gita jayanti -birthday of srimad bhagawadgita
गीता प्राकट्य दिवस
वासी -प्रवासी बन्धुओ ,
कोटि -कोटि सादर नमस्ते ……
मार्गशीष मॉस की शुक्ल पक्ष की एकादशी -ब्रह्म पुराण के अनुसार यही वह तिथि है जब कलियुग से पूर्व द्वापर युग में कुरुक्षेत्र में योगेश्वर कृष्ण ने धर्म और कर्तव्य से विमुख हो रहे अर्जुन को तत्व ज्ञान देकर धर्म और कर्तव्य के प्रति उत्प्रेरित किया था। योगेश्वर कृष्ण के श्रीमुख से उद्भासित शब्द ही कृति रूप में श्रीमद्भगवद गीता का स्वरुप है।
श्रीमद्भगवद गीता स्वाध्याय मोक्ष दायी माना गया है और श्रीमद्भगवद गीता का उदभव भी
मार्गशीष मॉस की शुक्ल पक्ष की एकादशी को हुआ था ,इसलिए मार्गशीष मॉस की शुक्ल पक्ष की एकादशी को
गीता एक धर्म ग्रन्थ ही नहीं बल्कि एक दर्शन है .. पापों का क्षय करने वाला ….परमात्म की विशद व्याख्या करनेवाला ग्रन्थ है। गीता देहधारियों को जहाँ सार्थक ढंग से जीना सिखाती है ,वही सार्थक मृत्यु का मार्ग भी प्रशस्त कराती है।
गीता में अर्जुन की जिज्ञासा और प्रश्न केवल अर्जुन के प्रश्न और जिज्ञासा नहीं वरन हम मनुष्यों के भी प्रश्न और जिज्ञासा है -जिसका समाधान गीता में निहित है। गीता का श्रवण अथवा वाचन के पश्चात् वेदों का अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं रह जाती ,अन्य शब्दों में कहा जा सकता है कि गीता में चारोँ वेदों का सार समाहित है।
अपने मानव जीवन को सार्थक बनाने का अभीष्ट अथवा आत्मिक उत्थान का मनोरथ रखनेवाला मनुष्य जिस कार्य को अपने मनुष्य जीवन में एक बार आवश्यक रूप से करना चाहता है ,उनमे से एक है-श्री मद् भगवद गीता का अध्ययन।
श्री मद् भगवद् गीता भगवान श्री कृष्ण के श्री मुख से निसृत वह अमृत वाणी है ,जिसका पठन -श्रवण कर मनुष्य अपना जीवन सार्थक बना सकता है। श्री मद् भगवद् गीता महर्षि व्यास द्वारा सृजित महाकाव्य महाभारत के भीष्म पर्व में संकलित है। श्री मद् भगवद् गीता प्राचीन-काल से वर्तमान तक संसार को जीवन सत्य से अवगत कराती आ रही है।
आध्यात्मिक क्षेत्र में श्री मद् भगवद गीता देदीप्यमान नक्षत्र के सदृश है। इसमें समाहित अतुलित ज्ञान का तेज कोटि सूर्य के समान है ,वही अज्ञानता की रात्रि में सोये हुए मनुष्यों के लिए अनन्त तारों के मध्य चन्द्रमा की भाँति ज्ञान रश्मिओ की अमृतमय वर्षा करने वाला है।
श्री मद् भगवद गीता की महिमा का बखान करने का सामर्थ्य किसी में नहीं। बड़े-बड़े ऋषिओं -मुनिओं ने श्री मद् भगवद गीता की महत्ता प्रतिपादित की है ,किन्तु हर बार समस्त वर्णनों को मिलाकर भी इसकी महिमा में कहीं न कहीं कमी रह ही जाती है।
जैसे जीने के लिए हवा,पानी,भोजन आवश्यक है ,वैसे ही सार्थक जीवन जीने के लिए श्री मद् भगवद गीता का अध्ययन आवश्यक है।
विभिन्न सम्प्रदाय के धर्म गुरुओं ने श्री मद् भगवद गीता को जन-जन तक पहुँचाने का भरपूर प्रयास किया और कर रहे है।ईश -वत्सल तो इस ज्ञान गंगा में डुबकी लगाकर अपना मनुष्य जीवन सार्थक कर चुके है ,किन्तु खेद है कि आज भी कई सारे मनुष्य श्री मद् भगवद गीता के ज्ञानामृत से वंचित है। वे भी इस ज्ञानामृत का पान करना तो चाहते है किन्तु आधुनिक जीवन शैली ,वैयक्तिक उत्तर दायित्वों ,जीविकोपार्जन की जद्दो -जहद और व्यक्तिगत समस्याओं के कारण चाहकर भी श्री मद् भगवद गीता का अध्ययन नहीं कर पा रहे है। उसके दो प्रमुख कारण है
पहला -समयाभाव और दूसरा इसके वृहदाकार के साथ- साथ भाष्यकारों द्वारा प्रयुक्त अत्यधिक साहित्यिक ,क्लिष्ट अलंकृत और जटिल -कठिन दार्शनिक भाषा का प्रयोग।
मेरे कई ऐसे मित्र ,परिचित और पारिवारिक सम्बन्धी है जिनके घरों में श्री मद् भगवद गीता ग्रन्थ तो है ,किन्तु
उपर्युक्त कारणों से थोड़ा -बहुत अध्ययन कर आगे पढ़ना छोड़ दिया।
उपर्युक्त दोनों कारणों को ध्यान में रखकर मैंने जन-सामान्य की समझ में आने वाली सीधी -सरल भाषा में संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करने का निश्चय किया ताकि मेरे समस्त स्वजन श्री मद् भगवद गीता का समग्र न सही ,आंशिक लाभ उठा सके ,इसके लिए श्री मद् भगवद गीता का(अध्याय एक से अठारह तक)एक-एक अध्याय पृथक – पृथक प्रकाशित (post )किया है । यह ना कोई व्याख्या है,ना टीका और ना विद्वता या पांडित्य प्रदर्शन। सिर्फ उपलब्ध टीकाओं की सरल-सहज अभिव्यक्ति है। मेरे स्वजन अपने व्यस्त समय में से सिर्फ और सिर्फ दस मिनट निकालकर श्री मद् भगवद गीता के अध्ययन का पुण्य अर्जित कर सकेंगे।
मेरा अपने समस्त वासी-प्रवासी भाइयों से करबद्ध निवेदन है कि स्वयं भी इस पोस्ट को पढ़े और अपने से जुड़े आत्मीय जनो को पढ़ने के लिए प्रेरित करे।
पूर्व प्रकाशित पोस्ट में आप श्री मद् भगवद् गीता के एक से अठारह अध्याय देख सकेंगे।
जय श्री कृष्ण
आपका प्रोत्सानाकांक्षी ,
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