12up board ,kaikeyee ka anutap.maithili sharana gupt,
गीत, कैकेयी का अनुताप ,मैथिली शरण गुप्त
गीत मैथिली शरण गुप्त
।ण् निरखी सखी ………………………… अर्ध्य भरलाए
गीत
निरख सखी, ये खंजन आए,
फेरे उन मेरे रंजन ने नयन इधर मन भाए!
फैला उनके तन का आतप, मन से सर सरसाए,
घूमें वे इस ओर वहाँ, ये हंस यहाँ उड़ छाए! ।
करके ध्यान आज इस जन का निश्चय वे मुसकाए,
फूल उठे हैं कमल, अधर-से यह बन्धूक सुहाए!
स्वागत, स्वागत, शरद, भाग्य से मैंने दर्शन पाए,
नभ ने मोती वारे, लो, ये अश्रु अर्घ्य भर लाए।।
प्रश्न-1 खंजन पक्षी के नेत्र देखकर उर्मिला ने सखी से क्या कहा?
उत्तर खंजन पक्षी के नेत्र देखकर उर्मिला कहती है कि मेरे प्रियतम ने इन खंजन पक्षियों के रूप में अपने सुन्दर नेत्र मेरी ओर घुमा दिए है।
प्रश्न-2 धूप और खिले हुए कमल के सम्बन्ध में उर्मिला ने क्या कहा?
उत्तर उर्मिला कहती है कि इस धूप में जो गर्मी है, वह मेरे प्रियतम के तप के प्रभाव से है तथा ये खिले हुए कमल मेरे प्रियतम के मन की स्निग्धता का ही परिचायक है।
प्रश्न-3 हंस किस बात का स्मरण दिला रहे है?
उत्तर हंस इस बात का स्मरण दिलाने आए है कि मेरे प्रियतम वन में घूम रहे होंगे।
प्रश्न-4 खिले हुए कमल को देखकर उर्मिला क्या अनुमान लगाती है?
उत्तर खिले हुए कमल देखकर उर्मिला अनुमान लगाती है कि मेरे प्रियतम मुझे याद करके मुस्कराए होंगे।
प्रश्न-5 लाल रंग के बन्धूक उर्मिला को किसके समान लग रहे है?
उत्तर लाल रंग के बन्धूक उर्मिला को अपने प्रियतम के लाल अधरों जैसे जान पड़े।
प्रश्न-6 शरद ऋतु का स्वागत आकाश ने ओस की बॅंूदों के रूप में मोती न्यौछावर कर किया तो उर्मिला ने शरद का स्वागत कैसे किया?
उत्तर उर्मिला ने अपने नेत्रों से ऑंसू रूपी अर्ध्य चढ़ाकर शरद का स्वागत किया।
प्रश्न-7 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर रूपक
प्रश्न-8 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-गीत एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
ठण् शिशिर, न फिर ………………………… भाव भुवन में।
2 शिशिर, न फिर गिरि-वन में,
जितना माँगे, पतझड़, दूँगी मैं इस निज नन्दन में,
कितना कम्पन तुझे चाहिए, ले मेरे इस तन में।
सखी कह रही, पाण्डुरता का क्या अभाव आनन में?
वीर, जमा दे नयन-नीर यदि तू मानस-भाजन में,
तो मोती-सा मैं अकिंचना रक्खं उसको मन में।
हँसी गई, रो भी न सकूँ मैं, अपने इस जीवन में,
तो उत्कण्ठा है, देखू फिर क्या हो भाव-भुवन में।
प्रश्न-1 उर्मिला ने शिशिर ऋतु से क्या प्रार्थना की?
उत्तर उर्मिला शिशिर ऋतु से प्रार्थना करती है कि है शिशिर, तू पहाड़ो और जंगलों में न घूम, तू जितने भी पतझड़ के पत्ते चाहे, वे सारे पत्ते में अपने शरीर को सुखाकर दे दूॅंगी।
प्रश्न-2 शिशिर और उर्मिला में क्या साम्य बतलाया है?
उत्तर शिशिर भी कॉंपता रहता है और उर्मिला भी विरह वेदना से कॉंपती रहती है।
प्रश्न-3 अपने मुख से श्शििर को पीलापन देने से क्या आशय है?
