bhai dooj -yam dwitiya kyon manate hai
भाई दूज एवं यम द्वितीया क्यों मनाते है ?
.मान्यता के अनुसार सूर्यदेव की अपनी पत्नी संज्ञा से दो संताने उत्पन्न हुई –एक पुत्र और दूसरी पुत्री .पुत्र का नाम यम और पुत्री का नाम यमी अर्ताथ यमुना .विवाहोपरांत एक बार बहिन के अत्यधिक स्नेहपूर्ण आग्रह पर यम अपनी बहिन यमी के घर आये .बहिन यमी ने न सिर्फ आत्मिक स्वागत –सत्कार किया अपितु स्वयं अपने हाथों से बनाया हुआ स्वादु भोज भी कराया .भोजनोपरांत बहिन ने भाई यम के माथे पर तिलक किया .भाई यम ने अपनी बहिन के आदर -सत्कार से प्रसन्न होकर वर माँगने का आग्रह किया .तब बहिन यमी ने अपने भाई यम से कहा कि जो बहिन आज की तिथि को अपने भाई को भोजन करा कर तिलक करे ,उस बहिन की रक्षा हो,उसे भय न हो .भाई यम ने अपनी बहिन यमी को तथास्तु कहकर वचनबध्दता के प्रति आश्वस्त किया .तब से भाई दूज त्यौहार मनाने का प्रारम्भ माना जाता है .वही परम्परा आज भी चली आ रही है .इस दिन भाई अपनी बहिन के घर भोजन करते है तथा बहिन भाई के माथे पर तिलक करती है तथा भाई की चिरायु होने की प्रार्थना कराती है .मान्यता के अनुसार इस दिन भाई को अपने घर भोजन न कर अपनी बहिन के यहाँ ही भोजन करना चाहिए .सहोदरा न होने की स्तिथि में चचेरी बहिन अथवा धर्म बहिन के यहाँ जाकर भी इस परंपरा का निर्वाह किया जा सकता है .
पौराणिक मान्यता जो भी रही हो ,लेकिन इतना तो सच है कि इन त्योहारों के माध्यम से हमारे
ऋषियों – मुनियों ने जो मान्यता प्रचलित की,उन
सब के पीछे कोई न कोई मनोवैज्ञानिक कारण अवश्य जुड़ा हुआ है विवाहोपरांत भाई –बहिन के सम्बन्धो में भौगोलिक दूरियां आ जाती है ,अपने –अपने घर गृहस्थी के उत्तर दायित्वों में व्यस्त हो जाते है ,भाई/भाइयों को यह याद रहे मेरी अपनी भी बहिन /बहिने है ,जिसके प्रति उसका दायित्व है ,इसी भांति बहिन को भी अपने पारिवारिक दायित्वों के बीच भाई का स्मरण रहे .शायद रक्षा –बंधन और भाई दूज जैसे त्योहारों को प्रचलन में लाने का हमारे ऋषियों –मुनियों का मनोवैज्ञानिक यही उद्देश्य रहा हो . इन त्योहारों के बहाने भाई-बहिन के रिश्ते अटूट बने रहे .यह मनोवैज्ञानिक सच भी है कि मनुष्य जिससे लम्बे समय तक दूर रहता है ,वे समय के साथ –साथ विस्मृत होती चली जाती है ,आत्मिक लगाव कम हो जाता है .इस तरह के त्योहारों के बहाने दूर रह रहे भाई-बहिन को परस्पर मिलने का अवसर प्राप्त तो होता ही है ,साथ आत्मीयता भी बनी रहती है .बच्चों में रिश्तों के प्रति समझ बढ़ती है ,बच्चे भी समझने लगते है कि यह मेरे मामा है और यह मेरी बुआ है . रक्षा बंधन के दिन बहिन भाई के घर आती है तो भाई दूज के दिन भाई बहिन के घर आता है .कल्पना करके देख लीजिये ,यदि इस तरह के भाई –बहिन के त्यौहार न होते तो भाई –बहिन क्या साल में दो बार मिल सकते थे ? काम की अधिकता या अत्यधिक व्यस्तता के कारण मनुष्य अपनी पत्नी ,बच्चों और माता-पिता के लिए समय नहीं निकल पता तो दूर रह रही बहिन के लिए कैसे समय निकल पाता ?
कोई अपने को चाहे जितना बुध्दिवादी -आधुनिकवादी समझे किन्तु वह बुध्दि के शिखर से उतर कर भावना के धरातल पर उतर कर देखे तो वह भी अनुभव करेगा ,स्वीकार करेगा कि भारतीय त्योहारों को मानाने की भी अपनी महत्ता है ,सार्थकता है । बहाना ही सही ,लेकिन बहाना अच्छा है।
कोई अपने को चाहे जितना बुध्दिवादी -आधुनिकवादी समझे
किन्तु वह बुध्दि के शिखर से उतर कर भावना के धरातल पर उतर कर देखे तो वह
भी अनुभव करेगा ,स्वीकार करेगा कि भारतीय त्योहारों को मानाने की भी अपनी
महत्ता है ,सार्थकता है । बहाना ही सही ,लेकिन बहाना अच्छा है।
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