बापू के प्रति
1
तुम मांसहीन, तुम रक्तहीन
हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीन,
तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल ।
हे चिर पुराण! हे चिर नवीन!
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त गाँधी को नमन करते हुए कहते है कि ऐसा जान पड़ता है कि जैसे तुम्हारे शरीर में मांस और रक्त नहीं है। आप सिर्फ हड्डी का ढांचा मात्र हो । आपको देखकर ऐसा लगता है कि तुम्हारा शरीर हड्डियों से नहीं बना है। आप शुद्धता और उत्तम ज्ञान से परिपूर्ण हो । आप पुरानी सभ्यताओं के प्रवर्तक और नवीन सभ्यता के प्रतीक हो , आपके विचारों में पुरातन और नवीन दोनों आदर्शों का मूल्य समाहित है।
2
तुम पूर्ण इकाई जीवन की,
जिसमें असार भव-शून्य लीन,
आधार अमर, होगी जिस पर
भावी की संस्कृति समासीन।
भावार्थ- हे आदर्श पुरुष! तुममें जीवन की पूर्णता दिखाई देती है, जिसमें दुनिया की सब कुछ समा लेने की क्षमता है।भविष्य की संस्कृति को बनाए रखने में आपके ही जीवन के आदर्श महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे और आपके ही आदर्शों से देश की संस्कृति का आधार बनेगा।
3
तुम मांस, तुम्ही हो रक्त-अस्थि
निर्मित जिनसे नवयुग का तन,
तुम धन्य! तुम्हारा निरूस्व त्याग
हे विश्व भोग का वर साधन;
भावार्थ -सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि हे बापू! तुम नवयुग के आदर्श हो. जैसे शरीर को बनाने में मांस, रक्त और अस्थि की अहम् भूमिका होती है, वैसे ही तुम्हारे आदर्शों का महत्वपूर्ण योगदान नवयुग के निर्माण में है। आप धन्य हैं। आपका निःस्वार्थ भाव से किया गया अपना सर्वस्व त्यागकर दुनिया को कल्याण का मार्ग दिखाएगा।
4
इस भस्म-काम तन की रज से,
जग पूर्ण-काम नव जगजीवन,
बीनेगा सत्य-अहिंसा के
ताने-बानों से मानवपन!
भावार्थ- सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि यह संसार तुम्हारे बताए हुए आदर्शों का अनुगमन करते हुए अपनी सांसारिक वासनाओं –आसक्तियों को भस्म कर उसकी राख से सत्य और अहिंसा के सिद्धान्त को ग्रहण करेगा, जैसे प्रकार ताने और बाने से वस्त्र बुना जाता हैं, उसी प्रकार आपके सत्य और अहिंसा रूपी ताने-बाने से मानवता का नवसृजन होगा ।
5
सुख भोग खोजने आते सब,
आए तुम करने सत्य-खोज
जग की मिट्टी के पुतले जन,
तुम आत्मा के, मन के मनोज!
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि हे बापू! प्रायः सभी जीव पृथ्वी पर जन्म लेकर सुख की कामना करते हैं, लेकिन तुमने इस धरती पर सत्य की खोज करने के लिए अवतार लिया। मानव सिर्फ मिट्टी से बना एक पुतला है। वह मिट्टी से बनता है और मिट्टी में ही मिल जाता है। हे बापू, तुम भी मिट्टी से बने थे, लेकिन तुम्हारे मिट्टी से बने शरीर में सत्य आत्मा रहती थी, और तुम मन को प्रसन्न करने वाले कमल के समान थे।
6
जड़ता, हिंसा, स्पर्धा में भर
चेतना, अहिंसा, नम्र ओज,
पशुता का पंकज बना दिया
तुमने मानवता का सरोज!
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि आपने मनुष्य की अकर्मण्यता, हिंसा और प्रतिद्वन्द्विता नष्ट करके उसके उसमें ज्ञान, अहिंसा और आत्मशक्ति जैसे मानवीय सदगुणों को जाग्रत किया है । हे बापू! आपने कीचड़ में उत्पन्न हिंसा, भेदभाव, जाति-भेद के कमल को सत्य, अहिंसा, त्याग के निर्मल जल में उत्पन्न कमल के समान बना दिया।
7
पशु-बल की कारा से जग को
दिखलाई आत्मा की विमुक्ति,
विद्वेष घृणा से लड़ने को
सिखलाई दुर्जय प्रेम-युक्ति,
भावार्थ -सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त बापू को याद करते हुए कहते है कि हे बापू! जब पूरा मानव समुदाय पाश्विक शक्ति के कारागृह में कैद होकर त्राहि-त्राहि कर रहा था, तब तुमने उसे सत्य-अहिंसा का मन्त्र देकर आत्मा की मुक्ति का मार्ग दिखाया। आपने प्रेम को घृणा और द्वेष से जीतने का ऐसा मंत्र दिया जो कभी असफल नहीं होता।
8
वर श्रम-प्रसूति से की कृतार्थ
तुमने विचार परिणीत उक्ति
विश्वानुरक्त हे अनासक्त,
सर्वस्व-त्याग को बना मुक्ति!
