मुक्तियज्ञ ,सुमित्रानन्दन पन्त
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य के कथानक का सार
मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित लोकायतन महाकाव्य का एक अंश है। इस अंश में भारत के स्वतन्त्रता आन्दोलन की गाथा है। मुक्तियज्ञ खण्डकाव्य में कवि ने साइमन कमीशन का बहिष्कार,पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग,डाण्डी यात्रा, अंग्रेजी शासन को आतंकित करने का आन्दोलन ,देशभक्तों को फाँसी ,मैक्डोनाल्ड पुरस्कार ,काँग्रेस मन्त्रिमण्डलों की स्थापना ,द्वितीय विश्व युद्ध ,सविनय अवज्ञा आन्दोलन ,सन् 1942 का भारत छोड़ो आन्दोलन, आजाद हिन्द फौज की स्थापना ,स्वतन्त्रता की प्राप्ति ,देश का विभाजन तथा,बापू के बलिदान आदि राजनैतिक घटनाओं को शामिल करते हुए काव्य खंड की रचना की है ।
गाँधी जी साबरमती आश्रम से अंग्रेजों के नमक-कानून को तोड़ने के लिए चौबीस दिनों की यात्रा पूर्ण करके डाण्डी गाँव पहुँचे और सागरतट पर नमक बनाकर नमक कानून तोड़ा
गाँधी जी का उद्देश्य अंग्रेजों के अंग्रेजों के नमक-कानून का विरोध कर जनता में चेतना उत्पन्न करना था । सत्य और अहिंसा के माध्यम से इस कानून का विरोध करना चाहते थे किन्तु अंग्रेजों का दमन-चक्र पूर्व की भाँति ही चलने लगा। अंग्रेजों ने गाँधी जी तथा अन्य नेताओं को जेल में डाल दिया। जैसे-जैसे दमने-चक्र बढ़ता गया वैसे-वैसे ही मुक्तियज्ञ भी तीव्र होता गया।
गाँधी जी ने स्वदेशी वस्तु के प्रयोग और विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के लिए भारतीयों को प्रेरित किया। पूरे देश में यह आन्दोलन फैलता चला गया। समस्त भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में एकजुट होकर गाँधी जी के साथ हो गये। इस प्रकार गाँधी जी ने भारतीयों के हृदयों में उत्साह एवं जागृति पैदा कर दी।
अछूतों को समाज में सम्मानपूर्ण स्थान दिलवाने के लिए गाँधी जी ने आमरण अनशन शुरू किया। महात्मा भारतीयों ने गाँधी के नेतृत्व में अंग्रेजों से संघर्ष का निर्णय किया। सन् 1927 ई० में जब साइमन कमीशन भारत आया, भारतीयों ने इस कमीशन का पूर्ण बहिष्कार किया गया।
केन्द्र एवं प्रान्त की सीमाओं से सम्पूर्ण भारतवर्ष को मैक्डॉनल्ड एवार्ड के द्वारा विभिन्न साम्प्रदायिक टुकड़ों में बाँट दिया गया। इससे असन्तोष और भी ज्यादा बढ़ गया।
कुछ नेताओं के समर्थन से काँग्रेस ने विभिन्न प्रान्तों में मन्त्रिमण्डल बनाना स्वीकार किया। इसी मध्य विश्वयुद्ध छिड़ गया। ब्रिटिश सरकार को काँग्रेस के सहयोग की शर्ते स्वीकार नहीं थीं।
गाँधी जी ने सविनय अवज्ञा आन्दोलन प्रारंभ कर दिया। जापान के विश्वयुद्ध में शामिल हो जाने से भारत में भी खतरे की सम्भावनाएँ आशंका हो गई । भारत की समस्याओं पर विचार करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन भेजा जिसका भारत की जनता ने विरोध किया। सन् 1942 ई० में गाँधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा लगा दिया। जैसे ही गाँधी जी ने अंग्रेजो भारत छोड़ो का नारा लगा दिया ,उसी रात गाँधी जी व अन्य नेताओं को बन्दी बना लिया गया और अंग्रेजों ने बच्चें ,बूढें और स्त्रियों तक पर भीषण अत्याचार शुरू कर दिया । इन अत्याचारों त्रस्त होकर भारतीयों में और अधिक आक्रोश पैदा हो । चारों ओर हड़ताल और तालाबन्दी होने लगी । अंग्रेजी शासन इस आन्दोलन से काँपगया। जेल में ही गाँधी जी की पत्नी कस्तूरबा किम्रित्यु हो गई। पूरे देश में अंग्रेजों के विरुद्ध आक्रोश एवं हिंसा और अधिक प्रबल उठी ।
सुभाषचन्द्र बोस ने भी भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्ति की योजना बनायी। सन् 1945 ई० में उन सारे नेताओं छोड़ दिया गया , जिन्हें बन्दी बनाया गया था । जनता में फिर उत्साह की लहर दौड़ गई । इसी मध्य सुभाषचन्द्र बोस की वायुयान दुर्घटना में मौत हो गई ।
