friendship day-in hindi
जिसका मुझे था इंतज़ार ,वो घडी आ गयी
august का first sunday
august के first sunday का इंतज़ार क्यों था ?
क्योकि इस दिन frienndship day मनाया जाता है।
यह बात अलग है कि अलग-अलग देशो में अलग अलग दिन frienndship day मनाया जाता है।
भारत में august के first sunday को frienndship day मनाया जायेगा।
internet और mobile phone पर ढेरों सन्देश भेजे जायेगे। flowers ,cards का आदान-प्रदान होगा और एक दूसरे को wrist band पहनाये जायेगे।
frienndship day पर social network (-facebook whatapps) पर आपको ढेरों शुभकामना सन्देश मिलेंगे ,किन्तु क्या ये सभी हमारे मित्र है ?
नहीं ,
कहने में बात कड़वी और कठोर लग सकती है ,किन्तु सच यही है। ये सब आपके जान-पहचान या परिचित तो सकते है ,किन्तु मित्र नहीं। जिस उद्देश्य से friend ship day मनाया जाता है ,यदि उसमे वह प्रेम , त्याग ,समर्पण की पवित्र भावना समाहित नहीं तो frienndship day मनोरंजन की लिए मनाया गया fun day से ज्यादा कुछ नहीं।
मित्र यह कोई औपचारिक शब्द नहीं या संबोधन में प्रयोग किया जाने वाला कोई सामान्य शब्द नहीं है। मित्र एक भावनात्मक सम्बन्ध की अभिव्यक्ति का नाम है। मित्र और मित्रता महज औपचारिक शब्द नहीं है. मित्र और मित्रता नाम है -नैतिक दायित्व और धर्म निर्वाह का। मित्र और मित्रता की अपनी मर्यादा है ,गरिमा है ,पवित्रता है। बहुत नाज़ुक रिश्ता है यह ,शीशे की तरह।
मनुष्य अपने जीवन में जिन- जिन चीजों को पाने ख्वाइश रखता है ,उनमे एक चीज है -एक अच्छा -सच्चा दोस्त।एक अच्छा -सच्चा दोस्त मिलाना life में किसी achievment से कम नहीं। नैतिकता की दृष्टि से मनुष्य को स्वार्थी नहीं होना चाहिए ,किन्तु friendship के मामले में मनुष्य को थोड़ा selfish हो जाना चाहिए ,क्योकि यदि एक अच्छा –सच्चा दोस्त मिल जाये तो वह हमें फर्श से उठाकर अर्श पर बिठा देगा ,लेकिन एक गलत मित्र मिल गया तो वह इतने गहरे गड्ढे में धकेल देंगा कि फिर कभी बाहर नहीं निकल सकेगा।
सच्चे मित्र को कैसे पहचाने ?
अपने दो मित्रों को अपने कन्धों पर बिठा लो और कुछ दूर तक उन्हें अपने कंधे पर बिठाये चलते रहो। उनमे से जो पहले तुमसे ये कहे-मित्र, मुझे अपने कंधे से उतार दो ,मेरा बोझ ढोते -ढोते तुम थक गए होंगे। अब तुम मेरे कंधे पर बैठ जाओ। जो ये कहे ,समझ लो वही सच्चा मित्र है। ऐसे मित्र को कंधे से उतार कर अब अपने दिल में बिठा लो।
सच्चे मित्र दुर्लभ होते है ,सौभाग्य से मिलते है ,मिल जाये तो ईश्वर को बहुत- बहुत धन्यवाद देना चाहिए।अच्छा- सच्चा मित्र रक्त -संबंधी से भी बढ़कर होता है क्योकि रक्त संबंधी तो खास अवसरों पर साथ छोड़ देंगे ,लेकिन सच्चा-अच्छा मित्र आपके साथ खड़ा होगा।
हाँ ,दिखावे के और नक़ली मित्र तो सहजता से मिल जायेगे किन्तु कठिन अवसर आने पर आपको आपका वह मित्र नहीं मिलेगा ,जिससे आप पहली बार मिलकर प्रभावित हुए थे। आप तो उसे मित्र मान लेंगे ,लेकिन आप उसके लिए अनजान बन जायेगे। मित्र बनाना या मित्रता करना बहुत आसान है ,मुश्किल है मित्रता निभाना।मतलबी ,स्वार्थी ,अवसरवादी मित्र छाया की तरह होते है जो धूप में तो साथ -साथ चलते है किन्तु अँधेरा में साथ छोड़ जाते है।
जब कभी हम स्वयं गलत रास्ते पर चल पड़ते है तब सच्चा मित्र हमें फिर से सही रास्ते पर ले आता है और मुसीबत में हमें छोड़कर नहीं जाता बल्कि साया बनकर साथ रहता है। दो सच्चे मित्रों को अरस्तू ने दो जिस्म एक जान कहा है।सच्चे मित्र की पहचान है कि सच्चा मित्र अपने पहाड़ जैसे दुःख को धूल के समान समझता है किन्तु मित्र के धूल के समान दुःख को पहाड़ जितना समझता है। सच्चे मित्रों के सुख -दुःख कभी अकेले नहीं होते,सुख -दुःख वे बराबर सांझीदर होते है।
