independence day of india-in hindi
75 years
aazadi ka amritotsava
75 years- aazadi ka amritotsava अमृतोत्सव
75 years-
आज़ादी का अमृतोत्सव
( अ ) स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व का भारत
निवेदन – भाग ( अ ) स्वतन्त्रता प्राप्ति से पूर्व का भारत – पाठकों को इतिहास की जानकारी देना नहीं है ,हम सब भली-भांति परिचित है,यह भाग सन्दर्भ मात्र है।
,भाग ( ब ) स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत – लेख का मुख्य कथ्य है
१५ अगस्त १९४७ से पूर्व भारत ब्रिटिश हुकूमत के अन्याय पूर्ण शासन को गुलामी के कारण झेल रहा था। भारत हर क्षेत्र में पिछड़ा हुआ था -वह क्षेत्र चाहे राजनीति का हो या सामाजिक ,आर्थिक हो या जातीय। उस समय भारत जातिवाद ,बेरोज़गारी ,गरीबी ,कुपोषण ,भुखमरी ,साम्प्रदायिकता जैसी समस्याएं से घिरा हुआ था। जबकि विश्व के अन्य देश राजनितिक दासता से मुक्त हो गए थे या हो रहे थे ,नए -नए वैज्ञानिक आविष्कार हो रहे थे ,ओद्योगीकरण हो रहा था ,मानसिक संकीर्णताएं टूट रही थी ,,वैज्ञानिक और आधुनिक दृष्टिकोण विकसित हो रहा था और उस समय भारत के मुख पर गुलामी का स्याह धब्बा लगा हुआ था।
जय हिन्द
मुग़ल साम्राज्य का पतन हो रहा था ,तभी व्यापारी बनकर आया हुआ ब्रिटेनअपने साम्राज्य स्थापना का बीज बो चुका था। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से व्यापार पर शुरू किया और बड़ी चतुराई से अपनी सैन्य शक्ति में इजाफा करते हुए १८ वी सदी के अंत तक भारत पर पूरी तरह से अपना अधिकार स्थापित कर लिया। १८५७ की क्रांति को विफल बनाकर उसने यह साबित कर दिया की शासन करने का अधिकार सिर्फ शक्तिशाली को ही होता है। यह बात एक हद तक सच भी साबित हुई। रियासतों में बंटे राज्यों के शासक कुछ अपवादों को छोड़ कर राजनितिक कुशलता की दृष्टि से अयोग्य थे ,अदूरदर्शी थे ,स्वार्थी और आत्म -सम्मान से रहित थे ,कमजोर थे। वे या तो ब्रिटिश हुकूमत की चाटुकारिता कर रहे थे या तलुए चाट रहे थे। अंग्रेज ताक़तवर नहीं थे ,भारतीय राजाओं का बिखरा होना ,असंगठित होना अंग्रेजों की ताक़त थी। भारतियों की कमजोरी ही अंग्रेजों की ताक़त थी।
तात्कालिक भारत असंगठित रूप से छोटी -छोटी रियासतों में बंटा हुआ था।तात्कालिक अदूरदर्शी देशी राजा अंग्रेजों की भेद-भाव और अन्याय पूर्ण नीतियों का संगठित होकर विरोध करने के बजाय अपने निजी स्वार्थ के कारण अन्यायपूर्ण शर्तों को स्वीकार करते चले गए और चालाक अंग्रेज भारतीय राजाओं की इस कमजोरी को अपनी ताक़त बनाते चले गए।
दशकों बाद राष्ट्रवादी नेताओं द्वारा ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में स्वर उठाने लगे। ब्रिटिश हुकूमत के विरोध में स्वर उठाने वालों के प्रयासोंके फलस्वरूप १८८५ में इंडियन नेशनल काँग्रेस की स्थापना हुई। स्वतंत्रता प्राप्ति के प्रयास तो हो रहे थे लेकिन वे प्रयास इतने प्रभावी ना थे कि जिसे देखकर यह उम्मीद की जा सके कि भारत निकट भविष्य में ब्रिटिश हुकूमत से मुक्ति पा लेंगा। स्वतंत्रता आंदोलन को बल तब मिला जब महात्मा गाँधी सक्रिय रूप से जुड़े । यद्यपि गांधीजी का विरोध अहिंसात्मक था तथापि गांधीजी को भरपूर जन समर्थन मिला।
गांधीजी के अहिंसात्मक और शांति पूर्ण तरीके देश को आज़ादी मिल जाएगी ,इस बात को लेकर एक घटक संदिग्ध था -जिनमे प्रमुख थे -बाल गंगाधर तिलक,विपिन चंद्र पाल ,लाला लाजपत राय ,भगत सिंह ,चंद्र शेखर आज़ाद ,सुभाष चंद्र बोस। इनका विश्वास था कि स्वतन्त्रता की देवी को रक्त तिलक कर ही प्रसन्न किया जा सकता है। कांग्रेस दो भागों में विभाजित हो गयी -गरम दल और नरम दल। दोनों का
उद्देश्य एक ही था स्वतन्त्रता प्राप्ति। बस ,तरीका अलग -अलग था।
