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12th UP

abhinav manushy,ramdhari singh dinakar,अभिनव मनुष्य,रामधारी सिंह ’दिनकर’         

September 8, 2022
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abhinav manushy,ramdhari singh dinakar,

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अभिनव मनुष्य,   रामधारी सिंह ’दिनकर’    

अभिनव मनुष्य                                                                                                                                रामधारी सिंह ’दिनकर’

।ण्        है बहुत बरसी …………………………पुरानी राह।

है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार,

पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार।

भोग-लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम,

बह रही असहाय नर की भावना निष्काम

भीष्म हों अथवा युधिष्ठिर, या कि हों भगवान,

बुद्ध हों कि अशोक, गाँधी हों कि ईस महान

सिर झुका सबको, सभी को श्रेष्ठ निज से मान,

मात्र वाचिक ही उन्हें देता हुआ सम्मान,

दग्ध कर पर को, स्वयं भी भोगता दुख-दाह,

जा रहा मानव चला अब भी पुरानी राह।

प्रश्न-1     महात्माओं की वाणी का कौनसा प्रभाव आज तक भी नहीं है?

उत्तर     संसार में आज तक भी शांति स्थापित नहीं हो सकी। मानव आजतक भी राग द्वेष और भोग लिप्सा की अग्नि में जल रहा है।

प्रश्न-2     कौन सी विरोधाभासी बातें आज भी परिलक्षित हो रही है?

उत्तर     एक ओर धनी वर्ग भोग विलास में लिप्त है, तो दूसरी ओर कुछ दो जून रोटी के लिए तरस रह है । कठोर परिश्रम के उपरान्त भी मनोरथ सिद्ध नहीं हो पा रहा है।

प्रश्न-3     महापुरूषों के अनुसार किन तत्वों को अंगीकार कर जीवन सार्थक बनाया जा सकता है?

उत्तर     परोपकार, दया, अहिंसा, प्रेम और कर्मनिष्ठा को अंगीकार कर जीवन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है।

प्रश्न-4     उक्त काव्यांश में किन-किन महापुरूषों की किन-किन बातों का उल्लेख हुआ है?

उत्तर     उक्त काव्यांश में भीम का ढृढ़ निश्चय युधिष्ठिर की सत्य निष्ठा श्री कृष्ण की निष्काम कर्मनिष्ठा श्री राम का आदर्श, बुद्ध, सम्राट अशोक और प्रभु यीशु की सत्य अहिंसा और प्रेम का उदाहरण प्रस्तुत हुआ है

प्रश्न-5     महापुरूषों के आदर्श और सिद्धान्तों की क्या बिडम्बना रही है?

उत्तर     महापुरूषों के आदर्श और सिद्धान्तों को आचरण में व्यवहारित नहीं बनाया गया।

प्रश्न-6     कवि के अनुसार मनुष्य आज भी किस मार्ग पर चल रहा है?

उत्तर     मनुष्य आज भी आदिम युग के क्रूर, निर्मम एवं पशुत्व मार्ग पर चल रहा है। दूसरों को दुःखों की आग में झोंककर स्वयं भी  उसी आग में जल रहा है।

प्रश्न-7     काव्यांश मंे प्रयुक्त अलंकार बतलाइए।

उत्तर     रूपक , अनुप्रास  और दृष्टान्त अलंकार

प्रश्न-8     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

ठण्       आज की ………………………… एक समान।

2 आज की दुनिया विचित्र, नवीन;

प्रकृति पर सर्वत्र है विजयी पुरुष आसीन।

हैं बँधे नर के करों में वारि, विद्युत, भाप,

हुक्म पर चढ़ता-उतरता है पवन का ताप।

हैं नहीं बाकी कहीं व्यवधान,

लाँघ सकता नर सरित, गिरि, सिन्धु एक समान।

प्रश्न-1     कवि दिनकर ने आज की दुनिया को कैसा बतलाया है?

उत्तर     कवि दिनकर ने आज की दुनिया को नवीन और विचित्र बतलाया है।

प्रश्न-2     कवि नए मनुष्य की किन उपलब्धियों का उल्लेख किया है?

उत्तर     मनुष्य ने जल, बिजली, दूरी और वातावरण के ताप को बंाध लिया है, नदी, पर्वत, और समुद्र को लांघ सकता है,

प्रश्न-3     तमाम उपलब्धियों के उपरान्त भी आज भी मनुष्य कैसा है?

