2october-gandhi jayanti
2october-gandhi jayanti
2october-gandhi jayanti-आज का दिन है महान
आज दो अक्टूबर है
एक ने स्वतन्त्रता का बीज बोया और सींचा ,तो दूसरे ने स्वतन्त्रता को पल्लवित किया
दोनों ही सत्य और अहिंसा के प्रबल समर्थक सत्य और अहिंसा को हथियार बनाकर गांधीजी ने स्वतन्त्रता की लड़ाई जीती।गांधीजी ने सत्य और अहिंसा को जीवन का मार्ग बतलाया तो शास्त्रीजी ने सत्य और अहिंसा के सम्बन्ध में कहा था कि लोगो को सच्चा लोकतंत्र कभी भी असत्य और हिंसा से प्राप्त नहीं हो सकता। कितना साम्य था दोनों के विचारों में।
दोनों ही आज हमारे बीच नहीं है किन्तु उनके प्ररेक विचार आज भी हमारा मार्ग-दर्शन कर रहे है। हमारे प्ररेणा -स्त्रोत है –
जन्म -२ अक्टूबर ,१९०४ (मुग़ल सराय )
मृत्यु -११ जनवरी ,१९६६ (रहस्यमय )
पहचान -स्वतंत्र भारत के दूसरे प्रधान मंत्री (१९६४
उपलब्धि -१९६५ के युध्द में पाकिस्तान को परास्त
सम्मान-भारत रत्न (१९६६ )
स्मरणीय -सादगी,देश-भक्ति और ईमानदारी
करो या मरो , मरो नहीं ,मारो
जय जवान -जय किसान
मै जितना साधारण दिखता हूँ ,उतना साधारण भी नहीं हूँ
देश के प्रति निष्ठा सभी निष्ठाओं से पहले आती है
आर्थिक मुद्दे दूसरे मुद्दों से ज्यादा ज़रूरी है क्योकि इससे पहले गरीबी और बेरोज़गारी से लड़ना ज्यादा ज़रूरी है
आज़ादी की रक्षा केवल सेना का काम नहीं बल्कि पूरे देश को मज़बूत होना होगा
हम सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि समस्त विश्व के लिए शान्ति और शांति पूर्ण विकास में विश्वास रखते है
समाज को एक जुट रखकर ही लक्ष्य की बढ़ा जा सकता और विकास किया जा सकता है
भ्रष्टाचार की समस्या से यदि गंभीरता और दृढ संकल्प के साथ नहीं निपटते है तो हम अपने कर्तव्यों का निर्वाह करने में असफल होंगे
देश के प्रति निष्ठा सर्वप्रथम है
यदि कोई एक व्यक्ति भी ऐसा रह गया जिसे किसी रूप में अछूत कहा जाये तो भारत को अपना सिर शर्म से झुकाना पड़ेगा
सफलता मिलती है समर्पण के साथ किये कठोर परिश्रम से
राष्ट्र रक्षा के सेना को ही नहीं बल्कि पूरे देश को शक्ति संपन्न बनना होगा
सभी को अपना -अपना दायित्व एक योध्दा की समर्पण ,उत्साह ,और दृढ संकल्प के साथ पूरा करना होगा
एक जुटता पहली और अनिवार्य शर्त है
सत्य और अहिंसा ही लोकतंत्र के आधारभूत स्तम्भ है
लोकतंत्र को मज़बूत रखने के लिए कानून का सम्मान सर्वोपरि है
गरीबी और बेरोजगारी सबसे बड़े दुश्मन है
राष्ट्र को व्यक्तिगत धर्म से अलग रखकर देखा जाना किये
देश की पहचान ऐसी बने कि दूसरों की लिए प्रेरणा बन जाये
देश के संसाधनों का प्रयोग मानव हित में हो
पूरे देश के लिए एक संपर्क भाषा होना आवश्यक है और क्षमता हिंदी में है
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वशांति और मित्रता हमारा ध्येय
गांधीजी के प्रेरक कथन –
हिंसा के प्रति हिंसा का अर्थ है -अपने बौद्धिक और नैतिक पतन को स्वीकार करना
यदि कोई अपने चरित्र और विचारों में सामंजस्य स्थापित नहीं पाता है तो उसका विद्वान होना व्यर्थ है
मौन क्रोध को जितने की रामबाण औषधि है
संकल्प के प्रति दृढ रहनेवाला कृशकाय मनुष्य भी इतिहास बदल सकता है
क्रोध एक प्रचंड अग्नि है जो इस अग्नि को काबू में कर लेगा वो इसे बुझा भी देगा
भूल पाप नहीं किन्तु उसे छिपाना महापाप है। अपनी भूल को स्वीकारना उस झाड़ू के सामान है जो गन्दगी को साफ़ कर उसे स्वच्छ बना देती है। हर भूल एक नई शिक्षा देती है
अपने मुँह से अपनी तारीफ करना इस बात का प्रमाण है ,उसमे अपनी कोई योग्यता नहीं है
प्रार्थना नम्रता की पुकार है आत्म-शुद्धि और आत्म-निरीक्षण का आह्वान आव्हान है। प्रार्थना पश्चाताप का चिह्न है। प्रार्थना हमारे अधिक अच्छे ,अधिक शुद्ध होने की आतुरता का सूचक है
स्वच्छता ,पवित्रता और आत्म-सम्मान से जीने के लिए धन की आवश्यकता नहीं है
यदि आपको अपने उद्देश्य ,साधन और ईश्वर में आस्था है ,विश्वास है तो सूरज की प्रचंड गर्मी भी शीतलता प्रदान करेगी
लड़ते-लड़ते मरना जाना ,कायर बनकर जीने से कहीं ज्यादा अच्छा है
कुरीति के अधीन होकर जीना कायरता है और उसका विरोध करना पुरूषार्थ है
यौवन विकारों को जितने के लिए मिला है ,इसे व्यर्थ मत गवाओ
प्रेम की शक्ति दंड की शक्ति से हज़ार गुना प्रभावी और स्थाई होती है
गुलाब को उपदेश देने की आवश्यकता नहीं क्योकि उसकी सुगंध ही उसका उपदेश है
ह्रदय की पवित्रता ही वास्तविक सौन्दर्य है
सुख बाहर सेमिलने वाली चीज नहीं ,अहंकार का त्याग किये बिना इसे नहीं पाया जा सकता
पाप से घृणा करो ,पापी से नहीं
सही और गलत के बीच भेद करने की क्षमता ही मनुष्य को पशुओं से भिन्न बनाती है
मैं इस बात से सहमत नहीं हूँ कि धर्म का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं है। धर्म से अलग होकर राजनीति मृत शरीर के समान है ,जला देने योग्य है
आचरण रहित विचार ,चमक रहित मोती के सामान है
जो समय बचते है ,वे धन बचते है ,और बचाया हुआ धन कमाए हुए धन के बराबर है
जिस व्यक्ति ने अपनी इच्छाओं का त्याग कर दिया हो और मन को अहंकार से मुक्त कर लिया हो वही सच्ची शांति पा सकता है
विश्वास करना एक गुण है ,अविश्वास दुर्बलता का चिह्न है
काम की अधिकता नहीं ,अनियमितता आदमी को मार डालती है
कोई भी संस्कृति अपने को अन्य संस्कृति से अलग रखकर ज्यादा समय तक जीवित नहीं रह सकती।
परमेश्वर को सत्य कहने की अपेक्षा सत्य को ईश्वर कहना ज्यादा उपयुक्त होगा
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