रावण अभी ज़िंदा है ….. raavan still alive

dashahara- raavan still alive
रावण अभी ज़िंदा है
वह हमारे आस-पास भी और हमारे भीतर भी ..
किसी के लिए मै भी रावण हो सकता हूँ …..
मेरे लिए भी कोई और रावण हो सकता है …..
तात्पर्य यह है कि हर वो आदमी रावण है जो तामसिक वृतियों वाला है
इन तामसिक वृतिवालों को एक दिन जलकर राख होना पड़ता है …..इस सत्य का स्मरण करता है -दशहरे का त्यौहार
दशहरा सिर्फ रावण के पुतले को जला देने भर का त्यौहार नहीं है ,बल्कि हर मनुष्य के लिए चिंतन का दिन है ,विचार करने का दिन है ।
रावण,जो बल ,विद्या और बुध्दि से सम्पन्न था ,फिर क्यों दुश्चरित्र कहलाया ?
रावण तो शक्तिशाली था ,विशाल सेना थी उसके पास …. एक से बढ़कर एक योध्दा थे उसकी सेना में …. फिर क्यों क्यों एक वनवासी के हाथों पराजित हुआ वह ?
राम और रावण की शक्तियाँ सामान थी ,फिर क्यों राम पूजनीय बन गए और रावण तिरस्कृत और घृणा का पात्र बना ?
उत्तर स्पष्ट है – कोई भी कितना ही भुज बल से संपन्न हो … अथवा बुध्दि बल से ,यदि प्राप्त शक्तियों का गलत उपयोग
किया तो परिणाम निश्चित रूप से बुरा ही होगा।
मैंने कहा न ,आप दशहरे को एक त्यौहार के रूप में नहीं ,चिंतन के रूप में देखें … इसके बाह्य रूप को नहीं
,आतंरिक स्वरुप को देखें … इसे सतह से नहीं ,गहराई से देखें ….
रावण को किसी राम ने नहीं ,स्वयं रावण ने अपने आप को मारा ,रावण को मारा उसकी ही काम वासना ने ..रावण
को मारा उसके क्रोध ने …. रावण को मारा उसके अपने अहंकार ने … लोभ ने … .मोह ने … उसकी
हिंसक प्रवृति ने … उसके झूठ और चोरी की प्रवृति ने …
कहा जाता है कि रावण के दस के चेहरे थे ,जी नहीं -काम ,क्रोध ,लोभ ,मोह ,अहंकार ,स्वार्थ ,अन्याय ,वासना और
विश्वासघात ये दुष्प्रवृतियाँ ही रावण के दस चहरे है।
हम में से हर वो आदमी रावण है जिसका अन्तकरण काम वासना .. क्रोध अहंकार … लोभ … .मोह …
हिंसक प्रवृति … झूठ और चोरी की प्रवृति जैसी से भरा है .. इन प्रवृतियों से भरे हर उस आदमी का अंत रावण
की तरह होगा। …
इन दुष्प्रवृतियों से भरे लोग एक बार नहीं ,बार -बार मरेंगे …. हर साल मरेंगे और शायद तब तक मरते रहेंगे ,जब
तक दुनिया रहेगी।
रावण का अंत सीख है हम सब के लिए भी … अन्यायी और अधर्मी का विनाश निश्चित है। जान ले ,हम चाहे जितने
बाहुबली हो अहंकार हमारे पतन का कारण बन सकता है। मोह को त्यागे अन्यथा यह हमे अनुचित और धर्म
विरुध्द कार्य करने के लिए विवश कर देगा। लोभ ,हमे हमारे पास उपलब्ध साधनो के सुख से भी वंचित कर देगा।
क्रोध की अग्नि जलाकर राख कर देगी।
स्व के लिए नहीं ,परमार्थ के लिए भी जिए। अन्याय करके दूसरो से कभी सम्मान नहीं पाया जा सकता। वासना पर
नियंत्रण हमारे चरित्र की पवित्रता को और भी निखार सकता है।
यह गंभीरता से सोचने का विषय है कि वनवासी राम के पास न तो विशाल सेना थी और न हथियार ,फिर भी
महाप्रतापी ,महावीर , बाहुबली माने जानेवाले रावण को राम ने कैसे परास्त किया ? क्या था उनके पास -?
