भीमराव अम्बेडकर जयंती
१४ अप्रैल,१८९१ -६ दिसम्बर ,१९५६
bhimrao ambedakar-jayanti
आज़ादी के बाद जातीय व्यवस्था –
आरक्षण -जो देश का सबसे ज्यादा संवेदनशील मुद्दों में से एक है। इस मुद्दे को कभी किसी राजनितिक दल ने बहस का विषय नहीं बनाया है।कारण राजनितिक दलों के अपने -अपने व्यक्तिगत स्वार्थ। इस विषय को मुद्दा बनाने का मतलब है -आरक्षित वर्ग को नाराज़ करना और आरक्षित वर्ग के नाराज़ होने का मतलब है -एक बहुत बड़ा वोट बैंक खोना। सोये हुए साँप को छेड़ना। आज आरक्षित वर्ग उतना ही ताक़तवर और अधिकार प्राप्त है ,उतना ही समर्थ और सक्षम है ,जितना कभी स्वर्ण कहलानेवाला वर्ग हुआ करता था ।
आज यदि सरकारी भाषा में बात करें तो भारतीय समाज के दो वर्ग है। एक जिसे आरक्षित वर्ग कहा जाता है और दूसरा जिसे अनारक्षित वर्ग कहा जाता है। सरकारी व्यवस्था के अनुसार आरक्षित वर्ग को अनारक्षित वर्ग की तुलना में कम अंकों के होते हुए भी सरकारी पदों पर चयनित कर लिया जाता है और अनारक्षित वर्ग योग्य होते हुए भी अयोग्य मान लिया जाता है। इस सरकारी व्यवस्था को लेकर अनारक्षित वर्ग में गुस्सा है.. आक्रोश है। इस व्यवस्था के विरोध में यदा-कदा विरोध का स्वर भी उठता रहता है।
अब प्रश्न उठता है कि इस व्यवस्था के लिए दोषी कौन है ?
सरकार या सामान्य वर्ग के पूर्वज ?इस प्रश्न का हल खोजने के लिए अतीत की ओर लौटना पड़ेगा
(यह बात अलग है कि सामान्य वर्ग की वर्तमान निर्दोष युवा पीढ़ी उस पाप की सजा भुगत रही है जो पाप उसने किया ही नहीं। पाप के वे बीज सामान्य वर्ग के पूर्वजों ने बोये थे ,जिसकी फसल सामान्य वर्ग की वर्तमान निर्दोष युवा पीढ़ी को काटनी पड़ रही है। इस विषय पर अगले लेख में …. क्योकि ,विषयांतर हो जायेगा और प्रस्तुत लेख का प्रसंग गौण हो जायेगा। )
आज़ादी से पूर्व जातीय व्यवस्था –
भारतीय समाज में जिस वर्ग को आरक्षित वर्ग कहा जाता है ,यही वर्ग आज़ादी से पहले समाज का सबसे दलित ,पीड़ित और शोषित वर्ग कहलाता था। जिसका स्पर्श भी पाप कहलाता था ,अछूत समझा जाता था ,यह वर्ग न मंदिर की सीढ़ियाँ चढ़कर भगवान के दर्शन कर सकता था और सार्वजनिक कुऍ -तालाब से पानी भर सकता था,न नगर में घर बनाकर रह सकता था। इस वर्ग के बच्चों को सामान्य वर्ग के बच्चों के साथ बैठकर पढने की अनुमति नहीं थी। महाराष्ट्र में तो स्थिति यह थी कि शूद्र ज़मीन पर भी नहीं थूक सकता था ,उसे गले में हंडिया लटका कर चलना पड़ता था। इनके चलने से धरती अपवित्र हो जाती है ,इसलिए इन्हे अपने पीछे झाड़ू बांधकर चलना पड़ता था।
किस अपराध का दंड था यह ?
क्या शूद्र होना अपराध था?
क्या शूद्र जानबूझकर शूद्र कुल में पैदा हुए ?