उत्तर शिशिर को पीत वर्ण पसन्द है, और विरह के कारण उर्मिला का मुख भी पीला हो गया है, यह पीलापन इतना अधिक है कि वह पीलापन अपने पास से दे सकती है।
प्रश्न-4 नेत्रों का जल जम जाने पर उर्मिला उन आसुॅंओं को किस तरह सहेज कर रखेगी?
उत्तर नेत्रों का जल जम जाने पर उर्मिला उन आसुॅंओं को मोतियों की तरह सहजकर रखेगी।
प्रश्न-5 हॅंसना और रोना छीन जाने पर उर्मिला ने कैसी स्थिति हो जाने की बात कही है।
उत्तर हॅंसना और रोना छीन जाने पर जीवन का कोई उद्देश्य शेष नहीं रह जाएगा।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार के नाम बतलाइए।
उत्तर रूपक, उपमा, अनुप्रास और मानवीकरण।
प्रश्न-7 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-गीत एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
ब्ण् मुझे फूल ………………………… पर धारांे।
3 मुझे फूल मत मारो,
मैं अबला बाला वियोगिनी, कुछ तो दया विचारो।
होकर मधु के मीत मदन, पटु, तुम कटु, गरल न गारो,
मुझे विकलता, तुम्हें विफलता, ठहरो, श्रम परिहारो।
नहीं भोगिनी यह मैं कोई, जो तुम जाल पसारो,
बल हो तो सिन्दूर-बिन्दु यहदृहरनेत्र निहारो!
रूप-दर्प कन्दर्प, तुम्हें तो मेरे पति पर वारो,
लो, यह मेरी चरण-धूलि उस रति के सिर पर धारो।।
प्रश्न-1 उर्मिला काम देव से क्या प्रार्थना करती है?
उत्तर उर्मिला कामदेव से प्रार्थना करती है कि वह युवा अबला और वियोगिनी है, इसलिए उसे अपने पुष्प बाणों से आहत न करे, निष्ठुरता न दिखलाए।
प्रश्न-2 उर्मिला ने काम देव को क्या चुनौती दी ?
उत्तर उर्मिला कामदेव को चुनौती देती हुई कहती है कि तुम लाख प्रयत्न करके भी मुझे अपने व्रत और संयम से डिगा नहीं सकोगे।
प्रश्न-3 उर्मिला ने कामदेव से किसके समान किसे देखने की बात कही है?
उत्तर उर्मिला ने कामदेव से शिव नेत्र के समान बाधाओं को भस्म कर देने वाले सिन्दूर बिन्दु की ओर देखने की बात कही है।
प्रश्न-4 उर्मिला ने कामदेव को अपना सौन्दर्य किस पर न्यौछावर कर देने की बात कही है और क्यों?
उत्तर उर्मिला ने कामदेव को अपना सौन्दर्य अपने प्रियतम लक्ष्मण के चरण में न्यौछावर कर देने की बात कही है क्योंकि रूप सौन्दर्य में कामदेव लक्ष्मण के चरणों की धूल के बराबर भी नहीं है।
प्रश्न-5 उर्मिला ने कामदेव को स्वयं के चरणों की धूल को कहा रखने की बात कही है ?
उत्तर उर्मिला ने कामदेव को स्वयं के चरणों की धूल को उनकी पत्नी रति के सिर पर रखने की बात कही है।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार के नाम बतलाइए।
उत्तर श्लेष, रूपक, अनुप्रास और यमक
प्रश्न-7 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-गीत एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
क्ण् यही आता है ………………………… इस मन में
4 यही आता है इस मन में,
छोड़ धाम-धन आकर मैं भी रहँ उसी वन में।
प्रिय के व्रत में विघ्न न डालूँ, रहूँ निकट भी दूर,
व्यथा रहे, पर साथ-साथ ही समाधान भरपूर।
हर्ष डूबा हो रोदन में,
यह आता है इस मन में।
बीच बीच में उन्हें देख लूँ मैं झुरमुट की ओट,
जब वे निकल जाएँ तब ले, उसी धूल में लोट।।
रहें रत वे निज साधन में,
यही आता है इस मन में।
जाती जाती, गाती गाती, कह जाऊँ यह बात
धन के पीछे जन, जगती में उचित नहीं उत्पात।
प्रेम की ही जय जीवन में।
यही आता है इस मन में।
प्रश्न-1 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए?
उत्तर ।
प्रश्न-2 उर्मिला ने क्या कामना व्यक्त की है?
