hindi poem –
hindi poem –
हंगामा नहीं होता
गर वो क़त्ल भी करे
हम बदनाम हो जाते है
गर आह भी भरे
उनके सात खून भी माफ़ है
क्योकि वे ख़ास है
हम ख़ुदकुशी भी करे तो गुनहगार है
क्योकि हम ख़ास नहीं ,आम है
कभी- कभी ऐसा भी होता है
हंसती है नागफनी
गुलाब रोता है
रंजोगम न हो फिर भी
गमजदों सा नींद अपनी खोता है
तो कोई गम की स्याह रात में भी
नींद चैन की सोता है
कौड़ी जेब में ना फूटी
शहंशाह बनके जीता है
तो कोई शहंशाह होकर भी
फ़क़ीर बनके जीता है
कभी- कभी ऐसा भी होता है
माना कि
ऐतबार की आड़ में
दगा होता है
तो क्या ऐतबार पर
ऐतबार करना छोड़ दे
आंधियों के डर से
चिड़िया घोसला
और आदमी
चिराग जलाना छोड़ दे
पहचान के तो देख खुद को
तू वो है
जो चीर सकता है सीना पहाड़ों का
और आँधियों का मुँह मोड़ दे
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