krishna-janmashthami -in hindi

जन्माष्टमी – भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव
जन्माष्टमी -अर्थात भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव का दिन
भाद्र पद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि की रोहिणी नक्षत्र की मध्य रात्रि व् वृषभ के चन्द्रमा की स्तिथि में जन्म हुआ था भगवान् श्री कृष्ण का और इसी उपलक्ष में हर्षोल्लास तथा भक्ति भाव से भारतीय संस्कृति में जन्माष्टमी का पर्व मनाने की परम्परा है ,प्रमुख हिन्दू त्योहारों में से एक कृष्ण जन्माष्टमी भी है।

जन्माष्ठमी के दिन व्रत /उपवास की महिमा
जन्माष्ठमी के दिन व्रत /उपवास एवं श्री कृष्ण पूजन का विधान धर्म ग्रंथों में वर्णित है। जन्माष्टमी के व्रत /उपवास को व्रत राज भी कहा जाता है। धर्मानुसार मान्यता है कि हज़ारों अश्व मेध यज्ञ ,सहस्रों राजसूय यज्ञ ,दान ,तीर्थ और व्रत करने जो अभीष्ट प्राप्त होता है ,वह सब जन्माष्टमी व्रत करने से प्राप्त हो जाता है। एकादशी व्रत के जो उपाय बताये गए है उन्ही नियमों का पालन जन्माष्टमी व्रत में भी किया जाता है। व्रत करने वाले फलाहार तो कर सकते है किन्तु अन्नाहार वर्जित माना गया है। पुराणों में जन्माष्टमी व्रत/उपवास की बड़ी महिमा प्रतिपादित की गयी है। और तिथि और नक्षत्र के अंत में पारणा की जाने का प्रावधान बतलाया गया है। जन्माष्टमी के व्रत /उपवास से कार्य सिद्धि एवं पापों का नाश होना बताया गया है। व्रत व्रत/उपवास के सविधि पालन से अनेक व्रत से प्राप्त होने वाला पुण्य प्राप्त होता है ऐसा माना जाता है । श्री कृष्ण जन्माष्टमी को मोहरात्रि भी कहा जाता है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी रत जगा कर भगवान् श्री कृष्ण का नाम ,ध्यान एवं मन्त्रोच्चारण किया जाता है।
हल्दी ,दही ,घृत ,तैल ,गुलाबजल ,मक्खन ,केसर,कपूर आदि से भगवान् श्री कृष्ण का पूजन किया जाता है।

जन्माष्टमी के व्रत का महत्त्व इसलिए भी है क्योकि स्वयं माता यशोदा ने यह व्रत किया था। इस सन्दर्भ में पौराणिक अंतर्कथा है –
जब कंस को यह ज्ञात होता हैकि उसकी मृत्यु का कारण वसुदेव पुत्र गोकुळ में पल रहा है ,तो कंस ने पूतना ,कैशी ,अरिष्ठ ,काल्याख्य आदि राक्षसों को बाल कृष्ण का वध करनेभेजा ,किन्तु वे सब कृष्ण द्वारा मारे गए।
बाल कृष्ण को राक्षसों से मरवाने के प्रयास विफल होने पर कंस ने गोकुळ से बाबा नन्द को मथुरा बुलवाया और कहा कि मैं तुम्हारा वध करना चाहता हूँ किन्तु यदि तुम मुझे पारिजात पुष्प लाकर दे दो तो मैं तुम्हे प्राण दान दे सकता हूँ।
बाबा नन्द ने शर्त स्वीकार कर ली।
गोकुळ लौटकर बाबा नन्द ने सारा वृतान्त यशोदा को सुनाया। जब बाबा नन्द पारिजात पुष्प लाने की बात यशोदा को बता रहे थे बाल कृष्ण ने सारा वृतान्त सुन लिया।
बाल कृष्ण कंदु क्रीड़ा के बहाने अपने सखाओं को यमुना नदी ले गए और खेल-खेल में गेंद यमुना नदी में फेंक दी तथा नदी से गेंद निकालने के बहाने यमुना में कूद गए।
किसी ने यह समाचार यशोदा तक पहुंचा दिया।
कृष्ण के यमुना में कूदने का समाचार सुनकर यशोदा दौड़ाती हुई यमुना नदी के किनारे आयी और यमुना नदी से अपने पुत्र की प्राण रक्षा की प्रार्थना करते हुए संकल्प किया कि मैं अपने कान्हा को पाकर भाद्र पद की रोहिणी युक्त अष्टमी का व्रत रखूँगी।
उधर बाल कृष्ण ने पाताल लोक पहुंचकर कालिया नाग को पराजित कर दिया। पातालवासी कालिया नाग को ज्ञात हो चूका था कि बाल कृष्ण और कोई नहीं बल्कि विष्णु के अवतार है। उसने साष्टांग प्रणामकर पारिजात पुष्प बाल कृष्ण को भेंट कर दिया। बाल कृष्ण पारिजात पुष्प लेकर सकुशल यमुना से बाहर निकल आये।
इस तरह जन्माष्टमी का यह प्रकरण जन्माष्टमी व्रत के साथ जुड़ गया और जन्माष्टमी के व्रत का महत्त्व और भी बढ़ गया।
पूजन विधि
पूजा स्थल पर दीप प्रज्वलित करें।
तदुपरांत लड्डू गोपाल का पूजन करें।
लड्डू गोपाल को पंचामृत से स्नान कराएं।
लड्डू गोपाल का जलाभिषेक कर चंदन और भोग लगाएं।
तत्पश्चात लड्डू गोपाल को झूला झूलाएं।
रात्रि में 12 बजे बाल श्री कृष्ण की आरती उतारे और कृष्ण भजन गाएं।
इस दिन काले तिल से स्नान कर सूतिका गृह बनाकर माता देवकी और श्री कृष्ण के विग्रह को पुष्पों से सुसज्जित किया जाता है ,चन्दन,धूप ,पुष्प,कमल पुष्प ,आदि से श्री कृष्ण विग्रह वस्त्र आवेष्ठित कर पूजन किया जाता है। गुरुचि ,छोटी पीपल और सौठ पूजन सामग्री में प्रयुक्त की जाती है।
देवकी विग्रह के साथ विष्णु के दस रूपों को भी स्थापित किया जाता है।
इसके अतिरिक्त यशोदा ,नन्द ,वसुदेव ,गायों ,कालिया ,यमुना ,गोप ,गोपिकाएं का भी पूजन होता है।
पुरोहित द्वारा मन्त्रोच्चारण किया जाता है ,मध्य रात्रि को गुड़ व् घृत से वसोर्धारा की आहुति देकर षष्टी देवी का पूजन किया जाता है। दीप प्रज्जवलित कर घंटा ध्वनि के साथ आरती की जाती है।
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