उत्तर उर्मिला राजभवन के समस्त वैभव का त्यागकर उसी प्रकान वन में जाकर रहने की बात कहती है जिस प्रकार लक्ष्मण वन में रह रहे है।
प्रश्न-3 उर्मिला प्रियतम के निकट रहकर भी दूर रहने की बात क्यों कहती है?
उत्तर क्योंकि उर्मिला अपने प्रियतम लक्ष्मण के व्रत पालन में बाधक नहीं बनना चाहती।
प्रश्न-4 काव्यांश में उर्मिला का कौनसा कथन विरोधाभासी जान पड़ता है?
उत्तर उर्मिला एक ओर अपने प्रियतम के दर्शन कर आनन्दित होने की बात कहती है, दूसरी ओर प्रत्यक्ष दर्शन न कर विलाप करते रहने की बात कहती है।
प्रश्न-5 उर्मिला ने अपने प्रियतम लक्षमण को किस तरह देखने की बात कही है ।
उत्तर उर्मिला ने पेड़ों की झुरमुट की ओट में से प्रियतम लक्ष्मण को देखने की बात कही है।
प्रश्न-6 उर्मिला ने किस मार्ग की धूल में लोटने की बात कही है?
उत्तर जिस मार्ग से उसके प्रियतम लक्ष्मण गुजरे, उनके गुजरने के बाद उनके चरणों से स्पर्शित धूल पर लौटने की बात कही है।
प्रश्न-7 काव्यांश के अन्त में उर्मिला ने क्या संदेश दिया है।
उत्तर इस संसार में धन और वैभव के लिए उत्पात करना, संघर्ष करना व्यर्थ है इस जीवन में प्रेम की विजय होती है, धन की नहीं
प्रश्न-8 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-गीत एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
मैथिली शरण गुप्त / कैकेयी का अनुताप-प्
।.1तदन्तर बैठी ………………………… नीर निधि जैसी
1.तदनन्तर बैठी सभा उटज के आगे,
नीले वितान के तले दीप बहु जागे।
टकटकी लगाए नयन सुरों के थे वे,
परिणामोत्सुक उन भयातुरों के थे वे।
उत्फुल्ल करौंदी-कुंज वायु रह-रहकर
करती थी सबको पुलक-पूर्ण मह-महकर।
वह चन्द्रलोक था, कहाँ चाँदनी वैसी,
प्रभु बोले गिरा, गम्भीर नीरनिधि जैसी।
प्रश्न-1 कवि ने सभा का जो दृश्य उपस्थित किया है, उसे अपने शब्दों में वर्णित कीजिए?
उत्तर आकाश रूपी नीले चंदोवे के नीचे तारे रूपी दीपक जल रहे थे। देवगण आकाश से देख रहे थे। सभा के परिणाम की अशंका से देवगणों की ऑंखों में भय और व्याकुलता दिखाई दे रही थी।
प्रश्न-2 देवगण किस आशंका से भयभीत थे और क्यों?
उत्तर देवगण इस आशंका से भयभीत थे कि भरतजी के आगमन को श्री राम अन्यथा समझकर कोई कठोर निर्णय न ले ले, यदि ऐसा हुआ तो भरतजी के निश्छल भ्रातृत्व प्रेम के साथ न्याय न हो सकेगा।
प्रश्न-3 सभा में उपस्थित जनों के हृदय को कौन पुलकित कर रही थी?
उत्तर करौदी कुंज से आती हुई सुगंधित वायु उपस्थित जनों के हृदय को पुलकित कर रही थी।
प्रश्न-4 कवि ने सभा के वातावरण को किन रूप में प्रस्तुत किया?
उत्तर कवि ने सभा के वातावरण को चन्द्रलोक की सुन्दरता से भी अधिक सुन्दर रूप में प्रस्तुत किया।
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर रूपक, उपमा, अनुप्रास और पुनरूक्ति प्रकाश।
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप और कवि का नाम है-मैथिलीशरण गुप्त
2- ठ हे भरत भद्र ………….. न पाई जिसको
हे भरतभद्र, अब कहो अभीप्सित अपना”।
सब सजग हो गए, भंग हुआ ज्यों सपना।
“हे आर्य, रहा क्या भरत-अभीप्सित अब भी?
मिल गया अकण्टक राज्य उसे जब, तब भी?
पाया तुमने तरु-तले अरण्य-बसेरा,
रह गया अभीप्सित शेष तदपि क्या मेरा?
तनु तड़प-तड़पकर तत्प तात ने त्यागा,
क्या रहा अभीप्सित और तथापि अभागा?
