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तुलसीदास के पद
3 तुलसीदास के पद
प्रश्न.तुलसीदास के शिक्षा गुरु श्री नरहरिानंदजी थे
प्रश्न .काशी में 15 वर्षों तक रहकर तुलसीदास विद्याध्ययन किया
प्रश्न .तुलसीदास राममार्गी शाखा के कवि हैं
प्रश्न .दूसरे पद में तुलसी ने अपना परिचय भिखारी के रूप में दिया है
प्रश्न .तुलसी को भक्ति की भूख है
प्रश्न .‘कबहुँक अंब अवसर पाई’ यह ‘अंब’ संबोधन सीता के लिए है
प्रश्न .तुलसीदास के पद अवधी भाषा में है
उत्तर- तुलसी के पदों में भक्ति रस की व्यंजना हुई है।
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न. उत्तर
प्रश्न .“कबहुँक अंब अवसर पाई।” यहाँ ‘अम्ब” संबोधन किसके लिए है इस संबोधन का मर्म स्पष्ट करें।
उत्तर-.“कबहुँक अंब अवसर पाई।” इस पंक्ति में ‘अंब’ का संबोधन माता सीता के लिए प्रयुक्त हुआ है। तुलसी ने माता सीताजी प्रति आदर भाव प्रकट करने के लिए साथ-साथ इस भाव को प्रकट किया है कि जिस प्रकार पुत्र द्वारा माता से कुछ माँगने पर माता प्रदान करने में असमर्थ होने पर पिता से पुत्र की कामना पूर्ण करने का आग्रह कराती है .
प्रश्न .प्रथम पद में तुलसीदास ने अपना परिचय किस प्रकार दिया है लिखिए।
उत्तर-प्रथम पद में तुलसी ने स्वयं को दीन-हीन रूप में प्रकट किया है। तुलसी याचना भावसे कहते है कि वह दीन है , पापी है , दुर्बल है , मलिन है और असहाय हैं। अनेक प्रकार के अवगुणों से युक्त हैं। वह वैसे ही ‘असहाय’ है जैसे कोई ‘अंगहीन’ असहाय होता है .
प्रश्न नाम लै भरै उदर एक प्रभु दासी दास कहाई। इस पंक्ति में निहित तुलसी का आशय स्पष्ट कीजिये
उत्तर- उक्त पंक्ति से तुलसी का आशय है कि प्रभु की दासी अर्थात सीता माता का दास अर्थात तुलसी भगवान राम का लेकर , उनकी कथा कथा सुनकर जीवन यापन करता हैं.
प्रश्न – नीच जन, मन ऊँच, जैसी कोढ़ में की खाजु॥
उक्त पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिये
उत्तर- उक्त पंक्ति से आशय है कि तुलसी सर्व अवगुण से भरा हुआ अधम प्राणी है ,फिर भी बड़े सुख की कमाना रखता है जो कोढ़ में खाज के समान है अर्थात् एक अधमी को उसकी कामना और अधिक दुखी बना देती है ,वैसी ही स्थिति उनकी भी है .
प्रश्न पेट भरि तुलसि हि जेंवाइय भगति सुधा सुनाजु। इस पंक्ति में तुलसी ने क्या कामना व्यक्त की है ?
उत्तर- तुलसी प्रभु श्री राम से कामना करते है उन्हें भक्ति की भूख है ,प्रभु श्री राम भक्ति के भूखे को भक्ति सुधा से आत्मा को तृप्त करने वाला भक्ति का भोजन कराने की अनुकम्पा करें ।
प्रश्न .तुलसी सीता से कैसी सहायता मांगते हैं
उत्तर-तुलसीदास माँ सीता से प्रार्थना करते है कि माता सीता अपने स्वामी अर्थात भगवान श्री राम से अपने याचक पुत्र के उद्धार की अनुशंसा करें .यदि तुलसी पर प्रभु श्री राम की अनुकम्पा हो जाएँगी तो उनका जीवन इस भवसागर से पार हो जायेंगा .
प्रश्न .तुलसी सीधे राम से न कहकर सीता से क्यों कहलवाना चाहते हैं ?
उत्तर-लोक व्यवहार में देखा जाता है कि जो व्यक्ति जिससे सबसे अधिक प्रेम करता है या जो सबसे निकट हो ,यदि वह उससे कुछ माँगा जाए तो वह अपने प्रिय का अभीष्ट यथा संभव पूर्ण करते है ,यह मनोवैज्ञानिक सत्य भी है .तुलसी इस मनोवैज्ञानिक तथ्य के आधार पर स्वयं को माता सीता के दास के रूप में प्रस्तुत करते है .माता सीता जो भगवान श्री राम के सबसे निकट भी है और प्रिय भी .जब माता सीता भगवान श्री राम से तुलसी के उद्धार की बात कहेंगी ,तो अपनी प्रिय का मान रखने के लिए सीताजी की अनुशंसा को स्वीकार कर लेंगे .
