Hindi Hindustani
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attitude-inspirational-motivational quotes in hindi

April 17, 2022
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दैव दैव आलसी पुकारा 

यदि कोई मनुष्य आर्थिक रूप से कष्ट पा रहा है तो सिर्फ और सिर्फ  अपनी अकर्मण्यता ,आलस्य और टालमटोल प्रवृति के कारण और भाग्य और समय बुरा है इस धारणा  को मन में बिठा लेने के कारण। 

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कर्मण्य अपने परिश्रम से सुख और सम्मान को पाता है और  अकर्मण्य भाग्यवादी होने कारण दुःख पाता है। 
आलस्य जीवित व्यक्ति की मृत्यु की तरह है -जेरेमी टेलर

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आलस्य दुखों का मूल है। श्री ,ह्री ,धृति ,कीर्ति  तथा धृति का वास पुरुषार्थी में ही होता है,आलसी में नहीं । महाभारत /शांति पर्व /२७/२८ 
यदि भाग्य आलसी को कुछ दे भी दे ,तो वह दी गई वस्तु को अपने आलस्य और अकर्मण्यता से उसे भी खो देगा। 

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मनुष्य के जितने भी शत्रु है ,उनमे एक आलस्य भी है। 
पुरुषार्थी भंवर में फँसी नाव को सुरक्षित निकाल लाता है। 
आलस्य मूर्खो का अवकाश का समय होता है। -चेस्टर फील्ड
केवल आलसी वह नहीं है जो कुछ नहीं करता। उसे  भी आलसी कहा जाना चाहिए जो अपनी कुशलता और बुद्धि चातुर्य से और भी अधिक पा सकता था –सुकरात
आलस्य में समय व्यतीत करना आत्म हत्या के समान  है –सुकरात
जीवन का अर्थ ही कष्टों से जूझना है  ,आलसी इसे कष्ट कहते है और पुरुषार्थी इसे अपनी अंतर शक्ति को पहचानने  का अवसर –सुरेश सुमन 

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जिस समय आलसी सो रहा होता है ,उस समय परिश्रमी रेगिस्तान में पानी ढूंढ रहा होता है –सुरेश सुमन
दरिद्रता की जननी का नाम है-आलस्य –तिरुवल्लुवर
आलस्य में दरिद्रता का वास है। किन्तु जो आलस्य नहीं करता उसके घर में लक्ष्मी का वास होता है। 
– -तिरुवल्लुवर

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आलस्य नाम के रोग का उपचार है -कर्म  –रदर  फोर्ड
आलस्य वह  रोग है जिसका  रोगी कभी नहीं संभालता –प्रेमचंद
आलसी और सोने में समय बिताने वाले दरिद्रता को प्राप्त होते है। परिश्रमी मनचाहा फल पाकर ऐश्वर्य का उपभोग करता है –महाभारत /वनपर्व /३२/४२
आलस्य का परिणाम भयंकर होता है। आलसी आज का काम कल पर छोड़कर अपनी सम्पति  में अभिवृद्धि  नहीं कर सकता बल्कि पितृ सम्पति को भी नष्ट कर डालता है -महात्मा बुद्ध

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उन्नति वह करता है जो सदैव कर्म में जुटा  रहता है ,इसके विपरीत भाग्य के भरोसे बैठे रहनेवाले आलसी दींन -हीन और दरिद्र बने रहते है -अथर्व वेद
आलस्य ईश्वर द्वारा गये गए हाथ- पैरों का अपमान है –नीति वचन
उद्यम से ही अभीष्ट  की सिद्धि होती है ,मनोरथ से नहीं। सोये हुए शेर आहार बनाने स्वयं पशु चलकर उसके पास नहीं आते – पंचतंत्र की कहानी से
परिश्रमी अपने परिश्रम से ऋण से उऋण हो सकता है किन्तु आलसी अपने आलस्य से उस ऋण को और बड़ा लेता है =स्वामी विवेकानंद

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जो अपने समय का एक पल भी व्यर्थ नहीं गवाँते ,वे ही संसार में अपने वैभव से हलचल मचा सकते है ,आलसी नहीं। ऐसे आलसी कभी महान नहीं बन सकते -सैमुअल स्माइल्स
कठोर परिश्रम से दरिद्र भी धनवान धनवान बन सकता है किन्तु आलस्य से धनी का धन भी उससे  रुष्ट होकर चला जाता है -नीति वचन
जिस समय परिश्रमी ,श्रम कर रहा होता है , उस  समय आलसी सो रहा होता है -नीति वचन

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