हा! इसी अयश के हेतु जनन था मेरा,
निज जननी ही के हाथ हनन था मेरा।
अब कौन अभीप्सित और आर्य, वह किसका?
संसार नष्ट है भ्रष्ट हुआ घर जिसका।
मुझसे मैंने ही आज स्वयं मुँह फेरा,
हे आर्य, बता दो तुम्हीं अभीप्सित मेरा?”
प्रभु ने भाई को पकड़ हृदय पर खींचा,
रोदन जल से सविनोद उन्हें फिर सींचा
“उसके आशय की थाह मिलेगी किसको?
जनकर जननी ही जान न पाई जिसको?”
प्रश्न-1 हे भरत अपना अभीष्ट बतलाओ, श्री राम के इस कथन का सभा पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर श्री राम का यह कथन सुनकर सभा जन ऐसे सजग हो गए जैसे स्वप्न से जागे उठे हो।
प्रश्न-2 भरत के कथन में वक्रोक्ति बतलाइए?
उत्तर मुझे बाधा रहित राज्य प्राप्त हो गया, आपको अरण्य बसेरा मिल गय, पिता ने प्राण त्याग दिए, इसके अतिरिक्त मुझ अभागे की और क्या कामना शेष रह सकती है।
प्रश्न-3 भरत ही ने अपने जीवन का उद्देश्य क्या बतलाया, इसके लिए उन्होंने किसे दोषी ठहराया?
उत्तर भरती जी ने अपयश भोगने को जीवन का उद्देश्य बतलाया, इसके लिए उन्होंने अपनी माता कैकेयी को दोषी ठहराया।
प्रश्न-4 भरत जी ने आत्म ग्लानि के भाव को किस प्रकार व्यक्त किया?
उत्तर अपने आप से विरिक्त हो जाने की बात कहकर भरतजी ने आत्म ग्लानि के भाव को व्यक्त किया।
प्रश्न-5 भरत के प्रति कोई दुर्भावना न होने का प्रमाण श्री राम ने कैसे प्रकट किया?
उत्तर अश्रुपूरित नेत्रों से भरतजी को हृदय से लगाकर श्री राम द्वारा यह कहना कि तुम्हारी महानता को अपनी कोख से जन्म देने वाली माता ही न जान पाई तो और कोई कैसे जान सकता है।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए।
उत्तर अनुप्रास एवं उपमा
प्रश्न-7 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
3-यह सच है ……………तुम्हारी मैया
“यह सच है तो अब लौट चलो तुम घर को।”
चौंके सब सुनकर अटल कैकेयी-स्वर को।
सबने रानी की ओर अचानक देखा,
वैधव्य-तुषारावृता यथा विधु-लेखा।
बैठी थी अचल तथापि असंख्यतरंगा,
वह सिंही अब थी हहा! गोमुखी गंगा-
हाँ, जनकर भी मैंने न भरत को जाना,
सब सुन लें, तुमने स्वयं अभी यह माना
यह सच है तो फिर लौट चलो घर भैया,
अपराधिन मैं हूँ तात, तुम्हारी मैया।
प्रश्न-1 कैकेयी के किस कथन को सुनकर सब चौक उठे?
उत्तर मै भरत को जन्म देकर भी भरत को न जान सकी, यदि तुम यह मानते हो तो अब घर लौट चलो।
प्रश्न-2 सफेद वस्त्रों में कैकेयी कैसी जान पड़ रही थी?
उत्तर सफेद वस्त्रों में कैकेयी ऐसी जान पड़ रही थी जैसे कोहरे में ढकी चॉंदनी हो ।
प्रश्न-3 कैकेयी के कथन से कैकेयी का कौनसा रूप सामने आया?
उत्तर सिहनी के समान लगने वाली कैकेयी अब गोमुखी गंगा के समान शान्त, शीतल और पवित्र जान पड़ रही थी?
प्रश्न-4 कैकेयी ने श्री राम को क्या विश्वास दिलाते हुए याचना की?
उत्तर कैकेयी ने श्री राम को विश्वास दिलाया कि पूरे प्रकरण में भरत का कोई दोष नहीं है, वह निर्दोष है। अपराध मुझसे हुआ है, अतः दण्ड भी मुझे ही मिलना चाहिए।
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर उपमा, रूपक और उत्प्रेक्षा।
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
क्. 4 दुर्बलता का ही चिह्नण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण् सका न निज विश्वासी।
4 दुर्बलता का ही चिह्न विशेष शपथ है,
पर, अबलाजन के लिए कौन-सा पथ है?
