कथानक का उद्देश्य
कथाकार अमरकान्त’ द्वारा लिखित कहानी ‘बहादुर’ मध्यवर्गीय परिवार में नौकर के साथ परिवारजनों द्वारा किए जाने वाले अमानवीय दुर्व्यवहार पर आधारित कहानी है।इस कहानी का उद्देश्य मध्यमवर्गीय परिवार की इस मनोवृति को उदघाटित करना है कि मध्यमवर्गीय परिवार झूठे प्रदर्शन व मान प्रतिष्ठा के प्रलोभन में अपनी मनुष्यता व संवेदना को नष्ट करता जा रहा है।
कहानी के प्रमुख पात्र-
लेखक – कथा वाचक ,निर्मला – कथा वाचक की पत्नी,साले साहब कथा वाचक की पत्नी का भाई , दिल बहादुर-कथा नायक ,किशोर – कथा वाचक का बिगडैल बेटा
पाठ का सारांश
कथावाचक और उसकी पत्नी निर्मला कई दिनों से घर में नौकर रखने के बारे में सोच रहे थे ,किन्तु मध्यमवर्गीय होने के कारण नौकर को वेतन देने में कठिनाई अनुभव कर रहे थे .नौकर रखने में सक्षम तो न थे किन्तु सामाजिक प्रतिष्ठा के कारण घर में नौकर रखना चाहते थे . कथा वाचक को लगता है कि उसके सभी रिश्तेदारों के यहाँ नौकर हैं। उसकी भाभियाँ चारपाइयाँ तोड़ती रहती हैं, जबकि उसकी पत्नी निर्मला सुबह से शाम तक घर के कामों में व्यस्त रहती है। यह सोच लेखक घर में नौकर रखना चाहते था ,इसके अतिरिक्त कथा वाचक किपतनी निर्मला भी हर वक्त नौकर रखने की रट लगाए रहती थी।
एक दिन लेखक के साले साहब एक बारह-तेरह वर्ष के नेपाली लड़के को लेकर कथा वाचक के घर आते हैं।
साले साहब कथा वाचक को बतलाते है कि यह एक नेपाली बालक है, इसके पिता युद्ध में मारे जा चुके हैं। घर माँ है । इसकी माँ जिस भैस से बहुत प्यार करती थी ,इसने उसी भैंस को पीट दिया । इसलिए माँ ने इसे बहुत पीटा , जिसकी वजह से यह माँ के रखे रुपयों में से दो रुपए निकाल कर वहाँ से भाग आया।
कथावाचक द्वारा नाम पूछने पर वह अपना नाम ‘दिलबहादुर’ बतलाता है। कथावाचक दिलबहादुर से कहता है कि ढंग से काम करना और इस घर को अपना ही घर समझना। हमारे घर में नौकर-चाकर को बहुत प्यार और इज्जत से रखा जाता है, जो सब खाते-पहनते हैं, वही नौकर-चाकर खाते-पहनते हैं। यदि तुम हमारे घर में रह गए तो सभ्य बन जाओगे, घर के और लड़कों की तरह पढ़-लिख जाओगे और तुम्हारी जिन्दगी सुधर जाएगी।
कथा वाचक की पत्नी निर्मला भी कहती है कि इस मोहल्ले में न तो तुम्हें किसी के घर जाना है और न ही किसी का कोई काम करना है। कोई बाजार से कुछ लाने को कहे तो बहाना बना कर टाल देना ।
बहादुर बहुत मेहनती था ,वह बहुत मेहनत से घर में काम करने लगा। वह पूरे घर को न केवल साफ-सुथरा रखता है, बल्कि घर के सभी सदस्यों की सभी आवश्यकताओं को पूरा करता है। बहादुर के आने बाद घर साफ-सुथरा रहने लगा और सभी लोगों के कपड़े साफ और व्यवस्थित रहने लगे । निर्मला उसके काम से बहुत खुश थी। उसके आने से परिवार के सभी सदस्य बड़े ही आरामतलबी एवं कामचोर व आलसी बन जाते हैं। निर्मला ने दिल बहादुर नाम मे से दिल हटाकर उसे बहादुर नाम दिया। बहादुर देर रात तक काम करता था, फिर सुबह जल्दी उठकर काम लग जाता था। वह खुश रहता था और हर समय हंसता रहता था। रात को सोते समय वह पहाड़ी भाषा में कुछ गाता रहता था।
निर्मला का बेटा किशोर अच्छे आचरण का न था। वह रोब-दाब और शान-शौकत से रहने वाला था |उसने अपना सारा काम बहादुर को सौंप दिया था। बहादुर के काम में थोड़ी भी लापरवाही दिखाई देती तो उसे गालियां सुनाता था । वह छोटी छोटी बातों पर भी बहादुर को पीटता था। पिटने के कुछ देर बाद बहादुर एक कोने में चुपचाप खड़ा हो जाता और घरेलू काम में पूर्ववत् जुट जाता। एक दिन, किशोर ने बहादुर को “सूअर का बच्चा” कह दिया ।बहादुर इस गाली को सहन नहीं कर सका; उसका आत्मसम्मान जाग गया और उसने अपने अपमान का प्रतिरोध किया। कथा वाचक ने बहादुर से इस बारेमें बात की तो बहादुर ने कहा , “बाबूजी भैया ने मेरे बाप को बीच लाकर क्यों खड़ा किया?” इसके बाद वह रो पड़ा।
प्रारंभ में निर्मला बहादुर को बहुत प्यार से रखती थी और उसके खाने-पीने का बहुत ध्यान रखती थी, लेकिन कुछ दिनों बाद उसका व्यवहार बदल गया।
