inspiration-motivational thought
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inspiration-motivational thought-मेरा दुश्मन -मै,मेरा दोस्त -मै
हम अपने आस-पास कई सारे लोगों को देखते है ,उनमे से कई को हम अच्छे से जानते है -पहचानते है। उनमे से कुछ लोग हमेशा खुश नज़र आते है ,उनके चहरे पर मुस्कराहट फैली नज़र आती है। ऐसे लोगों को देखते ही हमारा मन भी खुश हो जाता है। इसके विपरीत कुछ लोग ऐसे भी होते है ,जिनके चहरे पर उदासीनता की पूरी बस्ती बसी नज़र आती है।
आदमी का चेहरा उसके भीतर का आइना होता है।भीतर जो कुछ है -भय ,शोक,चिंता ,हताशा-निराशा चेहरे पर साफ़ नज़र आता है। वह लाख छुपाने की कोशिश करे ,लेकिन छुपा नहीं पाता। ऐसे व्यक्ति का चेहरा देखते ही सामने वाले के चहरे की ख़ुशी भी काफूर हो जाती है।
ऐसे व्यक्तिओ का ज़िन्दगी के प्रति नजरिआ नकारात्मक ही होता है। ऐसे व्यक्ति नाराज़ नज़र आते है ,किसी और से नहीं अपने आप से। समूह में जब दूसरे लोग हंस रहे होते है ,तब वह अपने आप से सवाल कर रहा होता है कि मैं हंसू या ना हंसू ?इसी सोच में वह अपने भीतर की हंसी को दूसरों की हंसी में शामिल नहीं कर पाता। वह समूह में होकर भी अपने को अकेला और उपेक्षित महसूस करता है। ऐसे व्यक्तियों का व्यवहार औपचारिक और असहज होता है।
इस प्रवृति के लोग हाथ आये खुशिओ के मौकों को भी गँवा देते है। इसी ख़ुशी को तो वह तलाश रहा था ,इसी की तो कमी है उसके जीवन में ,यही तो चाहिए उसे। तो फिर क्यों इस ख़ुशी को पाकर भी वह खुश नहीं हुआ ?खुश-नसीब वह नहीं होता ,जिसका नसीब अच्छा होता है। खुश -नसीब वह होता है ,जो अपने नसीब से खुश होता है। अधिकांश मामलों में व्यक्ति के दुखी होने का कारण कोई और नहीं ,व्यक्ति स्वयं होता है.. यह बात सौ फीसदी सच है कि व्यक्ति जैसा सोचता है ,जैसा चिंतन करता है ,वैसा ही उसके जीवन में घटित होने लगता है।
यदि –लक्ष्य के प्रति उत्साह न हो तो सफलता आपसे से दूर ही रहेगी ,उत्साह ही कर्म के लिए प्रेरित करता है श्रीमद्भागवत गीता में भगवन श्री कृष्णा ने कहा है जीवन के संघर्ष में सफलता पाने के लिए मनुष्य में उत्साह होना आवश्यक है. उत्साह से बढ़कर कोई दूसरा बल नहीं और उत्साही मनुष्य के लिए कुछ भी दुर्लभ नहीं है ,वे कठिन से कठिन स्तिथि में भी हर नहीं मानते।
यदि आप उत्साहित होकर काम करते है ,तो आप, के सारे शरीर की सारी ग्रन्थियाँ सक्रिय हो जाती है। उत्साह का प्रभाव उत्साहित व्यक्ति के चेहरे, बात-चीत करने के तरीके ,आव-भाव ,और काम के प्रति समर्पण से स्पष्ट नज़र आने लगता है। ऐसा लगता है जैसे उसे काम में आनंद आ रहा है। इसके विपरीत हतोत्साहित अपने काम को भी ऐसे करताहै ,जैसे काम करना उसकी मज़बूरी हो। चेहरा उदास ,ऐसा जैसे कोई अवसाद ग्रस्त रोगी हो।
जिनमे उत्साह नहीं होता ,वे दुःख और विप्पतिओ से घिरे रहते है. वाल्मीकि रामायण में उत्साह के सम्बन्ध में कहा गया है कि उत्साह ही श्री और परम सुख का मूल है। किसी और के लिए न सही ,अपने लिए तो ईश्वर से प्रार्थना करे-तेजोसि तेजो मयि धेहि। वीर्यमसि वीर्य मयि धेहि। अथार्त हे प्रभु ,तू तेज है ,मेरेअंदर वह तेज (उत्साह)स्थापित कर.
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