यदि मैं उकसाई गई भरत से होऊँ,
तो पति समान ही स्वयं पुत्र भी खोऊँ.
ठहरो, मत रोको मुझे, कहूँ सो सुन लो
पाओ यदि उसमें सार उसे सब चुन लो।
करके पहाड़-सा पाप मौन रह जाऊँ?”
राई भर भी अनुताप न करने पाऊँ?”
थी सनक्षत्र शशि-निशा ओस टपकाती,
रोती थी नीरव सभा हृदय थपकाती।
उल्का-सी रानी दिशा दीप्त करती थी,
सबमें भय-विस्मय और खेद भरती थी।
क्या कर सकती थी, मरी मन्थरा दासी.
मेरा ही मन रह सका न निज विश्वासी।
प्रश्न-1 शपथ लेकर बात कहकर कैकेयी ने क्या प्रमाणित करना चाहा?
उत्तर शपथ व्यक्ति की कमजोरी का प्रमाण है किन्तु शपथ लेकर बात कहना इस बात का प्रमाण है कि तुम्हें वन भेजने में भरत का कोई हाथ नहीं है। यदि इस बात में लेश मात्र भी झूठ हो तो मैं पति के समान पुत्र को भी खों दॅंू
प्रश्न-2 कैकेयी ने पहाड़ और राई किसे कहा है।
उत्तर कैकेयी ने पाप को पहाड़ और प्रायश्चित को राई कहा है।
प्रश्न-3 कैकेयी का पश्चाताप देखकर वातावरण कैसा हो गया?
उत्तर चॉंदनी रात ओस कणों के रूप में ऑंसुओं की वर्षा करने लगी और उपस्थित जनों के हृदय रूदन करने लगे। उनका हृदय भय, विस्मय और खेद के भाव से भर गए।
प्रश्न-4 कैकेयी ने किस भ्रम को तोड़ा?
उत्तर लोगों को भ्रम था कैकेयी ने मंथरा दासी के बहकावे में आकर श्री राम के लिए वनवास मांगा, किन्तु कैकेयी स्वीकार करती है कि श्री राम के लिए वनवास मांगने में मंथरा की कोई भूमिका नहीं थी बल्कि मेरा मन ही अविश्वासी हो गया था।
प्रश्न-5 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए ?
उत्तर उपमा और रूपक
म्-5 जल पंजर ……………..और क्या तुझसे
जल पंजर-गत अब अरे अधीर, अभागे,
वे ज्वलित भाव थे स्वयं मुझी में जागे।
पर था केवल क्या ज्वलित भाव ही मन में?
क्या शेष बचा कुछ न और जन में?
कुछ मूल्य नहीं वात्सल्य-मात्र क्या तेरा?
पर आज अन्य-सा हुआ वत्स भी मेरा।
थूके, मुझ पर त्रैलोक्य भले ही थूके,
जो कोई जो कह सके, कहे, क्यों चूके?
छीने न मातृपद किन्तु भरत का मुझसे,
रे राम, दुहाई करूँ और क्या तुझसे?
प्रश्न-1 कैकेयी ने मन को सम्बोधित करते हुए क्या कहा?
उत्तर कैकेयी ने मन को सम्बोधित करते हुए कहा कि ‘‘ईर्ष्या की अग्नि तुझमें ही जागी थी, अब इस अग्नि में तू ही जल’’।
प्रश्न-2 जिसे लोग कैकेयी का ईर्ष्या भाव मान रहे थे, उसे कैकेयी ने किस कथन से स्पष्ट किया?
उत्तर कैकेयी ने स्पष्ट किया कि वह एक नारी ही नही अपितु एक मॉं भी है, पुत्र के प्रति उसके मन में जो वात्सल्य भाव था, उसी के वशीभूत होकर उसने श्री राम के लिए वनवास मॉंगने का कृत्य किया। आज उसका अपना पुत्र पराया सा हो गया है।
प्रश्न-3 अपने कृत्य का पश्चाताप करने के लिए कैकेयी ने क्या क्या स्वीकार करना चाहा?
उत्तर कैकेयी ने तीनों लोक द्वारा थूकना, जिस भी तरह तिरस्कार हो सकता है वह तिरस्कार स्वीकार करना चाहा।
प्रश्न-4 काव्यंाश के अन्त में कैकेयी ने श्री राम से क्या प्रार्थना की?
