अन्न ,जल और प्रिय वचन ये तीनो ही पृथ्वी के तीन रत्न है किन्तु मूर्ख पत्थर के टुकड़े को भी रत्न समझते है।
दरिद्रता , रोग , दुःख , बंधन और विपति ये मनुष्य के कर्मों का ही फल है।
मानव देह दुर्लभ है। धन ,मित्र , स्त्री , धरा ये सब पुनः प्राप्त हो सकते है किन्तु मानव देह पुनः प्राप्त नही होगी।
यदि पृथक – पृथक मिलकर एक हो जाए तो वह शक्ति रूप धारण कर लेता है। मामूली दिखने वाले तिनके – तिनके मिलकर वर्षा जल रोकने का सामर्थ्य पा लेते है, तो बहुत सारे लोग मिलकर शत्रु पर विजय पा ले तो इसमें आश्चर्य क्या ?
तेल जल में गिरकर फ़ैल जाता है ,गोपनीय वार्ता दुर्जन के कानो मे पड़कर फ़ैल जाती है , दान उदारहस्त के हाथों मे पड़कर फैल जाता है और शास्त्रो का ज्ञान बुद्धिमान के पास आकर गुणात्मक होकर फैल जाता है। अर्थात किसी के स्वभाव को नियंत्रित नही किया जा सकता।
निदित कृत्य करने के पश्चात् मनुष्य जिस तरह पछ्ताता है , यदि मनुष्य निंदित कृत्य करने से पूर्व विचार कर ले ,तो पाप कर्म हो ही क्यों ?
दान , तप ,शौर्य ,विद्वता ,सुशीलता और नीति में मुझसे अन्य कोई श्रेष्ठ नही यह कभी नहीं समझना चाहिए क्योकि पृथ्वी पर एक से बढ़कर एक श्रेष्ठतर से श्रेष्ठतम और भी है।
जिससे अभीष्ट की कामना हो ,उससे उसी वाणी में बात करनी चाहिए जिसे सुनकर वह प्रसन्न हो जाये। जैसे मृग को रिझाने के लिए शिकारी मृग को प्रिय लगनेवाले स्वर में गान करता है। फिर आसानी से उसे अपना शिकार बना लेता है।
कोयल वसंत के आने तक मौन धारण किये रहती है और वसंत ऋतु आने पर ही कूकती है ,वैसे ही मनुष्य को भी जब तक आवश्यक ना हो चुप ही रहना चाहिए और उपयुक्त अवसर की प्रतीक्षा करनी चाहिए। उपयुक्त अवसर पर बोलना ही बुद्धिमता है।
कुछ व्यक्ति और वस्तुओं की अत्यधिक निकटता या अत्यधिक दूरी दोनों ही हानिकारक होती है। अत्यधिक शक्ति सम्पन्न , स्त्री और अग्नि इसी प्रवृति के है। इनके साथ मध्यम मार्ग अपनाने में ही समझदारी है।
अग्नि ,जल ,स्त्री ,मूर्ख ,सांप और शक्ति संपन्न इन छह से सदैव सावधान रहना चाहिए क्योकि ये कभी भी प्राणघातक हो सकते है।
जीवन उसी का सार्थक है जो सात्विक और धर्मानुकूल आचरण का निर्वाह करता है। गुण -धर्म से रहित जीवन पशु तुल्य ही है। जन्मना ,विकसित होना ,अपने समान सन्तति उत्पन्न करना और अंत में मर जाना यह तो पशु प्रवृति है।
कुसंगति का त्यागकर सत्संगति करे ,धर्मानुकूल आचरण कर करें। भौतिक सम्पदा को नाशवान जानकार प्रभु स्मरण करना -यही सार्थक जीवन का लक्षण है।
बुद्धिमान का लक्षण है कि वह स्तिथि की अनुकूलता और अपनी स्थापित छवि के अनुकूल वाणी का प्रयोग करता है तथा अपने सामर्थ्य के अनुसार क्रोध प्रकट करता है ,क्योकि वह जनता है कि अपने से अधिक शक्तिशाली के समक्ष अभद्र वचन प्रयोग और क्रोध प्रकट करने पर लज्जित होना पड़ सकता है।
दृष्टि भेद के कारण एक अचेत स्त्री के तीन प्रकार हो सकते है। योगी के लिए वह शव रूप है ,कामासक्त के लिए उपभोग की वस्तु है और कुत्ते के लिए भोजन अर्ताथ भावना के अनुकूल दृष्टि भी बदल जाती है।
गृह कलह ,स्त्री प्रसंग और निंदित वचन ये ऐसी बातें है जो किसी अन्य के सामने प्रकट नहीं करनी चाहिए।
भविष्य में कठिनाई का सामना ना करना पड़े इसके लिए मनुष्य को पर्याप्त धन और अन्न का संचय कर लेना चाहिए।धर्मानुकूल आचरण करते हुए ज्ञानियों के बताये मार्ग का अनुसरण करते रहना चाहिए।
एक ही कर्म से सारे संसार को वश में करना चाहते हो तो पहले मन को वश में कर लो।
No Comments