किस कुल में जन्म लेना है और किस कुल में नहीं ,क्या यह मनुष्य के वश में है ?
इस प्रश्न का भी चतुर ब्राह्मण ने हल निकाल लिया और धर्म की आड़ लेकर घोषित कर दिया कि पिछले जन्म के पाप कर्म के कारण भगवान ने इन्हे शूद्र बनाया है ? ईश्वर जो सबका पिता है ,क्या अपनी संतान के साथ भेदभाव कर सकता है ? एक सामान्य मनुष्य जिसकी कई सारी सन्तानों में यदि कोई एक शारीरिक या मानसिक विकलांगता से ग्रसित होने पर भी अपनी संतान के साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार नहीं करता ,तो वह परम दयालु ,दयासागर, दरिद्र नारायण और दींन बंधु परम पिता परमेश्वर इतना क्रूर और निर्दय कैसे हो सकता है ?
यह अपने वर्चस्व को बनाये रखने के लिए ब्राह्मणो की सोची समझी साजिश थी…. षडयंत्र था। अपना वर्चस्व बनाये रखने के लिए ही ब्राह्मणों ने वेदों की मनमाने ढंग से व्याख्या की … अर्थ निकाले। इन्ही ब्राह्मणों ने चालाकी से राम के हाथों शूद्र शम्भुक ऋषि का वध करवाया …. द्रोणाचार्य ने अर्जुन के समतुल्य भील धनुर्धारी एकलव्य से बिना शिक्षा दिए ही गुरु दक्षिणा में अँगूठा माँग लिया। मनु ऋषि से मनु स्मृति में लिखवाया गया कि शूद्र क्या -क्या नहीं कर सकते। मनु स्मृति में लिखा गया कि यदि शूद्र के कान में वेद मन्त्र पड़ जाए तो उसके कानों में पिघला हुआ शीशा डाल दिया जाये। तो क्या शिक्षा अथवा ज्ञान प्राप्त करना अपराध है ? तो क्या शिक्षा किसी की पैतृक सम्पति है ?
वैदिक काल में सामाजिक चार भागो में विभाजित थी ,जिसे वर्ण व्यवस्था कहा जाता था -जो जाति के आधार पर नहीं बल्कि कर्म पर आधारित थी। ब्राह्मण कौन ?वे जो ज्ञान प्राप्त कर प्राप्त ज्ञान को औरों में बांटे ,क्षत्रिय कौन ? जो भुज बल से संपन्न हो ,सत्ता सञ्चालन करें ,राष्ट्र रक्षा करें। वैश्य कौन ?वह जो व्यापारिक उद्यम करें। शूद्र कौन ? बुद्धि ,बल और धन से हीन होने पर सेवा कार्य कर अपनी आजीविका चलता हो। जिसे कालांतर में ब्राह्मणों ने जातिगत बना दिया।ब्राह्मण का पुत्र ही धार्मिक कर्म कांड करेगा ,अन्य कोई नहीं।राज पुत्र ही राज्य सञ्चालन करेगा अन्य कोई नहीं। वैश्य ही व्यापारिक उद्यम करेगा ,अन्य कई नहीं और शूद्र तीनो वर्णो की (योग्यता रखते हुए भी)सेवा ही करेगा।
क्यों ?
विचार करें –
आज जितने भी शिक्षक शिक्षा दे रहे है ,क्या वे सभी ब्राह्मण कुल के है ?
आज के नेता अथवा सेना के सभी सैनिक क्षत्रिय कुल है ?
आज के सारे व्यवसायी ,वैश्य कुल के है ?