उत्तर     मनुष्य ने भौतिक सुख के साधन तो जुटा लिए किन्तु मानवीय गुण विकसित नहीं कर सका। बुद्धि को तो विकसित कर लिया किन्तु अभिनव मानव मनुष्य की दृष्टि से आदिम युग के असम्य मानव जैसा ही है?

प्रश्न-4     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?

उत्तर     रूपक अलंकार

प्रश्न-5     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

ब्ण्        शीश पर आदेश ………………………… देखकर परमाणु

3 शीश पर आदेश कर अवधार्य,

प्रकृति के बस तत्त्व करते हैं मनुज के कार्य।

मानते हैं हुक्म मानव का महा वरुणेश,

और करता शब्दगुण अम्बर वहन सन्देश।

नव्य नर की मुष्टि में विकराल,

हैं सिमटते जा रहे प्रत्येक क्षण दिक्काल

यह मनुज, जिसका गगन में जा रहा है यान,

काँपते जिसके करों को देखकर परमाणु।

प्रश्न-1     मनुष्य ने प्रकृति पर भी अधिकार कर लिया है, कवि ने ऐसा क्यों कहॉं?

उत्तर     आज प्रकृति के सभी तत्व मनुष्य का आदेश मानते है अभिनव मनुष्य की इच्छा के अनुसार कार्य करते है। मनुष्य समुद्र में पुल बना देता है, नदियों को रोक बांध बना देता है, कृत्रिम वर्षा कर लेता है, ध्वनि और दृश्य को तरंगों में परिवर्तित कर देता है। परम शक्तिशाली परमाणु भी मनुष्य से थर-थर कॉंपता है।

प्रश्न-2     कवि ने अभिनव की शक्ति का प्रभाव कहॉं-कहॉं बतलाया है।

उत्तर     कवि ने अभिनव मानव का प्रभाव आकाश, धरती और पाताल तक बतलाया है।

प्रश्न-3     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

क्ण्       खोलकर अपना ………………………… नया उत्कर्ष

4 खोलकर अपना हृदयगिरि, सिन्धु, भू, आकाश,

हैं सुना जिसको चुके निज गुह्यतम इतिहास।

खुल गए परदे, रहा अब क्या यहाँ अज्ञेय?

किन्तु नर को चाहिए नित विघ्न कुछ दुर्जेय;

सोचने को और करने को नया संघर्ष;

नव्य जय का क्षेत्र, पाने को नया उत्कर्ष।

प्रश्न-1     उक्त काव्यांश में कवि ने अभिनव मनुष्य की किस विशेषता की ओर संकेत किया है?

उत्तर     उक्त काव्यांश में कवि ने अभिनव मनुष्य की प्रकृति पर विजय, उसकी साहसपूर्ण सफलताओं एवं निरन्तर प्रगति करते रहने की प्रवृति की ओर संकेत किया है।

प्रश्न-2     पर्वत, सागर और आकाश का हृदय खोलने से क्या आशय है?

उत्तर     पर्वत, सागर और आकाश का हृदय खोलने से कवि का आशय यह है कि प्रकृति के बारे में जो बाते अज्ञात थी, उन अज्ञात रहस्यों को जान लिया है।

प्रश्न-3     अभिनव मनुष्य किस उपलब्धि की कामना कर रहा है ?

उत्तर     अभिनव मनुष्य ऐसी उपलब्धि की कामना कर रहा है, जिन्हें सरलता से प्राप्त कर पाना संभव नहीं, फिर भी उस पर विजय पा सके।

प्रश्न-4     अभिनव मनुष्य किस बात के लिए लालायित रहता है?

उत्तर     अभिनव मनुष्य चिन्तन एवं कर्म की दृष्टि से नए ढंग से संघर्ष करने के लिए लालायित रहता है।

प्रश्न-5     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?