कथावाचक की पत्नी निर्मला रोटी बनाने का काम बहादुर से न करवाकर स्वयं करती है,किन्तु एक दिन मोहल्ले की किसी पड़ोसिन ने कथावाचक की पत्नी को बहका दिया कि परिवार के लिए रोटियाँ बनाने के बाद बहादुर से कहे कि वह अपनी रोटी खुद बना लिया करे। तुम यदि नौकरों को पतली-पतली रोटी बनाकर खिलाओगी तो उनकी आदतें खराब हो जाती हैं। पड़ोसिन के बहकावे में आकर निर्मला ने बहादुर की रोटी सेकना उसने छोड़ दिया।
अब घर में किशोर और निर्मला बहादुर की छोटी छोटी सी गलती पर भी उसे मारने- पीटने डाटने लगे थे। एक दिन निर्मला के मायके के रिश्तेदार आए। नाश्ता करने के बाद उस रिश्तेदार की पत्नी अचानक फर्श पर झुककर इधर-उधर कुछ देखने लगी और चारपाई के आस-पास और कमरे में चारों ओर खोजने लगी। पूछने पर उसने कहा कि उसके चारपाई पर रखे ग्यारह रुपये गुम हो जाने की बात कही । तब सभी को बहादुर पर शक हुआ।
बहादुर से पूछा गया ,उसने पैसे लेने से इनकार कर दिया। उसे डाँटनेके साथ भी पीटा गया और पुलिस को सौंपने की धमकी दी गई। बहादुर को भी सभी ने डराया, धमकाया और पीटा। सभी ने सोचा कि वह पिटाई के डर से अपना अपराध कबूल कर लेगा, लेकिन वह पैसे नहीं उठाये, तो वह कैसे स्वीकार कर सकता था कि उसने पैसे उठाए थे। बहादुर अपने निर्दोष होने की बात कहता है, परन्तु उसकी बात पर कोई विश्वास नहीं करता।
इस घटना के बाद से घर के सभी लोग का व्यवहार बहादुर के प्रति और अधिक बदल गया,उसे और अधिक दुत्कारने लगे। बहादुर से मारपीट और गाली के डर से गलतियां और भूले अधिक होने लगी।
एक दिन उसके हाथ से सिल छूटकर गिर गई । पिटाई के डर बहादुर घर छोड़कर चल गया ,वह अपना बिस्तर, पहनने के कपड़े, जूते सब छोड़ गया था । कथा वाचक शाम को जब दफ्तर से लौटा तो अपनी पत्नी निर्मला को सिर पर हाथ रखे परेशान देखा। घर का सारा सामान अस्त-व्यस्त था, आंगन में कचरा फैला हुआ था और बर्तन बिना मंजे थे। कारण पूछने पर निर्मला ने बतलाया कि बहादुर ने अपना सामान छोड़कर घर से चला गया ।
उसकी इमानदारी पर निर्मला, उसके पति और किशोर को विश्वास था। अब उन्हें विश्वास हो गया था कि बहादुर ने रिश्तेदारों के पैसे भी नहीं चुराये थे ।
निर्मला, उसका पति और किशोर सभी बहादुर के साथ किये बुरे बर्ताव और अत्याचार के लिए पछताने लगे।
‘बहादुर’ कहानी के आधार पर बहादुर की चारित्रिक विशेषता
निष्कपट बालक – बारह-तेरह वर्ष का बहादुर’ निष्कपट बालक है किसी प्रकार की कृत्रिमता या बनावटीपन है उसमे नहीं है और न ही किसी बात को छिपाना चाहताहै । सच एवं स्पष्ट बोलता है।
परिश्रमी -बहादुर परिश्रमी है। वह घर के सभी सदस्यों काम बिना किसी शिकायत करता रहता है .काम में किसी प्रकार का कोई आलस्य नहीं दिखाता है । वह अपने काम के प्रति जिम्मेदार रहता है।
हँसमुख – बहादुर हर समय हँसता है। हमेशा हँसते रहना उसके स्वाभाव का अंग है .
सहनशील- बहादुर बड़ा सहनशील है। वह घर के सारे काम करने के बावजूद निर्मला और किशोर की डाँट खाता रहता है। बहादुर अपने साथ हुए दुर्व्यवहार को भूला देता है और अपने काम में पूर्ववत् लग जाता है।
स्वाभिमानी- एक बार किशोर उसे सूअर का बच्चा कह देता है . पिता को गाली देने पर उसका स्वाभिमान जाग जाता है। वह किशोर का काम करने से इनकार कर देता है।
माता-पिता के प्रति आदर भाव – माँ द्वारा पीटे जाने के कारण गुस्से से घर से भागा आता है , लेकिन माता के प्रति अपने दायित्व को वह अच्छी तरह समझता है। इसलिए वह अपने कमाए पैसों को माँ को भिजवाने की बात कथावाचक से कहता है। अपने पिता के प्रति आदर भाव के कारण ही किशोर द्वारा पिता को गाली देने पर किशोर का काम करने से मना कर देता है ।
ईमानदार एवं सत्यवादी –बहादुर भले ही गरीब था किन्तु गरीब होने के बावजूद भी ईमानदार और सत्यवादी है। डराने धमकाने पर वह निडर होकर चोरी न करने की बात पर अडिग रहता है . वह घर छोड़कर जाते समय भी अपना सामान तक नहीं ले जाता है।
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