26 january-republic day
26 january- republic day
२६ जनवरी -गणतन्त्र दिवस
२६ जनवरी -गणतन्त्र दिवस
२०० वर्षों की पराधीनता के पश्चात् १५ अगस्त ,१९४७ को हुतात्माओं के प्राणों की आहुति से देश स्वतन्त्र हुआ लेकिन तब तक प्रशासनिक और न्यायिक सञ्चालन हेतु हमारा अपना कोई स्वतन्त्र संविधान नहीं था।स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भीम राव अम्बेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा का गठन किया गया।। इस संविधान के निर्माण में विश्व के कई देशों के संविधान का अध्यन किया गया और उन देशों के संविधान की अच्छी बातों को रेखांकित कर भारतीय संविधान में सम्मिलित किया गया। २११ विशेषज्ञों के अथक प्रयासों से २ वर्ष ११ महीने और १८ दिन में विश्व का सबसे बड़ा संविधान तैयार हुआ।
२४ जनवरी १९५० को प्रतिनिधियों के हस्ताक्षर से हस्ताक्षरित होने के पश्चात् २६ जनवरी ,१९५० को भारत के अंतिम गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राज गोपालाचारी भारत को गणतन्त्र राष्ट्र होने की घोषणा की और भारत को संप्रभु ,धर्म -निरपेक्ष ,लोकतांत्रिक और गणतन्त्र राष्ट्र की पहचान मिल गयी। इसी दिन देश को गणराज्य का दर्जा प्राप्त होने के साथ -साथ डॉ. राजेन्द्र प्रसाद को देश का प्रथम राष्ट्रपति घोषित किया गया।अपना संविधान लागू होने के साथ ही हमारी अधूरी स्वतन्त्रता पूर्ण हुई। डॉ.राजेन्द्र प्रसाद ने देश के प्रथम राष्ट्रपति के रूप में इरविन स्टेडियम में राष्ट्रीय तिरंगा ध्वज फहराया। सेना के तीनों अंगों ने इसमे हिस्सा लिया।तब से लेकर आज तक गणतन्त्र दिवस राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाने की परंपरा चली आ रही है।
हुतात्माओं ने अपना दायित्व पूर्ण कर दिया। अब हमारी बारी है ,एक सच्चे नागरिक की भूमिका निभाने की।
क्या है हमारा देश के प्रति दायित्व ?
देश का नागरिक होने के नाते कैसे व्यक्त कर सकते है हम अपना राष्ट्र प्रेम ?
देश का नागरिक होने के नाते क्या भूमिका है हमारी ?
कैसे हम राष्ट्र गण ,राष्ट्र के तंत्र को और ज्यादा मज़बूत बना सकते है ?
इन सवालों का जवाब ढूढने और आत्म मंथन करने का दिन है -गणतंत्र दिवस
आज भारत स्वतन्त्र भी है और गणतंत्र भी। किसी भी राष्ट्र रुपी भवन की नींव होते है उस देश के नागरिक। भवन की नींव जीतनी गहरी और सुदृढ़ होगी ,वह राष्ट्र रुपी भवन भी उतना ही सुदृढ़ होगा। जिस देश के नागरिक का चरित्र जितना पवित्र होगा ,राष्ट्र प्रेम की भावना जितनी प्रबल होगी ,राष्ट्र के प्रति जितनी समर्पण की भावना होगी,वह राष्ट्र उतना ही उन्नत होगा। नागरिक ही तो उस राष्ट्र की शक्ति है।
एक नागरिक का एक अच्छा कार्य पूरे राष्ट्र का नाम रोशन कर सकता है ,तो एक नागरिक का बुरा कार्य पूरे राष्ट्र को कलंकित भी कर सकता है।एक प्रेरक उद्धरण है –
एक बार स्वामी रामतीर्थ जी जापान यात्रा पर गए हुए थे।ट्रेन में सफर कर रहे थे। उस दिन वे उपवास पर थे ,अन्नाहार कर नहीं सकते थे ,सोचा किसी स्टेशन पर कुछ अच्छे फल मिल जायर तो फलाहार कर लेंगें किन्तु अब तक जितने भी स्टेशन आये ,उन पर अच्छे फल दिखाई नहीं दिए। एक स्टेशन पर ट्रेन ठहरी स्वामीजी ने खिड़की से बाहर झांककर देखा ,शायद यहाँ फल मिल जाए किन्तु कहीं फल दिखाई नहीं दिए। स्वामीजी के मुख से निकल गया -क्या जापान में अच्छे फल नहीं मिलते है?