एक और द्वितीय विश्व युद्ध में शामिल ब्रिटेन की कमर टूट चुकी थी ,दूसरी और राष्ट्रवादियों के जुनून को देखकर ब्रिटिश हुकूमत अनुमान लगा चुकी थी कि भारत को अब और ज्यादा दिनों तक गुलाम बनाकर नहीं रखा जा सकता। राष्ट्रवादियों की बढती ताक़त को देखकर ब्रिटिश शासकों को भारत की स्वाधीनता के बारे में सोचने पर मज़बूर कर दिया।
उधर ,इंग्लैंड में तात्कालिक प्रधान मंत्री क्लीमेंट एटली ने भारत को पूर्ण आत्म प्रशासन का अधिकार देने की घोषणा कर दी किन्तु कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मत-भेदो को देखते हुए वायस राय माउंट बेटन ने सत्ता हस्तान्तरण की तारीख आगे बढा दी और बाद में सत्ता हस्तान्तरण की तारीख १५ अगस्त तय कर दी गयी। मुस्लिम लीग के प्रभाव के कारण ब्रिटिश आधिपत्य भारत के दो टुकड़े कर सत्ता हस्तान्तरण करने का निश्चय हो चुका था। यह भी निश्चय हो चुका था कि दोनों देशों की सरकारों को स्वतंत्र प्रभुत्व दिया जायेगा और दोनों देशों को ब्रिटिश राष्ट्र मंडल से अलग होने का पूर्ण अधिकार होगा।
१५ अगस्त १९४७ से प्रभावी ब्रिटिश आधिपत्य भारत के हिस्से से पाकिस्तान को प्रथक कर भारत को स्वतंत्र उपनिवेश घोषित कर दिया गया और दोनों देशों की सरकारों को पूरा संवैधानिक अधिकार दे दिया गया। भारत को अपनी स्वतन्त्रता प्राप्त हुई और भारत स्वतंत्र राष्ट्र बन गया।
इस तरह १५ अगस्त की तारीख भारतीय इतिहास की महत्वपूर्ण तारीख बन गयी.
तब से भारत में प्रति वर्ष १५ अगस्त स्वतन्त्रता प्राप्ति दिवस के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाये जाने की परम्परा है।
( ब ) स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भारत
75 साल हो गए देश को आजाद हुए
अमर शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति देकर अपना धर्म निभाया ,अब हमारी बारी है ,अपने कर्तव्य और दायित्वों के बारे में चिंता और चिंतन करने की
अब हमें अपने इन75 सालों की उपलब्धियों के हिसाब -किताब की पड़ताल करनी होगी –
स्वतंत्रता पूर्व हमारे राज नेताओं ने देश की जनता को जो सपने दिखाए थे ,हमारी सरकार उनमे से कितने सपनों को साकार कर सकी ?
इसका आकलन करने से पहले हम देश के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू के भाषण का उल्लेख करना समीचीन होगा -उन्होंने अपने भाषण में कहा था –
कई सालों पहले हमने नियति के साथ एक वादा किया था और अब समय आ गया है कि हम अपना वादा निभाए ,पूरी तरह न सही बहुत हद तक तो निभाए।
इस पवित्र अवसर पर हम भारत और उसके लोगों की सेवा करने के लिए तथा सबसे बढ़कर मानवता की सेवा करने के लिए समर्पित होने की प्रतिज्ञा कर रहे है।
आज हम दुर्भाग्य के एक युग को समाप्त कर रहे है
आज हम जिस उपलब्धि का उत्सव मना रहे है ,वो केवल एक कदम है, नए अवसरों के खुलने का । इससे भी बड़ी विजय उपलब्धियाँ हमारी प्रतीक्षा कर रही है।
भारत की सेवा का अर्थ है लाखों -करोड़ों की सेवा करना। इसका अर्थ है -निर्धनता ,अज्ञानता और अवसर की असमानता मिटाना।
हमारी पीढ़ी के सबसे महान व्यक्ति की यही इच्छा है कि हर आँख से आंसू मिटे। संभवतः ये हमारे लिए संभव न हो पर जब तक लोगों की आँखों में आंसू है ,तब तक हमारा कार्य समाप्त नहीं होगा।
आज एक बार फिर वर्षों के संघर्ष के बाद भारत जाग्रत और स्वतंत्र है। भविष्य हमें बुला रहा है। हमें कहाँ जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए ,जिससे हम आम आदमी ,किसानों और श्रमिकों के लिए स्वतंत्रता और अवसर ला सकें। हम निर्धनता मिटा एक सम्रद्ध ,लोक तांत्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें।
हम ऐसी सामाजिक ,आर्थिक ,और राजनितिक संस्थाओं को बना सकें ,जो प्रत्येक स्त्री-पुरुष के लिए जीवन की परिपूर्णता और सुनिश्चित कर सकें।
अब प्रश्न यह उठता है कि हमारे अमर शहीदों ने अपने प्राणों की आहुति देकर जिस मक़सद से देश को आज़ाद कराया ,क्या हम उस मक़सद को पा सके ?