दूसरे देशो में जो लोग सफाई करने या जूते बनाने या मरम्मत का कार्य करते है ,क्या उन सब को भी वहाँ शूद्र माना जाता है ? नहीं ,यह सब योग्यतानुसार कार्य है और कार्य को जाति नहीं कहा जा सकता। मनुष्य कर्म से ऊँचा या नीचा होता है ,इस सर्व विदित सत्य को समवेत स्वर में पूरी दुनिया ने स्वीकारा है।
जो जातीय व्यवस्था आज़ादी पूर्व भारत में थी ,वैसी जातीय व्यवस्था पूरी दुनिया में कहीं न थी। यह सिर्फ और सिर्फ ब्राह्मणों का बौद्धिक षड्यंत्र था ,जिसे पेट की लाचारी और ईश्वरीय भय के कारण सीधे-सरल ,अशिक्षित निर्धन और पराश्रित वर्ग ने स्वीकार कर लिया था कि पिछले जन्म के पाप कर्मों के कारण ही वे शूद्र कुल में पैदा हुए है। अपमान ,अन्याय ,शोषण ,अत्याचार और असमानता को उसने अपनी नियति मान लिया। मूक भाव से अपमान ,अन्याय ,शोषण ,अत्याचार और असमानता को बिना विरोध किये सहता चला गया। इस दलित वर्ग ने मान -सम्मान ,स्वाभिमान ,न्याय ,समानता और अपने मनुष्य होने के अर्थ को पेट की लाचारी और ईश्वरीय भय के कारण उच्च वर्ग के हाथों गिरवी रख दिया।
सामाजिक न्याय – समानता और भीमराव अम्बेडकर महात्मा बुद्ध के बाद भीमराव अम्बेडकर ही दलितों के मसीहा बनकर आये। आज़ादी के बाद सामाजिक ढ़ाँचे में जो परिवर्तन आया है ,इसका सारा श्रेय दलित उद्धारक ,युग प्रवर्तक और आधुनिक युग के मनु और समाज सुधारक माने जानेवाले भीम राव अम्बेडकर को जाता है ,अन्यथा दलित वर्ग की स्थिति शायद आज भी वैसी ही होती जैसी आज़ादी से पहले थी।
भीमराव अम्बेडकर स्वयं दलित मानी जानी वाली महार जाति में पैदा हुए थे,जो अछूत कहे जाते थे । उस समय की ब्राह्मणवाद की भेदभाव व्यवस्था से स्वयं उन्हें कई बार अपमान का सामना करना पड़ा था।उच्च वर्ग की इस असमान ,अन्याय ,और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के कारण उनके मन में हिन्दू धर्म के प्रति विद्रोह ही नहीं बल्कि घृणा भी थी। हिन्दू कुल में पैदा होने को वे अभिशाप मानते थे। वे हिन्दू धर्म की असमान ,अन्याय ,और भेदभावपूर्ण व्यवस्था से इतने क्षुब्ध थे कि अक्सर सभाओं में अपने संघटन के लोगों को हिन्दू धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपनाने के लिए उत्प्रेरित किया करते थे। १९५६ में नागपुर में हुए सम्मलेन में उन्होंने हिन्दू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म अपना लिया । यह अकारण घटना नहीं थी।
अम्बेडकरजी ने प्रमाणित कर दिया कि योग्यता ,दक्षता ,ज्ञान ,कौशल ,प्रतिभा किसी जाति विशेष में बंधी हुई नहीं होती। उन्होंने दलित जाति में जन्म लेकर भी विदेश जाकर उच्च शिक्षा लेनाप्राप्त की ,अर्थ शास्त्र ,राजनीति विज्ञानं और विधि विषयों पर शोध कर सम्मान पाया। अर्थ शास्त्र के प्रोफ़ेसर बने ,वकालत की, बी ए ,एम ए ,पी एच डी ,एम एस सी ,डी एस सी ,एल एल डी ,डी लिट ,बार एट लॉ जैसी ३२ डिग्रियाँ हासिल की और इन सब से बढ़कर जो अतुलनीय ,अविस्मरणीय और चुनौतीपूर्ण कार्य किया ,वह था भारतीय संविधान का निर्माण। ये सारी उपलब्धियाँ इस बात की गवाही देती है कि मनुष्य जाति से नहीं ,कर्म से महान बनता है।
