balika diwas-
बेटी – एक दस्तक मानवता के द्धार पर
बेटी – एक दस्तक मानवता के द्धार पर
राष्ट्रीय बालिका दिवस पर विशेष
समय जो गतिशील है , समय जो परिवर्तनशील है , समय के प्रवाह मे प्रवाहित होते हुए विश्व समुदाय ने बहुत कुछ खोया ,वहीँ कुछ नवीन ग्राह्य भी हुआ। विश्व समुदाय में जो कुछ घटित हुआ उसमे कुछ घटक ऐसे भी है , जिनका विलुप्त हो जाना ही श्रेयस्कर रहा , क्योकि ऐसे घटक यदि सक्रिय रहते तो संभवतः मानव की प्रक्रिया अवरुद्ध हो जाती है, किन्तु कुछ गतानुगतिक जो , मानव समुदाय की अनिवार्यता थी , उन्हें भी हमने अज्ञानतावश या तो खो दिया है अथवा खोते जा रहे है। मनुष्य जो जगदीश्वर की अत्युत्तम कृति है , उसे जगदीश्वर ने विलक्षण गुणों से सम्पन्न बनाया है। मनुष्य जो अपनी बुद्धि प्रयोग से निर्णय ले सकने का सामर्थ्य रखता है कि क्या गलत है या क्या सही ? किन्तु स्वार्थपरता ने मनुष्य को इतना विवेक शून्य बना दिया है कि अपने निजी हित के लिए वह ऐसे घटको को भी तिलांजित करता जा रहा है जिसे अपनाने मे वर्तमान अथवा आगामी कुछ वर्षो में हानि पहुचने की आशंका उत्पन्न हो गई है। , किन्तु मानव जिसे वह हानि मान रहा है , ऐसे घटको का परित्याग मानव सभ्यता के भविष्य के लिए भयावह समस्या के रूप में उभर कर आएगा। प्रकृति का विनाश कर मानव समुदाय रुग्ण होता जा रहा है, किन्तु मानव मस्तिष्क की एक और विकार युक्त प्रवृति दबे कदम आगमन कर रही है, जिसकी आहट वर्तमान मे तो किसी को सुनाई नही दे रही है, किन्तु भविष्य में इसका जो भयावह रूप प्रकट होगा ,वह हमारी सामाजिक संरचना को ही तहस – नहस कर देगा , वह अदृशय समस्या है बढ़ता हुआ लिंगानुपात का अंतर। पुरुषों की तुलना में स्त्रियों की संख्या का घटना `मानव समुदाय के लिए चिंतनीय विषय है।
लिंग अनुपात में अंतर का कारण जानने पर जो तथ्य उभर कर सामने आता है ,वह है पुत्री के स्थान पर पुत्र की कामना। गर्भवती स्त्री पुत्र को जन्म देगी अथवा पुत्री को , यह जानने के लिए गर्भवती स्त्री के ससुराल पक्ष के लोग यथा -सास ,श्वसुर और स्वयं पति द्वारा लिंग परीक्षण करवाया जाता है। लिंग परीक्षण से यह ज्ञात होने पर कि होने वाली संतान बालिका है ,गर्भ गिरा दिया जाता है और संसार चक्र संचालित करने वाली यह नारी संसार मे आने से पूर्व ही अपने अस्तित्व से वंचित हो जाती है।
प्रश्न उठता है कि भ्रूण हत्या के पीछे वे कौन से कारक है जो एक मूक , अवश जीव की हत्या जैसे नृसंस एवं घृणित कृत्य का करक बनते है। हमारा शिक्षित कहलाने वाला समाज मानसिक स्तर पर आज भी अंध विश्वास के दलदल मे फँसा हुआ है। यह अवधारणा कि पुत्र से ही वंश वृद्धि होती है और पुत्र ही वंश नाम अक्षुण्ण रख सकता है। पुरुष ही यह अवधारणा रखता है ऐसा नही, आश्चर्य तो उस समय होता है जब