एक जापानी युवक ने स्वामीजी का यह कथन सुन लिया। वह जापानी युवक दौड़ता हुआ गया और एक ताज़ा फलों की टोकरी लेकर आया और स्वामीजी को भेँट की। स्वामीजी ने समझा ,शायद यह युवक फल बेचनेवाला होगा। स्वामीजी ने उस युवक से फलों का दाम पूछा। युवक ने उत्तर दिया -यदि आप इन फलों का मूल्य देना ही चाहते है तो इसका मूल्य यह है कि जब आप भारत लौटे तो किसी से यह ना कहियेगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।
स्वामीजी युवक के उत्तर से बहुत प्रभावित हुए। राष्ट्र-प्रेम का इससे अच्छा और क्या उदहारण हो सकता है ?एक युवक के इस छोटे से काम ने पूरे जापान का नाम रोशन कर दिया। सोचो ,भारत के एक सौ पच्चीस करोड़ नागरिक एक-एक भी अच्छा काम करें तो देश का नाम कितना रोशन हो सकता है।
देश प्रेम कानून के भय से नहीं, ह्रदय तल की गहराइयों से उत्पन्न होता है।
देश के संविधान ने नागरिको को जहाँ अधिकार दिए है ,वही नागरिकों के लिए कर्तव्य भी निर्धारित किये है।क्या हमने अपने निजी स्तर पर कभी यह जाँचा है कि हम अपने कर्तव्य के प्रति कितने सजग और ईमानदार है?
नागरिक के व्यक्तिगत विचार और व्यवहार देश के वातावरण को प्रभावित करते है।
यदि हम कर दाता के दायरे में आते है तो क्या हम ईमानदारी से कर दे रहे है ?
क्या हम सरकारी या सार्वजनिक स्थलों के प्रति वैसा ही व्यवहार करते है जैसा अपने घर के प्रति ?
क्या हम चुनाव के दिन मिलनेवाली छुट्टी का उपयोग उसी उद्देश्य पूर्ति के लिए करते है ,जिस हेतु छुट्टी मिली है ?
क्या हम बिजली ,पानी और सार्वजनिक सुविधाओं के प्रति ईमानदार है ?
क्या हम यह सोचते है कि गन्दगी और प्रदूषण के प्रति हम स्वयं कितने ज़िम्मेदार है ?
यदि हम सरकारी सेवा में है, तो क्या समय परअपने कार्य-स्थल पर पहुँचते है और निर्धारित घण्टे कार्य करते है ?
क्या हम रिश्वत और भ्रष्टाचार के विरोधी होते हुए भी कभी -कभी अपने निज हित के वशीभूत होकर उसी सिस्टम के अंग नहीं बन जाते ?
क्या हम स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के अधिकार का प्रयोग देश और समाज हित में कर रहे है ?
क्या हम धर्म निरपेक्ष राष्ट्र में रहकर मानसिक संकीर्णता या धार्मिक कट्टरता के बावज़ूद भी अपनी भावनाओं को नियंत्रित रखते है ?
हिंदी हम सबकों को जोड़नेवाली भाषा है ,उसी भाषा को बोलने में गर्व अनुभव करते है या हीनता ?
राष्ट्र भक्ति की दुदंभि बजाने वाले राजनीतिज्ञों का चरित्र क्या वैसा ही है ,जैसा वे जनता के सामने स्वयं को प्रस्तुत करते है ?
हमारे वर्तमान राजनेताओं में कितनों का चरित्र ऐसा है ,जो आनेवाली पीढ़ियों का आदर्श बन सकेंगे ?
क्या हमारे ये छद्म राज नेता ये समझ रहे कि आनेवाली पीढ़ियां इनके चित्र दीवारों पर लगायेंगी ?
क्या इनकी जन्म या पुण्य तिथि पर इनको याद किया जायेगा ?
ये धन तो कमा लेंगे लेकिन नाम कैसे कमाएंगे ?