मित्रता के मामले में आदमी को जागरूक ग्राहक की तरह हो जाना चाहिए। जैसे बाजार से कोई चीज खरीदते वक़्त जाँच -परख कर देखते है।चीज अच्छी निकल आये तो खुश होते है और नक़ली निकल आये तो धोखा खाने का दुःख होता है। वैसे ही अच्छा-सच्चा मित्र मिल जाये तो GOD को thanks दो क्योकि GOD ने आपको मित्र के रूप में अपनी ओर से gift दिया है ,ऐसा समझो। बहुत CARE करना ऐसे मित्र की। बहुत बहुत मुश्किल से मिलता है ऐसा मित्र। ऐसा मित्र पाकर आपने यदि आपना सब कुछ खो दिया तो समझना कि आपने बेकार की चीजे खो कर एक बेशकीमती चीज पाई है-एक अच्छे -सच्चे मित्र के रूप में।
FRIENDSHIP को STABLE रखने के लिए यह सावधानी ज़रूर रखे कि पैसों का लेंन -देन ना हो तो अच्छा है।
स्वार्थी और अवसरवादी मित्रों की मित्रता दोपहर से पहले की छाया की तरह होती है जो शुरू में बड़ी होती और बाद में घटती जाती है। इसके विपरीत सच्चे -अच्छे मित्र की मित्रता दोपहर बाद की छाया की तरह होती है जो पहले छोटीऔर फिर बड़ी होती जाती है। लोमड़ी और सियार के स्वभाव वालों से मित्रता करने से बचे। कहा भी गया है कि मूर्ख मित्र से बुद्धिमान शत्रु अच्छा है।
छोड़ दो ,बिलकुल छोड़ दो ऐसे मित्र को जो दोहरे चरित्र वाला हो -जो सामने तो मीठा-मीठा बोलता हो किन्तु बगल में छुरी छिपाये रखता हो। कुछ लोग मित्र होते नहीं,मित्र होने का ढोंग करते है। यदि आप finacial storng है ,approachable है ,वह मित्र होने का स्वांग करता रहेगा और जैसे ही स्वार्थ निकला ,कन्नी काट कर निकल जायेगा ,वह मित्र नहीं। ,मित्र वह होता है जो काम निकल जाने के बाद भी साथ रहता है ,और मुसीबत आने पर वैसे ही आपकी सहायता करता है ,जैसे आपने उसकी सहायता की थी ,वह होता है मित्र। financial storng और ,approachable होने पर तो बहुत से मित्र बन जायेगे। आस-पास जो भीड़ है उनमे मित्र कौन है ,यह पता उस दिन चलता है जब हम मुसीबत में पड़ते है। उस मुसीबत की घडी में जो आपके साथ खड़ा रह गया है ,वही आपका सच्चा -अच्छा मित्र होगा। याद रखे ,नए मित्रों को पाकर पुराने मित्रों की उपेक्षा ना करें। और हां ,कभी ऐसा मज़ाक ना करें जिससे मित्र के स्वाभिमान को ठेस पहुँचे या वह स्वयं को अपमानित महसूस करें।एक बात और ,अपने बचपन के सुदामा को कभी ना भूले। और हाँ
,सारी अच्छी अपेक्षाएं मित्र से ना करे ,स्वयं को भी मित्र के सामने आदर्श बनना पड़ेगा।-
सच्चा मित्र आईने की तरह होता है ,जो हमें हमारा वास्तविक प्रतिबिम्ब दिखाए। हमारे गुण को गुण और अवगुण को अवगुण बतलाये। यदि हमारे अवगुण को गुण बतलाये ,तो सावधान हो जाना चाहिए।अवगुण को गुण बतलाकर वह चापलूसी कर रहा है और निश्चित मानिये ज़रूर वह आपसे अपना स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है।अच्छा-सच्चा मित्र तो वह जो हमें हमारी गलतियों कमजोरियों को दूसरे के सामने भले ही नहीं कहे किन्तु अकेले में हमें हमारी गलतियों कमजोरियों बताकर उसमे सुधार का अवसर देता है।
ढेर सारे कंकर -पत्थर इक्कठे करने से अच्छा है एक नायब हीरा रखना अर्ताथ दिखावटी -सजावटी मित्रों की भीड़ इक्कठी करने की अपेक्षा एक सच्चा मित्र कही ज्यादा अच्छा है।
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