स्वयं नारी ही इस मानसिकता से ग्रस्त हो। सास के रूप मैं एक स्त्री अपनी पुत्रवधू से यही अपेक्षा रखती है कि प्रसूति में पोता ही हो। पहले प्रसव मे यदि बालिका का जन्म हो तो सास रुपी नारी अपनी सहनशीलता प्रकट करती है। इस बार नही तो अगली बार पोता पैदा होगा ,इस अपेक्षा से वह अपने विवाहित पुत्र को अगले प्रसव के लिए प्रत्यक्ष अथवा अप्रयत्क्ष रूप से प्रोत्साहित करती है और पुत्र भी अपने माता – पिता की भावना को सम्मान देने के लिए दूसरी संतान को जन्म देने के लिए सहमत हों जाता है। किन्तु अगली संतान पुत्र ही हो , इस बात की निश्चितता के लिए वह अवैधानिक ढंग से पत्नी गर्भ में पल रहे भ्रूण का परीक्षण करवाता है। यदि परीक्षण रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि गर्भ में पल रहा शिशु ‘बालिका ‘ तो वह चिकित्सक को एक आकर्षक राशि देकर पत्नी का गर्भ गिरवा देते है। इस पूरे प्रकरण में पति की माँ ,पति और डॉक्टर महत्वपूर्ण होती है । इस प्रकरण मे पति की भूमिका मूक होती है। प्रत्यक्ष रूप से पति की माँ और डॉक्टर की भूमिका ही प्रमुख है।
पति नाम के पुरुष की एक अन्य मानसिकता अवधारणा यह भी है कि बेटी का बाप होना किसी पहाड़ जितनी बड़ी मुसीबत से कम नही। बेटी से आखिर लाभ ही क्या ? जन्म से २२- २३ वर्ष तक लालन – पालन और पढ़ाई का खर्च उठाना पड़ता है , उसके बाद शादी का खर्च? इसके प्रतिफल मे मिलेगा क्या ?विवाहोपरांत बेटी परायी हो जाती है। इतने खर्च में तो बेटे को लायक बनाया जा सकता है और बेटा (कल्पना मे डॉक्टर, इंजीनियर )बन गया तो बुढ़ापा तो सुरक्षित हो जाएगा अर्थात बेटे को ‘ बुढ़ापे का इन्सुरेंस’ माना जाने लगा है और बेटी को बोझ अथवा खर्च। यही कारण है कि कुछ पति नाम के पुरुष पहली संतान पुत्र होने पर अगले प्रसव मे लिंग परीक्षण से यह ज्ञात होने पर कि होने वाली संतान लड़की है ,गर्भ मे ही भ्रूण हत्या करवा देते है।
कन्या भ्रूण हत्या के पीछे अन्य जो कारण वह है बढ़ती सामाजिक असुरक्षा की भावना ,बढ़ती महंगाई , महंगी पढ़ाई , दहेज़ और विवाह पर होने वाला भारी भरकम खर्च , सामाचार पत्रो टेलीविज़न और सोशल मिडिया के माध्यम समाज मे बढ़ रहे नारी उत्पीडन एवं यौन शोषण जैसे प्रकरण से शिकार से पिता आशंकित हो रहा है। जब ऐसा भावी पिता , उस युवती के उत्पीडन अथवा यौन शोषण की शिकार हुई है ,के पिता के स्थान पर स्वयं को रखकर देखता है , तो वह भावी आशंका से भयभीत हो उठता है और ये निर्णय लेता है की वह लड़की का पिता नहीं बनेगा।