भावार्थ-सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि आपने अपने विचारों को सिर्फ शब्दों में व्यक्त नहीं किया, बल्कि उन्हें अपने व्यवहार में व्यक्त करने के लिए अथक प्रयास किया और प्रवचन -उपदेश की अपेक्षा कर्म को प्रधानता दी । हे बापू, आपने सब कुछ त्याग करके मोक्ष प्राप्त किया है, क्योंकि आप सदैव आसक्ति से दूर रहे ।
9
उर के चरखे में कात सूक्ष्म,
युग-युग का विषय-जनित विषाद
गुंजित कर दिया गगन जग का
भर तुमने आत्मा का निनाद।
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त बापू के प्रति उद्गार व्यक्त करते हुए कहते है कि हे बापू! आपने चरखे को महत्त्व देकर न केवल लोगों को भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए काम करने की सीख दी, बल्कि अपने हृदयरूपी चरखे के माध्यम से युगों से वासनाजन्य विकारों को भी दूर किया।आपने चरखा आन्दोलन के साथ-साथ सत्य और अहिंसा की पवित्र गँज से निकलने वाले आत्मिक संगीत से पूरे आकाश और धरती को गूंजित कर दिया।
10-
रँग-रँग खद्दर के सूत्रों में,
नव जीवन आशा, स्पृहाह्लाद,
मानवी कला के सूत्रधार।
हर लिया यन्त्र कौशल प्रवाद!
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त बापू के प्रति उद्गार व्यक्त करते हुए कहते है कि खादी के कपड़े पर रंग चढ़ाने के साथ-साथ खादी को आम लोगों से जोड़कर लोगों के जीवन में उत्साह और आशा भर दी। आपने एक नई मानवीय कला का जन्म दिया। बापू, आपने चरखे के माध्यम से एक ओर वासना की पीड़ाओं से छुटकारा दिलाया, तो दूसरी ओर मशीनीकरण को चुनौती देकर लोगों को कर्म का सन्देश दिया ।
11-
साम्राज्यवाद था कंस, बन्दिनी
मानवता, पशु-बलाऽक्रान्त,
श्रृंखला-दासता, प्रहरी बहु
निर्मम शासन-पद शक्ति-भ्रान्त,
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि, “हे बापू! कंस के शासन में बंदी गृह में कैदियों पर अत्याचार किया जाता था , उसी प्रकार अंग्रेजी साम्राज्यवाद ने भी भारतीयों पर बुरी तरह अत्याचार और शोषण किया । उस समय मानवता भी मानो बन्दीगृह में कैद हो गई । विदेशी पाश्विक शक्तियों से यहाँ की जनता त्रस्त थीं। यही कारण था कि कंस के साम्राज्य में पद और सत्ता के मोह से भ्रमित क्रूर अधिकारियों को जेल का प्रहरी बना दिया ।
12
कारागृह में दे दिव्य जन्म
मानव आत्मा को मुक्त, कान्त,
जन-शोषण की बढ़ती यमुना
तुमने की नत, पद-प्रणत शान्त!
भावार्थ- सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है किजैसे देवकी ने श्रीकृष्ण को जन्म देकर मथुरावासियों को कंस से बचाया, उसी प्रकार, हे बापू! आपने कई बार जेल जाकर मानवता और मानवता को बचाया।
पंतजी ने अंग्रेजी साम्राज्य को यमुना से तुलना करते हुए कहा कि जैसे श्रीकृष्ण ने अपने चरणों से यमुना को शांत और नियंत्रित किया, उसी प्रकार महात्मा गाँधी ने अपने सत्य और अहिंसा से अंग्रेजी शासन व्यवस्था के सामने झुकना पड़ा।पंतजी कहता है कि भारत का शोषण करने वाला अंग्रेजी साम्राज्य यमुना को अहिंसा और सत्य का सहारा लेकर झुकने को मजबूर कर दिया। बापू के सत्य और अहिंसा के हथियारों के सामने अंग्रेजी सरकार टिक नहीं सकी, और अंततः अंग्रेजों को यहाँ से भागना पड़ा, देश आजाद हो गया ।
13
कारा थी संस्कृति विगत, भित्ति
बहु धर्म-जाति-गति रूप-नाम,
बन्दी जग-जीवन, भू विभक्त
विज्ञान-मूढ़ जन प्रकृति-काम;
भावार्थ – सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि हे बापू ! भारतीय संस्कृति पिछले कई वर्षों से कैद थी। यहाँ के लोग धर्म, जाति और भाषा के बंधनों में उलझे हुए थे।भाषावाद और क्षेत्रीयतावाद ने इस देश को खंडित कर रखा था। लोग विज्ञान के प्रभाव में आकार प्रकृति का उपभोग अपनी इच्छा के अनुसार करना चाह रहे थे ।
14
आये तुम मुक्त पुरुष, कहने-
मिथ्या जड़ बन्धन, सत्य राम,
नानृतं जयति सत्यं मा भैः,
जय ज्ञान-ज्योति, तुमको प्रणाम!
भावार्थ- सुमित्रा नंदन पन्त रचित काव्य रचना बापू के प्रति के इस काव्यांश में कवि सुमित्रा नंदन पन्त कहते है कि हे बापू, लंबे समय से दासता का दंश झेल रहे भारतीयों के लिए आप उद्धारक बनकर आये ! आपने लोगों को बताया है कि सांसारिक संबंध झूठे और दिखावे वाले हैं , एक ईश्वर का नाम ही सच्चा और अनन्त है। आपने प्रमाणित कर दिया कि जीत सर्वदा सत्य की होती है, असत्य की नहीं, इसलिए भय त्याग दो।ज्ञान की ऐसी अद्भुत ज्योति फैलाने वाले युगपुरुष बापू! आपको प्रणाम!



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