में हमारे पास जो कुछ है ,कहीं हम उससे भी वंचित न हो जाएंगे ?
सोचो ,क्या इस होड में शामिल होने के बाद पत्नी ,बच्चे और परिजनों के साथ समय गुज़रने का समय मिलेगा ?क्या अतिरिक्त की चाह पारिवारिक कलह या तनाव का कारण नहीं बनेगी ?जैसा सोचा है वैसा ना होने पर अवसाद रोग से ग्रसित नहीं हो जाएंगे ?
मुक़ाबला करे ,लेकिन किसी और से नहीं ,अपने आप से। जब आप अपने आप से हारेंगे तो आपको इतना दुःख नहीं होगा। अनन्त की दौड़ में शामिल नहीं हो। जो आज है उसका अधिकतम उपभोग करो ,जो नहीं है ,उसका शोक नहीं करे ,अन्यथा जो कुछ हाथ में है वह भी हाथ से निकल जायेगा।
दूसरों से अधिक मान -सम्मान ,प्रतिष्ठा ,धन -दौलत सुख नहीं ,केवल ईर्ष्या से उत्पन्न कामना है।
भविष्य में मिलाने वाला सुख केवल एक आशा है और आशा का पूर्ण होना ज़रूरी नहीं है … आज को जिए ,भरपूर जिए
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