12th UP today

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September 18, 2023
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1. एक दिन सहसा सूरज निकला

अरे क्षितिज पर नहीं, नगर के चौकरू

धूप बरसी, पर अन्तरिक्ष से नहीं

फटी मिट्टी से।

भावार्थ: द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान हिरोशिमा पर गिराए गए परमाणु बम का उल्लेख करते हुए  कवि अज्ञेय कहते  है कि एक दिन सूर्य अचानक उगा , लेकिन यह  सूर्य आकाश में नहीं, बल्कि हिरोशिमा नगर के एक चौक में उगा था ,परमाणु बम के विस्फोट से निकली विनाशक किरणों की की वर्षा हुई, ठीक उसी तरह जैसे सूर्य के उदय होने पर आकाश से धूप की किरणें फैलने लगती है। नगर के जिस स्थान पर बम गिरा था, वहाँ की जमीन एक बड़े-से-गड्ढे में बदल गई। बम धमाके के कारण उस जगह से विषैली गैसें निकल रही थीं। उन गैसों से उत्पन्न ताप से पूरी प्रकृति झुलस गई। विस्फोट के दौरान निकली विकिरणों ने मानव को ही नहीं मानवता को भी मार डाला था ।

2. छायाएँ मानव-जन की दिशाहीन, सब ओर पड़ीं-

वह सूरज नहीं उगा था पूरब में, वह बरसा सहसा ,बीचो-बीच नगर के

काल-सूर्य के रथ के पहियों के ज्यों अरे टूट कर, बिखर गए हों

दसों दिशा में!

कुछ क्षण का वह उदय-अस्त!

केवल एक प्रज्वलित क्षण की दृश्य सोख लेने वाली दोपहरी फिर।।

भावार्थ: उस दिन पूरा वातावरण मानवों की छायाओं से पटा हुआ था, जैसे सूरज के उदित होने पर उसके प्रकाश से मानव की छाया बनती है, आज ये छायाएँ दिशाहीन होकर धरती पर बिखरी पड़ी थीं। उस दिन, सूर्य हमेशा की तरह  पूरब दिशा से नहीं निकला था; आज वह अचानक हिरोशिमा के मध्य से उठा था। उस परमाणु रुपी सूर्य को देखते हुए ऐसा लग रहा था, जैसे काल  रथ पर सवार होकर आया हो और उस रथ के पहियों के डण्डे टूट-टूटकर दसों दिशाओं में बिखर गए हों।  परमाणु विस्फोट के रूप में इस सूर्य का   उदय  और अस्त क्षणिकथा ।   अज्ञेयजी कहते है , सूर्योदय और सूर्यास्त का आभास दिलाने वाली मानवीय गतिविधियों के परिणामस्वरूप दोपहर का वह ज्वलन्त क्षण  अपने ताप से वहाँ के दृश्यों को  जला देने वाला था, यानी परमाणु विस्फोट रूपी सूर्य अपने घातक प्रभाव से सब कुछ जला देने वाला था।

3. छायाएँ मानव-जन की, नहीं मिटीं लम्बी हो-होकरः

मानव ही सब भाप हो गए।

छायाएँ तो अभी लिखीं हैं, झुलसे हुए पत्थरों पर

उजड़ी सड़कों की गच पर।।

मानव का रचा हुआ सूरज मानव को भाप बनाकर सोख गया।

पत्थर पर लिखी हुई यह जली हुई छाया मानव की साखी है।

कवि अज्ञेय कहते है कि हिरोशिमा पर हुए परमाणु विस्फोट ने  मानवों को जलाकर वाष्प में बदल दिया गया, लेकिन उनकी छायाएँ लंबे समय तक नहीं समाप्त हुईं। विकिरण से झुलसे हुए पत्थरों और सड़कों की दरारों पर आज भी मानवीय छायाएँ साक्षी बनकर पड़ी हुई   हैं, जो मूक भाव से  उस भयानक दुर्घटना की कहानी कह रही हैं। कवि ने आकाशीय सूर्य से मानव निर्मित इस सूर्य की तुलना करते हुए कहा कि आकाशीय सूर्य हमारे लिए वरदान है, जो हमें जीवन देता है, लेकिन मनुष्य निर्मित यह सूर्य अर्थात  परमाणु बम, बहुत खतरनाक है क्योंकि इसने अपनी विकिरणों से मानव को वाष्प में बदलकर उनका जीवन समाप्त कर दिया है। पत्थर पर मानव की छाया इस बात का सबूत है। इस प्रकार, कवि यहाँ मानव को ही मानव के विध्वंस का कारण मानता है।

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