दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नहीं जो सदैव सुखी रहा हो। जो आज सुखी दिखाई दे रहा है ,वह भी कभी दुखी ही था और जिसने आज तक दुःख ना देखा हो उसे भी कल दुःख का सामना करना पड़ सकता है।
शत्रु का विनाश करना हो तो उसे किसी बुरे व्यसन की लत लगा दे या क़र्ज़ में डुबो दे। कालांतर में वह स्वयं नष्ट हो जायेगा।
दुष्ट और साँप मेसे किसी एक को स्वीकारना पडे तो साँप को स्वीकार कर ले किन्तु दुष्ट को कदापि नहीं क्योकि साँप तो सिर्फ एक बार डसेगा किन्तु दुष्ट जब तक साथ रहेगा पल-पल डसता रहेगा।
समुंद्र अपनी मर्यादा त्याग सकता है किन्तु सज्जन अपनी मर्यादा का कभी उंल्लघन नहीं करते।
मूर्ख व्यक्ति दो पैर वाले पशु के समान है। ऐसे मूर्खों से जितना बचकर रहे अच्छा है। मूर्ख की निकटता वैसे ही पीड़ा देती है जैसे पैर में चुभा कांटा पीड़ा देता रहता है।
बाह्य सौन्दर्य से परिपूर्ण किन्तु ज्ञानरहित मनुष्य गंधहीन टेसू के फूल के समान है।
कोकिल का सौंदर्य मधुर स्वर में ,नारी का सौंदर्य पतिव्रता होने में ,कुरूप का सौंदर्य गुणी होने में तथा महापुरुषों का सौंदर्य क्षमाशीलता में है। पुरुषार्थी दरिद्र नहीं हो सकता। प्रभु स्मरण से मनुष्य पाप में नहीं फंसता ,मूक रहने से फसाद नहीं होता ,और सतर्क रहने वाले को भय नहीं होता।
अति हर चीज की बुरी होती है। अति का परिणाम कष्टदायी होता है। सीता को अपने अति सौंदर्यवती होने के कारण ,रावण को अति अहंकार के कारण ,और राजा बलि को अत्यधिक दानवीरता के कारण कष्ट भोगना पड़ा।
जिस तरह से एक सुगन्धित वृक्ष पूरे वन सुगन्धित कर देता है ,वैसे ही एक योग्य पुत्र पूरे कुल का नाम रोशन कर देता है। इसके विपरीत एक सूखा वृक्ष पूरे वन को जला सकता है ,वैसे ही एक कुपुत्र पूरे कुल को कलंकित कर सकता है।
पांच वर्ष की आयु तक पुत्र को प्रेम करें ,दस वर्ष की आयु तक आवश्यकता पड़ने पर डॉट भी दे किन्तु सोलह वर्ष की आयु के पश्चात् पुत्र के साथ मित्रवत व्यवहार करें। प्राकृतिक आपदा आने पर ,शत्रु के आक्रमण की आशंका होनेपर ,तथा दुष्ट व्यक्ति का साथ छोड़ देने पर अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है।
धर्म ,अर्थ ,काम और मोक्ष इन चार पुरुषार्थों से रहित मनुष्य का बार- बार मनुष्य जीवन पाकर भी मनुष्य जीवन व्यर्थ ही रहेगा।
जहाँ मूर्खों को पूजा नहीं जाता ,जहाँ पर्याप्त अन्न का भंडार रहता है ,जहाँ पति -पत्नी में कलह ना रहता हो ,वहाँ लक्ष्मी का निवास होता है।
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