प्रश्न .राम के सुनते ही तुलसी की बिगड़ी बात बन जाएगी, तुलसी के इस भरोसे का क्या कारण है
उत्तर-तुलसी जानते है कि भगवान श्री राम दयालु भी है कृपालु भी .किन्तु अपरिचित होने के कारण प्रत्यक्ष रूप से याचना करेंगे तो संभवतः उनकी प्रार्थना स्वीकार न हो .तुलसी जानते है कि जो व्यक्ति जिससे सबसे अधिक प्रेम करता है या जो उसके सबसे अधिक निकट हो ,यदि वह उससे कुछ मांगे तो वह अपने प्रिय का अभीष्ट यथा संभव पूर्ण करते है .इसीलिए उन्होंने सीताजी को माध्यम बनाया . माता सीता जो भगवान श्री राम के सबसे निकट भी है और प्रिय भी .जब माता सीता भगवान श्री राम से तुलसी के उद्धार की बात कहेंगी ,तो अपनी प्रिय का मान रखने के लिए सीताजी की अनुशंसा को स्वीकार कर लेंगे .
प्रश्न . तुलसी ने अपना परिचय किस तरह दिया है, लिखिए।
उत्तर- तुलसी ने अपना परिचय बड़ी बड़ी कामना रखने वाले अधम प्राणी के रूप में दिया । वह सांसारिक जीवन से वैसे ही परेशान है जैसे कोई व्यक्ति कोढ़ी हो ,ऊपर से उसमे खुजली हो जाए .तुलसी ने स्वयं को प्रभु श्री राम की भक्ति का भूखा और वह प्रभु श्री राम की भक्ति रुपी भोजन पाने का आकांक्षी बतलाया है .
प्रश्न .तुलसी के हृदय में किसका डर है
उत्तर- संकट के समय सभी ने साथ छोड़ दिया .एक श्री राम ही उद्धार कर सकते है .तुलसी के हृदय में इस बात का डर है कि भगवान श्री राम दयालु भी है और कृपालु भी ,किन्तु अपरिचित होने के कारण प्रत्यक्ष रूप से याचना करने पर श्री राम प्रार्थना स्वीकार करेंगे या नहीं
प्रश्न .राम स्वभाव से कैसे हैं पंठित पदों के आधार पर बताइए।
उत्तर- श्रीराम को कवि ने कृपालु कहा है। राम स्वभाव से उदार और भक्तवत्सल है। प्रभु श्री राम बिगड़ा काम बनाने वाले हैं। राम, गरीब नियाजू हैं। रामलौकिक रूप में कोसलराजा दशरथ के पुत्र है किन्तु परब्रह्म की भांति भक्तवत्सलहै , शरणागत वत्सल, दयालु और कृपालु है।
प्रश्न . तुलसी के पदों आधार पर तुलसी की भक्ति भावना का परिचय दीजिए।
उत्तर- तुलसी इस सत्य से परिचित थे कि ईश्वर ही दाता है और मनुष्य जो कुछ पाता है ,उन्ही से पाता है .तुलसी इस मनोविज्ञान से भी परिचित थे दीन –हीन याचक बनाकर ही पाया जा सकता है .यही कारण था कि तुलसी ने सांसारिक जीवन की दीनता तथा दरिद्रता में मुक्ति पाने के लिए स्वयं को प्रभु श्रीराम से याचक के रूप में प्रार्थना प्रस्तुत करते हैं। तुलसी स्वयं को प्रभु का दास मानते हैं। । तुलसी प्रभु श्री राम को अनाथों के नाथ मानते हुए प्रार्थना करते है कि उनका श्रीराम के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं . श्रीराम ही हैं ,जो मेरी बिगड़ी बात बनाएँगे।
भवसागर पार करनेवाले श्रीराम का गुणगान करता रहूँ,ऐसा कहना तुलसी की प्रभु राम के प्रति विश्वास को प्रकट करता है ,वहीँ प्रभु से यह विनती करना कि हे प्रभु आपके अतिरिक्त मेरा कौन है जो मेरी सुध लेगा। मैं जनम जनम से आपकी भक्ति का भूखा हूँ। आपकी भक्ति ही मेरा भोजन है . अर्थात भक्ति मेरे जीवन का ध्येय है .
प्रश्न 13.‘रटत रिरिहा आरि और न, कौर हीतें काजु।’यहाँ ‘और’ का क्या अर्थ है
उत्तर-उक्त पंक्ति में ‘और’ का अर्थ है कि मुझे आपकी भक्ति के अतिरिक्त मेरा कोई अन्य अभ्ष्ट नहीं है
प्रश्न 14.दूसरे पद में तुलसी ने ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ दोनों का प्रयोग क्यों किया है
उत्तर- परमात्मा पूर्ण है ,मनुष्य अपूर्ण है .मनुष्य की अपूर्णता की पूर्ति परमात्मा ही कर सकता है .परमात्मा कृपालु है ,दयालु है ,दीन –दरिद्र के प्रति करुणा रखते है ,परमात्मा की कृपा दीन ,दरिद्र याचक बनाकर ही पाई जा सकती है . दूसरे पद में तुलसी ने इसी भाव से ‘दीनता’ और ‘दरिद्रता’ का प्रयोग किया है.
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