मानव का स्वभाव है कि जब कभी उसके समक्ष लाभ – हानि का प्रश्न आता है वह अपने निजी स्वार्थ को ही प्राथमिकता देता है। वह अपने – अपने , छोटे – छोटे हितो के लिए समस्त जन समुदाय के हितो की भी उपेक्षा करने लगता है। जिसके परिणाम कालांतर मे बड़े भयावह होते है। कन्या भ्रूण हत्या के लिए तीन तरह के लोग जिम्मेदार है सास कहलाने वाली नारी , दूसरा पति का नाम पुरुष , तीसरा पैसे के लिए कुछ भी करेगा की प्रवृति रखनेवाला वाला डॉक्टर , यह तीनो मिलकर ही एक मासूम अवश भ्रूण की हत्या कर अपने पुरुषार्थ का परचम लहराते हुए गौरवांवित अनुभव करते। ऐसा कुत्सित घृणित कुकृत्य करते हुए इनकी आत्मा लेश मात्र भी लज्जा अनुभव क्यों नही करती ? सास कहलाने वाली नारी यह क्यों भूल जाती है की वह स्वयं भी एक नारी है। ‘नारी’ होने के कारण वह मातृशक्ति से विभूषित है नारी के कारण ही देवी रूप में पूज्या है। ” प्रकति” और शिव नारी के बिना अपूर्ण है। संकीर्ण मानसिकता से ग्रस्त पुरुष को कन्या भ्रूण हत्या का लाभ कुछ वर्ष तक मिल जाएगा , किन्तु कुछ वर्षो के उपरांत उसकी मृत्यु भी निश्चित है , फिर क्यों एक पुरुष आंशिक हित के लिए समस्त भावी पीढ़ी के लिए समस्या उत्पन्न कर रहा है। देव तुल्य ‘डॉक्टर ‘ नव जीवन प्रदान करता है , सम्मान का अधिकारी है , क्यों थोड़े से धन के प्रलोभन मे अपने सम्मान और गरिमा को बेच रहा है ।
कन्या भ्रूण हत्या के मामले मे कानूनी प्रावधान भी निप्रभावी हो रहे है। सरकार की ओर से भ्रूण हत्या अपराध घोषित किया गया है। निजी अस्पताल की दीवारों पर लिखा गया यह वाक्य कि यहाँ लिंग परीक्षण नही किया जाता। किन्तु सत्यता इसके विपरीत है। कानून की आँख में धूल झोक कर वही सब हो रहा है , जो कानून द्धारा प्रतिबन्ध है। कानून बना लेने देने से उस उद्देश्य की उसी रूप मे परिणति संभव नही , जिस उद्देश्य से कानून बनाया गया था। नैतिक मूल्यों से ही इस दुष्प्रवृति से मुक्त हुआ जा सकता है। ईश्वर अथवा धर्म का भय भी इस दुष्प्रवृति पर अंकुश लगाने में सहायक हो सकता है।सभी सम्प्रदाय के धर्म गुरुओ की भी इस कार्य मे अहम भूमिका हो सकती है।
समस्या उत्पन्न होने पर हल ढूंढने की अपेक्षा उचित होगा कि समस्या के बीज को ही समूल नष्ट कर दिया जाये। कल्पना करे ऐसे समाज की , ऐसे देश की जो स्त्रियों से विहीन हो , जहाँ केवल पुरुष ही पुरुष हो। क्या पुरुष स्वयं भू हो जाएगे ? हमारा देश ,हमारा समाज जैसे आज संतुलित है , मर्यादित है , संस्कारित है ,क्या स्त्री विहीन समाज तब इतना ही संतुलित , मर्यादित व् संस्कारित
रह सकेगा ? ईश्वर अथवा प्रकति के बनाये हुए नियम को तोड़ कर पुरुष अपने अस्तित्व को अक्षुण्ण बनाये रख सकेगा ? भ्रूण हत्या के कारण यदि लिंग अनुपात असंतुलित होगा ,तो यह भी निश्चित है कि हमारी मर्यादित व् गरिमामय सभ्यता ,संस्कृति अपनी पवित्रता खो बैठेगी। फिल्म ‘मातृभूमि ‘ का काल्पनिक कथा लोक भारतीय सभ्यता संस्कृति का यथार्थ बन जायेगा।
बेटी बचाओ -बेटी पढ़ाओ
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