उत्तर     अनुप्रास और मानवीकरण अलंकार

प्रश्न-6     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

म्ण्        पर, धरा सुपरीक्षिता ………………………… जिसके खोल

5 पर, धरा सुपरीक्षिता, विश्लिष्ट स्वादविहीन,

यह पढ़ी पोथी न दे सकती प्रवेग नवीन।

एक लघु हस्तामलक यह भूमि-मण्डल गोल,

मानवों ने पढ़ लिए सब पृष्ठ जिसके खोल।

प्रश्न-1     सब कुछ ज्ञात कर लेने के पश्चात् अभिनव मनुष्य को पृथ्वी कैसे लगने लगी है?

उत्तर     पृथ्वी के सारे रहस्यों को जान लेने के पश्चात् अभिनव मनुष्य को पृथ्वी स्वादहीन खाद्य वस्तु की तरह लगने लगी है अर्थात् अब कोई आकर्षण शेष नहीं रहा।

प्रश्न-2     पृथ्वी के रहस्यों को अभिनव मनुष्य ने कैसे जान लिया है?

उत्तर     पृथ्वी के रहस्य को अभिनव मनुष्य ने वैसे ही जान लिया है, जैसे पुस्तक पढ़कर सभी कुछ ज्ञात हो जाता है।

प्रश्न-3     अभिनव मनुष्य के लिए पृथ्वी कैसी हो गई है?

उत्तर     अभिनव मनुष्य के लिए पृथ्वी हथेली पर रखें आंवले की तरह रह गई है

प्रश्न-4     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?

उत्तर     उपमा और रूपक

प्रश्न-5     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

थ्ण्        किन्तु, नर प्रज्ञा ………………………… जग विस्तीर्ण।

6 किन्तु, नर-प्रज्ञा सदा गतिशालिनी, उद्दाम,

ले नहीं सकती कहीं रुक एक पल विश्राम।

यह परीक्षित भूमि, यह पोथी पठित, प्राचीन,

सोचने को दे उसे अब बात कौन नवीन?

यह लघुग्रह भूमिमण्डल, व्योम यह संकीर्ण,

चाहिए नर को नया कुछ और जग विस्तीर्ण।

प्रश्न-1     कवि ने अभिनव मानव की बुद्धि की क्या विशेषता बतलाई है?

उत्तर     अभिनव मानव की बुद्धि तीव्र गति से चलती है, एक क्षण के लिए भी विश्राम नहीं ले रही।

प्रश्न-2     अभिनव मनुष्य के लिए क्या समस्या उठ खड़ी हुई है?

उत्तर     अभिनव मनुष्य के लिए यह समस्या उठ खड़ी हुई है कि अब वह अपने कदम किस नई दिशा की ओर बढ़ाये।

प्रश्न-3     अभिनव मनुष्य के लिए धरती और आकाश कैसे रह गए है?

उत्तर     अभिनव मनुष्य के लिए धरती छोटा सा ग्रह और आकाश सिकुड़ा हुआ सा जान पड़ता है।

प्रश्न-4     अभिनव मानव किसके लिए प्रयत्न शील है?

उत्तर     अभिनव मानव नए और व्यापक संसार को पाने के लिए प्रयत्नशील है।

प्रश्न-5     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?

उत्तर     रूपक, उपमा और अनुप्रास

प्रश्न-6     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

ळण्      यह मनुज …………………………मानव भी वहीं

7 यह मनुज, ब्रह्माण्ड का सबसे सुरम्य प्रकाश,

कुछ छिपा सकते न जिससे भूमि या आकाश।

यह मनुज, जिसकी शिखा उद्दाम,

कर रहे जिसको चराचर भक्तियुक्त प्रणाम।

यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार,

ज्ञान का, विज्ञान का, आलोक का आगार।

‘व्योम से पाताल तक सब कुछ इसे है ज्ञेय’,

पर न यह परिचय मनुज का, यह न उसका श्रेय।

श्रेय उसका बुद्धि पर चौतन्य उर की जीतरू

श्रेय मानव की असीमित मानवों से प्रीत।

एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान

तोड़ दे जो, बस, वही ज्ञानी, वही विद्वान्,

और मानव भी वही।

प्रश्न-1     कवि ने अभिनव मानव को क्या बतलाया?

उत्तर     कवि ने अभिनव मानव को सृष्टि की सुन्दर रचना और ज्ञान का अनुपम भण्डार कहा है।

प्रश्न-2     कवि के अनुसार मनुष्य की महत्ता किसमें है?