उत्तर काव्यांश के अन्त में कैकेयी श्री राम से प्रार्थना करती है कि मुझसे मेरा मातृपद न छीना जाए।
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर अनुप्रास एवं उपमा।
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
थ्. कहते आते थे ………………………… स्वार्थ ने घेरा
कहते आते थे यही सभी नरदेही,
“माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।”
अब कहें सभी यह हाय! विरुद्ध विधाता,-
“है पुत्र पुत्र ही, रहे कुमाता माता।”
बस मैंने इसका बाह्य-मात्र ही देखा,
दृढ़ हृदय ने देखा, मृदुल गात्र ही देखा।
परमार्थ न देखा, पूर्ण स्वार्थ ही साधा,
इस कारण ही तो हाय आज यह बाधा।
युग युग तक चलती रहे कठोर कहानी-
‘रघुकुल में भी थी एक अभागिन रानी।’
निज जन्म जन्म में सुने जीव यह मेरा
“ धिक्कार! उसे था महा स्वार्थ ने घेरा”
प्रश्न-1 कैकेयी ने किस परम्परागत मान्यता को तोड़ने का अपराध स्वीकार किया?
उत्तर कैकेयी कहती है कि मैं अब तक यह मानता थी कि पुत्र भले ही कुपुत्र हो जाए, किन्तु माता कभी कुमाता नहीं हो सकती, किन्तु मेरे कृत्य के बाद अब लोग कहेंगे कि माता, कुमाता हो सकती है किन्तु पुत्र कुपुत्र नहीं हो सकता।
प्रश्न-2 कैकेयी ने अपने दुष्कृर्त्य के लिए किसे दोषी माना?
उत्तर कैकेयी ने अपने दुष्कृर्त्य के लिए अपने दुर्भाग्य को दोषी माना।
प्रश्न-3 कैकेयी ने भरत की किस विशेषता को न देख पाने की बात कहीं?
उत्तर कैकेयी कहती है कि उसने भरत का बाहृय स्वरूप को ही देखा किन्तु आंतरिक दृढंता का न देख सकी।
प्रश्न-4 कैकेयी ने जीवन में आई बाधा का जिम्मेदार किसे माना?
उत्तर कैकेयी ने जीवन में आई बाधा का जिम्मेदार अपनी स्वार्थवृति को माना।जन्म जन्मान्तर तक मेरी आत्मा यह सुनेगी कि रघु कुल में एक अभागिन रानी हुई थी, जिसने स्वार्थ से घिरकर अपने ही कुल का नाश कर दिया।
प्रश्न-5 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए
उत्तर काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम अनुप्रास अलंकार है।
प्रश्न-6 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
ळण् सौ बार धन्य ………………………… दण्ड है मेरा।
“सौ बार धन्य वह एक लाल की माई,
जिस जननी ने है जना भरत-सा भाई।”
पागल-सी प्रभु के साथ सभा चिल्लाई-
“सौ बार धन्य वह एक लाल की माई।”
“हाँ! लाल? उसे भी आज गमाया मैंने,
विकराल कुयश ही यहाँ कमाया मैंने।
निज स्वर्ग उसी पर वार दिया था मैंने,
हर तुम तक से अधिकार लिया था मैंने।
पर वही आज यह दीन हुआ रोता है,
शंकित तबसे धृत हरिण-तुल्य होता है।
श्रीखण्ड आज अंगार-चण्ड है मेरा,
तो इससे बढ़कर कौन दण्ड है मेरा?
प्रश्न-1 श्री राम ने किसे धन्य कहा और क्यों?
उत्तर श्री राम ने कैकेयी को धन्य कहॉं, जिसकी कोख से भरतजी जैसे पुत्र ने जन्म लिया।
प्रश्न-2 श्री राम द्वारा कैकेयी को धन्य कहने पर सभा में किसकी जय जयकार होने लगी?
उत्तर श्री राम द्वारा कैकेयी को धन्य कहने पर सभा में कैकेयी की जय-जयकार होने लगी।
प्रश्न-3 कैकेयी ने अपयश किसे कहा?
उत्तर भरतजी द्वारा कैकेयी को माता न स्वीकारने की बात को कैकेयी ने अपयश कहा। मेरा पुत्र ही मुझसे कुपित है। इससे बड़ा दण्ड अर्थात् अपयश क्या हो सकता है।
प्रश्न-4 कैकेयी ने पुत्र भरत के बारे में क्या कहा?
