inspiration-motivational thought
inspiration-motivational thought
inspiration-motivational thought-जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा
ज़िन्दगी को एक निश्चित परिधि में नहीं बांधा जा सकता , क्योंकि यह मनुष्य के व्यक्तिगत अनुभव के दृष्टिकोण से भिन्न -भिन्न हो सकती है। जो मनुष्य सुखों में जन्मा हो ,सुखों में पला हो,सुख की छाया में बड़ा हुआ हो , जिसके पैरो में न कभी दुःखों के कांटे चुभे हो,न जिसने कभी अभावों की धूप सही हो ,उसके लिए जीवन की परिभाषा अलग हो सकती है और जो दुखों और अभावों में पैदा होकर दुःख और अभावों में जी रहा हो ,उसके लिए जीवन का अर्थ अलग हो सकता है. किन्तु ऐसे मनुष्यो को यह नहीं सोचना चाहिए कि उसके दुखो की रात की सुबह होगी ही नहीं।रात चाहे जीतनी लम्बी हो ,अँधेरे को चीरकर सूरज आता ही है ,लेकिन यह उजाला भी तो स्थाई नहीं ,देखते -देखते यह दिन भी ढल गया ,फिर से रात आ गयी। यही जीवन है -सुख के बाद दुःख और दुःख के बाद सुख।
लेकिन जिसके जीवन में दुःख की रात इतनी लम्बी हो जाती है ,सुख के सूरज का इंतज़ार करते -करते धैर्य छूट जाता है और यह मान लेता है कि अब उसके जीवन में सुख का सवेरा आएगा ही नहीं।दुखों की रात में ही जिंदगी कट जाएगी। उसे आशा,विश्वास धैर्य ,ईश्वरीय आस्था जैसे शब्द अर्थहीन -बेमानी लगने लगते है। लेकिन ,याद रखो -निराशा के गहन अंधकार को दूर करने के लिए किसी चिराग की नहीं ,आशा की चिंगारी बहुत है। यह गीत तो आपने सुना ही होगा कि-
दुनिया में अगर आये है तो जीना ही पड़ेगा , जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा,
लेकिन दुखी मन से नहीं ,प्रसन्न मन से..साकारात्मक सोचे ,अपना कर्म करते रहे ,दुःख, कष्ट ,अभावों की आग में जलते रहे ,आशा -विश्वास और धैर्य के साथ। जिस दिन इस आग से निकलोगे .. कुंदन बनकर निकलोगे ,दुनिया तुम्हारी चमक देखेगी। समय परिवर्तनशील है , गतिशील है।दुनिया के कई सफल व्यक्ति इस बात के प्रमाण हैं। कर्मयोगियो के जीवन में रात आ तो सकती है लेकिन ठहर नहीं सकती।ज़िन्दगी चाहे जीतनी मुश्किलों भरी हो ,ज़िन्दगी को ललकारते हुए कहो –
मैने ना कभी ज़िन्दगी को तलाशा
ना मुझे कभी ज़िन्दगी की तलाश थी
जहाँ जहाँ मैं गुजरा
ज़िन्दगी की परछाई थी
तोड़ कर घरौंदा मेरा
ज़िन्दगी मुस्कुरायी थी
जहाँ कभी आशियाना था मेरा
अब वहाँ रेत बिखर आयी थी
धका देकर ज़िन्दगी को मैं
घरौंदा खुशियों का बना लेता हूँ
बनकर लहर ज़िन्दगी
घरौंदा मेरा बहा ले जाती है
मगर बाकी है रेत अब भी
दरिया किनारे
ज़िद है मेरी भी अब
दरिया का किनारा
छोड़कर नहीं जाऊगा
ले लो इम्तिहाँ चाहे जितना
मेरे सब्र का
रेत से अब घरौंदा नहीं
ईंटों से घर अपना बनाऊगा
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