उत्तर     कवि के अनुसार मनुष्य की महत्ता बौद्धिक बल की अपेक्षा आत्मिक बल का अधिकाधिक प्रयोग करने में है और मानव के बप्रति प्रेम भाव रखने में है।

प्रश्न-3     कवि ने किस मानव को ज्ञानी और विद्वान कहा है?

उत्तर     कवि के अनुसार सच्चे अर्थो में वही मानव ज्ञानी और विद्वान है जो एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य के बीच बढ़ी हुई दूरी को मिटा सके।

प्रश्न-4     कवि ने किस मानव को श्रेष्ठ कहा है?

उत्तर     कवि ने उस मानव को श्रेष्ठ कहा है जो स्वयं को एकाकी न मानकर वसुधैव कुटुम्बकम की भावना रखता है।

प्रश्न-5     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?

उत्तर     रूपक अलंकार

प्रश्न-6     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

भ्ण्        सावधान, मनुष्य ………………………… यह धार

8 सावधान, मनुष्य! यदि विज्ञान है तलवार,

तो इसे दे फेंक, तजकर मोह, स्मृति के पार।

हो चुका है सिद्ध, है तू शिशु अभी अज्ञान;

फूल काँटों की तुझे कुछ भी नहीं पहचान।

खेल सकता तू नहीं ले हाथ में तलवार,

काट लेगा अंग, तीखी है बड़ी यह धार।

प्रश्न-1     कवि ने अभिनव मानव को किस बात की चेतावनी दी है?

उत्तर     कवि ने अभिनव मानव को चेतावनी दी है कि मानव विज्ञान के साधनों का दुरूपयोग करेगा तो कल्याणकारी साधन विनाश का कारण बन जाएगे।

प्रश्न-2     कवि ने विज्ञान को जिसके समान बतलाया और इसके साथ कैसा व्यवहार करने को कहा?

उत्तर     कवि ने विज्ञान को तीक्ष्ण धार वाली तलवार  बतलाते हुए कहा कि इसे अपनी स्मृति से दूर फेंक दे अन्यथा यह विनाश का कारण बन सकती है।

प्रश्न-3     तमाम उपलब्धियों के उपरान्त भी अभिनव मानव को किसके समान बतलाया?

उत्तर     तमाम उपलब्धियों के उपरान्त भी अभिनव मानव अबोध शिशु की भांति है, जो फूल और कांटे का अन्तर नहीं जानता।

प्रश्न-4     काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?

उत्तर     रूपक अलंकार

प्रश्न-5     कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?

उत्तर     कविता का शीर्षक है-‘अभिनव मनुष्य’ और कवि है-रामधारी सिंह ‘दिनकर’

पुरूरवा

1.

सामने टिकते नहीं वनराज, पर्वत डोलते हैं,

काँपता है कुण्डली मारे समय का व्याल,

मेरी बाँह में मारुत, गरुड़ गजराज का बल है।

मर्त्य मानव की विजय का तूर्य हूँ मैं,

उर्वशी! अपने समय का सूर्य हूँ मैं ।

अन्ध तम के भाल पर पावक जलाता हूँ,

बादलों के सीस पर स्यन्दन चलाता हूँ।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(प)       नायक अपना परिचय देते हुए क्या कहता है?

उत्तररू.             नायक अपने बल, शक्ति और सामर्थ्य का उल्लेख करते हुए उर्वशी से कहता है कि उसके बल के समक्ष सिंह भी नहीं टिकते, पर्वत व समय रूपी सर्प भी भयभीत हो उठते हैं। उसकी बाहों में पवन, गरुड़ व हाथी जितना बल है। वह सूर्य के समान प्रकाशवान हैं, जो अन्धकार को मिटाता है। वह निर्बाध गति से कहीं भी आ-जा सकता है।

(पप) “ मानव की विजय का तुर्य हूँ मैं” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तर.    पुरूरवा अपनी सामर्थ्य का प्रदर्शन करते हुए उर्वशी से कहता है कि वह मरणशील व्यक्ति में भी विजय का शंखनाद कर सकता है अर्थात् वह मरणशील व्यक्तियों में भी उत्साह, जोश एवं उमंग का संचार कर सकता है।

(पपप)   पुरुरवा स्वयं की तुलना किससे करता है?

