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October 9, 2022
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उषा,शमशेर बहादुर सिंह

शमशेर बहादुर सिंह

भावार्थ  एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्न

1.

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

भावार्थ – भोर के समय आसमान शंख के समान गहरा नीला लगता है । भोर  का आकाश ऐसा जान पड़ता  है मानो नील शंख हो। प्रात: काल वातावरण में नमी  होती है। वातावरण में नमी के  प्रभाव को कवि ने  राख से लीपा हुआ कोई चौका के रूप में प्रस्तुत किया है ।

2.

बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने                       

भावार्थ –  सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है तो सूर्य की  लालिमा युक्त किरणे  मटमैले कोहरे पर पड़ती है तो ऐसा जान पड़ता है जैसे  काली रंग की सिल पर किसी ने  लाल केसर घोलकर उंढेल दी हो । उपमान बदलकर  यह भी कहा जा सकता है जैसे  काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़िया मिट्टी मल दिया हो।

3.

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और …….

जादू टूटता हैं इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा हैं।

भावार्थ – जैसे ही सूर्य क्षितिज से ऊपर उठता है ,सूर्य की लालिमायुक्त किरणें पीत वर्णी हो जाती है और आकाश बिलकुल नीला दिखाई देने लगता है ,जब नीले आकाश पर सूर्य की पीली किरणों का प्रभाव ऐसा जान पड़ता है जैसे किसी जलाशय में कोई गौर वर्णी नायिका की देह झिलमिला रही है . सूर्योदय होते ही कुछ क्षण पूर्व तक प्रकृति जो रंग  परिवर्तित कर रही थी ,वें सारे रंग विलुप्त हो जाते है .इसी को कवि ने जादू टूटना कहा है .

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