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पतंग ,आलोक धन्वा,व्याख्या
2-पतंग ,आलोक धन्वा
सबसे तेज़ बौछारें गयीं
भादो गया
सवेरा हुआ
खरगोश की आँखों जैसा लाल सवेरा
शरद आया पुलों को पार करते हुए
अपनी नयी चमकीली साइकिल तेज चलाते हुए
घंटी बजाते हुए जोर-जोर से
चमकीले इशारों से बुलाते हुए
पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को
चमकीले इशारों से बुलाते हुए और
आकाश को इतना मुलायम बनाते हुए
कि पतंग ऊपर उठ सके-
दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज उड़ सके-
दुनिया का सबसे पतला कागज उड़ सके-
बाँस की सबसे पतली कमानी उड़ सके
कि शुरू हो सके सीटियों, किलकारियों और
तितलियों की इतनी नाजुक दुनिया।
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्रकृति को मानवीय रूप में प्रस्तुत किया है
व्याख्या- तेज बौछारों बारिश का भादों माह का प्रस्थान हुआ और शरद ऋतु का आगमन हो गया ।
अब शरद ऋतु की प्रभात की किरणें खरगोश की आँखों जैसी लाल प्रतीत हो रही है। कवि शरद का मानवीकरण करते हुए कहते है कि शरद किसी बच्चे के समान अपनी नयी चमकीली साइकिल को तेज गति से चलाते हुए और जोर-जोर से घंटी बजाते हुए पुलों को पार करते हुए आ रहा है। वह अपने चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के झुंड को आमंत्रित कर रहा है ।
शरद ने आकाश को मुलायम कर दिया है अर्थात स्वच्छ बना दिया है ताकि पतंगआसानी से ऊपर उड़ सके। कवि ने पतंग को दुनिया की सबसे हलकी और रंगीन चीज ,सबसे पतले कागज व बाँस की सबसे पतली कमानी से उपमित करते हुए कहा कि शरद ऋतु ने वातावरण फिर से ऐसा बना दिया है कि वातावरण बच्चों की सीटियाँ किलकारियो और रंग-बिरंगी तितलियो अर्थात पतंगों से भर जाए ।
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
2.
जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध
छतों को भी नरम बनाते हुए
दिशाओं को मृदंग की तरह बजाते हुए
जब वे पेंग भरते हुए चले आते हैं
डाल की तरह लचीले वेग सो अकसर
छतों के खतरनाक किनारों तक-
उस समय गिरने से बचाता हैं उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं महज़ एक धागे के सहारे।
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी आलोक धन्वा की कलम तूलिका से सृजित काव्य रचना पतंग से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बाल मनोविज्ञान का स्वाभाविक चित्रण किया है .
व्याख्या- कवि ने बच्चों के शरीर की तुलना कपास से करते हुए कहा कि जैसे यें बच्चें जन्म से अपने शरीर में कपास लेकर पैदा हुए हो .जैसे कपास पर प्रहार करने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं होती वैसे ही यें बच्चें पतंग उड़ाते हुए गिर जाए तो चोट लगाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं करते. जब यें बच्चें बेहताशा दौड़ते है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे धरती स्वयं घूमती हुई उनके पैरों के समीप आ रही है . बच्चें छतों पर ऐसे दौड़ते है जैसे बच्चों ने दौड़-दौड़कर कठोर छतों को भी अपने पैरों को कोमल बना दिया है .छतों पर भागते-दौड़ते बच्चों की पग-ध्वनि से वातावरण ऐसा हो जाता है जैसे चारों ओर में मृदंग बज रहे हो . इनका शरीर में पेड़ की डाली की तरह लचीला होता है ।पतंग उड़ाते हुए यें बच्चें छतों के खतरनाक किनारों तक आ जाते हैं। तब उनके शरीर का रोमांच ही उन्हें गिराने से बचाता है। कवि प्रश्न करते हुए कहते है कि आखिर यें बच्चें गिरते क्यों नहीं है ? फिर स्वयं ही बाल मनोवैज्ञानिक ढंग से उत्तर देते हुए कहते है कि यें बच्चें इसलिए नहीं गिरते क्योकि ऊँचाइयों पर उड़ रही पतंग की डोर ने इन्हें थाम लिया हो।
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
3.
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं
अपने रंध्रों के सहारे
अगर वे कभी गिरते हैं छतों के खतरनाक किनारों से
और बच जाते हैं तब तो
और भी निडर होकर सुनहले सूरज के सामने आते हैं
प्रुथ्वी और भी तेज घूमती हुई जाती है
उनके बचन पैरों के पास।
सन्दर्भ- उपर्युक्त काव्यांश भावों और शब्दों का मणिकांचन योग कर काव्य कृति उकेरने में सिद्धहस्त काव्य शिल्पी आलोक धन्वा की कलम तूलिका से सृजित काव्य रचना पतंग से अवतरित है .
प्रसंग -प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने बाल मनोविज्ञान का स्वाभाविक चित्रण किया है . भावार्थ –भागते –दौड़ते और पतंग उड़ाते हुए बच्चों को देखकर कवि कहते है कि पतंगों को उड़ते देखकर बच्चों का बाल मन भी तरंगित होकर उड़ रहे हैं। यदि कभी यें बच्चें छतों के किनारों से गिर जाये और चोट लगाने से बच जाए तो यें बच्चें और अधिक उत्साहित हो जाते है और इनके चहरे ऐसे चमकने लगते है जैसे सुनहरे सूरज के सामने आ गए हो । उत्साहित होकर उनके पैरों की गति और अधिक तेज हो जाती है। उत्साहित होकर भागते-दौड़ते बच्चें ऐसे जान पड़ते है जैसे पृथ्वी और तेज गति से उनके बेचैन पैरों के पास आ रही है।
विशेष-
1-सटीक बिम्ब प्रयोग से काव्य में सजीवता आ गई है
2-यथास्थान आरोह-अवरोह,यति-गति प्रयोग से काव्य में गेयता का प्रभाव उत्पन्न हो गया है
3-काव्योचित अलंकर प्रयोग से काव्य का सौन्दर्य द्विगुणित हो गया है
4-काव्य की भाषा प्रांजल एवं प्रसाद गुण के कारण भाव ग्राह्य है
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