उत्तररू पुरूरवा स्वयं की तुलना विश्व को प्रकाशित करने वाले सूर्य से करते हुए कहता है कि वह मानव जीवन में छाए घोर अन्धकार को दूर करने वाली प्रचण्ड अग्नि के समान है।

(पअ)     पद्यांश के शिल्प-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।

उत्तररू काव्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। प्रबन्धात्मक शैली का प्रयोग करते हुए कवि ने लक्षणा शब्द-शक्ति में कय को प्रस्तुत किया है। पुरुरवा की शक्ति का वर्णन करने के लिए वीर रस का प्रयोग किया गया है। अनुप्रास, उपमा, रूपक व अतिशयोक्ति अलंकारों का प्रयोग करके काव्य में सौन्दर्य बढ़ गया है।

(अ)       प्रस्तुत पद्यांश के कवि व कविता का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तररू प्रस्तुत पद्यांश राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘पुरूरवा’ से उद्धृत किया गया है।

प्रश्न 2.

पर, न जानें बात क्या है!

इन्द्र का आयुध पुरुष जो झेल सकता है,

सिंह से बाँहें मिला कर खेल सकता है,

फूल के आगे वही असहाय हो जाता,

शक्ति के रहते हुए निरुपाय हो जाता।

विद्ध हो जाता सहज बंकिम नयन के बाण से,

जीत लेती रूपसी नारी उसे मुस्कान से।

                उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

(प)        प्रस्तुत पद्यांश में नायक आश्चर्यचकित क्यों है?

उत्तररू प्रस्तुत पद्यांश में नायक इस तथ्य के विषय में सोचकर आश्चर्यचकित है कि जो पुरुष रणभूमि में इन्द्र के वज्र का सामना कर सकता है, जो शेर से युद्ध करने से भी नहीं घबराता, वह आखिरकार क्यों कोमल, सरल व मृदुल नारी के समक्ष नतमस्तक हो जाता है।

(पप)     पद्यांश में नारी के किस गुण को उद्घाटित किया गया है?

उत्तररू प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने नारी के कोमल होने के उपरान्त भी कठोर, बलशाली व शक्ति सम्पन्न पुरुष को स्वयं के आगे नतमस्तक कर देने के गुण को उद्घाटित किया है। कवि कहता है कि जो पुरुष अपने बल एवं सामर्थ्य से सम्पूर्ण जगत पर शासन करता है, उसी पुरुष पर नारी अपने सौंदर्य से शासन करती हैं।

                (पपप) प्रस्तुत पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।

उत्तररू             प्रस्तुत पद्यांश के द्वारा कवि यह स्पष्ट करना चाहता है कि कोमलता व रूप सौन्दर्य का आकर्षण कठोर-से-कठोर हृदय के व्यक्ति को भी अपने मोहपाश में बाँध लेता है और उसके समक्ष व्यक्ति विवश होकर कुछ नहीं कर पाता।

(पअ)     प्रस्तुत पद्यांश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।

उत्तररू प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली का प्रयोग किया है। भाषा सहज, प्रवाहमयी व प्रभावोत्पादक है। पद्यांश की शैली प्रबन्धात्मक है। अर्थात् प्रत्येक पद कथ्य को आगे बढ़ाने में सहायक है।

(अ)       इन्द्र’ व ‘सिंह’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।

उत्तररू

शब्द     पर्यायवाची शब्द

इन्द्र       सुरपति, देवराज

सिंह      शार्दुल, मृगराज

उर्वशी

3.

कामना-वह्नि की शिखा मुक्त मैं अनवरुद्ध

मैं अप्रतिहत, मैं दुर्निवार;

मैं सदा घूमती फिरती हूँ

पवनान्दोलित वारिद-तरंग पर समासीन

नीहार-आवरण में अम्बर के आर-पार,

उड़ते मेघों को दौड़ बाहुओं में भरती,

स्वप्नों की प्रतिमाओं का आलिंगन करती।

विस्तीर्ण सिन्धु के बीच शून्य, एकान्त द्वीप, यह मेरा उर।

देवालय में देवता नहीं, केवल मैं हूँ।

मेरी प्रतिमा को घेर उठ रही अगुरु-गन्ध,

बज रहा अर्चना में मेरी मेरा नूपुर।

भू-नभ का सब संगीत नाद मेरे निस्सीम प्रणय का है,

सारी कविता जयगान एक मेरी त्रयलोक-विजय का है।

उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

                (प) उर्वशी स्वयं को कहाँ-कहाँ विद्यमान बताती हैं?

