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छप्पय,नाभादास
4 छप्पय
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न .कबीरदास निर्गुण शाखा शाखा के कवि हैं
प्रश्न .नाभादास जी विरक्त जीवन जीने वाले संत थे
प्रश्न .‘भक्तमाल’ ) भक्त चरित्रों की रचना है
प्रश्न .‘भक्तमाल’संत नाभादास की। रचना है
प्रश्न .नाभादास तुलसीदास के समकालीन थे
प्रश्न .नाभादास अग्रदास के शिष्य थे
प्रश्न .नाभादास के अनुसार सूरदास की कविता को सुनकर कवि सिर झुका लेते हैं
प्रश्न .नाभादास सगुणोपासक रामभक्त धारा। धारा के कवि थे
पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उत्तर
.प्रश्न . सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै, इस पंक्ति अर्थ स्पष्ट करें
उत्तर- सूर के काव्य का प्रभाव ऐसा था कि जो कोई भी सूर का कवित्त सुनता प्रशंसा से अपना सिर हिलाने लगता ।
प्रश्न. भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए।
उत्तर-उक्त पंक्ति से कबीर का आशय है कि भक्ति विमुख जितने भी धर्म हैं ,सब निरर्थक है .ह्रदय में प्रभु का शुद्ध भक्ति भाव होना धर्म है ,शेष सब क्रिया कलाप अधर्म है ।
प्रश्न .नाभादास ने छप्पय में कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ?
उत्तर- कबीर की मति जहाँ गंभीर वहीँ अन्तकरण भक्ति रस से आप्लावित था। कबीर जाति पाँति, वर्णाश्रम आदि विश्वास नहीं करते थे। कबीर ने चार वर्ण, चार आश्रम, छ दर्शन किसी की आनि कानि नहीं रखी। केवल भक्ति को ही महत्व दिया । वहीं ‘भक्ति विमुख’ धर्म को ‘अधर्म’ मानते थे । कबीर हृदय में भक्ति भाव के बिना तप, योग, यज्ञ, दान, व्रत आदि को निरर्थक बताया। कबीर जाति-पाँति के भेदभाव से परे थे , केवल शुद्ध अन्तकरण से की गई भक्ति को मान्यता देते थे ।
प्रश्न .‘मुख देखी नाहीं भनी’ का क्या अर्थ है कबीर पर यह कैसे लागू होता है
उत्तर-कबीरदास सिद्धान्तवादी थे । मुख को देखकर ठकुर सुहाती बात करने के विरोधी थे । उनकी बात किसे भली लगेगी और किसे बुरी ,कौन प्रसन्न होगा और कौन क्रुद्ध होगा इस बात की उन्होंने कभी चिंता नहीं की .जातिगत भेदभाव किये बिना सबके हित की बात करते .कबीर तटस्थ रहकर अपनी बात कहते थे ।
प्रश्न.सूर के काव्य की किन विशेषताओं का उल्लेख कवि ने किया है
उत्तर-संत नाभादास के अनुसार सूर के अमृत वचन सुनकर श्रोता मुक्त कंठ से सिर हिलाते प्रशंसा करते थे ।सूर का काव्य में नवीन युक्तियाँ, चमत्कार, चातुर्य, अनुप्रास और वर्णों के यथार्थ का समावेश है ,सूर के काव्य का प्रवाह निर्झर की भांति प्रवाहयुक्त है .श्रोता प्रारंभ से अन्त तक मंत्र मुग्ध रहता है ।तुकों का अद्भुत अर्थ दर्शनीय है।सूर ने भगवान श्री कृष्ण के जन्म, कर्म, गुण, रूप को अंतर दृष्टि से देखा और काव्य रूप मे निसृत कर अपनी मुख वाणी से श्रोताओं के कर्ण में रस घोला और पाठकों के ह्रदय में रसानुभूति उत्पन्न की ।
प्रश्न .‘पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी।’, इस पंक्ति में कबीर के किस गुण का परिचय दिया गया है
उत्तर-पक्षपात नहीं वचन सबहि के हित की भाषी’ इस पंक्ति से कबीर के इस गुण का परिचय प्रमाणित होता है कि कबीर हिन्दू, मुसलमान, आर्य, अनार्य में भेद दृष्टि नहीं रखते थे ,भेदभाव से ऊपर उठकर सबके हित की बात करते थे । किसी धर्म विशेष के पक्षधर न होकर तटस्थ रहते थे ।
प्रश्न .‘कबीर कानि राखी नहीं’ से क्या तात्पर्य है
उत्तर-कबीर कर्मकांड और पाखंड के प्रबल विरोधी थे . कर्मकांड और पाखंड चाहे हिन्दू करें अथवा मुसलमान ,सबका विरोध करते .कबीर मूलतः समाज सुधारक कवि थे। अपने काव्य के माध्यम से पाखंड का विरोध किया।भारतीय संस्कृति में वर्णाश्रम व्यवस्था भारतीय षडदर्शन से प्रभावित है । हिन्दू परंपरा में इन छः दर्शन पर आधारित है ,इसमे कुछ दोष पूर्ण व्यवस्था है , कबीर ने षड्दर्शन के इन दोषों की आलोचना की और षडदर्शन द्वारा स्थापित और प्रचलित मान्यता का प्रबल विरोध किया।
प्रश्न .कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया ?
उत्तर-हिन्दू धर्म ग्रंथों में वर्णित सामाजिक व्यवस्था ,परंपरा और मान्यताओं को युगों युगों से धर्म की स्वीकृति प्राप्त थी . पूर्वाग्रह से ग्रसित जन मानस सनातन काल से चली आ रही लकीर पर चल रहा था . धर्म के नाम पर पाखंड व्याभिचार, मूर्तिपूजा और जाति-पाति और छुआछूत जैसी बुराइयाँ निर्विरोध ,निर्विवाद चल रही थी .कबीर ने साखी, सबद और रमैनी में धर्म को परिष्कृतरूप में प्रस्तुत किया ।कबीर ने धर्म के नाम पर योग, यज्ञ, व्रत, दान के पाखंड की आलोचना की .जन सामान्य के लिए भक्ति का मार्ग प्रशस्त किया . ईश्वर के निर्गुण स्वरूप की स्थापना की और शुद्ध भक्ति व सत्य स्वरूप का बोध कराया .
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