यह ऐसे कुछ सवाल है जिन पर देश के हर नागरिक को सोचना होगा। व्यक्तिगत हित से ऊपर उठकर राष्ट्रहित को ध्यान में रखना होगा।
अधिकार और कर्तव्य के प्रति सचेत नागरिक से राष्ट्र को संबल प्राप्त होता है। सरकारी नीतियां जो हमारे निज स्वार्थ की पूर्ति में आड़े आने लगती है, तो हम देश के प्रति नकारात्मक सोच को इतना विकसित कर लेते है कि देश-हित की भावना हाशिये में चली जाती है ,दोषारोपण और विरोध मुख्य मुद्दा बन जाते है। प्याज ,दाल ,सब्जी ,पेट्रोल ,बिजली ,सिलेन्डर के दामों में वृद्धि से आक्रोशित होने की अपेक्षा देश के प्रति साकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना होगा।
देश का विकास और समृद्धि केवल भौतिक सुविधाओं की पूर्ति से तय नहीं की जा सकती। स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच का अंतर समझना होगा।
सांस्कृतिक विरासत का सम्मान करना प्रत्येक नागरिक कर्तव्य है तो सभ्यता और संस्कृति के मूल्यों का संरक्षण धर्म है। हुतात्माओं ,राष्ट्रीय धरोहर ,चिह्न ,स्मारकों के प्रति गौरवानुभूति देशप्रेम का ही प्रतिबिम्ब है।
देश में जो समस्याएं है ,उन समस्याओं के लिए सरकार को कोसना या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अनुचित लाभ उठाते हुए दोषारोपण करने मात्र से ही अधिकार या कर्तव्य पालन का दायित्व पूर्ण नहीं हो जाता।
यथा राजा -तथा प्रजा की कहावत राजतन्त्र की समाप्ति के साथ ही अर्थहीन हो गयी। लोकतंत्र में तो यथा प्रजा -तथा राजा की कहावत चरितार्थ करनी होगी।
देश अपने नागरिकों को कुछ नहीं ,बल्कि बहुत कुछ दे रहा है। देश के द्वारा बहुत कुछ के प्रतिफल में कुछ देना नागरिक का कर्तव्य ही नहीं, धर्म भी हो जाता है।
देश का एक बच्चा भी अनपढ़ ना रहे इसके लिए सर्व शिक्षा अभियान चलाया गया ,देश का कोई बच्चा कुपोषण का शिकार ना हो, मिड डे मिल दिया जा रहा है। कोई बच्चा पोलियो से ग्रसित ना हो ,दो बूँद ज़िन्दगी की जा रही है ,कोई गरीब इलाज के अभाव मरे नहीं ,सरकारी अस्पताल में मुफ्त इलाज ,दवाइयाँ ,जाँच की सुविधा दी जा रही है। असहाय को वृद्धावस्था पेन्शन दी जा रही है ,गरीबी रेखा के नीचे आ रहे लोगों को बी पी एल की सुविधा दी जा रही है ,किसान के पास ३६५ दिन काम नहीं होता ,मनरेगा चलाया जा रहा है ,नारी -बालिका सुरक्षा के लिए कई सारे कानून लागू किये गए ,किसान हित के लिए कई सारी योजनाए लागू की गयी। नागरिक को अपनी ज़िन्दगी की चिंता नहीं ,देश को है ,हर चौराहे पर यातायात पुलिस तैनात है ,क्या सिर पर हेलमेट भी सरकार रखने आएगी ? नागरिकों की सुरक्षा के लिए सशक्त तीनों सेना हमेशा तैनात है। देश स्वच्छ रहे ,स्वच्छता अभियान चलाकर नागरिकों को जाग्रत किया जा रहा है। नागरिकों की सुविधा के लिए ऐसी कई सारी योजनाए क्रियान्वित की जा रही है। देश अपनी ज़िम्मेदारी रहा है ,नागरिक को अपने हिस्से की अच्छे नागरिक की भूमिका निभानी है।
अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करने से बेहतर और कोई राष्ट्र भक्ति नहीं हो सकती। हम बन्दूक लेकर सीमा पर खड़े होनेवाले सिपाही ना बन सके ना सही ,लेकिन सीमा के भीतर के सिपाही तो बन ही सकते है।
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