उत्तररू .उर्वशी स्वयं के विषय में बताती है कि वह सदैव इधर-उधर विचरती रहती है। वह देवताओं के रूप में मन्दिरों में विद्यमान है, वह मन्दिरों में बजने वाले मुँघरूओं में विद्यमान है, वह धरती और आकाश में चारों ओर उठने वाले संगीत के स्वरों में विद्यमान है अर्थात् वह पृथ्वी के कण-कण में विद्यमान है।

(पप) “   विस्तीर्ण सिन्धु के बीच शुन्य, एकान्त द्वीप, यह मेरा उर” पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।

उत्तररू कवि प्रस्तुत पंक्ति के माध्यम से उर्वशी के मनोभावों को प्रकट करते हुए कहता है कि इस संसार रूपीं विशाल सागर में वह एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमती रहती है, किन्तु उसके हृदय में शून्यता है, अकेलापन है। वह सबके बीच होकर भी सबसे अकेली हैं।

(पपप)   पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए।

उत्तररू प्रस्तुत पद्यांश के माध्यम से उर्वशी ने पुरूरवा को अपने गुणों अर्थात् सम्पूर्ण जगत में नारी की व्यापकता व प्रत्येक वस्तु में उसकी विद्यमानता के गुणों से अवगत कराते हुए नारी की व्यापकती एवं शक्ति सम्पन्नता का वर्णन किया है।

(पअ)     पद्यांश की अलंकार-योजना पर प्रकाश डालिए।

उत्तररू अलंकार किसी पद्यांश के शिल्प एवं भाव पक्ष में चमत्कार उत्पन्न कर देते हैं। प्रस्तुत पद्यशि में कवि ने ‘कामना-वहनि की शिखा’ में रूपक अलंकार, ‘स्वपनों की प्रतिमाओं का आलिंगन’ में मानवीकरण अलंकार, ‘देवालय में देवता नहीं’ में ‘द’ वर्ण आवृति के कारण अनुप्रास अलंकार आदि का प्रयोग किया है।

(अ)       प्रस्तुत पद्यांश के कवि वे शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए।

उत्तररू प्रस्तुत पद्यांश राष्ट्रवादी कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित कविता ‘उर्वशी’ से उद्धृत किया गया है।

सूक्तिपरक पंक्तियों की संसदर्भ व्याख्या

;1द्ध      बाण ही नहीं होते विचारों के केवल

                स्वप्न के भी हाथ में तलवार होती है।

अथवा

                ‘आदमी का स्वप्न हैं वह बुलबुला जल का।’

                व्याख्या – मनुष्य की कल्पनाशक्ति प्रखर है। वह नित्य नयी-नयी कल्पनाओं द्वारा नये-नये स्वप्न संजोया करता है। (अर्थात् सुख-समृद्धि की नयी-नयी योजनाएँ बनाया करता है।) फिर वह अपनी विचार-शक्ति के बल पर उन योजनाओं को सफल बनाता है। उनके मार्ग की बाधाओं को उसी प्रकार दूर करता है जिस प्रकार बाण सामने की रूकावट को अपने प्रहार से छेद कर हटा देता है। कवि अपने विचारों के बाणों से तथा कल्पना रूपी तलवार की धार से अपने पथ की बाधाओं से संघर्ष करता है। भले ही उसकी कल्पनाए ँ पानी के बुलबुलों की तरह फूट जाती हैं, फिर भी वह अपने लक्ष्य तक पहुँचने का अथक् प्रयास करता ही रहता है।

;2द्ध      एक नर से दूसरे के बीच का व्यवधान,

                तोड़ दे जो, वही ज्ञानी, हैं वह विद्वान,

                और मानव भी वहीं।

                व्याख्या – मानव का श्रेय तो अगणित मानवों से प्रेम करना है। वसुधा ही मेरा कुटुम्ब हैं, ऐसा समझना ही शुभ है। मानव मन के बीच में जो रंग, जाति का भेद-भाव हैं, उसे तोड़ दें, वही ज्ञानी हैं, वही विद्वान् है और वही सच्चा कहलाने का अधिकारी है।

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