सेना के नाम पर बन्दर और भालू और हथियार के नाम पर पेड़ और पत्थर ,फिर भी विजय प्राप्त की।
राम की शक्ति थी -उनकी साधना।
राम ने प्रमाणित किया कि साधन से ज्यादा महत्वपूर्ण है -साधना। दृढ इच्छा से विपरीत से विपरीत और विषम से
विषम स्थितियों को अनुकूल बनाया जा सकता है।
राम का जीवन प्रेरणा है हम सब के लिये -जीवन में आनेवाले संघर्ष मनुष्य को कमज़ोर नहीं ,बल्कि पहले से ज्यादा
ताक़तवर बनाते है। यदि हमारी लड़ाई सत्य के लिए है ,तो विजय मिलना निश्चित है।
सफलता के लिए साधना आवश्यक है। भगवान श्री राम द्वारा माँ दुर्गा की साधना इस बात का प्रतीक है।
दशहरे के त्यौहार की एक बात और मतहत्वपूर्ण यह है कि इसी दिन माँ दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था और
इसी दिन भगवान श्री राम ने रावण का वध किया था। माँ दुर्गा को भी महिषासुर को मारने में नौ दिन लगे थे और
राम को भी नौ दिन तक युध्द करने के पश्चात् ही विजय प्राप्त हुई थी। इस दोनों घटनाओं में जो COMMON बात
है ,वह यह कि सफलता एक ही दिन में प्राप्त नहीं होती। सफलता के लिए धैर्य के साथ निरंतर प्रयास करने होते है तब कहीं जाकर सफलता प्राप्त होती है।
इसी दिन शस्त्र की भी पूजा होती है और शास्त्र की भी। तो इसका तात्पर्य हुआ कि पाप और पापी का अंत यदि
शास्त्र से न हो तो शस्त्र से पाप और पापी का अंत धर्म सम्मत हो जाता है।
एक बात और ,शक्ति संचयन के लिए साधना आवश्यक है। भगवान श्री राम को भी शक्ति प्राप्त करने के लिए माँ
दुर्गा की साधना करनी पड़ी थी। यह बात हम मनुष्यों के लिए भी एक सबक है। जीवन में सफलता के लिए साधना आवश्यक है।
साधना को सफल बनाने के लिए त्याग भी करना पड़ता है ,जैसे राम को अपनी साधना पूर्ण करने के लिए माँ दुर्गा के चरणों में चढ़ाया जाने वाला फूल अनायास विलुप्त हो जानेपर भगवान श्री राम को फूल के स्थान पर अपना एक नेत्र चढ़ाने के उद्यत होना पड़ा था।
हम सब के भीतर भी राम है ,बस ,हमे अपने भीतर अन्तर्निहित शक्तियों को पहचानना है। न अन्याय करें और न अन्याय सहे। शक्तियाँ हम सब में भी मौजूद है। बस , तय करना है कि शक्ति किस दिशा में लगानी है ?
रावण की तरह विनाशकारी कामों में या श्री राम की तरह कल्याणकारी कामों में ?मानव सुर भी है और असुर भी। मानव में वे शक्तियाँ विद्यमान है ,जिसे सत्कर्म में लगाकर मानव , मानव से देव(राम ) बन सकता है और दुष्कर्म में लगाकर मानव से दानव (रावण ) – बन सकता है।
स्वयं में और समाज में बदलाव रावण के पुतले को जलाने से नहीं ,भीतर के बुराई रुपी रावण को मारने से आएगा।आवश्यकता बाहर के रावण को मरने की नहीं ,भीतर के रावण को मारने की है।
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