उत्तर कैकेयी ने कहा कि वह पकड़े हुए हिरन की भॉंति सबसे भयभीत है। चन्दन के समान शीतल स्वभाव वाला भरत आज अंगार के समान दहक रहा है।
प्रश्न-5 कैकेयी ने अपनी कृत्य की कौनसी दो हानियॉं गिनाई।
उत्तर कैकेयी ने कहा कि अपने कृत्य के कारण मेरा पुत्र मुझसे छीन गया और राम को भी राज्य से वंचित कर दिया।
प्रश्न-6 काव्यांश में प्रयुक्त अलंकार का नाम बतलाइए।
उत्तर उपमा एवं अनुप्रास
प्रश्न-7 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
भ्ण् पटके मैंने ………………………… पद्मकोष है मेरा।
पटके मैंने पद-पाणि मोह के नद में,
जन क्या-क्या करते नहीं स्वप्न में, मद में?
हा! दण्ड कौन, क्या उसे डरूँगी अब भी?
मेरा विचार कुछ दयापूर्ण हो तब भी।
हा दया! हन्त वह घृणा! अहह वह करुणा!
वैतरणी-सी है आज जाह्नवी-वरुणा!
सह सकती हूँ चिर, नरक, सुने सुविचारी,
पर मुझे स्वर्ग की दया दण्ड से भारी।
लेकर अपना यह कुलिश-कठोर कलेजा,
मैंने इसके ही लिए तुम्हें वन भेजा।
घर चलो इसी के लिए, न रूठो अब यों,
कुछ और कहूँ तो उसे सुनेंगे सब क्यों?
मुझको यह प्यारा और इसे तुम प्यारे,
मेरे दुगुने प्रिय रहो न मुझसे न्यारे।
मैं इसे न जानूँ, किन्तु जानते हो तुम,
अपने से पहले इसे मानते हो तुम।
तुम भ्राताओं का प्रेम परस्पर जैसा,
यदि वह सब पर यों प्रकट हुआ है वैसा।
तो पाप-दोष भर पुण्य-तोष है मेरा,
मैं रहूं पंकिला, पद्म-कोष है मेरा,
प्रश्न-1 कैकेयी ने अपना कृत्य किसके वशीभूत होकर किया?
उत्तर कैकेयी ने अपना कृत्य मोह के वशीभूत होकर किया। कैकेयी स्वीकार करती है कि मैने ही अपने हाथ पैर मोह रूपी नदी में फैंके और पटके।
प्रश्न-2 कैकेयी ने अपने कृत्य की तुलना किससे की?
उत्तर कैकेयी ने अपने कृत्य की तुलना पागलपन अथवा स्वप्न में किये व्यवहार से की।
प्रश्न-3 कैकेयी ने क्या अनुनय किया?
उत्तर कैकेयी ने अनुनय किया कि उसकी भावना कों गलत न समझा जाए।
प्रश्न-4 कैकेयी ने अपनी व्यथा को किन शब्दों में प्रकट किया?
उत्तर कैकेयी कहती है कि मेरे दोष की इस स्थिति में दया, घृणा और करूणा आदि भाव व्यर्थ प्रतीत होते है। गंगा और वरूणा भी मेरे लिए नरक की वैतरणी के समान जान पड़ रहे है।
प्रश्न-5 कैकेयी ने किस दण्ड को सह्य और किस दण्ड को असह्य बतलाया?
उत्तर कैकेयी ने नरक की पीड़ा को सह्य और स्वर्ग के सुख को असह्य बतलाया
प्रश्न-6 कैकेयी ने राम को दुगना प्रिय क्यों बतलाया?
उत्तर कैकेयी कहती है कि मुझे भरत प्रिय है और भरत को तुम प्रिय हो, इसलिए तुम दुगने प्रिय हों।
प्रश्न-7 कौनसी बात के लिए कैकेयी ने यह कहा कि मेरे पाप का दोष भी पुण्य में बदल जाएगा ?
