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रघुवीर सहाय,कैमरे में बंद अपाहिज
रघुवीर सहाय (कैमरे में बंद अपाहिज )
भावार्थ-
1.
हम दूरदर्शन पर बोलेंगे
हम् समर्थ शक्तिवान
हम एक दुर्बल को लाएँगे
एक बंद कमरे में
भावार्थ –दूरदर्शन वाले टीवी पर उदघोषणा करते है कि दूर दर्शन इतना समर्थ और शक्तिवान है कि सामाजिक मुद्दों को देश और समाज
दूरदर्शन वाले स्वयं को समर्थ और शक्तिवान मानते हुए उदघोषणा करते है कि हम समाज में चेतना जाग्रत करने के लिए सामाजिक मुद्दों को देश और समाज के सामने लाते है .इसी उद्देश्य से एक अपाहिज का साक्षात्कार का फिल्मांकन करने के लिए एक अपाहिज को टीवी स्टूडियो लाया जाता है .
उससे पूछेंगे तो आप क्या अपाहिज हैं?
तो आप क्यों अपाहिज हैं?
आपका अपाहिजपन तो दुख देता होगा
देता है?
(कैमरा दिखाओ इसे बड़ा-बड़)
हाँ तो बताइए आपका दुख क्या हैं
जल्दी बताइए वह दुख बताइए
बता नहीं पाएगा।
भावार्थ— कार्यक्रम संचालक अपाहिज से बेतुके प्रश्न करता है –क्या आप अपाहिज है ? आप अपाहिजक्यों हैं? क्या आपका अपाहिजपन आपको दुख देता है? इस बीच कार्यक्रम संचालक कैमरा मैन को निर्देश देता है कि अपाहिज को बड़े रूप में टीवी स्क्रीन पर दिखाओ।
कार्यक्रम संचालक द्वारा अपाहिज से अपना दुःख बतलाने के लिए कहा जाता है ? किन्तु अपाहिज भावुकता के कारण बोल नहीं पाता है .
2.
सोचिए
बताइए
आपको अपाहिज होकर कैसा लगता हैं
कैसा
यानी कैसा लगता हैं
(हम खुद इशारे से बताएँगे कि क्या ऐसा?)
भावार्थ—कार्यक्रम संचालक अपाहिज पर मनोवैज्ञानिक दवाब बनाकर कुछ बोलने के उत्प्रेरित करता करता ताकि उसके बोलने से कार्यक्रम देख रहा दर्शक के मन में अपाहिज के प्रति सहानुभूति पैदा हो सकें और जिस उद्देश्य से कार्यक्रम बने जा रहा है वह पूरा हो सकें .सारी कोशिशों के बावजूद जब कार्यक्रम संचालक जब अपाहिज को रूला पाने में सफल नहीं होता तो कार्यक्रम संचालक स्वयं अपाहिज की अपाहिजकता की नक़ल करके बतलाता है
3
सोचिए
बताइए
थोड़ी कोशिश करिए
(यह अवसर खो देंगे?)
आप जानते हैं कि कायक्रम रोचक बनाने के वास्ते
हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे
इंतजार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का
करते हैं
भावार्थ- कार्यक्रम संचालक फिर से मानसिक दबाव बनाते हुएअपहिजं से कहता है कि करोड़ों आँखें तुम्हे देख –सुन रही है .अपना दर्द दुनिया तक पहुँचाने का तुम्हे अवसर मिला है .यदि आज चुप रहे तो तुम्हारा दर्द तुम्हारे सीने में ही दब कर रह जायेगा .कार्यक्रम संचालक कार्यक्रम को भावुक बनाने का भरसक प्रयास करता है ताकि अपाहिज के साथ –साथ दर्शक भी रो पड़े क्योकि कार्यक्रम संचालक जानता है कि भारतीय दर्शक अत्यधिक भावुक और संवेदनशील होता है .
3.
फिर हम परदे पर दिखलाएंगे
फुल हुई आँख काँ एक बडी तसवीर
बहुत बड़ी तसवीर
और उसके होंठों पर एक कसमसाहट भी
(आशा हैं आप उसे उसकी अपगता की पीड़ा मानेंगे)
भावार्थ—कार्यक्रम संचालक जब अपाहिज को अपने प्रयासों से रूला पाने में असफल रहा तो अब तकनीक का सहारा लिया जाता है .टीवी स्क्रीन पर अपाहिज की फूली हुई आँखों की तसवीर को बड़ा करके दिखलाया जाता है .अपाहिज के कंपकपाते हुए होंठों को दिखलाया जाता है .ऐसा करके वे दर्शकों को भावुक कोशिश करते है।
वे ऐसी कोशिश इसलिए करते हैं कि दर्शकों को ऐसा लगे कि अपाहिज जीवन में इतना रोया कि अब तो उसकी आँखों में आँसू भी नहीं बचे और अपना दर्द कहना चाहकर भी कह नहीं पा रहा है .
एक और कोशिश
दर्शक
धीरज रखिए
देखिए
हमें दोनों को एक सा रुलाने हैं
आप और वह दोनों
भावार्थ – कार्यक्रम संचालक दर्शकों से धैर्य रखने का आग्रह करते हुए दर्शकों को अपाहिज को रोते हुए दिखाने और स्वयं दर्शकों को रूलाने का आश्वासन देता है
(कैमरा
बस् करो
नहीं हुआ
रहने दो
परदे पर वक्त की कीमत है)
अब मुसकुराएँगे हम
आप देख रहे थे सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम
(बस थोड़ी ही कसर रह गई)
धन्यवाद!
भावार्थ-कवि दूरदर्शन वालों की क्रूरता ,निष्ठुरता ,हृदयहीनता और व्यावसायिकता को उजागर करते हुए कहते है कि दूरदर्शन वालों के लिए अपने समय का मूल्य है किन्तु दूसरी की भावनाओं का कोई मूल्य नहीं ,जिस अपाहिज के भरे हुए ज़ख्मों को कुरेद-कुरेद कर हरा कर दिया ,किन्तु जब अपना स्वार्थ पूर्ण नहीं हुआ तो कैमरा मैन से कहा गया कि यह आदमी वक़्त बरबाद कर रहा है .
कार्यक्रम संचालक अपनी विफलता को बनावटी मुस्कराहट से छुपाते हुए कहता है कि अभि आप सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम देख रहे थे .जबकि सच्चाई यह है कि यह सामाजिक उद्देश्य से युक्त कार्यक्रम नहीं बल्कि दूसरों का दर्द बेचने का व्यवसाय है .कार्यक्रम संचालक का दर्शक और अपाहिज को एक साथ्रूलाने का प्रयास विफल हो गया .कार्यक्रम संचालक न अपाहिज को रूला पाया और न दर्शक को .अंत में औपचारिक के लिए दशकों को धन्यवाद् कह दिया जाता है .
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