यदि विषहीन साँप यह कहे कि मैं तुझे नहीं डस रहा ,मैंने तुझे माफ़ किया तो यह उसकी उदारता नहीं कायरता है। उदारता तब है जब विषैला साँप कहे कि मैं तुझे नहीं डस रहा ,मैंने तुझे माफ़ किया। anger में D और जुड़ जाये तो वह Danger बन जाता है। केवल मौखिक रूप से अच्छी -अच्छी बातें करने से ही आदमी महान बन सकता तो दुनिया में इतनी सारी समाधियां बन गयी होती कि सिर झुकाते -झुकाते मनुष्यों की गर्दन टेढ़ी हो जाती। जंग लगकर ख़त्म होने की अपेक्षा टकराकर बिखर जाना कहीं अच्छा है। ढेर सारे ज्ञान का संचय करने से अच्छा है एक अच्छे कार्य की सिद्धि। विचार वे ही अच्छे है जो कार्य रूप में परिणित होकर परमार्थ कर सके। मैं क्या हूँ और क्या कर सकता हूँ -मनुष्य को इस सत्य का बोध तब होता है जब मनुष्य का जीवन विपत्तिओं से घिर जाता है। ह्रदय से प्रशंसा करना प्रेम है और मस्तिष्क से प्रेम करना प्रंशसा। जैसे न दिन स्थायी होता है और न रात ,वैसे ही मनुष्य के जीवन में सुख -दुःख भी स्थाई नहीं रहते। दिन की महत्ता रात ने ही बढ़ाई है। दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए है उन्हें भी मान-सम्मान और पहचान संघर्षों ने ही दिलाई है। जीवन में आने वाले कष्ट ,दुःख ,अभाव ,संघर्ष मनुष्य को बिना किताबों के ही बहुत कुछ सीखा जाते है। वस्तु चाहे जितनी कीमती हो, मैल की परत उसकी चमक को धूमिल कर देती है ,वैसे ही मनुष्य कितना ही बुद्धिमान हो उसकी एक बुरी प्रवृति उसके सारे गुणों को दबा देती है। अधिक की चाह मनुष्य के सुख को काम करके बैचेनी को बढ़ा देती है ठीक वैसे ही जैसे तेज़ हवा का झोका दीपक को तो बुझा देती है किन्तु आग को और अधिक भड़का देती है यदि आप अच्छे विचारों के स्वामी है तो आपको अपने निर्धन होने की आत्मग्लानि कभी अनुभव नहीं होगी। आपको वह संतुष्टि प्राप्त होगी जो शायद दुनिया के सबसे धनी व्यक्ति को भी प्राप्त ना हो। सोचते रहने वाले की अपेक्षा कर्म करनेवाला मनुष्य बहुत दूर पहुँच चुका होता है और ऐसा मनुष्य वह पा लेगा जो आप अपने लिए पाने के लिए सोच रहे थे। सोचते रहनेवाले को पश्चाताप के अतिरिक्त कुछ प्राप्त नहीं होगा। चितन करना श्रेष्ठ है किन्तु सदाचरण करना सर्व श्रेष्ठ है। बात पढने और सुनने में अजीब लग सकती है किन्तु यह सत्य है कि जो मनुष्य कर्म में जुटा है ,उसके लिए फुरसत के बहुत से अवसर निकल आएंगे। कुछ मामलों में मनुष्य सोचता तो ज्ञानी की तरह है किन्तु व्यवहार करता है मूर्खों की तरह है। ऐसे लोगों को ढोंगी की उपमा से उपमित किया जा सकता है। जब क्रोध आये तो क्रोध में कुछ बोलने के बजाय दस तक गिनती करने लग जाये ,और अधिक क्रोध आये तो सौ तक गिने। -thomas jefferson क्रोध करके हम अपने से कम महत्त्व के व्यक्ति को अपने से अधिक महत्वपूर्ण बना देते है। अकर्मण्यता और निष्क्रियता के कारण यदि कोई चलकर आये अवसर का लाभ ना उठाये तो उससे बढ़कर मूर्ख कोई अन्य कोई नहीं। विवेक संघर्षों के घने अंधकार में head -light की तरह कार्य करता है। महत्वपूर्ण यह नहीं कि तुमने अपनी अपनी काबिलियत से क्या हासिल किया ,महत्वपूर्ण यह है कि तुम अपनी काबिलियत से और क्या पा सकते थे ,जो तुम अब तक नहीं पा सके। आपका वह दिन व्यर्थ है जब आप उस दिन से कोई नया अनुभव प्राप्त नहीं करते या नया नहीं सीखते। परिचित को मित्र मान लेना मूर्खता होगी। परिचित और मित्र में अंतर करना आना चाहिए। बहुत सारे मित्र इतना नुकसान नहीं पहुंचा सकते जितना एक अकेला परिचित। आदमी महान नहीं होता ,महान होता है उसका श्रेष्ठ कार्य। मनुष्य की बुद्धिमता का आकलन इस बात से किया जाना चाहिए कि वह किन परिस्तिथियों में दृढ रहा और परिस्तिथियों में तरल।
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