उत्तर राम और भरत के बीच जो भ्रातृत्व भाव का जो उदाहरण संसार में प्रतिष्ठित हुआ है, यह मेरे दोष को भी पुण्य में बदल देगा।
प्रश्न-8 काव्यांश के अन्त में कैकेयी ने स्वयं को और भरत को किसके समान बतलाया।
उत्तर काव्यांश के अन्त में कैकेयी ने स्वयं को कीचड़ और भरत को कीचड़ में खिला कमल बतलाया
प्रश्न-9 काव्यांश के प्रयुक्त अलंकार बतलाइए।
उत्तर रूपक और अनुप्रास
प्रश्न-10 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
प्ण् आगत ज्ञानी जन ………………………… भर भेटा।
आगत ज्ञानीजन उच्च भाल ले लेकर,
समझावें तुमको अतुल युक्तियाँ देकर।
मेरे तो एक अधीर हृदय है बेटा,
उसने फिर तुमको आज भुजा भर भेटा।
प्रश्न-1 कैकेयी ज्ञानी जनों से क्या अपेक्षा रखती है?
उत्तर ज्ञानी जन राम और भरत के अतुल प्रेम के सन्दर्भ में अकाट्य प्रमाण देकर दोनों की श्रेष्ठता सिद्ध करे।
प्रश्न-2 कैकेयी ने मॉं की क्या विशेषता बतलाई?
उत्तर कैकेयी कहती है कि एक मॉं के लिए तर्कों का कोई स्थान नहीं होता, वह सिर्फ अपनी सन्तान की हित साधना करती है।
प्रश्न-3 काव्यांश के अन्त में कैकेयी ने क्या कामना व्यक्त की?
उत्तर काव्यांश के अन्त में कैकेयी प्रार्थना करती है कि राम एक पल के लिए स्नेह गोद से दूर न होवे अर्थात् बिना तर्क दिए अयौध्या लौट चले।
प्रश्न-4 काव्यांश में व्यक्त अलंकार बतलाइए?
उत्तर अनुप्रास एवं पुनरूक्ति प्रकाश
प्रश्न-5 कविता का शीर्षक एवं कवि का नाम बतलाइए?
उत्तर कविता का शीर्षक-कैकेयी का अनुताप एवं कवि का नाम है- मैथिलीशरण गुप्त
सूक्तिपरक पंक्तियों की ससंदर्भ व्याख्या
;3द्ध माता न कुमाता, पुत्र कुपुत्र भले ही।
व्याख्या – कैकेयी राम से कहती हैं कि आज तक सभी मनुष्य यही कहते रहे हैं कि माता कभी कुमाता नही होती, पुत्र भले ही दुष्ट स्वभाव और दुष्ट चरित्र का क्यों न हो जाये। पर आज सभी इस उक्ति को बदल कर कहा करेंगे कि माता भले ही दुष्टतापूर्ण व्यवहार करने लगे परंतु पुत्र कभी कुपुत्र सिद्ध नही होता।
;2द्ध दुर्बलता का ही चिन्ह विशेष शपथ हैं, पर अबला जन के लिये कौन-सा पथ है?
व्याख्या – प्रायः अपनी बात को प्रमाणित करने के लिए और उसकी सत्यता को स्थापित करने के उद्देश्य से लोग कसम खाते हैं किन्तु कवि का यह कहना हैं कि यदि हमारी बात सत्य हैं और प्रमाणिक हैं तो हमें कसम खाने की कोई आवश्यकता नही है। वास्वत में, अपनी दुर्बलता को छिपाने के लिए ही हम सौगन्ध का बहाना लेते है।
;3द्ध ‘उसके आशय की थाह मिलेगी किसको?
जन कर जननी ही जान न पायी जिसको?’
व्याख्या – श्री राम ने पंचवटी की सभा में भरत से उनका वन में आने का अभीप्सित पूछा तो भरत आत्मग्लानि से भर गये और श्री राम से पूछने लगे कि आप ही मेरा आशय बता दीजिए। तब श्रीराम ने भरत को गले लगाकर प्रेम के आँसू बहाते हुए कहा कि उसके आशय की गहराई कौन माप सकेगा जिसे जन्म देने वाली माता तक नहीं जान सकी।
;4द्ध धन के पीछे जन, जगती में उचित नहीं उत्पात।
व्याख्या – उर्मिला कह रही हैं कि मेरे मन में ऐसा विचार आता हैं कि मैं गाते-गाते और संसार से जाते-जाते भी यही बात कहती जाऊँ कि हे मनुष्यों इस संसार में धन, सम्पति और वैभव की प्राप्ति के लिए उत्पात मचाना, संघर्ष करना अनुचित है। इस जीवन की सार्थकता तो प्रेम द्वारा ही लोगों के हृदय पर विजय प्राप्त करने में है।
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