त्याग कर देना चाहिए ऐसे धर्म का जिसमे दया -ममता ना हो ,त्याग कर देना चाहिए ऐसे गुरु का जो स्वयं विद्या हीन हो , त्याग कर देना चाहिए ऐसी स्त्री का जो सदैव क्रुद्ध रहती हो ,त्याग कर देना चाहिए ऐसे भाई-बंधुओं का जिनमे प्रेम -भाव ना हो। प्रत्येक मनुष्य को निम्न लिखित बातों पर विचार करते रहना चाहिए – मेरा समय कैसा चल रहा है ? मेरे कितने मित्र है और कैसे है ? वह जगह कैसी है जहाँ मैं रहता हूँ ? मेरी आय कितनी है और खर्च कितना है ? मुझमे कितना सामर्थ्य है ?
इनका पितृ तुल्य सम्मान किया जाना चाहिए – जन्मदाता जनेऊ धारण करानेवाला ब्राह्मण विद्या देनेवाला गुरु अन्न दाता भयमुक्त रखनेवाला पुत्र हीन के लिए घर शून्य है ,जिसका कोई भाई-बंधु नहीं उसके लिए संसार शून्य है ,मूर्ख का ह्रदय शून्य होता है किन्तु दरिद्र के लिए सब कुछ ही शून्य है। बिना अभ्यास के शास्त्र विष समान है ,भोजन पचने से पूर्व फिर से भोजन करना विष समान है ,दरिद्र का समाज में रहना विष समान है तथा वृद्ध के लिए युवती विष समान है।
पांच बातें पूर्व निर्धारित है -आयु ,कर्म ,धन ,विद्या ,और मृत्यु। इन पांचों पर मनुष्य का कोई वश नहीं। जो मनुष्य सद्पुरुषों के सानिध्य में रहते है तथा उनके के जीवन से प्रेरणा लेकर वैसा ही सदाचरण करते है ,ऐसे मनुष्य स्वयं तो मान पाते ही है ,साथ अपने कुल का भी मान बढ़ाते है। सद्पुरुष दर्शन ,ध्यान ,और स्पर्श से अपने सानिध्य में आये मनुष्यों का वैसे ही पालन करते है जैसे मछली अपने बच्चों को देखकर ,मादा कछुआ ध्यान से तथा मादा पंछी स्पर्श से अपने बच्चों का पालन करते है। मनुष्य को समस्त करणीय कर्म स्वस्थ रहते हुए ही कर लेने चाहिए क्योकि मृत्यु का कोई भरोसा नहीं ,ना मालूम कब आ जाये ?सत्कर्म करने के लिए समय या अवसर की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। कर लिया जो काम ,भज लिया वो राम। विद्या असमय फल देनेवाली कामधेनु गाय के समान है। विद्या प्रवास में माता के समान रक्षा और कल्याण करनेवाली है। विद्या गुप्त धन है जिसे कोई चुरा नहीं सकता।
बहुत सारे कंकर -पत्थर एकत्र करने से अच्छा है एक हीरा रखना। ठीक वैसे ही ढेर सारी गुणहीन संतान से अच्छा है एक सुयोग्य पुत्र का होना दीर्घ आयु वाले मूर्ख पुत्र की अपेक्षा अल्पायु सुयोग्य पुत्र कहीं ज्यादा अच्छा है। सुयोग्य पुत्र की मृत्यु का शोक कुछ समय तक कष्ट देगा किन्तु मूर्ख पुत्र का जीवित रहना जीवन पर्यन्त कष्ट देता रहेगा। निम्न लिखित ये ६ बातें मनुष्य को बिना अग्नि के ही जलाती रहती है – 1.अनुचित स्थान, 2.दुष्ट की सेवा की विवशता ,3.अरुचिकर भोजन ,4.मानसिक संताप देनेवाली स्त्री ,5.मूर्ख पुत्र , 6.युवावस्था में विधवा होना
अयोग्य संतान से कोई लाभ प्राप्त नहीं होता जैसे बाँझ या दूध न देनेवाली गाय से जैसे कोई लाभ प्राप्त नहीं होता। घर लौटे मनुष्य को सुयोग्य संतान ,सुशील पत्नी और स्वजनों से आत्मीयता प्राप्त होने पर सुख शांति मिलती है।
अकेले किया जाना वाला कार्य अकेले द्वारा तथा समूह द्वारा किया जानेवाला कार्य समूह में ही सुचारू रूप से संपन्न होता। अकेले के कार्य को अनेक करें तथा समूह के कार्य को एक करें तो निश्चित रूप से कार्य बिगड़ेगा।
श्रेष्ठ पत्नी वह है जो मन ,वचन ,कर्म में समान हो पति के प्रति प्रेम रखती हो और सत्य ना छुपाये
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