भीमराव अम्बेडकर का जीवन एक नायक की तरह था जिसने सामाजिक असमानता के विरूद्ध विजेता की तरह संघर्ष करते हुए वंचित दलितों को उनका मानवीय अधिकार दिलाया। उनके जीवन का अधिकांश समय प्रतिकूल स्थितियों से संघर्ष करते हुए व्यतीत हुआ। एक अछूत के घर में जन्म लेना ,जिसके स्पर्श को पाप समझा जाना ,जाति के कारण कई जगहों पर अपमानित होना -कभी होटल से निकले गए तो कभी मंदिर में प्रवेश से रोका गया तो कभी हेयर सैलून द्वारा निकला ,कभी दफतरों में अपमानित हुए ,ये ऐसी घटनायें थी जिन्होंने अम्बेडकरजी को विद्रोही बना दिया। उन्होंने भीषण प्रतिज्ञा की –यदि मै उस वर्ग की घृणित दासता तथा अमानुषिक अन्याय को ,जिससे वह पीड़ित रहा है और जिसमे मै पैदा हुआ हूँ ,मिटाने में असफल रहा तो गोली मारकर मै अपने जीवन का अंत कर लूँगा।
अम्बेडकर जी अपनी प्रतिज्ञा को अक्षरश:पूरा किया और विजयी नायक का सम्मान पाया। राष्ट्रीय -अन्तरराष्ट्रीय पर ख्याति प्राप्त की। बिना राजनितिक सहयोग और प्रेस के समर्थन के अपनी आवाज़ से सोते हुए को जगाया ,गोल मेज सम्मेलनों में दलितों के हित के लिए पैरवी की ,वाइसराय की कार्यकारिणी में श्रम सदस्य बने ,स्वतन्त्र भारत का कानून मंत्री कर देश का संविधान निर्माता कहलाये ,जो साबित करता है कि प्रतिभा का फूल केवल बगीचे में ही नहीं , खंडहरों की शुष्क दीवारों में भी खिल सकते है।
अम्बेडकरजी ने अपने समाज के लोगो को दासता ,छूआछूत और शोषण से मुक्त कराया। अपने अपने समाज पर लगे सदियों के कलंक को मिटाया।
शिक्षाविद ,अर्थशास्त्री ,प्रोफ़ेसर ,वकील ,कानूनवेत्ता,राजनीतिज्ञ ,दार्शनिक समाज सुधारक -उद्धारक और लेखक जैसी विधाओं को अपने में समेटे हुए ऐसे बहुमुखी प्रतिभा के धनी सदियों में जन्म लेते है। उनमे राजनेताओं सा- बुद्धि चातुर्य ,नायक की -सी वीरता ,चिन्तक की -सी गंभीरता और साधुओं की – सी साधुता के गुणों का अम्बार था।
अम्बेडकरजी का व्यक्तित्व और कृतित्व एक प्रेरणा है .. एक उदहारण है ,प्रमाण है इस बात का कि कोई भी मामूली समझा जानेवाला आदमी अपने व्यक्तित्व को दृढ इच्छा शक्ति ,उत्साह ,लगन और आत्म विश्वास के सहारे उन बुलंदियों तक पहुंचा सकता है ,जिसे देखने के लिए लोगों को अपनी गर्दन ऊपर उठानी पड़ती है।
जीवन के अंत में बौद्ध धर्म स्वीकार कर बोधिसत्व के पद तक पहुंचकर उन्होंने संकेत दे दिया कि संसार दुःख से पीड़ित है और संसार को दुःख से मुक्त करना ही जीवन का लक्ष्य है। वे एक ऐसा समाज बनाना कहते थे जहाँ मानवीय सम्बन्ध भातृता लिए हुए हो पारस्परिक प्रेम हो ,समानता हो ,स्वतन्त्रता हो।
No Comments