हम अपने पडोसी देश से तुलना करते हुए भले ही विकास और उन्नति की दुदंभी बजाये ,बड़ी -बड़ी उपलब्धियां गिनाएं ,आंकड़े दिखाए और ये कहे कि गर्दन उठा कर देखों हमने आज़ादी के बाद कितनी उचाईयों को छूआ है ,लेकिन हमारी सरकार और सरकार के मंत्री ये नहीं कहगे कि पैरों के नीचे की ओर देखो ,जहाँ अभी भी कितने ही लोग रोटी ,कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित होकर कीड़े -मकोड़े जैसी ज़िन्दगी जी रहे है।
महानगरों में झुग्गी -झोपड़ियों में गन्दगी के बीच रह रहे लोग आज भी आज़ादी के 75 साल बाद भी नारकीय जीवन जी रहे है
दलित पीड़ित शोषित किसान और मज़दूर आज़ादी से पहले भी रोटी के लिए संघर्ष कर रहा था,क़र्ज़ से मुक्ति पाने के लिए छटपटा रहा था और आज़ादी के 75 साल गुजर जाने के बाद भी रोटी के लिए ही संघर्ष कर रहा है.क़र्ज़ से मुक्ति पाने के छटपटा रहा है। जो किसान छटपटाहट को बर्दाश्त नहीं कर पाए ,उन्होंने अपनी जीवन लीला ही समाप्त कर ली।
वन्दे मातरम
भूख ,गरीबी ,कुपोषण ,बेरोज़गारी ,किसानों द्वारा आत्महत्या ,बिगड़ी हुई कानून व्यवस्था ,महिलाओं के विरूद्ध बढते अपराध ,यौन हिंसा ,महंगाई ,बाल -मज़दूरी ,नॉकरशाही ,राजनीति में बढता अपराधीकरण और इन सब से बढ़कर भ्रष्टाचार ,ये ऐसी समस्याएं है जो आज़ादी के 75 साल गुजर जाने के बाद ज्यो की त्यों बनी हुई है।
ये है आज से75 साल पहले दिए गए भाषण और आज के यथार्थ भारत का यथार्थ सच ,जो हमारे राजनीतिज्ञों की कथनी और करनी के अंतर को बयां कर रही है।
आज़ादी के मायने को नए सिरे से परिभाषित करना होगा। आज़ादी का सही अर्थ हम धनी और माध्यम वर्ग तय नहीं करेंगे ,आज़ादी का सही अर्थ गरीबों की मुख वाणी से निकलेगा -वह होगा। वैज्ञानिक और तकनीकी विकास का अर्थ आज़ादी की उपलब्धि नहीं हो सकती ।
हाँ ,बदली हुई राजनीतिक स्थितियों के बीच एक उम्मीद की किरण दिखाई देने लगी है ,लेकिन75 सालों की भरपाई में समय लगेगा। इस सत्य को भी स्वीकारना होगा कि राजनीतिक दासता से मुक्ति को ही हम लक्ष्य प्राप्ति मान बैठे थे और इसी बात का ढोल ज्यादा पीटा जाता है। समय रहते आर्थिक विकास के प्रति जागरूक हो गए होते तो भारत विकसित देशों के समकक्ष खड़ा दिखाई देता क्योकि भारत के पास बौद्धिक क्षमता विशाल जन शक्ति के अतिरिक्त भौतिक संसाधन भी पर्याप्त है। बस ,साधनों को अवसर में बदलने की इच्छाशक्ति दिखलाने की आवश्यकता है।
एक बात और ,देश को शत्रु भाव रखने वाले पडोसी राष्ट्र से जितना खतरा है ,उतना ही खतरा देश के भीतर पल रहे जय चन्दों से भी है। मानवाधिकार और संविधान के रक्षक ,अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता की आड़ में अपने वैयक्तिक हित साधने वालों को भी अपनी राष्ट्र भक्ति का आकलन करना होगा।
वर्त्तमान में आज़ादी के मायने नए सिरे से परिभाषित किये जाने की आवश्यकता है। विरोधी राजनीतिक दल सत्ता से बाहर रहकर भी राष्ट्रभक्ति का प्रमाण दे सकते है ,राष्ट्र सेवा के लिए कुर्सी के पाए और हत्थें की ज़रुरत नहीं नहीं। बस …दिल वतन के लिए धड़कना चाहिए …… साँसें वतन के लिए चलनी चाहिए …यह ज़ज़्बा हो … उत्तर और पश्चिम के पडोसी देश एक राजनीतिक दल से नहीं बल्कि हर राजनीतिक दल से भयभीत हो …उन्हें भारत के हर राजनेता में …. हर सैनिक में … हर नागरिक में नेहरू या गाँधी (नीति और विचारधारा के अर्थ में ) नहीं बल्कि सुभाष बोस , भगत सिंह , चंद्रशेखर आज़ाद और सरदार पटेल का चेहरा नज़र आये।
उन सभी नाम और अनाम हुतात्माओं को कोटि -कोटि नमन ,जिनके त्याग और बलिदान से हम भारतवासी स्वतंत्र देश का नागरिक होने का गर्व अनुभव कर रहे है। …
जय हिन्द
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