सन् 1942 ई० में पूर्ण स्वतन्त्रता की माँग की गयी । इधर मुस्लिम लीग ने भारत विभाजन की माँग कर डाली। 15 अगस्त 1947 ई० को अंग्रेजों ने भारत को आज़ाद तो कर दिया किन्तु अंग्रेजों ने भारत और पाकिस्तान के रूप में देश का भी विभाजन करवा दिया।
एक ओर तो देश में आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा था दूसरी ओर नोआखाली में हिन्दू और मुसलमानों के बीच संघर्ष हो गया।
इस घटना से व्यथित गाँधी जी आमरण उपवास पर बैठ गए ।
30 जनवरी 1948 ई० को नाथूराम गोडसे ने गाँधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। इस घटना के साथ ही कवि द्वारा भारत की एकता की कामना के साथ यह काव्य समाप्त हो जाता है।
इस काव्य में उस युग का इतिहास दर्ज है ,जब पूरे देश में क्रान्ति की आग सुलग रही थी। निष्कर्ष रूप में मुक्तियज्ञ गाँधी-युग के स्वर्णिम इतिहास का काव्यात्मक दस्तावेज है।
मुक्तियज्ञ के आधार पर गाँधी जी का चरित्र-चित्रण
प्रभावी व्यक्तित्व- गाँधी जी का आन्तरिक व्यक्तित्व बहुत अधिक प्रभावशाली है। उनकी वाणी में चुम्बकीय शक्ति थी
सत्य प्रेम और अहिंसा के प्रबल समर्थक-‘ गांधीजी सत्य प्रेम और अहिंसा के प्रबल समर्थक थे . गाँधी जी के सिद्धान्तों में सत्य प्रेम और अहिंसा प्रमुख स्थान हैं। सत्य प्रेम और अहिंसा इन तीन सिद्धांतों के बल पर गाँधी जी ने अंग्रेज सरकार की नींद उडा दी थी । गाँधीजी ने इन तीन सिद्धान्तों को अपने जीवन में व्यवहारिक भी बनाया । उन्होंने विषम परिस्थिति में भी सत्य ,अहिंसा और प्रेम का त्याग नहीं किया ।
दृढ़-प्रतिज्ञ-‘ गांधीजी अपने निश्चय पर अडिग रहते थे । गाँधी जी ने जो भी कार्य आरम्भ किया उसे पूरा करके ही दम लिया । अंग्रेजी सरकार के दमन चक्र से थोड़े भी विचलित नहीं हुए । गांधीजी नमक कानून तोड़ने की प्रतिज्ञा की और उस प्रतिज्ञा पूरा भी कर दिखाया ।
जातिवाद के प्रबल विरोधी- गांधीजी जातिवाद के प्रबल विरोधी थे गाँधी जी का मानना था कि भारत जाति-पाँति के भेदभाव के कारण कमजोर हो रहा है। उनकी दृष्टि में न अस्पृश्य और न ही तुच्छ,बल्कि सब समान थे ।
लोक-पुरुष और जन-नेता- गाँधी जी पूरे भारत में जन-जन के प्रिय नेता थे । उनके एक ईशारे पर लाखों भारतीय अपना सब कुछ त्यागने के लिए तैयार रहते थे ।भारत के नागरिकों ने गाँधी जी के नेतृत्व में ही स्वतन्त्रता संग्राम लड़ा और अंग्रेजों को भारत से भगाकर ही दम लिया।
मानवता के पुजारी -‘ गाँधी जी अपना समस्त जीवन मानवता के हित में लगा दिया । गाँधी जी का माननाथा कि मानव-मन में उत्पन्न घृणा को घृणा से नहीं अपितु प्रेम से मारा जा सकता है। गाँधी जी मानव मन में परस्पर प्रेम उत्पन्न कर घृणा एवं हिंसा को मिटाना चाहते थे। उनका मानना था कि हिंसा पर टिकी हुई संस्कृति मानवता रहित होगी-
साम्प्रदायिक एकता के समर्थक – जब देश स्वतन्त्रता-प्राप्ति के लिए संघर्ष कर रहा था ,उस समय देश में हिन्दुओं और मुसलमानों में जातीय दंगे हुए । इससे गाँधी जी का हृदय बहुत व्यथित हुआ। साम्प्रदायिक दंगा रोकने के लिए गाँधी जी ने आमरण अनशन कर किया।
समद्रष्टा- गाँधी जी की दृष्टि में सभी सामान थे। वह किसी को बड़ा या छोटा नहीं मानते थे । उन्होंने छुआछूत को समाज का कलंक माना।
कवि ने मुक्तियज्ञ के नायक गाँधी जी के व्यक्तित्व को लोकनायकय ,सत्य अहिंसा और प्रेम के समर्थक, दृढ़-प्रतिज्ञ ,निर्भीक बनाकर उभारा है । कवि ने गाँधी जी में सभी लोककल्याणकारी गुणों का समावेश करते हुए उनके चरित्र को एक नया स्वरूप प्रदान किया है।
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