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chanakya neeti-15

January 5, 2017
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चाणक्य नीति -१५ 

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चाणक्य नीति -१५ 

Hindi Hindustaniउस मनुष्य को न ज्ञान की  आवश्यकता है और  न  ,मोक्ष प्राप्ति कामना। न भस्म  लेप  करने की आवश्यकता है और न जटा धारण करने की ,जिसका ह्रदय  प्राणिमात्र के लिए दया भाव से भरा हुआ है ,दूसरों को कष्ट में देखकर जिसका ह्रदय द्रवित हो जाता है ,ऐसे  मनुष्यों के समस्त कर्मों का फल दया मात्र से ही प्राप्त हो जाता है।

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Hindi Hindustaniसंसार में अनेक बंधन है। हर कोई इन बंधनों से छुटकारा पाना चाहता है ,किन्तु कुछ बंधन ऐसे भी है ,जिनसे मनुष्य बंधे रहना चाहता है। यह बंधन है -प्रेम का। प्रेम के इस बंधन में बंधे रहने में ही आनंद है। इसीलिए तो कठोर लकड़ी का छेदन कर सकने का सामर्थ्य रखते हुए भी भौरा कमल की कोमल पंखुड़ियों का क़ैदी बना रहना चाहता है।

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Hindi Hindustaniचन्दन वृक्ष को काट दिए जाने पर भी वह अपनी सुगंध का परित्याग नहीं करता ,हाथी बूढा हो जाने पर भी अपनी विलासता का परित्याग नहीं करता ,गन्ना चरखी में पेले जाने पर भी अपनी मिठास का गुण नहीं त्यागता ,इसी प्रकार सज्जन अपनी निर्धनता में भी अपने  गुणों का परित्याग नहीं करते।

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Hindi Hindustaniजिस शिष्य ने अपने गुरु से एकाक्षर का रहस्य जान लिया ,ऐसा शिष्य कभी  भी अपने गुरु  ऋण  से  उऋण  नहीँ  हो सकता। क्योकि  गुरु  के इस दुर्लभ  मंत्र  का  मूल्य  चुकाने  के लिए  पृथ्वी  पर  इस कोई पदार्थ   है ही नहीं।

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Hindi Hindustaniभौरा जब कमलिनी के पत्तों के बीच होता है ,तब तक कमलिनी के फूल का रसपान का आनंद प्राप्त  करता है किन्तु भाग्यवश अन्यत्र जाने पर तोरैया /करील  के फूल को ही बहुत समझने लगता है अर्ताथ अपना स्थान छोड़कर अन्यत्र जानेपर परिस्थियों के साथ समझौता करना ही पड़ता है।

 

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Hindi Hindustaniदुष्ट  काँटे  के   समान   है , इससे  बचने  का एक ही  विकल्प  है , मुँह  उठाने  से पहले  ही  उसका मुँह   कुचल  दिया जाए।

 

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Hindi Hindustaniलक्ष्मी  उसका  कभी  वरण  कभी  नहीँ  करेगी  , जो मलिन वस्त्र  धारण  करता  हो , जिसका मुख  दुर्गन्धित  हो , जो आवश्यकता  से  अधिक  आहार  लेता  है ,कटु  वाणी   का प्रयोग  करता  हो , जो सूर्योदय  और सूर्यास्त   के समय   सोता   हो , चाहे   वह विष्णु  हो क्यों न हो।

 

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Hindi Hindustaniधन ही सब कुछ नहीँ  है ,  यह सत्य  है  किन्तु  अपेक्षित  धन  तो होना  ही चाहिए  क्योकि  स्त्री  ,बंधु – बांधव , मित्र  ,सेवक   ये  सब  तब तक  ही साथ रहते  है , जब तक  धन   पास  में  हो ,  धन  चला जाए , तो  ये भी  चले  जाते  है।

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Hindi Hindustaniअनीति  से  उपार्जित  धन  का   सुख अधिक दिनों तक नहीं  रहता ,  कालांतर में  भोगे गए  सुख  से कही  ज्यादा कष्ट   भोगने।

 

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 परिस्थिति  वश  ऐसा  हो सकता है कि  मोती  पैरो  की  ठोकरे  खाने  लगे और  काँच  सिर  पर सुशोभित  हो  जाए , लेकिन  जब इनका  विक्रय   करने  जाए  , तो पारखी  मोती  को  मोती  , और  काँच  को काँच  के  मूल्य से ही आँकता   है।  यही  बात  मनुष्य  पर भी  प्रभावी  होती है।

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Hindi Hindustaniशास्त्रो  में  अथाह  ज्ञान  है  किन्तु  मनुष्य  के पास  समय  बहुत  कम   है  और विघ्न  ज्यादा  है  अतः   मनुष्य  को   चाहिए  कि  समग्र  न सही  सार  तत्व  तो ग्रहण  कर ले , जैसे हंस  जल  से दूध  ग्रहण  कर लेता है।

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Hindi Hindustaniउसे  चाण्डाल  ही  समझना  चाहिए जो निराहार और थके हुए पथिक अथवा अथिति  को भोजन  कराए बिना  स्वयं  भोजन  कर  लेता  है।

 

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Hindi Hindustaniजो शास्त्रो  का ज्ञान  प्राप्त  करके  भी  आत्म – तत्व  को नही  पहचानता  , वह  उस  कलछी  के  समान  है  जो भोजन  के बर्तन  के  बीच   रहकर  भी   स्वादिष्ट   भोजन  का  स्वाद  नही ले पाती।

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Hindi Hindustaniचंद्रमा  जो  अमृतमय  है , औषधियों  का  अधिपति  है , शोभा – युक्त  है ,किन्तु  सूर्य   के घर मैं  जाकर  निस्तेज   हो जाता है  इस प्रकार  मनुष्य   दूसरे  के घर  में  जाकर मनुष्य

 

  अपना  सम्मान   खो  देता है।

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Hindi Hindustaniभोजन  वह  सार्थक है  जो ब्राह्म्ण  को भोजन  करने  के बाद किया जाये , प्रेम वह  सार्थक है जो  अपनों से ज्यादा परायो से किया जाये , बुद्धि  की सार्थकता दुष्कर्म  से बचे रहने  में  है ,  और धर्म  की सार्थकता तब है जब  अहंकार न हो।

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Hindi Hindustaniब्राह्मण  संसार  सागर  में  नाव   तुल्य  है , इसकी  गति   विपरीत  है।  इसके  नीचे   रहने   वाले  सब तर  जाते  है और  ऊपर  रहने  वाले  डूब  जाते है , अर्थात   जो  ब्राह्मण  के  प्रति  श्रद्धा  का भाव  रखते है  उनका  कल्याण  हो जाता है ,   और जो  ब्राह्मण  का अपमान  करते  है ,  अहंकार  रखते   उनका   उनका पतन हो जाता है।

 

 

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